
सर्दी की छुट्टियाँ
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शराब एक बुराई (alcohol is evil)
शराब एक बुराई है (alcohol is evil),
छोड़ने में भलाई है।
शराबी दोषी नहीं है,
जरा उसे होश नहीं है,
मद्य उसकी दवाई है।
शराब एक बुराई है।
नशा होता तो झूमती,
बोतल भी साथ नाचती,
चीज कैसी बनाई है।
शराब एक बुराई है।
पीते ही क़दम बहकते,
शब्द अंग्रेज़ी के कहते,
चुप रहो तो भलाई है।
शराब एक बुराई है।
शाम होती सुहानी है,
हो जाती बदनामी है,
कहीं भी न सुनवाई है।
शराब एक बुराई है।
मनसीरत शराबी नही,
पीने में खराबी नहीं,
पर यारों ने पिलाई है।
शराब एक बुराई है।
शराब एक बुराई है।
छोड़ने में बुराई है।

चलो साथियो मिल कर साथ हमारे
चलो साथियो मिल कर साथ हमारे,
डूबता शिक्षा का जहाज़ को बचाने।
बढ़ती जाती सरकारी तानाशाही,
शिक्षा जगत में मची ख़ूब त्राहि त्राहि,
लगी सरकार शिक्षा तंत्र को मिटाने।
चलो साथियो मिल कर साथ हमारे।
वैज्ञानिकीकरण की नीति अपनाई,
स्कूलों से शिक्षकों की पोस्ट उड़ाई,
अध्ययन अध्यापक को चले बचाने।
चलो साथियो मिल कर साथ हमारे।
अभी नहीं तो फिर कभी नहीं होगी,
शिक्षा की ज्योति फिर नहीं जलेगी,
सोई सरकार को चले हम जगाने।
चलो साथियो मिल कर साथ हमारे।
आपसी वैर लड़ना-झगडना छोड़ो,
टांग-अड़ाना नाक-रगड़ना छोड़ो,
एक जुट हो कर आस्तित्ब बचाने।
चलो साथियों मिलकर साथ हमारे।
सरकारें चाहती फूटम्फुट हमारी,
नैया डूबती रहे सदा ही हमारी,
चली सियासत शिक्षा साख गिराने।
चलो साथियो मिलकर साथ हमारे।
मनसीरत सियासती इरादा समझो,
एकता में बंधो लड़ाई शुरू कर दो,
बन जाओ जल्दी संघर्ष के मस्तानें।
चलो साथियो मिलकर साथ हमारे।
चलो साथियो मिलकर साथ हमारे।
डूबता शिक्षा का जहाज़ को बचाने।
बिछड़ेंगे सब बारी-बारी
बिछड़ेंगे सब बारी-बारी।
छोड़कर सभी यादें प्यारी।
यार प्यारे हुए परदेशी,
इक-दूसरे के थे हितैषी,
बदली वाहक हम पर भारी।
बिछड़ेंगे सब बारी-बारी।
हाथ बढ़ाना साथ निभाना,
साथ पढ़ाना साथ खिलाना,
याद आएगी बहुत तुम्हारी।
बिछड़ेंगे सब बारी-बारी।
गर्म चाय की मीठी चुस्की,
तन-मन में आ जाती चुस्ती,
धर्मवीर-सी हमारी यारी।
बिछड़ेंगे सब बारी-बारी।
GTD ने हमें बहुत छकाया,
बहुत भगाया बहुत सताया,
काम नहीं आई होशियारी।
बिछड़ेंगे सब बड़ी-बारी।
बैठ कार में साथ थे आते,
मजेदार-सी बातें बतियाते,
रास आई थी हम सवारी।
बिछड़ेंगे सब बारी-बारी।
स्कूलों को हमने सजाया,
राग प्यार का साथ बजाया,
कर ली है जानें की तैयारी।
बिछड़ेंगे सब बारी-बारी।
अपने आप में हम थे धांसू,
आँखों में अब आये आंसू,
विदाई की रुत बहुत न्यारी।
बिछड़ेंगे सब बारी-बारी।
प्यारे बच्चे बहुत ही अच्छे,
हम थे उनसे वह थे हमसे,
रीत रही है यही संसारी।
बिछड़ेंगे सब बारी-बारी।
मनसीरत हमे भूल न जाना,
दुख-सुख में है सदा बुलाना,
