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सपने (Dreams) भी अपने होते हैं
सपने ( Dreams) भी अपने होते है
सपने (Dreams) भी अपने होते हैं
थोड़ी कोशिश करके तो देख
पत्थर दिल भी पिघलते है
कभी उसे मुस्कुराकर तो देख॥
पा जायेगा सबकुछ तू
थोड़ी मेहनत करके तो देख
मिल जायेगा तुम्हें वो
थोड़ी हिम्मत करके तो देख॥
जानना चाहते हो जो उसकी रज़ा
अपने दिल की बात कहनी तो पड़ेगी
लगा बैठे हो जो दिल ये किसी से
दर्द की चुभन थोड़ी सहनी तो पड़ेगी॥
हो रहे है जो कष्ट आज तुम्हें
तुम्हारी मेहनत ज़रूर रंग लायेगी
नहीं रहता पतझड़ भी हमेशा
तुम्हारी बगिया में भी हरियाली आयेगी॥
मुश्किल से मिलते है मौके यहाँ
जब भी मौका मिले उसे लपक लेना
लेकिन छोड़ना नहीं साथ किसी का मझधार में
कभी किसी के दामन से खुशियाँ न झटक लेना॥
आइने की सूरत पर मत जाओ
आइना तो बस दिखाता है अक्स हमें
दिल में क्या छिपा है किसके
ये नहीं बता सकता कोई शक्स हमें॥
अनजाने सफ़र में भी कभी
मंज़िल की उम्मीद न छोड़े हम
है ये तो कमज़ोर के सपने ( Dreams)
कभी ये समझकर न तोड़े हम॥
मेरा प्यारा गांव नवापुरा
चारो ओर है सरसों की हरियाली छाई
जहाँ प्रेम रूपी एक धारा बहती
तरह तरह के जाति-जनजाति
भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृति
फिर भी अटूट एकता यंहा की,
धन्य हुआ यंहा जन्म लेकर मैं
गर्व होता है नवापुरा कहकर
सच में प्यारा है मेरा गाँव
नवापुरा जो देता प्रेम का संदेश
है बागोड़ा तहसील के पश्चिम में
तिरंगे की लाड-प्यार में
रोज पलता बढ़ता तिल तिल
मेरा प्यारा नवापुरा गाँव
जैसे लगता छोटा सा
मेरा प्यारा गाँव नवापुरा
ए ज़िन्दगी में तुझसे नाराज नहीं हूँ हैरान हूँ
कुछ साँसे और मेरी,
मन करे तो गिन दे जिंदगी
नहीं तो, कफ़न बन
मुझ पर मौत लपेट दे
रूठी है अब रूठी ही सही
झूठ ओढ़ मुस्काने का तू
मुझे ऐब दे, फ़रेब दे
क्यूँ कहना, क्या है गम
गुजर जाने दे मुझे
बेपरवाह मुस्कुराते
रूठी, तो रूठी ही रह
थक गए हैं अब में इस संसार से
ए ज़िन्दगी
तुम्हे मनाते मनाते
अब मुझे नहीं जीना
हे भगवान अब मुझे तेरे पास ले जा
अब मुझे इस ज़िन्दगी में नहीं जीना
शीत लहर में हाल
टूटी-फूटी झोपडी, ठण्डी का आघात !
कैसे कटे गरीब की, बिना रजाई रात !!
क्या होता है ठंड मे, शीत लहर से हाल !
जिनके सर पर छत नही, उनसे करो सवाल !!
अकड गया पूरा बदन, किट-किट बाजे दांत !
मारे ठण्डी के सभी, सिकु़ड गई हैं आंत !!
लगे ठिठुरने ठण्ड से, जालोर की जब रात !
क्या होंगे फिर सोचिये, नवापुरा के हालात !!
देख नजारा ठण्ड का, चढ़ने लगा बुखार !
कैसे जाऊं गाँव मैं, करता यही विचार !!
थामा ज्यों ही ठण्ड ने, शीत लहर का हाथ !
काया को भाने लगा, कम्बल का त्यों साथ !!
एक हाथ में चाय है, दूजे में अखबार !
मीठी मीठी ठण्ड है, सर्दी का उपहार !!
ठंड भगाने का मुझे, अच्छा लगा उपाय !
