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पढ़ो हिंदी (Hindi), लिखो हिंदी
पढ़ो हिंदी (Hindi), लिखो हिंदी,
बड़ी प्यारी ये भाषा है
ये मधुरिम प्रेम से भरपुर,
भारत की परिभाषा है।
है भाषाओं की जननी ये
जिसे दिनकर ने पूजा है
इसे पाकर निराला का
बड़ा ही नाम गुजा है
इसी हिन्दी की महिमा से
कबीर, तुलसी, रैदासा है
पढ़ो हिंदी, लिखो हिंदी,
बड़ी प्यारी ये भाषा है
सुहाषित शब्द है इसमे,
समाहित सभ्यता जिसमे
विदेशो में भी छाया है,
विटप सम हिन्द की रस्में
जरा महता को समझो जी
जिसे शिव ने तराशा है
पढ़ो हिंदी, लिखो हिंदी,
बड़ी प्यारी ये भाषा है।
दर्जा मातृ-भाषा का
सदा ही माँ के जैसा हो
कभी भूलेंगे ना इसको
हर मन के भाव ऐसा हो
करो संकल्प मिलकर के
मनी मन कि ये आशा है
पढ़ो हिंदी, लिखो हिंदी,
बड़ी प्यारी ये भाषा है।
हे! माता वीणा वाली
हे! माता वीणा वाली करूँ मैं वंदना
कर हंस की सवारी आओ मेरे अंगना
पूजा की थाल कविता तो शब्द पुष्प है
नैवेद्य हर एक छंद है, हर वंद्य धूप है
दोहा हवन की समिधा, चौपाई चंदना
हे! माता वीणा वाली करूँ मैं वंदना
गंगा की तरह शब्दो से पग पखारू मैं
प्रज्वल करूँ हृदय को आरती उतारू मैं
मेरे मन में हो सुशोभित एकाग्र भावना
हे! माता वीणा वाली करूँ मैं वंदना
कर जोड़ के खड़ा हूँ तेरे दर पर भोली माँ
मनी काव्य भाव पूजा स्वीकार करो माँ
सद्भाव करो उद्भव बस यही है कल्पना
हे! माता वीणा वाली करूँ मैं वंदना
हे! माँ
मेरी लेखनी में माँ हुंकार भरों फिर से
शब्दो कि सरिता का संचार करों फिर से
मैं भूल सकू हरपल जो कष्ट दिया मुझको
मै काव्यमयी साधक बनू कालजयी फिर से
मेरे दिल में दिनकर है, मेरे मन में निराला
बड़ी भाव से चखता हूँ हरिवंशी मधुशाला
रैदास, कबीर, तुलसी का ध्यान धरूँ फिर से
मै काव्यमयी साधक बनू कालजयी फिर से
मैं लेखनी के संग-संग बंदूक भी रखता हूँ
कवि मन में मनी फ़ौजी रसूख़ भी रखता हूँ
कुछ ऐसा करो कृपा तुम वीणा वाली माँ
मैं सरहद पर दुश्मन का काल बनूँ फिर से
मै काव्यमयी साधक बनू कालजयी फिर से
हर क़दम पर मैं गिर कर संभालता रहा
हर क़दम पर मैं गिर कर संभालता रहा
जो भी जैसा मिला राह चलता रहा
मेरी आँखों से आंसू बरसते रहे
लोग मेरी हालातों पर हँसते रहे
हर तरफ़ था अँधेरा मैं जाता किधर
न कोई था ठिकाना नाही कोई घर
मैं यायावर के जैसा भटकता रहा
जो भी जैसा मिला राह चलता रहा
मुझको हासिल नहीं था ख़ुशी का जहाँ
इस ग़रीबी को लेकर मैं जाता कहा
इन जफ़ाओं से जीवन सुलगता रहा
एक रोटी ने मुझको ले आयी कहा
मैं तो मछली के जैसा मचलता रहा
जो भी जैसा मिला राह चलता रहा
आज कहने को सब तो है अपने मगर
पर कोई ना मिलेगा मदद को यहाँ
सबको दौलत या सोहरत की रहती फ़िकर
पर कोई तो नहीं है मुआफ़िक यहाँ
अपने अरमानों की क्या कहानी कहूँ
ना सफलता रहा ना विफलता रहा
मेरे आँगन में तो बस विकलता रहा
जो भी जैसा मिला राह चलता रहा
***
संगदिल:-कठोर हृदय
मुआफ़िक:-मित्र
जफ़ा:-अत्याचार
देश प्रेम
यह प्रेम जो मैं कर बैठा हूँ
मोहताज नहीं है दिलबर की
मुमताज से बढ़कर सरहद है
हमे नहीं ज़रूरक्त अकबर की
गर गरल तुझे यह लगता है
तो मैं खुश हूँ विष पीने में
यह देश प्रेम का जज़्बा है
जो धड़क रहा है सीने में
अंगारों पर ही चलकर के
खुद को तैयार किया हमने
खौलाकर लहूँ के बूंदो को
पीणा आहार किया हमने
देख लो ग़ौर से हमको
हिंदुस्तान दिखेगा सीने में
यह देश प्रेम का जज़्बा है
जो दौड़े खून पसीने में
यह वर्दी सिर्फ़ नहीं कपड़ा
भारत माँ का आँचल है
इस आँचल की छाया ही
मेरे मुग्ध हुआ हृदयाँचल है