जिंदा रखना आदतें सारी।
बिछड़ेंगे सब बारी-बारी।
बिछड़ेंगे सब बारी-बारी।
छोड़कर सभी यादें प्यारी।
बदली ने बदल दिए साथी यार पुराने
इस बदली ने बदल दिए रे साथी यार पुराने।
एक बटन से ही बदल दिए सारयाँ के ठिकाणे।
सुख-दुख की मिल बैठ कर बतलाया कर दे,
एक दूसरे कै काम भी हम सब रै आया कर दे,
एक फूँक में रै फैंक दिए सारे शिक्षा के परवाने।
इस बदली ने बदल दिए रै साथी यार पुराने।
बैठ साथ में साथी सारे स्कूलां में आया करदे,
रंग-बिरंगे खोल के टिफन खाना खाया करदे,
बदल दी दुनिया म्हारी बदल दिए सारे पैमाने।
इस बदली ने बदल दिए रै साथी यार पुराने।
करके मेहनत काया बदली सजाये बाग़ बगीचे,
सरकारी स्कूलां के नाम आण दिए न कदे नीचे,
एक बात थी एक साथ था एक जैसे थे मस्तानें।
इस बदली ने बदल दिए रै साथी यार पुराने।
खेल-खेल में जी लाके बालकां नै पढ़ाया करदे,
कोई भी कदे संकट आ जै मिलके हराया करदे,
दिन-रात याद आया करेंगे बीत गए जो जमाने।
इस बदली ने बदल दिए रै साथी यार पुराने।
मनसीरत ट्रांसफर ड्राइव सरकार कड़े ते ल्याई,
कई स्कूलां में बिन मास्टर के बिगड़ गई पढ़ाई,
कौन सुनेगा पुकार स्कूलां की खाली सैं निशाने।
इस बदली ने बदल दिए रै साथी यार पुराने।
इस बदली ने बदल दिए रै साथी यार पुराने।
एक बटन से ही बदल दिए सारयाँ के ठिकाणे।
नया स्कूल नया ठिकाना
नया स्कूल है नया ठिकाना,
दुनियादारी आना-जाना।
नए मिलेंगे साथी सारे,
वो भी होंगे ख़ास हमारे,
उन से हो होगा बतियाना।
नया स्कूल है नया ठिकाना।
कोपल कोमल होंगे बच्चे,
प्यारे न्यारे सब से अच्छे,
जी जान लगा उन्हें पढ़ाना।
नया स्कूल है नया ठिकाना।
तन-मन-धन से हैं सहयोगी,
कोशिश अपनी पूरी होगी,
ईमानदारी से फ़र्ज़ निभाना।
नया स्कूल है नया ठिकाना।
सुन्दर होंगे बाग़ बगीचे,
खून-पसीने से हम सींचे,
अशोक वाटिका-सा सजाना।
नया स्कूल है नया ठिकाना।
टीस करेंगी याद पुरानी,
पुराने स्कूल की हर निशानी,
नम आँखों से आँसू बहाना।
नया स्कूल है नया ठिकाना।
हर पल हर दम याद रखेंगे,
पुराने साथी जी जान रहेंगे,
कभी न होगा उन्हें भुलाना।
नया स्कूल है नया ठिकाना।
मनसीरत वह मंज़िल मेरी,
गिरजा मन्दिर मस्जिद मेरी,
हसीं हमारा वहाँ ज़माना।
नया स्कूल है नया ठिकाना।
नया स्कूल है नया ठिकाना।
दुनियादारी आना-जाना।
शिक्षक-दिवस
शिक्षक राष्ट्र भाग्य विधाता।
शिक्षा-शिक्षण के गीत गाता।
भरता है गागर में सागर,
ज्ञान बांटता जान लगा कर,
शुभचिंतक भविष्य निर्माता।
शिक्षक राष्ट्र भाग्य निर्माता।
अध्यापक रिश्वतखोर नहीं,
नेता-अभिनेता चोर नहीं,
सच हक़ की कमाई खाता।
शिक्षक राष्ट्र भाग्य विधाता।
मन अंदर कोई मैल नहीं,
उन जैसा जग में और नहीं,
भाईचारे का पाठ पढ़ाता।
शिक्षक राष्ट्र भाग्य विधाता।
धर्म-जाति ज़हर शोर नहीं,
उन जैसी कोई ग़ौर नहीं,
मानवता का धर्म अपनाता,
शिक्षक राष्ट्र भाग्य विधाता।
