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तिरंगा भारत की शान (Tiranga India’s pride)
तिरंगा (Tiranga) भारत की शान है,माँ भारती की अमिट पहचान है।
हम देशप्रेमियों के दिल की धड़कन,यही हमारी जान है।
हिम शिखर पर लहराता,गौरव राष्ट्र का बतलाता।
हर हिन्दुस्तानी दिल का,बढ़ाता ये सम्मान है।
इसकी खातिर हर फौजी, देना अपनी जान है।
हर देशभक्त का सपना,तिरंगे का मान है।
जो शौर्य की गाथा रचता,वो दहाड़ता हिन्दुस्तान है।
हर हिन्दवासी की जान,और वतन का अभिमान है।
तिरंगा भारत की शान है,माँ भारत की अमिट पहचान है।
मना रहे स्वतंत्रता दिवस हम
मना रहे स्वतंत्रता दिवस हम खुश हो झंडा फहराते हैं,
याद शहीदों की कर-कर के गीत ख़ुशी के गाते हैं।
याद करो चरखे वाले को कैसी अजब कताई की,
तोप-तमंचे नहीं चलाए सत्याग्रही लड़ाई की।
याद भगत सिंह को भी करलो इंकलाब नहीं भूला था,
स्वतंत्रता के लिए वीर फाँसी पर झूला-झूला था।
दुर्गावती रूप दुर्गे का रख भारत में आई थी,
युद्ध क्षेत्र में रण चण्डी वन मारा-मार मचाई थी।
महाराणा ने देश की खातिर अपनी जान गँवाई थी,
जंगल-जंगल भटक-भटक कर घास की रोटी खाई थी।
याद शिवाजी को भी करलो चतुराई का चोला था,
मुगलों की ताकत को जिसने तलवारों पे तौला था।
याद करो लक्ष्मीबाई को मरने तक ना भूली थी,
अंग्रेजों को झाँसी देना हरगिज़ नहीं कबूली थी।
आओ मिलकर याद करें अब उस सेनापति बोस को,
दुनियाभर की कोई ताकत रोक सकी न जोश को।
मना रहे स्वतंत्रता दिवस हम खुश हो झंडा फहराते हैं,
याद शहीदों की कर-कर के गीत ख़ुशी के गाते हैं।
गुरु
नवजीवन देता है सबको,
नवशक्ति का आह्वान करे।
जो झुक जाता गुरु के आगे,
वह गुरु ही सबका उद्धार करे।
मार्गदर्शक वो गुरु शिक्षक ही,
जीवन की राह दिखाता है।
शिक्षा देकर हमको अपने,
जीवन में आगे बढ़ाता है।
जो जीवन के मझदार में फँसता,
उसका भी हो जाता उद्धार सदा।
जो गुरु चरणों की शरण में आता,
उसका ही होता बेड़ा पार सदा।
जटिल से जटिल समस्या का
गुरु ढूंढे तुरंत निदान,
विद्या सा जग में नहीं
दूजा कोई महादान।
सर्व समाज और राष्ट्र प्रणेता,
कोई और नहीं गुरु शिक्षक ही होता।
गुरु की महिमा है अपरम्पार,
गुरु दीक्षा पाकर बढ़ता है उन्नत शिक्षा का संसार।
शिक्षा की अलख जगाकर वो,
पुरानी नीति कुरीति मिटाता रहा।
बिना शिक्षा के तमस फैला जहाँ पहले,
अब वहाँ शिक्षादीप का ज्ञानप्रकाश उजाला रहा।
पापा
संघर्ष की आँधियों से कभी डरे नहीं
हौंसलों की उड़ान हैं पापा
बच्चों की हर ख़्वाहिश हर ख़्वाब वो पूरा करते
हम बच्चों की शान हैं पापा
खून पसीना एक करके अपने बच्चों का भविष्य बनाते हैं
हम बच्चों को रहेगा सदा आप पर गुमान है पापा
हम बच्चे आप बिन महज़ कतरा ही तो हैं
महान तो वो शख्स हैं जिसकी हम संतान हैं पापा
खुद का सुख-चैन सब त्याग कर
हम बच्चों को जीवन में पारंगत बनाते
ऐसे हमारे महान हैं पापा
मदहोश धड़कन जिया बेक़रार
मदहोश धड़कन जिया बेक़रार,
प्यार की बरसात की पहली है फुहार।
भीगना चाहते हैं तन और मन,
छाया है प्यार का मौसम आई बहार।
