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उत्तराखण्ड का भ्रमण (Uttarakhand tour)
दोस्तों सैर सपाटा किसे पसंद नहीं होता… तो आज हम करेंगे उत्तराखण्ड का भ्रमण (Uttarakhand tour)… और इस यात्रा वृतांत को लिखा है डॉ. वी.के.शर्मा जी ने… डॉ. वी.के. शर्मा जी मध्य प्रदेश के शहर भोपाल से हैं… जी हाँ… तालों का शहर भोपाल… यह भी एक घूमने योग्य जगह है… फ़िलहाल हम करते हैं उत्तराखण्ड का भ्रमण (Uttarakhand tour)…
रानी चौरी और श्रीनगर
अगला पड़ाव रानी चौरी में पंत नगर कृषि विश्वविद्यालय के केन्द्र पर था। बड़कोट- (पुरानी) टिहरी-चम्बा होते हुये रानी चौरी पहुँचे। उन दिनों टिहरी डैम के बनने का काम चल रहा था। जल भंडारण के लिये इस विशाल योजना के अंतर्गत मार्ग कई स्थानों पर अवरुद्ध या अस्थायी बने थे। रानी चौरी के विश्राम गृह में सभी की व्यवस्था की गयी थी और रात वहाँ ही व्यतीत की।
यह क्षेत्र काफ़ी उतराई और चढ़ाई वाला है। समुद्रतल से ५०००-६५०० फुट तक के मध्य है तथा सेब के बागीचे कम हैं। बाँध का निर्माण होना है और लोगों के घर और खेत बाँध में समा जाने हैं। इसलिये मुआवजा लेकर भी स्थान नहीं छोड़ रहे थे। सुन्दर लाल बहुगुणा जी भी मार्ग में मिल गये थे क्योंकि वे धरना दे रहे थे। सरकार बाँध की उपयोगिता को वरीयता दे रही थी।
अगले दिन सेब के बागीचे देखने का कार्यक्रम था और पता चला कि इंचार्ज अवकाश पर है और किसी को भ्रमण या चर्चा के लिये कहा भी नहीं है। सेमिनार हाल में ही पुस्तकालय था। सब्जी विशेषज्ञ ने सब्जियों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी। स्थानीय होने के कारण क्षेत्र में सेब से सम्बंधित जानकारी भी दी। रात को विश्राम भी यहीं किया।
प्रातः नाश्ता के उपरांत पुराने पहाड़ी मार्ग द्वारा श्रीनगर अँधेरा होने से पहले पहुँच गये थे। हमारा रहने का प्रबंध बाज़ार में ही एक सराय में किया गया था। प्रबंध उचित नहीं था परन्तु सामान रखकर अन्य विकल्प देखा। गढ़वाल मंडल के होटल में स्थान मिल सकता था परन्तु कुछ बागवान वहीं सराय में रहने के इच्छुक थे क्योंकि वह बाज़ार में ही थी। होटल में २, ३ कमरे मिल सकते थे। एक कमरा मैंने अपने लिये और दूसरा ३ बागवानों के लिये ले लिया।
श्रीनगर शहर अलकनंदा नदी के किनारे बसा हुआ समुद्रतल से लगभग १८०० फुट की ऊंचाई पर घाटी में है। मुख्य मार्ग पर ही कार्यालय, होटल, व्यवसायिक तथा अन्य गतिविधियाँ होती हैं। नगर में हेमवती नन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला से बहुत ही छोटा और सामान्य शैली से निर्मित भवन थे। उद्यान विभाग का सेब का बागीचा सीमित क्षेत्र में रह गया था। वहाँ निचले पर्वतीय क्षेत्र के लिये ४ जातियों के ८, ८ पेड़ लगे थे और २ अन्य स्थानीय उन्नत जातियों के ८ पेड़ थे। बीच में आसपास की बस्ती की गंदी नाली बह रही थी। कुछ क्षेत्र सब्जियाँ के अंतर्गत था जो इस समय खाली था।
विश्वविधालय और मंदिर के मध्य का क्षेत्र होने के कारण बागीचा सिमट गया था और कुछ वर्ष में समाप्त ही हो जायेगा। प्रयोगशाला तथा संग्रहालय मार्किट में दुकानों के ऊपर की मंज़िल पर बनाये गये थे। शायद यह किराया पर लिया गया स्थान था। यहाँ एक ओर प्रयोगशाला और उद्यान अधिकारी का कक्ष था। शेष स्थान पर चार्ट और माडल सजाये गये थे। बड़े आकर्षक और सूचना प्रदान करने वाले थे तथा पर्यटकों और यात्रियों के आकर्षण का केन्द्र थे। अधिकारी का धन्यवाद दिया।
श्रीनगर में हम लोगों के लिये सेमिनार हाल में “हिमाचल प्रदेश में हो रहे सेब अनुसंधान से उत्तराखंड क्या लाभ उठा सकता है?” विषय पर चर्चा का आयोजन किया गया था। स्थानीय पत्रकार और बागवान बुलाये गये थे। हिमाचल प्रदेश में हुये अनुसंधान का संक्षिप्त विवरण देते हुये चर्चा को आरम्भ किया गया था और यह उत्तराखंड के उद्यान विभाग और वहाँ के बागवानों पर निर्भर करता है कि कितना और कैसे लाभ ले सकते हैं। हिमाचल प्रदेश के बागवानों से चर्चा और बागीचे देख कर लाभ उठाया जा सकता है तथा बागवानी विभाग और विश्वविद्यालय इसके लिये यहाँ प्रशिक्षण आदि सुविधायें दे सकता है। हिमाचल के बागवानों ने अपने अनुभवों को साझा किया। आपसी चर्चा सफल रही। बीच-बीच में पत्रकारों ने भी भाग लिया।
श्रीनगर से हरिद्वार आते हुये हम देव प्रयाग में अलक नंदा नदी और भागीरथी नदी के संगम पर कुछ समय रुके। दोनो नदियों का जल अलग-अलग और एक स्थान पर एक होता देखना आकर्षक था। वहाँ से ऋषिकेश होते हुए रात हरिद्वार में विश्राम किया ताकि सभी की हर की पैड़ी पर रात्रि को आरती में सम्मिलित होने की इच्छा पूर्ण हो। अगले दिन धौला कुंआ में रात्रि विश्राम के स्थान पर हरिद्वार में एक दिन और रुक गये। अगले दिन प्रातः होते ही हर्बर्ट पुर, पांवटा साहिब और नाहन होते हुये शिमला पहुँच गये थे।
डॉ. वी. के. शर्मा
शिमला
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