हम खड़े है इस मिट्टी खातिर
बड़ा मज़ा है ऐसे जीने में
यह देश प्रेम का जज़्बा है
जो धड़क रहा है सीने में
जब तक यह जीवन चक्र रहे
इस प्रेम पर मुझको फक्र रहे
जब बात चले देशभक्तों की
मम नाम वहाँ पर अग्र रहे
अपने सौभाग्य पर इतराऊँ
मुझे गर्व है जय हिंद गाने में
यह देश प्रेम का जज़्बा है
जो धड़क रहा है सीने में
अब बोल रहा मेरा कण-कण है
भारत को सब कुछ अर्पण है
बस एक ही अंतिम इच्छा है
मेरे देश का गौरव बना रहे
भले शीश कटे या रक्त बहे
पर वीर तिरंगा तना रहे
यह सत्य साधना गंगा है
जो बहती हर एक सीने में
यह देश प्रेम का जज़्बा है
जो दौड़े खून पसीने में
तुम्हारे आने से आया बहार
तुम्हारे आने से
है आया सावन का बहार
तुम्हारी आँखों मे
है दिखता सात जन्म का प्यार
आओ हम मिलजुलकर
बनाए एक सुखद संसार
ओ साथी हो, ओ मितवा हो
ये रब की रहमत है
की मुझको हुआ है तुमसे प्यार
मेरी खुश क़िस्मत है
है मेरे संग मेरा दिलदार
आ जाओ ख़ुशी खुशी
मनाए जीवन का त्योहार
ओ साथी हो, ओ मितवा हो
ये जीवन उपवन है
तुम्ही तो हो इसके रखवार
तुझे सब अर्पण है
हो तुम इसके असली हकदार
आओ मत तड़पाओ
मेरे दिल में है भरा उद्गार
सुहाने सपनो में
तुम्ही आती हो कर श्रृंगार
ओ साथी हो, ओ मितवा हो
सरहद पर जयघोष करेंगे
खौल रहा है रक्त हमारा,
दुश्मन ने है फिर ललकारा
जाकर उसको सबक सिखाऊँ
जिसने सैनिक को है मारा
दो आशीष माँ तिलक लगाकर
खुश होकर माँ मुझे विदाकर
अबकी बारी सरहद पर हम
प्रलयकारी बन कूद पड़ेंगे
रक्त से दुश्मन को नहलाकर
सरहद पर जय घोष करेंगे
शिव तांडव होगा सरहद पर
माँ रणचंडी का आह्वान करेंगे
जय हिंद जय हिंद मंत्र हमारा
दुश्मन का घर शमशान करेंगे
आक्रोशित है नस-नस मेरा
अब दुश्मन अफ़सोस करेंगे
रक्त से दुश्मन को नहलाकर
सरहद पर जय घोष करेंगे
यह पैसठ का नहीं है भारत
धमकी दे बच नहीं सकोगे
अबकी बारी जंग हुआ तो
चीनी तुम बेमौत मरोगे
खेल खेल में धैर्य की सीमा
अब तुमने तो तोड़ दिया है
भारत के सोए शेरो को
चीनी ने फिर से छेड़ दिया है
अंत समय आया है इनको
काट काट ख़ामोश करेंगे
रक्त से दुश्मन को नहलाकर
सरहद पर जय घोष करेंगे
जब तक होगा प्राण देह में
दुश्मन से हम लोहा लेंगे
या रक्त से सिंचित कर सरहद
इस दुनिया से हम विदा ले लेंगे
ओढ़ कफ़न तिरंगे का हम
तनिक नहीं अफ़सोस करेंगे
देश प्रेम में मिट जाने को
हर युवा हृदय में जोश भरेंगे
रक्त से दुश्मन को नहलाकर
सरहद पर जय घोष करेंगे
निशा है अंधेरी
निशा है अंधेरी, उमड़ती घटाए
जलाकर शमा दिल ये तुझको बुलाये।
हसीं है ये सावन, है मौसम सुहाना
जरा मुस्कुरा कर, बना लो दीवाना
मैं छेड़ू तराना, जो तुझको ही भायें
जलाकर शमा दिल ये तुझको बुलाये
झरोखा पर बैठे, मैं रस्ता निहारूँ
हर अर्चना में मैं तुझको पुकारूँ
गुलाबी डगर पर मैं पलके बिछाएँ
जलाकर शमा दिल ये तुझको बुलाये
निशा की पहर जो पीहर को चली तो
तड़पता रहूँगा मिलन जो टली तो
मनी आ भी जा अब ना टूटें आशायें
जलाकर शमा दिल ये तुझको बुलाये।
मैं यार मनाने आया हूँ
अपने आंसू के बूंदों में भावों की सरिता लाया हूँ
मैं रूठे यार मनाने को यादों की कविता लाया हूँ
तुम याद करो बचपन के दिन जो हमने साथ गुजारे है
जिस खेल हम दो साथ रहे वह बाजी कभी न हारे है
तुम याद करो हम दोनों ने दोनों के राज छिपाये है
तुम याद करो हम ग़म में भी खुशियों की वर्षा लाये है
बचपन के स्वर्णिम उपवन से एक पावन रिस्ता लाया हूँ
मैं रूठे यार मनाने को यादों की कविता लाया हूँ।
अपने आंसू के बूंदों में भावों की सरिता लाया हूँ