चाहे कैसा भी हो मौसम,
ज्ञानप्रकाश से करे रोशन,
अंधेरा कोसों दूर भगाता।
शिक्षक राष्ट्र भाग्य विधाता।
मेडल का कोई शौक नहीं,
सहता किसी की रोक नहीं,
सारथी बन है राह दिखाता।
शिक्षक राष्ट्र भाग्य विधाता।
आज स्थिति बड़ी खराब है,
राजनीति की ये शिकार हैं,
पर पल भर नहीं है घबराता।
शिक्षक राष्ट्र भाग्य विधाता।
शिक्षक दिवस उपहार यही,
शिक्षा का हो विकास यहीं,
करबद्ध अर्जी यही लगाता।
शिक्षक राष्ट्र भाग्य विधाता।
मनसीरत की तो मांग यही,
सरकारें हों सदा साथ खड़ी,
मंद मंद मधुर है मुस्कराता।
शिक्षक राष्ट्र भाग्य विधाता।
शिक्षक राष्ट्र भाग्य विधाता।
शिक्षा-शिक्षण के गीत गाता।
प्यार बन गया व्यापार
क्या बात करूं मैं प्यार की,
प्यार बन गया है व्यापार।
हर बात समझ से बाहर है,
कैसे चल रहा है संसार।
मानव मानव का शत्रु बना,
कहाँ पर ढूँढें प्रेम-प्यार।
लोभी हो गया जगत सारा,
मोह-माया में सब सरोबार।
गुजारिश भी काम न आई,
दिल से भी किया सत्कार।
भलाई नहीं कुछ काम की,
लोग करते रहते दुर्व्यवहार।
मेरी अक्ल गई सारी मारी,
दुनियादरी बहुत समझदार।
मनसीरत हालत देश की,
फंसी जाति धर्म मंझदार।
नारी-मंथन
नारी चाहती सुन्दर काया।
होनी चाहिए पर्स में माया।
चाँद-चकोरी रंग की गौरी,
कोमल जैसे सूत की डोरी,
देख पुरुष ने गीत गाया।
नारी चाहती सुन्दर काया।
छैल-छबीली देह है कंचन,
चतुर नार करती रहे मंथन,
रूह माँगती सुरक्षित साया।
नारी चाहती सुन्दर काया।
धूप-छाया-सी रंग बदलती,
हर घर में रहे उसकी चलती,
रंग-रूप का जाल बिछाया।
नारी चाहती सुन्दर काया।
मनसीरत के समझ ना आई,
कुदरत ने कैसी चीज़ बनाई,
गम का लड्डू ख़ुद ही खाया।
नारी चाहती सुन्दर काया।
नारी चाहती सुन्दर काया।
होनी चाहिए पर्स में माया।
बस्तों में मिलती अब शराब है
हो गई शिक्षा पद्धति खराब है,
बस्तों में मिलती अब शराब है।
मानक मूल्यों की गिरावटें हैं,
पीने को आतुर सब तेज़ाब हैं।
पश्चिमी सभ्यता की मेहरबानी,
माहौल बिगड़ रहा बेहिसाब है।
फूल-सी कोमल थी लड़कियाँ,
गिरवीं आन आबरू हिज़ाब है।
जन्मदिन पर्व की रुत देखिये,
जाम बीयर के दूर किताब है।
माँ-बाप लाचार और मौन हैं,
औलादें गर्म जैसे आफताब है।
संस्कृति-संस्कार हाशिये पर,
समझ से परे उलझा हिसाब है।
मनसीरत कहाँ रुकेगी दुनिया,
पहुँच से बहुत दूर ये ख़्वाब हैं।
प्रभु संग प्रीत लगाई
प्रभु जी मेरे तुम संग प्रीत लगाई।
तेरे ही चरणों में है जन्नत समाई।
धरती पर हम जैसे हैं व्यभिचारी,
मैं में हैं डूबे बन कर अहंकारी,
तुम्हीं हो सहारा हम हैं हरजाई।
तेरे ही चरणों में है जन्नत समाई।
तुम-सा नहीं है जग का रखवाला,
नीली छतरी वाला बहुत मतवाला,
तेरा परचम जल-थल-नभ साईं।
तेरे ही चरणों में है जन्नत समाई।
मानव तो सदा मानव का है वैरी,
महिमा तो सदा अपरंपार है तेरी,
तुम्हारी रज़ा में जगत की भलाई।