प्याला भर कर पीजिये, अदरक वाली चाय !!
सावन आया रे
सावन आया रे! सजनी
रिमझिम बारिश की फुहार,
ठण्डी-ठण्डी हवाओं की बयार।
हरे-भरे सब हुए बाग उपवन,
चिड़िया गाये राग मनोहार।
सावन आया रे !सजनी सावन आया।।
कभी-कभी घनघोर घटाओं का
खूब बरसना,
प्रकृत का धूल कर निखरना।
रमणीक होता है कुदरत का उपहार,
ऊपरवाला है सबसे बड़ा चित्रकार।।
सावन आया रे! सजनी सावन आया।।
खुशियों का हमें एहसास कराता,
इन्द्रधनुष सबके मन को भाता।
ताजगी का एहसास कराती है
रिमझिम फुहारें,
इस महीने आते खूब सारे त्योहार।
सावन आया रे! सजनी सावन आया।।
हरियाली तीज सुहागिनों के मन
को हर्षाता,
रक्षाबन्धन भाई-बहन के प्रेम को
अटूट बनाता।
चारों तरफ बूंदों के मोती बिखरे,
ओढ़ रखी है धरा ने अपने सर
पर चुनर धानी।
सावन आया रे! सजनी सावन आया।।
नाचे मयूर बादलों के संग,
कजरी गीत लगे मनभावन।
बागों में झूलों को देख याद
आये अपना बचपन,
ये सब हो गए किस्से-कहानी।
सावन आया रे! सजनी सावन आया।।
कारगिल विजय दिवस
लगा कर धूल मस्तक पर बहा कर प्रेम की धारा।
चला हस्ती मिटाने को भगत आज़ाद सा यारा।
वतन पे जाँ फ़िदा कर दे यही ख़्वाहिश निराली है।
समर्पण का धरम तुम भी निभाना शौक से न्यारा।
लिए जज़्बा मुहब्बत का, खड़ा सरहद मिटाने को।
वतन काशी वतन काबा वतन पे जाँ लुटाने को।
रखा महफूज़ भारत को लहू अपना बहा करके।
बढ़े जो हाथ उनको काट कर जननी बचाने को।
किया कुर्बान बेटे को तड़प ममता सहा करती।
लिटा कर गोद पूतों को तरसती माँ रहा करती।
लुटा कर जाँ कफ़न ओढ़ा तिरंगा आज वीरों ने।
सुलगती आग चिंगारी नमी बन कर बहा करती।
बचाई शान देकर जान सीमा पर जवानों ने।
बिछा दीं लाश दुश्मन की यहाँ जिंदा जवानों ने।
“अमर ज्योती” सदा जलती दिलाती याद कुर्बानी।
दिखा कर हौसला देखो निशानी दी जवानों ने।
आभारी है भारत
उनके रक्त से सींची हुई एक फुलवारी है भारत
कारगिल के वीर सपूतों का आभारी है भारत
कारगिल वो युद्ध जिसे हम भूले से भी न भूले
जाने कितने लाल यहां के बलिवेदी पर जा झूले
जाने कितने वीर वहां पर घायल हुए पडे़ थे जी
लेकिन उनके मजबूत इरादे नभ से भी बड़े थे जी
ईश्वर से जो मिला वो अमूल वरदान बचा लेते
वो भी अगर चाहते तो अपनी जान बचा लेते
पर उन्होंने भारत मां की आन बचाने की ठानी
हिन्द के हर एक वासी के सम्मान बचाने की ठानी
उनके बूते ही पराक्रम का अधिकारी है भारत
कारगिल के वीर सपूतों का आभारी है भारत
भारत माता के दामन पर लिख डाली अक्षयगाथा
उनकी चौडी़ छाती से पाक आज भी भय खाता
दर्द और पीडा़ से न कोई समझौता वीरों में
शौर्य साहस का संगम इकलौता यहां के वीरों में
उनका हिम्मत उनका बल ही भारत मां का रक्षक है
उनके अदम्य साहस की पूरी दुनिया प्रशंसक है
डटे हुए थे बिना डिगे वो पर्वत जैसे मुश्किल में
