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मेरा खेत (My Farm)
प्यारा-न्यारा मेरा खेत (My Farm),
हरा भरा सुंदर खेत।
उसमें फसलें लहरातीं,
मेरे मन को बहुत लुभातीं।
पीली सरसों-महके सरसों,
फूले अरहर-झूमे अरहर।
चहुं ओर है छाई बहार॥
बेहद लंबा हुआ बाजरा,
उग आये मूली-गाजर।
लाल हुआ गोल टमाटर॥
प्यारा-न्यारा मेरा खेत,
हरा भरा सुंदर खेत।
किसी से कम न गोभीआलू,
बहुत रुलाते प्याज-रतालू।
कलुआ बैंगन बन बैठा राजा,
कद्दू का पीकर हो गया मोटा।
गन्ना कभी नहीं देता टोटा॥
बहुत महकता धनिया,
भाव खा रही मटर।
सुध-बुध हो गई ज्वार॥
सबको उगाता मेरा खेत।
हरा भरा सुंदर खेत॥
बसंत आ रहा
हौले-हौले से आ रहा
धीरे-धीरे से छा रहा
कायनात का जर्रा-जर्रा
महक उठा-चहक उठा
बसंत आ रहा…
मौसम करवट बदल रहा
मंद-मंद ख़ुशबू फैला रहा
खिल उठा सबका हृदय
नई उमंग-नई तरंग
बसंत आ रहा…
धरा सुंदर स्वर्ग बन रही
ऋतुओं की रानी आ रही
करो सब जन अभिवादन
यौवन नवल-मन चंचल
बसंत आ रहा…
कली-कली खिल रही
खगों की ध्वनि गूंज रही
मां शारदे को कोटिश: नमन
आता फाग-लाता दाग
बसंत आ रहा…
फूलों पर भंवरे मंडरा रहे
पराग शायद चुरा रहे
कुदरत बनी सुरम्य
मीठी छुअन-पीला परिधान
बसंत आ रहा…
प्रिय
कदम्ब की डाल बैठ पपीहा कूक रहा
आया वसन्त भॅंवरों का मन डोल रहा
रंग-बिरंगी तितलियों की मुस्कान मनोहर
फूलों का चुरा पराग मधुरुपी हुआ श्रृंगार
चल रही वसंती बयार, हरेभरे खेत झूम रहे
कृषक भर जाएगी झोली, गीत वसंती गा रहे
मन्द-मन्द सुगंध प्रिये की जुल्फें फैला रहीं
सब दिशाएँ रंग पीत लेकर यौवनता ला रहीं
फूल उठी कचनार पाकर सुखद संदेश
रातभर रोई चकोरी छोड़ गये प्रिय स्वदेश
बिन प्रीतम के सूना-सूना फाग लगे
मिलन की आस में अखियाँ रोज़ जगें
बीतीं मधुमय रातें, छोड़ प्रिय जा बसे परदेश
मन में बसीं सुखमय सरस रसभरी यादें शेष
आया वसंत… प्रिय तुम भी आ जाओ
कौन लगाये फाग रंग, प्रिय तुम्हीं बताओ
चुनाव आ गये
चुनाव आ गये
नेताओं के बुरे दिन आ गये
रातों की नींद उड़ी
और दिन का चैन…
मोदी-माया के सुर बदले
योगी-अखिलेश रिझायें
सपने हंसी दिखायें
राहुल बाबा मौन
संजय निषाद पिए टानिक
मुकेश दिखाये टीवी पर दमखम
उधर केजरीवाल खांसते
और भी ऐरे गैरे दम भरते
दे-दे भाषण सांस फुलाते
दल बदलुओं की दाल गलेगी
सीट की खातिर नेताजी मदारी बन नाचेगा
आला कमान को खुश करने ज़ोर लगाके गायेगा।
कल तक जो,
महंगी-महंगी विदेशी गाड़ियों में हवा-हवाई होते थे
अब वे फांक रहे गली-गली में धूल
जनता पर वर्षा रहे स्वार्थ के फूल
पूड़ी-सब्जी खिला-खिलाकर वोट खरीदेंगे
भूखी-नंगी जनता को देकर धोखा
एक बार फिर नेताजी चुनाव जीतेंगे
नेता हंसेगा और जनता रोयेगी
फिर पांच साल बनवास भुगतेगी।
चुनाव आ गये
सोच समझकर मतदान करना
जाति-धर्म के चक्कर में मत फंसना
नेता कोई ईमानदार चुनना
भाषण नहीं, दिल की आवाज़ सुनना।
मृदुल कूक
तुम कूक उठी
मृदुल-मृदुल ये गान
तुम्हारा अमर रहे।
प्रेमीजन सुन कूक
तुम्हारी मगन रहे।।
तुम काली-काली रूप
न देखा जग स्वर उतर जाये उर।
जैसे प्रेमी की हूक अमर।।
स्वच्छ गगन तले
घने पातों के बीच छिपे
कंठ तुम्हारा अमृत बर्षाये।
गा-गाकर अमर गान स्वयं ही हर्षाये।।
कोकिल प्यारी
श्याम छवि न्यारी
गूँज रही बागों में ध्वनि तुम्हारी।
तुम गाओ नित-नित,
हम सुनेंगे मृदुल कूक तुम्हारी।।
होली आई
आसमान में लाली छाई,
रंग-बिरंगी होली आई।
बच्चों में उत्साह जगा न्यारा,
आया-आया त्यौहार प्यारा।
चुन्नू-मुन्नू रंग घोल रहे,
धन्नू-पुन्नू गुलाल उड़ा रहे।
बज रहे झांझ, मंजीरे, ढोल,
पकवानों का कोई न मोल।
सब कर रहे हंसी-ठिठोली,
आई रे आई रंग-रंगीली होली।
सबके कपड़े हो गये नीले-पीले,
पुराने बैर-भाव सब जन भूले।
मौसम बना बहुत सुखदायी,
रंग-बिरंगी होली आई।
हादसा
कोई घर से निकला था
तो कोई घर को निकला था
एक ख़ुशी थी
मंजिल पर पहुँचने की …
कोई सो रहा था
तो कोई जाग रहा था
सुख-दु: ख की बातों में
ये सफ़र मंज़िल की ओर बढ़ रहा था
पर किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था
कि ये सफ़र उनका आखिरी सफ़र होगा
वे जिस मंज़िल को पाने के लिए यात्रा कर रहे हैं
वो यात्रा कभी पूरी न होगी।
एक जोरदार आवाज़ के साथ सब कुछ खत्म
पटरियों पर बिखरी पड़ी ज़िन्दगी
पूरी तरह से तहस-नहस
सब कुछ अस्त-व्यस्त,
सब कुछ लावारिस…
एक हादसे ने,
दर्दनाक हादसे ने
रूह कंपाने वाला मंज़र पैदा कर दिया
चहुंओर चीख-पुकार
दर्द भरी सिसकारियाँ…
क्षणभर पहले जो चेहरे हंस रहे थे
मुस्कुरा रहे थे,
बोल रहे थे, कुछ कह रहे थे
वे हमेशा के लिए शांत हो गये।
जिनकी एक पहचान थी
अब उनकी शिनाख्त तक नहीं
वे हो गये गुमशुदा
उनकी पहचान को निकल गया
हादसा…
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
ग्राम रिहावली, डाक तारौली गुर्जर,
फतेहाबाद, आगरा
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