जग जाहिर है हम दोनों ने, जो चाहा है वह पाया है
हम मिटा दिए उस हस्ती को, जिसने भी आँख दिखाया है
हम दोनों की यारी से तो ये सारी दुनिया छोटी थी
जब चोट लगे मुझको यारा तब तेरी अखिया रोती थी
वो काग़ज़ वाली नौका के जज़्बात में भीगता आया हु
मैं रूठे यार मनाने को यादों की कविता लाया हूँ।
अपने आंसू के बूंदों में भावों की सरिता लाया हूँ
तुम तब तक भूखे रहते थे जब तक मैं खाना ना खाऊ
परेशान हो जाते थे उस दिन जिस दिन विद्यालय ना आऊ
हम अपनी दुनिया के हीरो सतरंगी दुनिया था अपना
हम दोनों के आँखों को भी है दिखता एक जैसा सपना
इस सपने को पूरा करने को मैं व्याकुल निष्ठा लाया हूँ
मैं रूठे यार मनाने को यादों की कविता लाया हूँ।
अपने आंसू के बूंदों में भावों की सरिता लाया हूँ
क्या खता हुई मुझसे यारा तू मुझसे क्यो नाराज बड़ा
मैं दुनिया जीत लिया फिर भी, तेरे आगे तेरा यार खड़ा
तेरे मन में जो भी दुविधा है उस दुविधा पर प्रहार करो
यह प्रेम है कृष्ण सुदामा का यह प्रेम रत्न स्वीकार करो
मैं मित्र के अंतर्मन से हर एक द्वेष मिटाने आया हु
अपने जीवन में यारी का फिर ज्योति जगाने आया हु
मैं रूठे यार मनाने को यादों की कविता लाया हूँ।
अपने आंसू के बूंदों में भावों की सरिता लाया हूँ
ख्वाब देखूँ मैं सरहद से
एक ख़्वाब मैं देखूँ सरहद से
मेरे देश में खुशियाँ बनी रहे
हो एक तरफ़ ग़र रामलला
तो दूजे तरफ़ में अली रहे
जब ईद मनाए हिन्दू घर तो
मुस्लिम के घर में होली रहे
भारत के देख नजारें को
दुश्मन के घर खलबली रहें
मेरे देश का हर एक बच्चा
पहले हिंदुस्तानी बना रहे
भले अर्पित हो मम जीवन
पर भारत का सीना तना रहे
मुझे नींद नहीं आती हैं
मैं तो भारत माँ का बेटा हूँ
यह धरती स्वर्ग से बढ़कर है
जिस हवा में साँसे लेता हूँ
इस मिट्टी की सोंधी खुशबू
मुझे इत्र से बढ़कर लगती हैं
यह आँखे हैं रणवीरो की जो
अंगार की तरह सुलगती हैं
ख्वाहिश है यही हमारी की
हरदम गगन तिरंगा बना रहे
भले अर्पित हो मम जीवन
पर भारत का सीना तना रहे
मैं खुली आँख देखूँ सपना
हो उपवन-सा भारत अपना
हर दिल में हो भाईचारा
हो विश्व गुरु भारत अपना
ना हिन्दू हो ना मुस्लिम हो
ना मस्जिद नहीं शिवाला हो
हर बदन पर घर हो कपड़ा हो
सबको भर पेट निवाला हो
कोई ना मरे ईलाज बिना
शिक्षा की ज्योति जला रहें
भले अर्पित हो मम जीवन
पर भारत का सीना तना रहे
कसक और कलम
मैं शब्दो के सागर से मोती चुराकर
जपता हु तुझको मैं माला बनाकर
जो दिल में था मेरे वह कह न सका तो
मिटाया कसक को क़लम को उठाकर।
अभी याद मुझको है दिन वह सुहाने
वो मिलना तुमसे किसी भी बहाने
जो यादे तेरी मुझको जाती रुलाकर
मिटाया कसक को क़लम को उठाकर।
मोहब्बत के राहो में तन्हा खड़ा हूँ
निज आँसुओ से मैं भारत घड़ा हूँ
इन्ही आसुओ को मैं स्याही बनाकर
मिटाया कसक को क़लम को उठाकर।
पंछी
मुझे पिंजरे में बनाओ ना कैदी
मैं पँछी हूँ, अंबर है मेरा ठिकाना
प्रभंजन के गंजन में मुझको न डालो
मेरे पंख को आग में मत उबालो
मुझे भी तो हक़ है कि देखु जमाना
मैं पँछी हूँ, अंबर है मेरा ठिकाना
मेरी ज़िन्दगी का ज़ख़्म है पुराना
मेरा आँसूओं से है रिस्ता पुराना
मेरे दर्द को क्यो न समझे जमाना
मुझे मारकर के क्यो गाते तराना
मुझे भी तो जीने का दे दो बहाना
मैं पँछी हूँ, अंबर है मेरा ठिकाना
कभी-कभी देशभक्ति
कभी कभी देश भक्ति
बोलो कैसे तुम कर लेते हो
एक दिन पानी देकर के
पेड़ों संग सेल्फी लेते ही
देख दुखी तुम दूसरे को
बस झूठी आंसू रोते हो
फेसबुक पर साझा कर के
तुम लाइक कमेंट भी लेते हो
२६ जनवरी और १५ अगस्त