छाप छोड़ दी भारत के बच्चे बच्चे के दिल में
उनकी उन बलिदानों का सदा पुजारी है भारत
कारगिल के वीर सपूतों का आभारी है भारत
कारगिल के वीर सपूतों का आभारी है भारत
बरसात
वर्षा की बूंदों सी तुम मुझे लगती हो,
सावन में हल्की धूप सी तुम खिलती हो,
लगती हैं ऐसी मुझे तेरे होठों की हंसी,
बूंदो की जैसी कोई हो फुरफुरी,
वर्षा की बूंदो सी तुम मुझे लगती हो,
ओढ़ के तुम रिमझिम की चादर,
फुआरो की तरह तुम खिलखिलिया करोगी तुम
लगता हैं मुझे हर दिन तुम बारिश
में ही बुलाया करोगी
बोलोगी कभी इतराके कभी खिलखिला के
छतरी की मुझको क्या है पड़ी
वर्षा की बूंदो सी तुम मुझे लगती हो,
यह रिमझिम बारिश युही बरशती रहे
यह सावन युही गूँजता रहे
बारिश जैसा आनंद कहा
नाले नदियों बहने लगती हैं
बारिश के बाद गाँवो में हरियाली से
खेत खिलने लगते हैं।
आ जाहो तुम मेरी बाहों में
चादर ओढ़ कर चलते बार
वर्षा की बूंदो सी तुम लगती हो
धर्म-धरा नवापुरा री नगरी
धर्म-धरा नवापुरा री नगरी…………………!
ढोल अनूठा वाजे रे……………………….!!
महादेव जी रो गाँव रे बीच मे बड़ो मंदिर…..!
इनसे नवापुरा जगमगा रे………………….!!
के धरती नवापुरा री………………………..!
हाँ रे धरती नवापुरा री……………………..!!
आ सोना करती मुंगी धरती रे………………!
के धरती नवापुरा री……………………….!!
इस धरती में जीरो पाके सरसों पाके……….!
गेंहू रा भण्डार घणा रे……………………..!!
के धरती नवापुरा री………………………..!
हरिया भरिया खेत माये……………………!!
अनार खजुर पाके रे, की धरती नवापुरा री…!
आ सोना करती मुंगी धरती रे………………!!
के धरती नवापुरा री, हा रे धरती नवापुरा री..!
मीनक मीनक में भेद नी करणो……………!!
सब का दाता राम धणी रे…………………..!
खरी मेहनत खरी कमाई…………………..!!
घर मे लावों रे आप घणी…………………..!
खेत में खाद देसी काम लेणों रे……………!!
के धरती नवापुरा री, हा रे धरती नवापुरा री.!
रामदेव जी रो मंदिर स्कूल में……………..!!
गुरुकुल जेडो लागे रे औ………………….!
पढनो लिखणो छोरा सीखे रे……………..!!
संस्कार वणो में जागे रे……………………!
भारत री भक्ति रो अद्भुत पाठ भणावे रे….!!
के स्कूल नवापुरा धवेचा री……………….!
हाँ रे स्कूल नवापुरा धवेचा री…………….!!
पाठ पढ़ाने वाले गुरुजन………………….!
कलाराम जी त्रिकमाराम जी कैलाशदानजी!!
डायाराम जी छगनलालजी, रघुनाथ जी….!
नवीन जी हेमलता जी मोती लाल जी……!!
अमृत परिहार जी,विजय कुमार जी,……..!
अर्जुन लाल जी आदि रे के शानदर पाठ…!!
पढावे रे…………………………………..!
आप रे पास पढेयोडा आज एस डी यम,..!!
डॉक्टर, मारसा बन गया रे……………….!
के धरती नवापुरा री……………………..!!
गाँव रा सब लोग मिलकर रे……………..!
के स्कूल में बढ़िया बढिया काम करावों रे.!!
के धरती नवापुरा धवेचा री………………!
के हा रे धरती नवापुरा री……………….!!
