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रिश्ते (relations)
दुनिया में रिश्ते (relations) बहुत सारे होते हैं, सभी जीव का एक दूसरे से एक अनोखा रिश्ता होता है, जो रिश्ता हर रिश्तो से अलग है, हमें हर रिश्तो का उतना ही सम्मान करना चाहिए जितना कि हम अपने करीबी रिश्तो का करते हैं, रिश्तो के प्रकार क्या हैं-
एक वह जो सबसे बड़ा रिश्ता है- इंसानियत का, एक वह जो दुनिया में आते ही बनता है-माता-पिता से और एक वह जो हम ख़ुद बनाते हैं। पर आजकल रिश्ते ठंड के ओस की तरह धुंधले हो गए हैं। आजकल सभी रिश्तो में मतलब स्वार्थ और खुदगर्जी ही नज़र आता है। आजकल कोई रिश्ते बिना मतलब के नहीं बनता। लोग इंसानियत का रिश्ता भूल चुके हैं, लोग अपनी परिवार से प्रेम का रिश्ता भूल चुके हैं, केवल पैसा दिखावा और स्वार्थी महत्त्वपूर्ण बन चुका है।
लोग आजकल रिश्ते रखते हैं, तो केवल यह सोच कर कि कल उनके वह काम आ सकते हैं, ना कि प्रेम भाव से। आजकल रिश्ते का अर्थ ही बदल चुका है। ना कोई किसी से रिश्ता रखना चाहता है, क्योंकि रिश्ते रखे तो उसके लिए कुछ करना ना पड़ जाए। सब सिर्फ़ अपने लिए जीना चाहते हैं यहाँ दुनिया में बिना स्वार्थ का कोई रिश्ता अब नहीं रहा। दुनिया में ऐसे मतलबी रिश्ते देखकर जिस पर से भरोसा उठ चुका है अब अगर विश्वास है तो एक ही रिश्ता वह ख़ुद से और उस भगवान से जिसने इस धरती पर हमें रिश्ता बनाने के लिए भेजा है। परंतु इस मतलबी दुनिया में कुछ पांच पर्सेंट ऐसे भी लोग है, जो अपने लिए नहीं केवल अपने परिवार के लिए जी रहे हैं बिना स्वार्थ के वह अपने रिश्तो में प्यार तथा उनकी मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
अगर इंसानियत का रिश्ता हम भूल चुके हैं, तो मैं उसे याद करना चाहिए और अपने माता पिता के प्रति प्रेम तथा जो रिश्ता हमने बनाया है, उसके प्रति निस्वार्थ होकर उसे निभाना चाहिए। अगर रिश्ते की क़ीमत हमें सबको याद दिलानी है तो पहले हमें रिश्ता का अर्थ समझना पड़ेगा जो कि लेना नहीं देना होता है। जब यह अर्थ समझ जाएंगे तब शायद इंसानियत, परिवार और समाज सब सुरक्षित हो जाएगा और रिश्ता फिर से सुनहरे सूरज की तरह जगमग आ जाएगा।
प्रिया शर्मा
बरगढ़, ओड़िशा
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