प्रेमी हुए बावरे गाए गीत और मल्हार,
देखो आँखों में छलका है बेशुमार ख़ुमार।
आंखों ही आंखों में खोने लगे हम,
एक दूजे के दिल में रहने लगे हम।
मादक नैन मेहबूबा से लड़ने लगे जब,
मेहबूबा का दिल भी बहकने लगे तब।
दीदार से रूह को चैन मिलने लगे तब,
बन्दगी जिनकी ज़िन्दगी बनने लगे जब।
भावनाएं मन की क़ुरबत आने लगे जब,
एहसास दिल को दिलाने लगे तब।
ज़िन्दगी एक फ़न है
ज़िन्दगी एक फ़न है,
फ़नकार बनकर जीया करो।
किसी और की न सोचना,
सिर्फ अपने दिल की सुना करो।
बीते लम्हे गर अच्छे न हों,
तो बुरा सपना समझ भूल जाया करो।
ज़िन्दगी एक ख़ूबसूरत नायाब तोहफ़ा है,
इसे बेहतरी से जीकर और बेहतर बनाने की कोशिश किया करो।
आज को अभी को पल-पल को ख़ुशनुमा बनाया करो,
होंठों पे अपने हँसी मुस्कुराहट लाया करो।
खुलकर जीने का नाम ही ज़िन्दगी है,
बिंदास और बेबाक़ होकर ख़ुशी के गीत गाया करो।
ख़ामोशी कुछ कहती है
ख़ामोशी कुछ कहती है,
कभी तो इसको सुना करो
गवाह है दिल ये अंदर अपने
असंख्य जज़्बात रखती है।
अनकही जुबाँ इसकी,
कभी तो तुम समझा करो।
हवा का झोंका साथ ले आया,
गुमसुम सी बातें और स्मृतियों का साया।
मेरे साथ मेरे हक़ में कुछ भी नहीं है अब,
ख़्वाबों की दुनिया और तसव्वुर ही है अब।
ख़ामोशी मेरे सूने से जीवन की बहार ढूंढती है,
ख़ुशबू से महकती समाँ ढूंढती है।
बंज़र मन में तेरे कदमों की आहट ढूंढती है,
बेबसी अब थककर मुस्कुराहट ढूंढती है।
आओ पर्यावरण दिवस मनाएँ
आओ पर्यावरण दिवस मनाएँ,
पहले इसे बचाने की क़सम खाएँ।
पेड़ कभी न काटे जाएँ,
गर स्वार्थी मानव इंसान कभी बन पाएँ।
परिवेश में पेड़-पौधे पशु-पक्षी और जन-मानस सब एक हैं,
फिर क्यों नहीं करते प्रेम सभी को और क्यों नहीं बनते नेक हैं।
हम लोग अपनी और अपने परिवार की देखभाल तो कर लेते हैं,
पर कभी हमारे परिवेश की सोच न पाते हैं।
आज बाग़ देखने को नहीं मिलते,
हरियाली सुख से वंचित रह जाते हैं।
आख़िर हम पेड़ क्यों नहीं लगाते हैं,
जबकि पेड़ ही हमें फल फूल सब्जी यहाँ तक कि हमें प्राणवायु ऑक्सीजन छाँव भरा सुकून इतना सब कुछ तो देते हैं।
पशु पक्षियों को मार काट कर क्रूर मानव घोर कलियुग परिभाषित करते हैं,अब हाय कोरोना हाय कोरोना तौबा-तौबा क्यों करते हैं।
सज्जन बनकर इंसान बनो,
प्रकृति से निश्चल प्यार करो।
क्या कुछ नहीं देती प्रकृति हमको,
पर कभी हमसे है क्या लेती
सदा ही देती सदा ही देती।
यादों की बस्ती
कभी वक्त कहाँ ठहरा है,
देखूँ जहाँ जहाँ तेरी यादों का पहरा है।
यादों की दीवारें मौन गुंज़ार कर रही हैं,
तन्हाई लम्हों को फिर से कुरेद रही है।
आज भी हवाएं तेरा हाल बताने आती हैं,
मन में होती सरसराहट जैसे तेरे गुनगुनाने की सदा आती है।
बेज़ार दिल अक़्सर पूछ लेता है,
ज़िन्दगी का सबब क्यों कुछ न कहता है।
यहां कोई और कभी न आता है,
ये यादों की बस्ती है यहां सिर्फ तेरा ख़्याल आता है।
भगवान बुद्ध
सारे सुख सम्पदा त्यागते,
सत्य पर चलकर खुद को जानने की ठानते।
जीवन सत्य को जिसने जाना है,
वही भगवान बुद्ध कहलाना है।
जो मन, वचन और कर्म से शुद्ध है,
