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विजयदशमी का औचित्य (Reason for Vijayadashami)
दोस्तों इस आलेख के माध्यम से डॉ. मनोरमा शर्मा बता रही हैं विजयदशमी (Vijayadashami) का औचित्य… डॉ. मनोरमा शर्मा एक बेहतरीन लेखिका हैं… इन्होंने अब तक कई रचनाओं का सृजन किया है… तो चलिए… डॉ. मनोरमा जी की कलम के माध्यम से जानते हैं विजयदशमी का औचित्य क्या है…
हम शताब्दियों से विभिन्न प्रकार के उत्सव, त्यौहार और पर्व मनाते आ रहे हैं। इन सभी का हमारे दैनिक जीवन के साथ सीधा सम्बंध है। प्राय: एक स्थान पर एकत्रित हो कर हम सामूहिक रूप में अपने मन के भावों को व्यक्त करने के लिए पारम्परिक स्वरुप में इन अवसरों को मनाते हैं। ऐसा ही दशहरा और विजयादशमी का पर्व है।
सभी व्यक्तियों को विश्वास है कि हमारा भविष्य उज्ज्वल है इसलिए वह वर्तमान में अपना जीवन आराम से बिताते हैं और अच्छे कर्म के लिए तैयार रहते हैं। यह विचार हमारे धार्मिक ग्रंथों में बड़ी अच्छी तरह दर्शाया है। रामायण में महर्षि बाल्मीकि ने जिस तरह इस धारणा को आद्योपांत वर्णित किया है, इससे अच्छा उदाहरण हमें और कहीं नहीं मिल सकता।
दशहरा और विजयादशमी त्यौहार आ रहा है। इसे बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में सभी हिन्दू सम्पूर्ण विश्व में हर्षोल्लास से मनाते हैं। राजा रामचन्द्र ने राजा रावण का वध कर उसकी अनगिनत बुराईयों (कुकृत्यों) को समाप्त कर अच्छाई की विजय पाई है। दोनों ही बराबर के ज्ञानी, शास्त्रों के ज्ञाता, तपस्वी, पराक्रमी, वीर, निपुण और धार्मिक थे तथा देवताओं से सुरक्षा कवच प्राप्त किए थे। रामायण में एक को दूसरे पर विजय प्राप्त करने के लिए राम और रावण चरित्र के दो पात्रों का सर्जन किया और इसके लिए सीता को धरती से जन्म लेना पड़ा। यह कोई नई बात नहीं है। हर व्यक्ति पांच तत्त्वों के संयोग से उत्पन्न होता है और अंत में इन्हीं पांच तत्त्वों में विलीन हो जाता है। राजा दशरथ अपने पुत्रों के लिए राजा जनक से उनकी कन्यायें मांगने उसके द्वार पर गया।
रावण छल से सीता को उठाकर लंका ले गया। सीता से कोई भी ग़लत व्यवहार नहीं किया। अपनी बहन शूर्पणखा का नाक कटवाया, अपने भाई विभीषण को देश-निकाला दिया, अपने सारे वंश का नाश अपने सामने करवाया, आदि। एक उच्चस्तरीय ब्राह्मण से ऐसे अशोभनीय काम करवाए और ब्राह्मण की हत्या का दोषी एक क्षत्रिय को बनाया और उसी राम ने रावण का अंतिम संस्कार किया। रावण को उसके अंहकार ने उसका अंत करवा दिया। वही राम अपने बच्चों के जन्म का आनन्द नहीं उठा सका।
अब वर्तमान समय में हम हर बर्ष यह पर्व श्रद्धा से मना रहे हैं। केवल एक ही दिन के लिए कह देते हैं कि अच्छाई की हमेशा जीत होती है और शेष ३६४ दिन सब कुछ भूलकर रावणों की संख्या में वृद्धि कर रहे हैं और शायद रामचन्द्र जी कुंभकर्ण की तरह निद्रा में हैं। हम अपने अंदर के रावण पर विजय प्राप्त नहीं कर रहे हैं। हमारी सोच आज वातावरण से प्रभावित हो रही है और उसी के अनुरूप हमारी मानसिकता रहती है। आओ संकल्प करें कि हमें अपने अंदर हो रहे राम-रावण युद्ध पर विजय पाना है।
रिश्ते ऑफ लाइन बनाम ऑन लाइन
रिश्ते शब्द सुनते ही मन में कुछ उमगने लगता है। दादा-दादी, नाना-नानी के प्यार-दुलार भरे सुनहरे पल आंखों के आगे आकर मुस्कुराने लगते हैं। शायद उन दिनों के खट्टे मीठे अनुभव और गुदगुदाने वाले पल रिश्तों की सच्चाई बयाँ कर देते हैं। रिश्ते जो सच में गहरे होते हैं, वे अपनेपन का शोर नहीं मचाते। सच्चे रिश्ते शब्दों से नहीं दिल और आंखों से बात करते हैं इन्हीं से भावाभिव्यक्ति होती है।