तेरे ही चरणों में है जन्नत समाई।
हाड़-मांस का तूने पुतला बनाया,
सांस डाल सुंदर संसार दिखाया,
कोई न जाने जो लीला है रचाई।
तेरे ही चरणों में है जन्नत समाई।
मनसीरत तेरे दर का है सवाली,
मनोहर बगिया का है तू ही माली,
नूर ए नज़र तेरी जन-जन आई।
तेरे ही चरणों में है जन्नत समाई।
प्रभु जी मेरे तुम संग प्रीत लगाई।
तेरे ही चरणों में है जन्नत समाई।
बदलाव
यह कैसा बदलाव है भाई,
शिक्षा का बुरा हाल है भाई।
जो थे कन्या स्कूल बनवाये,
खत्म किये कमाल है भाई।
बेटी पढ़ाओ का देकर नारा,
कैसा फैलाया जाल है भाई।
शिक्षक पद सरप्लस बना,
चली घिनौनी चाल है भाई।
मर्ज कर दिए स्कूल हमारे,
न रही कोई संभाल है भाई।
शिक्षा तो है बुनियादी मुद्दा,
मूलभूत ज़रूरी ढाल है भाई।
उगता सूरज छिपता है जाए,
उल्टे-सीधे से ख़्याल है भाई।
बिगड़ी शिक्षा बिगड़ेंगी नस्लें,
न कहीं गलेगी दाल है भाई।
उठो-जागो हो गया सवेरा,
हाथ न आया काल है भाई।
मनसीरत तो सोच-सोचकर,
बुरा दौर विकराल है भाई।
विद्या देवी हे शारदे माँ
विद्या की देवी हे शारदे माँ।
विद्या का दे दान हे शारदे माँ।
हम हैं अज्ञानी हम हैं नादान,
शब्दों का हम को दे दो दान,
कर ज्ञान उजाला हे शारदे माँ।
विद्या का दे दान हे शारदे माँ।
तू हंसवाहिनी कमल पर विराजे,
हाथों में वीणा के सुर हैं बाजे,
जीवन तार दे तू हे शारदे माँ।
विद्या का दे दान हे शारदे माँ।
डूबतों के जैसे तिनका सहारा,
हम प्राणी हैं तुम बिन बेसहारा,
शिक्षा का दे वर हे शारदे माँ।
विद्या का दे दान हे शारदे माँ।
मनसीरत सदा तेरे गुण गाये,
हरपल हरदम तुम्हें ही ध्याये,
खड़े हम सवाली हे शारदे माँ।
विद्या का दे दान हे शारदे माँ।
विद्या की देवी हे शारदे माँ।
विद्या का दे दान हे शारदे माँ।
जीने को तेरी बस एक याद काफ़ी है
जीने को तेरी बस एक याद काफ़ी है,
मिलोगे कभी तुम यही मुराद काफ़ी है।
ख्वाबों में अपने सजाया है तुझको,
कुछ भी गवारा तुम बिन नहीं है हमको,
मुक्कमल हो आस फ़रियाफ काफ़ी है।
जीने को तेरी बस एक याद काफ़ी है।
हवा के झरोखों संग बुलाऊँ मैं तुमको,
बाँहों के झूलों में झुलाऊँ मैं तुमको,
तारों भरी रात में एक बात काफ़ी है।
जीने को तेरी बस एक याद काफ़ी है।
ताज़ा ख़बर आई है अख़बार में
ताज़ा ख़बर आई है अख़बार में,
इस्मत बिकेगी आज बाज़ार में।
कोई नहीं घर में कभी रोकता,
दिखती कमी प्रत्येक किरदार में।
दरबान दरबारी सभी हैं सिरफिरे,
ज़ुल्मी बने काबिल है सरकार में।
जो रोज़ भरते कान सरदार के,
योग्य नहीं काबिज़ है दरबार में।
यह खूबसूरत-सा जगत आसरा,
नाहक परेशां लोग संसार में।
चलता न कोई भी कहीं ध्यान से,
हासिल सदा ही मौत रफ़्तार में।
देखा न मनसीरत यहाँ आप सा,
वो बात दिखती है न दिलदार में।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
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