को नींद से तुम तो जगते हो
लेकिन पूरे साल देखो तो
कुम्भकरण-सा सोते हो
सड़क को गंदा करने से
तुम तनिक नहीं घबराते हो
ज्ञान की बातों को तुम बस
व्हाट्सएप्प पर ही फैलाते हो
लगा तिरंगा स्टेटस में अपना
देश भक्ति दिखलाते हो
अगले दिन सब भूल के
अपने पब्जी में लग जाते हो
वंदेमातरम छोड़ के जानू
सोना का गीत गाते हो
ऐसा तुम घनघोर दिखावा
कहो कहा से लाते हो
मेहनत करने वालो से
तुम सबक नहीं क्यो लेते हो
कभी कभी देश भक्ति बोलो
कैसे तुम कर लेते हो
चुप रहना ही अच्छा है
जब मन मंदिर ही धूसरित हो
तब क्या झूठा क्या सच्चा है
जब वक़्त की धारा विपरीत हो
और समय भी लेत परीक्षा है
और कार्य तुम्हारे नेक मगर
सब लोग कहें कि बच्चा है
तब चुप रहना ही अच्छा है॥
जब अपने ही अपने न रहे
जब आँखों में सपने न रहे
जब असफलता का दौर चलें
दिल अवसादों की ओर चलें
जब अभिलाषा के उपवन को
हर रोज़ विफलता खाता है
तब चुप रहना ही अच्छा है।
ये दुनियाँ बड़ी फरेबी हैं
कोई इसे समझ नहीं पाया हैं
ये टेढ़ी मेढ़ी जलेबी हैं
जिसने सबको भरमाया है
जब पग-पग पर पग डगमग हो
और समय की दुर्भिक्ष इक्षा है
तब चुप रहना ही अच्छा है॥
तुम कर्म करो, करते ही रहों
गतिमय हो पथ पर चलते रहों
निज भुजबल पर विश्वास करो
संकल्प करों, प्रयास करो
यह तो इंसानी फ़ितरत है ये
चलते सोहरत के रहते पिछा है
यहाँ चुप रहना ही अच्छा है
हीरा की बात करे जोहरी
हीरा नहीं मोल बताता है
अपनी क्षमता को सिद्ध करो
तुम अर्जुन बनकर युद्ध करो
तब दुनिया होगी मुठी में
यह वेद पुराण की शिक्षा है
तब तक चुप रहना अच्छा है
आँसू और शबनम
शबनम से आँसुओं का
रिस्ता बड़ा पुराना
हर बूँद में छिपा है
एहसास का खज़ाना
शबनम से आँसुओं का
रिस्ता बड़ा पुराना
आँखों से जब छलकती,
दिल को सुकून देती
चाहे ग़म हो चाहे खुशियाँ,
हर वक़्त साथ देती
खुशी और ग़म मनाती
होकर के जो बेगाना
मोती के तरह चमके
ज्योति से जब मिलन हो
हर बोझ कर दे हल्का,
मन में जो भी घुटन हो
सरगम है ये अलग पर
संगीत ये पुराना
एहसास की क़ीमत को
आसूँ ही है चुकाती
मन को शुकुन देकर
फिर छोड़ चली जाती
इन आँसू के दर्पण
में शब्द है सुहाना
शबनम से आँसुओं का
रिस्ता बड़ा पुराना
तमन्ना
ह्रदय के हिमालय से, कलकल निकल कर के
दु: खमय या सुखमय, डगर पर यूँ चल कर के
सुहाने सफ़र में यूँ ही मिलकर बिछड़कर के
मेरी प्रीत गंगा की तुम्ही हो सागर
ना कोई है मंज़िल ना कोई ठिकाना
तुझको मैं पा लूँ यही बस तमन्ना
या बनकर हवा-सा तुम्हे चुम लूँ मैं
इन जुल्फों के साये में भी झूम लूँ मैं
तुम्हे देखने का मैं ढूँढू बहाना
तुझको मैं पा लूँ यही बस तमन्ना
मैं कोयल की कु-कु से तुझको जगाऊँ
तुम्हें याद कर-कर के नगमे बनाऊँ
मेरे ज़िन्दगी का सफ़र ये सुहाना
तुझको मैं पा लूँ यही बस तमन्ना
कही वादियों का अगर ज़िक्र हो तो
तुम्हारा ही चेहरा मुझे याद आये
अगर मुझको खोने का कुछ फ़िक्र हो तो
ये प्यारा-सा मुखड़ा मुझे याद आये
तुम्हारा ही दिल अब मेरा आशियाना
तुझको मैं पा लूँ यही बस तमन्ना
मेरे पास मेरी चाँदनी है
कहों मैं चाँद को निहारूँ क्यों
जब मेरे पास मेरी चांदनी हैं
मैं प्रेम गीत क्यो ना गाऊँ भला
जब मेरे संग में सुहासिनी है।
रौशनी आँगन की, वह एक ज्योति है
मेरी जीवन को खुशी, उसी से मिलती है
दुनिया अग्नि है, तो वह शीतल जल सी
मेरे उपवन की है, कली वह कोमल सी
उसके शिवा और कुछ मैं देखूँ क्यो
जब मेरे पास मेरी चांदनी है
मैं सारी खुशियाँ क्यो ना पाऊँ भला
जब मेरे संग मेरी संगिनी है।
मेरी है साधना वह, मेरी आराधना वो
वो मेरी क़िस्मत है, और है कल्पना वो
