
महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma)
स्वप्नलोक की रानी
शब्दों की देवी महादेवी (Mahadevi Verma)
मधुमेह पीड़ा को पीती
सुनहरे आंचल में
विस्मृतियों को ढोती
मौन अतीत की सूत्रधार
अस्तित्व से खुशियों की
आती झंकार
जैसे मुरझाया फूलों ने
गाया हो मलहार।
मानस रत्न विलीन हो
जाए सैदव रह जाता है उपकार
लालसा की मंदिरा में चूर
जैसे भौंरा लगती नूर
है वह तपोवन सुशोभित
शब्दों की
फूलों से एकांत प्रजापति
विरागी बसंत हो गई
शब्दों के सागर में वह खो गई
बूंद आंसुओं की धरा पर
गिरे ख़ुशबू मिट्टी से आए
बौछार शब्दों की करती रही
बेसुध प्राण हो गई
लेखनी उनकी जीवित रही
नाविक बन उभरती रही
साहित्यिक बागों मे
वन का फूल मधुर कहानी
देवों के चरणों पर अर्पित
फूल सिंगार हो गई
उन्मादों को संचार देती
हृदय तल की गहराइयों में
बसा वह प्यार जीवनशैली
को प्रेम संचार देती
दोहे के रंग
१.
मधुर चैत की चान्दनी, बरस रही रस धार।
प्रीतम मन चंचल हुआ, मादक मन मोहे बही बयार।
२.
कृष्ण मेरे तुम मथुरा बसे, यहाँ रात पपीहा बोल।
कोयल कूक सुना रही, प्रेम विवस मन डोल।
३.
प्रीत रीति अति पावनी, हुआ कठिन निभाना प्रीत।
कमल कोख भँवरा फँसा, यही जगप्रेम की रीत।
४.
रूप प्रेम के पोशाक में, झुक-झुक गिरा पतंग।
जलते दीपक ज्योत पर, विवस हो जलाया अंग।
५.
प्रेम सदा करता हृदय, जीवन रस संचार।
मानव मानव में पले, जीव-जीव से करे प्यार।
अंकिता सिन्हा
जमशेदपुर झारखंड
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