हकीकत में बस वही इक बुद्ध है।
लालच,घृणा,काम,क्रोध सब त्यागे तब भए शुद्ध,
सत्य,सनातन,धर्म,समपर्ण पर चल चल बन गए बुद्ध।
क्योंकि आज ही बुद्ध जन्म है पाते
इसलिए बुद्ध पूर्णिमा हम पर्व मनाते।
साधारण अजनबी
कोई साधारण अजनबी सा इंसान इस दिल में घर कर जाता है,
अजनबी होकर भी अपनेपन का एहसास कराता है।
वो बहुत अलग है औरों से उसे भीड़ में चलना न भाता है,
एकांत मंज़ूर है उसे कभी पर दिखावटी लोगों का साथ रहना रास न आता है।
उसके जीने का अंदाज़ अलग है,
उसके सादापन का साज़ अलग है।
झरने सा वो बहता जाता,
ख़ुशी हो या ग़म मुस्कुराता जाता।
कभी न थकता चलता जाता,
जीवन को नई राह दिखाता।
तन्हा मन उसका ख़ुद्दार बहुत है,
परेशाँ है मगर जताया न करता।
असमानता का चश्मा
असमानता का चश्मा जब तक अपनी समझ से न हटा पाओगे,
तब तक न अपने समाज को सुंदर और न अपने देश को मेरा भारत महान बना पाओगे।
जहां बेटियों और महिलाओं को समान दर्जा न दिला पाओगे,
वहां कभी सशक्त समाज की कल्पना भी न कर पाओगे।
आज किसी भी क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से कतई कमतर नहीं
फिर भी अगर बेटियों को आगे बढ़ने का अवसर न दे पाओगे,
तो याद रखना समाज में कभी सही मायने में विकास न कर पाओगे।
प्रेम की भाषा ही समझे दिल
तेरी साँसों की गरमाहट में,
मेरी दुनिया बसी हुई है।
प्यार के दो पल जीने को,
दिल की दुनिया बसी हुई है।
प्रेम ही मंदिर प्रेम ही पूजा,
प्रेम से बढ़कर नहीं कोई दूजा।
प्यार का मौसम लाने को,
बरसात रूमानी हुई है।
प्यार मिले तब इकरार मिले जब,
जीने का विश्वास मिले जब।
मन के मुरझाए बागों को,
प्रेमप्रसून खिलने का एहसास मिले जब।
बिखरे दिल के ज़ख़्मों को मैं,
मद्धम मद्धम सहलाता हूँ।
साया हूँ तेरे प्यार का मैं,
एहसास को पास बुलाता हूँ।
चल बन जाएं हमराही दो,
क्या रखा है और जीवन में।
प्यार के दो पल जी ही लो,
सब सूना है प्रेम बिन जीवन में।
मुँह फेर न लेना कभी मुसाफ़िर,
ये सफ़र रोज़ न आता है।
प्यार में जीलो जीवन सारा,
ये नश्वर जीवन फिर लौटके न आता है।
प्रेम की भाषा ही समझे दिल,
प्रेम अभिलाषा ही रक्खे दिल।
प्रेम पथिक बन जाने को,
सफ़र है करता रहता दिल।
गुज़रे हुए लम्हे
मुस्कुराता हुआ चेहरा उसका जब करीब से देखा था,
हुआ शादाब दिल जो खिल उठा था।
गुज़रे हुए लम्हे फिर लौटकर तो नहीं आते,
पर यादों का कारवाँ होंठों पे हँसी मुस्कान ज़रूर ले आता है।
वो ख़ुशनुमा पल कैसे भूल सकता मैं,
उसके मीठे अल्फ़ाज़ और जादूई मुस्कान को आज भी याद करता मैं।
ज़िन्दगी को सही मायने में जीने के लिए ज़िन्दादिल होना बेहद ज़रूरी है,
दो पल की ज़िन्दगी है इसे यादगार बनाना ज़रूरी है।
खुद को कहीं गुम न होने देना,
खुद को अपनेआप में तलाशना भी ज़रूरी है।
सुकून मिलता है
सबा में ठंडी हवा घुल जाए सुकून मिलता है,
तेरा ख़्याल दवा बन जाए सुकून मिलता है।
कुरेदने वाला गर दिल सिल जाए सुकून मिलता है,
बेक़रार दिल को क़रार आ जाए सुकून मिलता है।
बेशक़ तसव्वुर में आए पर हक़ से इस दिल में रुक जाए सुकून मिलता है,