ये है अपना नवापुरा
ये है अपना नवापुरा,
नाज इसे व्यापार से|
बागोड़ा में है पहचान इसकी,
कानाराम के कांटा से|
महिमा इसकी सबसे न्यारी,
कपड़े के व्यापार से|
चारों तरफ फैला है कस्बा,
नवापुरा के बाजार से|
ये है अपना नवापुरा…………
पूरब में जो बना आश्रम,
महिमा अपरंपार है|
संत थे मदननाथ इसके,
महादेव का दरबार है|
विद्यालय है वाटेरा रास्ते पर,
महादेव का दरबार है|
पूरब में है शोभा इसकी,
बगोटी के बाजार से|
ये है अपना नवापुरा…………
बाईपास बना उत्तर में,
आम्बाराम की दुकान है|
आम्बाराम की दुकान के पास,
एक बड़ा चौराया है।
पाँच रास्तों को वो घेरता,
उसकी एक अलग ही पहचान है|
श्री कृष्ण गौशाला है ऐसी,
बागोड़ा में पहचान है|
महादेव-आश्रम विराजे,
सुविशाल हनुमान हैं|
पूरब की शोभा है प्यारी,
बागोड़ा के बाजार से|
ये है अपना नवापुरा………….
उत्तर में है बना गौशाला,
श्री कृष्ण गौशाला है|
गौशाला और मामाजी का मंदिर,
ये कस्बे की शान हैं|
गाँव में शोभा पाते,
माँ अंजनी हनुमान हैं|
नवापुरा की शोभा बढ़ती है,
बागोड़ा के बाजार से|
ये है अपना नवापुरा………….
दक्षिण में है बनी स्कूल,
यह बच्चों की शान है|
हीराराम किराणा की दुकान,
पश्चिम मुखी हनुमान हैं|
हिन्दू दल मंदिर में,
पंचमुखी हनुमान हैं |
दक्षिण की शोभा है न्यारी,
वाटेरा के बाजार से|
ये है अपना नवापुरा………..
गांव के मध्य में महादेव विराजें,
हनुमतजी का धाम है|
दक्षिण गोगा जी देव विराजें,
मंदिर श्री महादेव है|
पानी पीने की सुविधा सुख-समृद्धि,
गाँव वाले सभी लोगों का साथ है|
शान बढ़ी है भीनमाल में इसकी,
टेक्सी बस-आगार से|
ये है अपना नवापुरा………..
खुशहाली व समृद्धि है,
जन-जन के व्यवहार से|
ये है अपना नवापुरा……..
गांव के परकोटे से आठ रास्ते,
गढ़ रास्ते सात हैं|
अपने-अपने घर में सभी राजा,
नामकरण आधार हैं|
प्रतिकृति भीनमाल की कस्बा,
वैसा ही आकार है|
‘शंकर’ कवि वर्णन करता,
शुद्ध हृदय के प्यार से|
ये है अपना नवापुरा,
नाज इसे व्यापार से|
बागोड़ा में है पहचान इसकी,
किराणा के बाजार से|
जिंदगी के रंग
हौसलों की डोर से उड़ती जिंदगी की पतंग
बे रंग जिंदगी में भी छिपे होते हैं कुछ रंग
कुछ रंग गगन है छोड़ता, सावन के बरसातों में
कुछ रंग नाचते गाते ,आते होंगे बारातों में
कुछ रंग भरने आ जाते हैं मेरे गाँव वाले
कुछ रंग जिंदगी में भरते हैं मित्र हमारे
कुछ रंग जिंदगी में भरते हैं चित्र पुराने
कमी है कुछ और नही एक बात कहना चाहता हूँ
शहर की ज़िंदगी छोड़ में अपने गाँव नवापुरा में रहना चाहता हूँ
में अपने गाँव नवापुरा की गोदी ने सोना चाहता हूँ
बादलों के साथ आज में भी रोना चाहता हूँ
बना था इंद्रधनुष के सात रंगों से ये मेरा बचपन
फिक्र ना थी किसी की, नादान,भोला था मेरा मन
साथ खेलतीं प्रकृति, पेड़-पौधे और गिलहरी
में नादान परिंदा था पर आज जिंदगी को
सँवारने के लिए बन गया शहरी
समय के साथ चलना भी जरूरी था
समय से द्वंद्व भी करना जरूरी था
पर समय कब और किस के लिए रुका हैं
खेल-खेल में ही सही पर वो समय बीत चुका है
विपदाएँ आती रही हैं और आती रहेगीं………..!
सन्नाटों में कोयल युही गाती रहेंगी…………….!!
काला पानी
आज़ादी का धान करूँ तो, केवल दिखती एक कहानी!