ऑफलाइन रिश्ते:
रिश्ते तो स्वाभाविक रूप से ही हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग बन जाते हैं। हम अपने जीवन में अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं का चुनाव कर लेते हैं, परन्तु रिश्तों का चुनाव नहीं हो सकता। बच्चा जब जन्म लेता है तो उसके माता पिता के साथ ही अन्य सभी रिश्ते स्वतः ही जुड़ जाते हैं। दादा-दादी, नाना-नानी, बहिन-भाई आदि बच्चा इनका चुनाव नहीं करता यह तो ईश्वरीय विधान है। इन रिश्तों को निभाना सामाजिकता है। इसे निभाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है, रिश्तों के प्रति मान-सम्मान, आदर, प्रेम और सहृदयता का होना। यह एक ऐसा मन्त्र है जो हर रिश्ते की डोर थामे हुए है। कवि रहीम ने शत प्रतिशत ठीक कहा है कि-
“रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए।
टूटे तो फिर न जुड़े, जुड़े तो गांठ पड़ जाए”
हम कई बार न चाहते हुए भी रिश्तों को अनदेखा कर जाते हैं परन्तु जब कभी मुड़ कर देखते हैं तो वही स्नेहमयी आँखें हमारी राह ताक रही होती हैं, शायद इस विश्वास के साथ कि सब कुछ पहले जैसा ही होगा। रिश्तों का बन्धन हमारी संस्कृति है और इन्हें निभाना हमारी परम्परा और सामाजिकता।
ऑनलाइन रिश्ते:
आज बदलती जीवन शैली में रिश्तों की परिभाषा भी बदल गई है। कोरोना की त्रासदी ने पूरे विश्व को प्रभावित किया है आज हम जिस परिस्थिति से जूझ रहे हैं इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी। इसके कारण हमारी जीवन शैली, हमारी दिनचर्या, हमारे आचार-व्यवहार, हमारी मान्यताएं-परम्पराएँ, रीति रिवाज, यहाँ तक कि हमारी कार्यशैली और कार्यप्रणाली भी प्रभावित हुई है। आज हम इस बदलती जीवन शैली से गुजर रहे हैं और धीरे-धीरे इस वातावरण के अभ्यस्त भी हो रहे हैं परन्तु इस महामारी ने मानव जाति पर एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी छोड़ा है। समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग तनावग्रस्त है। ऐसा लगता है कि तनाव शब्द हमारी जीवन शैली का एक अंग बन गया है।
ऐसे संक्रमण काल में सोशल मीडिया एक देवदूत बन कर आया है। मानव आज अपने रिश्तों को इसी के माध्यम से संवार रहा है। ऑनलाइन रिश्ते जो कभी समय के अभाव में उपेक्षित हो रहे थे आज फिर से उनमें बहार आ गई है। तनावपूर्ण स्थिति से उबर कर मानव फ़ोन या वीडियो स्काइप आदि ऑन लाइन साधनों से अपने प्रियजनों से बात कर एक राहत महसूस करता है। जो रिश्ते कभी रूठ गए थे वे भी समय की मांग के अनुसार बदल गए हैं। यह सब ऑन लाइन सम्पर्क के कारण ही सम्भव हुआ है।
मन में कभी टीस तो उठती है कि हम भौतिक रूप से किसी समारोह या किसी संस्कार में सम्मिलित नहीं हो पाते परन्तु यह भी आश्वासन है कि हमारी ऑनलाइन उपस्थिति भी कितनी महत्त्वपूर्ण है और हम आधुनिक संसाधनों के माध्यम से अपने रिश्ते निभा रहे हैं उन्हे संवार रहे हैं और उनका लाभ ले रहे हैं। ऑनलाइन रिश्तों का अपना एक स्वतन्त्र आयाम है जो हमारी जीवन शैली का एक अभिन्न अंग है।
जय हिन्दी! जय भारत!
FAQs
रामायण के रचयिता कौन हैं?
रामायण के रचयिता महर्षि बाल्मीकि जी हैं।
सीता का जन्म कैसे हुआ?
सीता का जन्म धरती से हुआ।
रावण की बहन का नाम क्या था?
रावण की बहन का नाम शूर्पणखा था।
विभीषण किसका भाई था?
विभीषण रावण का भाई था।
रावण किस कुल में पैदा हुआ था?
रावण ब्राह्मण कुल में पैदा हुआ था।
डाॅ. मनोरमा शर्मा
शिमला
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