वो मेरी शक्ति है, वह मेरी भक्ति है
आँखे बंद करूँ तब वही दिखती है
मैं किसी और को पुकारूँ क्यो
जब मेरी संग में कुमुदनी है
मैं प्रीत गीत क्यो ना गाऊँ भला
जब मेरे साथ मेरी कामिनी है।
जब वह मेरे साथ रहें, ग़म ना पास रहें
मेरे दिल में वह बसें, एक विश्वास भरें
उसके नजरो में, सारा जहाँ दिखता है
उसके जैसा मुझे, कुछ नहीं लगता है
मैं तब किसी और को मैं लिखूँ क्यो
जब मेरे पास मेरी ज़िन्दगी है
खुशी के शब्द क्यो ना सजाऊँ भला
जब मेरे-मेरे संग मेरी संगिनी है।
दिल कहता है
दिल कहता है किताब बन जाऊँ
मैं शब्दो का बाग़ बन जाऊँ
सारी दुनिया समेट लूं ख़ुद में
हरेक नयनों का ख़्वाब बन जाऊँ
अरमानों के ओढ़कर चादर
लिखू मैं शौक से मोहब्बत को
झुके ना सर ये सिवा रब के कही
लिखूं बेख़ौफ़ मैं हक़ीक़त को
मेरे शब्दों में धार हो इतना
मैं वतन की आवाज़ बन जाऊँ
दिल कहता है किताब बन जाऊँ
मैं शब्दो का बाग़ बन जाऊँ
मेरे शागिर्द जब भी मुझको मिले
मैं हर बार कुछ नया दूं उन्हें
मेरा जीवन महज़ वरक़-सा नही
इसकी क़ीमत है क्या बता दूं उन्हें
मैं रख लूं सौरभ स्वर्ण शब्दों का
एक सुरभित गुलाब बन जाऊँ
सारी दुनिया समेट लूं ख़ुद में
हरेक नयनों का ख़्वाब बन जाऊँ
एक ख़्वाहिश है दिल में बचपन से
हर एक दिल में घर हमारा हो
मेरे गौरव की शाख़ इतना कि
हर तरफ़ जय हिंद का नारा हो
मेरे परिचय में सिर्फ़ भारत हो
मैं नवयुग चिराग बन जाऊँ
मेरे शब्दों में धार हो इतना
मैं वतन की आवाज़ बन जाऊँ
स्वदेशी अपनाओ
हिंदुस्तानी होने का तुम अपना फ़र्ज़ निभाओ
मेरे मन की अभिलाषा को जन-जन तक पहुचाओ
भारत माँ के आँगन में खुशीयों का दीप जलाओं
पृथ्वीराज के वंसज अब बस एक आवाज़ उठाओं
यह संकल्प हमारा है, स्वर्णिम इतिहास बनाओ
सब मिल वंदेमातरम गाओ, आओ स्वदेशी अपनाओ
अपने देश का मान बढ़ाओ, आओ स्वदेशी अपनाओ
एक समय सोने की चिड़िया हिंदुस्तान था अपना
हर घर में था रोज़ दीवाली वा-वा वाह क्या कहना
लेकिन अंग्रेजों ने लूटा, हर आँखों का सपना
सब कुछ सरहद पार ले गए, धन दौलत और गहना
अब तो जागो भारतवासी होश में अब तो आओ
तुम अपना कर्तव्य निभाओ, आओ स्वदेशी अपनाओ
सब मिल वंदेमातरम गाओ, आओ स्वदेशी अपनाओ
सरहद पर जो खड़ा है सैनिक जान हथेली पर है
पाकिस्तान और चीन की हरदम बुरी नज़र हम पर है
गोलीबारी से सरहद पर प्रतिदिन सैनिक मरते
घुसपैठी घिनौनी हरकत सीमा पर है करते
बंद करो भाईचारा अब ईट से ईट बजाओ
भारत की परिभाषा क्या है विश्व को अब समझाओ
अबकी चीन को धूल चटाओं, आओ स्वदेशी अपनाओ
दुआएँ दो दुआएँ लो
दुआएँ दो दुआएँ लो यही, जीवन का मतलब है
यहाँ सब लोग अपने है, ये धरती ही तो जन्नत है
मानवता को जीवित रखना, परम कर्तव्य है अपना
सुहाषित धन्य है जीवन, कली कुशुमित मोहब्बत है॥
दुआओं का असर ही है, कभी जो साथ ना छोड़े
दुआओं में जो हो शामिल, कभी वह मुह ना मोड़े
दुआओं में सरलता है, दुआओं में सफलता है
दुआओं में बसे रहना, दुआ सबकी ज़रूरत है॥
ये जीवन जंग-सा है तो, दुआ ही ढाल है इसकी
न जाने कब कहा कैसे, दुआएँ साथ दे किसकी
किसी के साधना का सत्यफल, प्रसाद जैसा है
दुआँ के संग ईश्वर है, ये सच मानो हक़ीक़त है
दुआएँ दो दुआएँ लो, यही जीवन का मतलब है॥
ज़ुल्फो में छिपा लो मुझे
अपने ज़ुल्फ़ों की बदलियों में अब छिपा लो मुझे
अपने सरगम में मिलाकर के गुनगुना लो मुझे
मेरे सपने में आओ तुम भी कभी
अपने सपने में भी बुला लो मुझे
अपने ज़ुल्फ़ों की बदलियों में अब छिपा लो मुझे
कहो जो तूम तो मैं फूलों से गुफ़्तगू कर लूं
मैं बन के ग़ज़रा पुष्प का कुछ नया कर लूं