मेरी ख़ामोशियों के मंज़र को मौसीक़ी-ए-मोहब्बत बना जाए सुकून मिलता है।
कोई सादापन का इंसान अपनापन दे जाए सुकून मिलता है,
बाहों में आकर अपने होने का एहसास करा जाए सुकून मिलता है।
अरमान-ए-गुल खिलकर दिल को कन्नौज सा महका जाए सुकून मिलता है,
दिन हो या रात संग रहे तू पास तेरे लिए जो लिखूँ गर वो अल्फ़ाज़ हमको हमराज़ बना जाए सुकून मिलता है।
अभिप्रेरणा
सतर्क रहें भयभीत नहीं,
कोरोना बीमारी है भूत नहीं।
हर भोर से पहले हुआ गहरा अंधियारा,
पर कभी हुआ न ऐसा कि हुआ न हो सवेरा।
अभिप्रेरणा और आत्मबल ही जीवन को संबल देते हैं,
हिम्मत न खोना हारे हुए भी कभी न कभी तो जीते हैं।
बस धैर्य रखो एहतियात बरतो,
हौंसलों को ज़िन्दाबाद रख लो।
देखना एक दिन ऐसा भी आएगा,
कोरोना को हराकर मेरा भारत जीत जाएगा।
गुनाह तो नहीं है
बूंदों का बरसना गुनाह तो नहीं है,गुलों का महकना गुनाह तो नहीं है।
आसमां में सितारों का चमकना गुनाह तो नहीं है,शबनम आफताब से क्यों न मिलेकिसी को चाहना गुनाह तो नहीं है।
मोहब्बतों की रुत आना गुनाह तो नहीं है,किसी का किसी पर दिल आना गुनाह तो नहीं है।
भंवरों का फूलों पर मंडराना गुनाह तो नहीं है,नज़र से नज़र मिलाना गुनाह तो नहीं है।
अरमान~ए~गुल खिलना गुनाह तो नहीं है,दिल के जज़्बात बेताब होना गुनाह तो नहीं है।
दिल से दिल तक ग़ज़ल उठना गुनाह तो नहीं है,प्यार का प्यार में मचल उठना गुनाह तो नहीं है।
सकारात्मक सोच
चुनौतियों को स्वीकार कर,हौंसलों की उड़ान भर।
मुश्किलों का काम तमाम कर,खुद पे तू विश्वास कर।
न गुमान कर इस रंग-रूप पर,न ग़ुरूर कर इस धन-दौलत पर।
न कुछ साथ आया था, न कुछ साथ जाएगा।
ज़िन्दगी क़ुदरत का इक हसीन तोहफ़ा है,इसे दिल से क़बूल कर।
दो पल की ये ज़िन्दगी है ,इसे बेहतरी से जिया कर।
उम्मीद की किरण फिर जागेंगी,इसलिए मुस्कान बिखेरो चेहरे पर।
मिट्टी की सोंधी सी ख़ुशबू,दूर तलक छा जाती है।
बारिश की रिमझिम बूंदों से,दिल की ज़मी भी नम हो जाती है।
ख़ुशियों की चाहत के फूल भले ही आज मुरझा से गए हैं,पर हिम्मत बरक़रार रखा कर।
उमंगे भरकर बहारें इक दिन आएंगी,खुशियों के रंगों से सजा इंद्रधनुष साथ लाएंगी।
आएगा वही मौसम ख़ुशनुमा ज़िन्दगी का,बस थोड़ा धैर्य रख कर कैद रहो अपने घरों पर।
खिल सा गया मैं
उसने लफ़्ज़ों से स्पर्श किया,और खिल सा गया मैं।
उसका बेहिसाब बरसना,और महक सा गया मैं।
संकुचित है मन मेरा,मृत मरु का मैं पड़ा।
कहना जो भी चाहा था,वो कह भी न पाया मैं।
उसके नेह से भरते हैं प्रश्न,निरुत्तर सा मैं खड़ा।
उसने लफ़्ज़ों से स्पर्श किया,और खिल सा गया मैं।
बात इतनी सी ही थी,मगर सही जाए न।
खूबसूरत इतनी थी वो,कि उससे नज़र हटाई जाए न।
कशमकश में उलझा रहा,नासमझ दिल सा हूँ मैं।
उसने लफ़्ज़ों से स्पर्श किया,और खिल सा गया मैं।
यादों के झरोखों से
दिल से जुड़ी हैं आपकी यादें,और हमेशा दिल में रहेंगी आपकी यादें।
दुनिया से आपका शरीर जुदा हुआ है,आपके गुण व्यक्तित्व अभी भी बाकी हैं।
आपकी अच्छाई आपके अपनत्व भाव,यहीं तो हैं हमारे आसपास।
आपका स्नेह प्यार और दुलार,मैं महसूस करता अब भी हूँ।
