
ओमप्रकाश की सूझबूझ (Omprakash’s wisdom)
ओमप्रकाश की सूझबूझ (Omprakash’s wisdom): ओमप्रकाश नाम का व्यक्ति जिसका स्वभाव कुछ ख़ास नहीं पर उदारता से भरा पड़ा था। वह कभी भी किसी को दुखी नहीं देखना चाहता था भले वह दुख की आगोश में बैठ जाए। वह जहाँ भी जाता वहाँ सभी के चेहरों पर मुस्कान देखना चाहता था। वह कभी भी किसी के साथ ऐसा अनुचित व्यवहार नहीं करता जिसके कारण सामने वाले को ठेस पहुँच जाए। उसके इसी स्वभाव के कारण उसके गाँव वालों ने उसे प्रेम से “मेरा दिल” कह कर पुकारा करते थे। उसके गाँव के बच्चों ने उसे “मेरे परमेश्वर” कह कर पुकारा करते थे।
ओम प्रकाश जिस गाँव में रहता था उस गाँव में ना तो बिजली थी और ना ही जलाशय का कोई अच्छा साधन था। यहाँ तक कि उस गाँव में एक मध्य विद्यालय के शिवाय शिक्षा का कोई साधन नहीं था और ना ही कोई स्वास्थ्य केंद्र था। शाम होने के बाद उस गाँव के बच्चों को अपनी पढ़ाई पूरी करने में प्रकाश की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।
उस गाँव में कोई बीमार पड़ जाए तो उसे इलाज़ के लिए मिलो-कोस दूर जाना पड़ता था। उस गाँव के बच्चे जब मध्य विद्यालय उत्तीर्ण होते तो आगे की शिक्षा के लिए उन्हें अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। बहुततेरा तो बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते थे। इन सब कारणों को देखकर ओमप्रकाश दुखी हो जाता और इस समस्या का हल निकालने का प्रयास करता। पर वह यह भी जानता था कि दुखी होकर समस्याओं का हल नहीं निकाला जा सकता।
ओमप्रकाश ने इन समस्याओं को कई बड़े नेताओं, अफसरों और कई लोगों के समक्ष रखा परंतु किसी ने भी इन समस्याओं की ओर ध्यान तक नहीं दिया। वह जब भी घर से निकलता तो अपने कामों में सफल होने की उम्मीद लेकर निकलता लेकिन जब घर लौटता तो उदासी के भाव में ही रहता।
एक दिन वह सुबह उठकर देखा तो एक किसान अपने दो बैलों के साथ खेत पर जा रहा था। किसान को देखकर वह भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। किसान जब तक अपने खेतों में हल चलाता रहा तब तक वह वहीं पास में खड़ा होकर हल चलाने की प्रक्रिया को देखता रहा। वह घर आया और अपने पिता श्री से कहा-पिताश्री क्या आप बिना फार (हल में लगी लोहे की औजार) के खेतों की जुताई कर सकते हैं? तब पिता श्री ने जवाब देते हुए कहें-नहीं बेटा। इतना सुनकर वह पिता श्री से कहा-पिताश्री मैं आगे की पढ़ाई करने शहर जाना चाहता हूंँ। पिता श्री बोले ठीक है।
वह शहर गया और आगे की पढ़ाई अच्छे से की और पढ़ाई पूरी कर आईएएस अफसर बना। वह आईएएस अफसर बनने के लगभग ६ महीने बाद अपना गाँव लौट आया। लौटने के एक दिन पश्चात वह सभी गाँव वासियों को एक जगह पर एकत्र किया और उन सभी से कहा-हम वह हैं जो दुनिया नहीं जानती। इतना सुनकर किसी ने उससे प्रश्न किया-“मेरा दिल” आख़िर आप कहना क्या चाहते हैं। तब ओम प्रकाश ने कहा आप सब ने तो हल चलाएँ ही होंगे तो क्या आप बता सकते हैं कि आप हल प्रक्रिया का किसी भाग को निकालकर खेतों की जुताई कर पाएंगे?
तो वहाँ सभी एक साथ एक स्वर में चिल्लाएं-नहीं। फिर उसने कहा-हमारा पिछड़ने का कारण बस यही है कि हमलोग किसी भी कार्य को एक साथ ना होकर और उस कार्य की प्रकृति के विरुद्ध जाकर काम करते हैं। उसके बाद सभी ने एक साथ मिलकर काम करने लगे और कार्य की प्रकृति के साथ।
ओमप्रकाश की इसी सूझबूझ के कारण वह गाँव विकसित हो गया और खुशियों से झूमने लगा। वहाँ के किसानों की आय बढ़ी और उनके जीवन खुशहाल हो गए।
शिक्षा:-बड़े पैमाने पर विकसित होने के लिए एकता में और कार्य की प्रकृति के अनुसार चलना पड़ेगा।
रौशन सुजीत रात सूरज
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