अपने ग़ज़रे की गुलिस्ताँ में अब लगा लो मुझे
अपने जुल्फों के आवरण में अब सजा लो मुझे
अपने ज़ुल्फ़ों की बदलियों में अब छिपा लो मुझे
अगर भ्रमर के तरहा मैं तो तुम कली मेरी,
कोई ना और इस दिल में बस तुम्ही मेरी
मेरे नयनों की तरस तुम हो बस तुम्ही तुम हो
अपने सासों के संवहन में अब मिला लो मुझे
अपने ज़ुल्फो के आवरण में अब सजा लो मुझे
प्रीत है सावन जैसा
प्रीत है सावन का मौसम
और गीत है बादल जैसा
हरा भरा है जीवन अपना
सुरभित उपवन जैसा
भूमंडल पर छाया खुशिया
सावन के आ जाने से
उसी तरह मैं धन्य हो गया
साथ तुम्हारा पाने से
हर्षित मन है नव्य जीवन है
मोर पंख के जैसा
प्रीत है सावन का मौसम
और गीत है बादल जैसा
कोई सरगम तुम छेड़ो
मैं उस पर शब्द सजाऊँ
तुम बन जाओ कली पुष्प की
मैं भौंरा बन जाऊँ
तू हो मेरी, मैं हु तेरा
फिर ये दूरी कैसा
प्रेम हमारा पावन है
राधा और किशन के जैसा
दिल मेरा है प्रेम पपीहा
प्रीत की गीत सुनाए
नयन निहारे राह तिहारे
पलक झपक नहीं पाए
एक झलक अब तो दिखला दो
अब यह पर्दा कैसा
तुम संगीत की स्वर्णिम सुर
निज मिलन है सरगम के जैसा
हरा भरा है जीवन अपना सुरभित उपवन जैसा
जीवन एक उत्सव
जीवन के शुरुआत से लेकर अंत समय तक उत्सव है
उत्सव के उपवन ही एक पेड़ हमारा जीवन है
जब धरती पर पाँव पड़े तब भी उत्सव का दौर चला था
माँ की ममता के छाया में प्रतिपल उत्सव में पला था
बारह दिन पर नाम करण, और मुंडन हुआ तो उत्सव था
जिस दिन क़दम बढ़ाया पहला वह फिन एक उत्सव था
जब बोला था शब्द प्रथम उस दिन भी एक उत्सव था
विद्यालय में नामांकन जब हुआ मेरा तब उत्सव था
जब पढ़कर मैं पास हुआ उस दिन भी रख उत्सव था
मनाया उत्सव यारो संग जब लगा सफलता मेरे हाथ
उस दिन महोत्सव था जब हुआ किसी से दिल की बात
उस दिन भी तो उत्सव था घोड़ी चढ़कर गया बारात
उत्सव दुगना हुआ मेरा जब परिणय हुआ प्रेमी के साथ
प्रतिपल उत्सव होगा जब मुख से निकलेगा प्रेम की बात
जिस दिन गूंजे घर किलकारी उस उत्सव का क्या कहना
जीवन धन्य हो जाएगा जब मिले संतान रूपी गहना
उत्सव का यह दौर हमेशा मन में एक विश्वास भरे
चिंतामुक्त हो जाता जीवन भय भी पास नहीं ठहरे
अंत समय भी उत्सव है जब चार कंधे पर जाते है
जीवन भर के उत्सव वाली यादों को छोड़ के जाते है
मंद मंद जीवन के पथ पर उत्सव का एहसास करो
चार दिन का जीवन है खुश रहने का प्रयास करो
प्रेम सुधा रस पान करो और हरदम जय श्रीराम कहो
आनंदित जीवन हो जाएगा उत्सव का आह्वान करो।
शहीद की नारी
जिसने देश के खातिर छोड़ा,
सिंदूर बिंदी और सुहाग
जिसने भुला दिया हर सपना
देखा था जो मिलकर साथ
जिसने तिलक लगाकर जंग में
कन्त को अपने विदा किया
हृदय तो कंपित था लेकिन
त्यागी बन फ़र्ज़ को अदा किया
जिसने दो पल की खुशियो में ही
जीवन जीना सीखा है
जिसने बिरह हलाहल को भी
प्यार से पीना सीखा है
जिनके आँसू भी गिरकर के
जय हिंद का नारा लिख दिए
जिसने सर्वस्व समर्पित कर
स्वर्णिम इतिहास को लिख दिए
हम उस त्याग के मूर्ति के
हृदयाँचल से आभारी है
नमन है हर उस दिव्यशक्ति को,
जो शहीद की नारी है
सैनिक को जब विदा किये
तब सब मिलकर के रोये थे
सबके दिल में बसा था फौजी
जैसे कुछ अपना खोए थे
समाचार और दूरदर्शन पर
देशभक्ति का दौर चला था
बस एक मौत से हिंदुस्तान में
मातम हर घर-द्वार मना था
पर यह सब तो दिखावा था
देशभक्ति दिखलाने का
मैं भी भारत का सेवक हूँ
यह सब बात बताने का
सैनिक के अर्थी के संग में
फ़ोटो को खिंचवाने का
पल भर के भाषण में ही
राजगद्दी को पाने का
पर कुछ ही दिनों के बाद कहा