मेरी कलम को प्रेरणा देते थे तुम,मेरे प्रेरणास्रोत आज भी हो तुम।
बेशक दुनिया के लिए छोड़कर चले गए हो तुम,पर मेरे लिए अब भी दिल में रह गए हो तुम।
सबके साथ खड़े रहते तुम,उन लम्हों को दोहराते हम।
उगता हुआ आफ़ताब या ढलती शाम हो तुम,अंतिम साँस तक यादों में नज़र आआगे तुम।
यादें वो सहारा हैं जिन्हें कोई छीन न पाएगा,अमर रहेगा नाम तुम्हारा दिलो दिमाग से न जाएगा।
माँ
ये ज़मीं आसमां मुझे छोटे लगते,तेरे किरदार सा नहीं बड़ा कोई माँ।
जहां तू होती है,वहां खुशियां रहती हैं।
क्या धन क्या दौलत,मां तुझसे ही होती घर-घर रौनक।
मुसीबत के बादलों ने कब-कब नहीं घेरा तुझको,पर तूने हिम्मत कहाँ छोड़ी तू हौंसलों की झनकार है माँ।
ज़िन्दगी कभी जन्नत न होती,ज़िन्दगी में गर माँ न होती।
दुनिया साथ छोड़ सकती है,पर हर हालात में अपनी संतान का साथ छोड़ती न माँ।
माँ सा नहीं जग में कोई दूजा,तू वन्दनीय है करूँ तेरी पूजा।
वो नसीब वाले होते हैं माँ होती जिसके पास,कभी न होने देती माँ अपने बच्चों को उदास।
हर एक की माँ को नमन करूँ मैं,स्वीकार करो माँ मेरा बारम्बार प्रणाम,जिस घर में रहती माँ,वो स्वर्ग ही लगता धाम।
चाय
चाय की चुस्की में घुला है रफ़्ता-रफ़्ता प्यार,
मुस्कुराते लबों पर सदा बढ़ता रहता ख़ुमार।
एक कुल्हड़ चाय से उतरे सिरदर्द की मार,
हो चाय सा इश्क़ भी हर दिन बन जाए इतवार।
रखो अंदाज़ अपना जैसा होता है दिलदार,
छूटती नहीं तलब इसकी भले ही हो जाए उधार।
सुबह-सुबह जो तुम मेरे लिए गर्मागरम चाय लेकर आती हो,
कसम से तुम मेरा हर दिन ख़ास बनाती हो।
मैं और तुम यानी हम से चाय भी तो प्यार करती है,
तभी तो होंठों से आकर सीधे गले में उतरती है।
तेरा साथ न छोड़ेंगे तू मीठे बोल सी घुलकर मिल जाती है,
कितने रिश्ते नाते जुड़वाती है जब तू टेबल पर नाश्ते में आती है।
गुनाह तो नहीं है
बूंदों का बरसना गुनाह तो नहीं है,गुलों का महकना गुनाह तो नहीं है।
आसमां में सितारों का चमकना गुनाह तो नहीं है,शबनम आफताब से क्यों न मिलेकिसी को चाहना गुनाह तो नहीं है।
मोहब्बतों की रुत आना गुनाह तो नहीं है,किसी का किसी पर दिल आना गुनाह तो नहीं है।
भंवरों का फूलों पर मंडराना गुनाह तो नहीं है,नज़र से नज़र मिलाना गुनाह तो नहीं है।
सर्द जनवरी में अरमान~ए~गुल खिलना गुनाह तो नहीं है,दिल के जज़्बात बेताब होना गुनाह तो नहीं है।
दिल से दिल तक ग़ज़ल उठना गुनाह तो नहीं है,प्यार का प्यार में मचल उठना गुनाह तो नहीं है।
कशिश तेरी महताब जैसी
कशिश तेरी महताब जैसी,
महताब में नज़र तू आने लगी।
इश्क और मुश्क तुझसे दीवाना तेरा,
दिल की गली प्यार की इक कली लगाने लगी।
संग तू है तो और कोई नहीं मेरी हमराज़एतमन्ना,
तेरे होने से वीरान दिल में रोशनाई आने लगी।
लाज़मी है चाँद का गुमाँ टूटना,
आखिर मेरी चाँद के आगे उसकी चमक फीकी पड़ने लगी।
जब से दो जिस्मों में एक जान बसने लगी,
प्यार की दुनिया आबाद होने लगी।
अतुल पाठक “धैर्य”
जनपद हाथरस, उत्तर प्रदेश
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