केवल सम्मुख शोणित की, वर्षा केवल दिखता काला पानी!
केवल वीरों की हुकार, केवल भारत की पुकार!
केवल रण में चलती थी, लोहित को दुधार!
जिसके तन में तेज भरा वो, कभी नहीं निर्बल होगा वह!
केवल समर में चलने को, साहस का सम्बल होगा!
जो नहीं कभी मृत्यु से डरकर, प्राण बचाया करता है!
पत्थर की प्रतिमा पुरूष में, प्राण फूंक कर भरता है!
केवल माँ पर चढ़ा लाहु को, माँ का कर्ज़ उतारूंगा!
मरकर भी सदा जगत में कालजयी कह लाऊंगा!
निज शोणित की धार सदा, मृत्यु के पास बहने दूँगा!
चल रहे हैं खण्ड के वारधरा पर, वह अपने पर चलने दूँगा!
लड़ रहे हैं वीर निज धर्मभूमि पर, आज़ादी लाने को!
कोटि कंठ से एक स्वरों में गौरव गान सुनाने को!
बलिवेदी पर चढ़ा शीश में धरती के कष्ट हरूँगा!
बून्द-बून्द अपने शोणित की न्यौछावर कर दूंगा!
निज के लिए तो क्या जीना, में धरती के लिए जिऊँगा!
काल पुरूष के हाथों से ही काला नीर पीऊँगा!
अमर नहीं होता नर जग में मरना उसे पड़ता हैं!
बेझिझक धर्म के लिए समर में लड़ना उसे पड़ता है!
महिला दिवस
महिला दिवस आज है, सुनो शंकर आँजणा।
बल बुद्धि विद्या ये देवे, हरे क्लेश विकार॥
महिलाओं ने किया है, तीनों लोको में नाम उजागर।
इन्हीं के कारण से पार होता सब का ये भवसागर॥
महिलाओं ने बनाए हैं विश्व में अनेक कीर्तिमान।
उनको मिलते रहते है, विश्व में अनेक ही सम्मान॥
महिलाए नहीं होती ये पुरुष भी कभी न होता।
इस सृष्टि में आज इतना जीवन आदि न होता॥
महिलाओं के कारण ही सब रिश्ते नाते बनते।
चाची मामी ताई भाभी इन्हीं से ही सब बनते॥
महिलाओं के बिना न चले गृहस्थ की गाड़ी।
पुरुष अकेला चला नहीं सकता है ये गाड़ी॥
महिला हर क्षेत्र में, पुरुषों से रही हैं बहुत आगे।
शिक्षा के क्षेत्र में रही हैं, हमेशा आगे ही आगे।
लक्ष्मी पार्वती सरस्वती सभी महिलाओं के नाम।
ब्रह्मा विष्णु महेश संग करती सृष्टि का ये निर्माण॥
महिलाओं ने बनाई है अनेक इस जग में पहचान।
बहन बेटी माँ सास बहु आदि है इनके सब नाम॥
महिला शक्ति की दाता है, करती सबका उपकार।
प्रभु कैसे वयक्त करे, इनका हम सब ये आभार॥
नारी का अस्तित्व
नारी हूँ, नारायणी हूँ मैं,
ममता-रूपी सागर हूँ मैं।
काव्य-संगीत और सौरभ-सौंदर्य,
की अनुपम-प्रतिमा हूँ मैं।
शक्ति का ही दिया हुआ
शांति का ही एक रूप हूँ मैं,
शीतल छाया की आशा हूँ मैं,
मनोहर-प्रेम की परिभाषा हूँ मैं।
नारियों के धैर्य की सीमा और,
शुद्ध-आत्मा से उठी पुकार हूँ मैं।
सत्ताधारियों के लिए दया-धर्म का संदेश हूँ मैं,
दुनिया की पलटकर दशा,
हर मुसीबतों का कर सकती हूँ अंत मैं।
प्रजा की सोई हुई अभिलाषा को
आशा-रूपी दिपक से जगा सकती हूँ मैं।
साहित्य पीडिया आबाद विशाल-मंच पर,
कुदरत की अनमोल-सौगात हूँ मैं।
शंकर आँजणा
नवापुरा धवेचा
बागोड़ा जालोर
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