कोई भी उनकी सुधि लेता है
घर के हालातों को देख
हर कोई चुटकी लेता है
मैं सत्य का दर्पण दिखा रहा है
सोया मानवता जगा रहा हु
शहीद के परिवारों की हालत
क्या है सबको बता रहा हूँ
लगाते चक्कर दफ्तर-दफ्तर
उन्हें अबला होते देख रहा हूँ
सरकारी निठल्लों को
शब्दो से मैं ठोक रहा हु
जिसको कहते थे हम सब
की हिन्द की बेटी प्यारी
पर खो देश के खातिर सिंदूर
आज क्यो हुई बेचारी है
कैसे चैन से होगा सैनिक
खुद को कर कुर्बान देश पर
जिसके जाने के बाद यहाँ से
परिवार जी रहा घुट-घुट कर
फिर भी लड़ती हालातो से
कभी भी हार न मानी है
खुद भी सैनिक बनने की
उसने मन में ठानी है
भारत माँ के बेटों पर
अब तो बेटीयाँ भी भारी है
दुश्मन से लोहा लेने को
जमकर कर रही तैयारी है
हम हिम्मत के इस देवी के
सर्वदा से पुजारी है
नमन है हर उस दिव्यशक्ति को,
जो शहीद की नारी है
कब तक क़लम ये आँसू लिखे
कब तक क़लम ये आँसू लिखे,
रुद्र रूप अब लेना होगा
कब तक लासो की आहुति
रणभूमि में देना होगा
उनके करनी का जवाब उनके
भाषा भाषा में देना होगा
वीरो के बलिदान का बदला
अब दुश्मन से लेना होगा
कब तक क़लम ये आँसू लिखे,
रुद्र रूप अब लेना होगा
कब तक तुंग शिखर पर चढ़
आतंकी अट्टहास करेंगे
आखिर कब तक घुसपैठी के
हरकत को हम माफ़ करेंगे
जड़ से इन्हें मिटाने का
संकल्प हमे अब लेना होगा
अबकी पारी सरहद से
संदेश नया एक देना होगा
कब तक क़लम ये आँसू लिखे,
रुद्र रूप अब लेना होगा
सत्य अहिंसा के पालक है,
मत समझो कमजोर हमे
गर जो धैर्य का बाँध टूटा तो
हम सब देंगे तोड़ तुम्हे
अंजाम क्या होगा भिड़ने का
अब इनको बतलाना होगा
हिंदुस्तानी ताकत को फिर
दुश्मन को दिखलाना होगा
तांडव करने सरहद पर अब
स्वयं शिव को आना होगा
हिंदुस्तानी शक्ति को अब
विश्व पटल पर लाना होगा
कब तक क़लम ये आँसू लिखे,
रुद्र रूप दिखलाना होगा
कौन कहता है कि हम आज़ाद है
अंग्रेजो से देश को आजादी तो मिल गई
कहने को तो स्वतंत्रता की चमन भी खिल गई
पर आम नागरिक तो अब भी फरियादी है
कौन कहता है कि देश आजाद है?
ये कैसी आज़ादी है?
अंग्रेज हमे खंडित कर हम पर राज किये थे
सोने की चिड़िया का पंख निर्दयता से काट लिए थे
आज भी तो कुछ ऐसा ही हो रहा है
एक बार वोट लेने के बाद
नेता पांच सालों तक आराम से सो रहा है
कहने को सब संविधान और कानून का पालन करते है
सच यह है कि धन वाले ही कानून का संचालन करते है
अंग्रेज चले गए पर हिंदुस्तान से पर
अब भी काबिज उनके कदमो के निशान है
कौन कहता है कि देश आजाद है?
अरे साहब पहले अंग्रेजो का गलाम था
अब कुछ चंद परिवारों का गुलाम है
सभी अँग्रेजी सीखने के लिए बेताब हो रहे है
हम हिंदुस्तानी होकर भी हिन्दी के लिए लड़ रहे है
लोग जाती और मज़हब के नाम पर रोज़ मर रहे है
फिर भी नेताजी शौक से विदेशो का भ्रमण कर रहे है
राजनीति के गलियों में नित पाल रहे जिहादी है
कौन कहता है देश आजाद है? ये कैसी आज़ादी है?
आज़ादी की वास्तविक पहचान कहाँ है?
रोटी, कपड़ा और मकान कहाँ है है?
कभी चमचमाती महलो से बाहर निकल कर देखो
७० साल पहले जहाँ हिंदुस्तान खड़ा था
अब भी भारत वही मायूस खड़ा है
किसानों का हाल देख लो पिट रहे सब छाती है
कौन कहता है देश आजाद है? ये कैसी आज़ादी है?
लिखते लिखते देश की हालत आँख मेरी भर आईं है
भारत के वीर शहीदों पर जब राजनीति मंडराई है
कैसा है ये दौर जहा पर रोज़ तिरंगा जलता है
क्यो राजनीत के आंगन में आतंकी चूहा पलता है
क्यो आक्रोशित जनता है, क्यो हर घर में एक बागी है
कौन कहता है देश आजाद है? ये कैसी आज़ादी है?
यह भारत की राजनीति है
नही जोड़ और नहीं घटाव जहा
ना कोई ज्यामिति है
जहा पाप की रेखा त्वरित बढ़ रही
इसकी असीम परिधि है
जहा हर पापी के पाप की नदियाँ
पाप समुंद्र से मिलती है
कड़वा है पर सत्य शोध
यह भारत की राजनीति है
जिसको कोई समझ न पाए,
गूंगा जहाँ पर गीत सुनाए,
अन्धा सबको राह दिखाये
बहरा न्याय का बिगुल बजाकर
भोली जनता को बहलाये
जहा आज भी सड़क किनारे
जनता भूखे रहकर सोती है
कड़वा है पर सत्य शोध
यह भारत की राजनीति है
जिस किसान का हाल बताकर
नेता जी जीते विगत चुनाव है
आज उसी किसान के खातिर
नेता जी के बढ़ गए भाव है
यहाँ इंतज़ार है रहता सबको
किसानों के मरने का
क्योकि सबको मुद्दा चाहिए
आने वाले धरने का
है बदहाली में अन्नदाता
भयानक यह स्थिति है
कड़वा है पर सत्य शोध
यह भारत की राजनीति है
शिक्षा को व्यापार कर दिए
युवा को बेरोजगार कर दिए
देकर शिक्षा में आरक्षण
मेधा को लाचार कर दिए
सरकारी पैसे पर इनकी
देर रात तक पार्टी चलती
कुर्सी के मद में मस्त है इनके
आगे कहा किसी की चलती
कितना है लाचार व्यवस्था
शब्दो में कैसे समझाऊँ
विद्यार्थी के लास को देख
मैं कैसे चुप रह जाऊँ
हरपल प्रतिपल आत्मदाह से
देश की फटती छाती है
कड़वा है पर सत्य शोध
यह भारत की राजनीति है
कोई न अपना, नही पराया
सब कुर्सी के मतवाले
मीठे मीठे बोल है इनके
छीने हर मुख से निवाले
अपराधों के करता धर्ता
आतंकी के सहयोगी है
दुश्मन के तलवे भी चाटे
ये दुश्मन के उपयोगी है
जय हिंद जय हिंद नारा है
पर देश विरोधी नीति है
कड़वा है पर सत्य शोध
यह भारत की राजनीति है
लिखते लिखते हाल देश का
आँख मेरी भर आई है
सैनिक पर भी राजनीति की
काली बदरी छाई है
लास की सौदा कर के कब तक
तुम निज कुर्सी को आबाद करोगे
कब तक भारत के गौरव
को तुम ऐसे बर्बाद करोगे
देश विरोधी नेता जी अब
सुन लो तुम बेमौत मरोगे
अगर जो सैनिक की लाशों पे
अपनी गंदी राजनीति करोगे
अब राम राज्य है आने वाला
जली आस की ज्योति है
बदल रहा देश हमारा
खड़े शीर्ष पर मोदी है
कड़वा है पर सत्य शोध
यह भारत की राजनीति है
योग एक दिव्य शक्ति
मानव शरीर और आत्मा का यह सुखद संयोग है
ईश्वर के चरणों में पहुँचने का सफल प्रयोग है
आनंद के अनुभूतियों का उच्चतम उद्योग है
शिव है जिसके आदियोगी यह विहंगम योग है
जो है सुशोभित साधना से दिव्य शक्ति योग है
जिसमें समाहित श्याम है जो प्रेम पावन धाम है
जिसमें समाहित बुद्ध है जो मन को करते शुद्ध हैं
जिस में निहित है महावीर जो चित को रखते सौम्य धीर
हर सभ्यता हर पंथ का अद्भुत विरल यह खोज है
जो है सुशोभित साधना से दिव्य शक्ति योग है
जिसने दिया है योग सूत्र थे गोणिका का के हृदय पुत्र
शिष्य थे जो पाणिनि के नाम था पतंजलि
जो योग विद्या को दिए पहचान की पुष्पांजलि
कर ध्यान आसन प्राणायाम घूम लोगे मन से चारों धाम
तन मन की शक्ति जानने का वास्तविक यह शोध है
जो है सुशोभित साधना से दिव्य शक्ति योग है
जिस योग की महिमा की चर्चा धर्म संसद में हुआ
स्वामी विवेकानंद ने जब योग गुण विशद (विस्तृत) किया
हुआ विश्व को आभास तब सब कर रहे अवलोक है
यह योग विद्या रामदेव बाबा सिखते सब लोग हैं
जो है सुशोभित साधना से दिव्य शक्ति योग है
हमे भी मुस्कुराने दो
मैं डर कर कब तलक जीऊ
कभी खुलकर भी जीने दो
कभी तो पोछ लो आकर
मेरे आंसू पसीने को
तुम्हारी ज़िन्दगी में हर तरफ
खुशिया ही खुशिया है
कभी हमको भी मौका दो
जरा-सा मुस्कुराने को
सिसक कर के सहमकर के
मैं आख़िर कब तलक जीता
अन्तर्मन के पीणा को मैं
आखिर किसको कह पाता
मैं जब भी गुनगुनाता था
तो मुझको रोक देते थे
मेरे जज़्बात के नदियों को
हरदम सोख देते थे
क्या मैं ही था मिला इनको
जहाँ में आजमाने को
कभी हमको भी मौक़ा दो
जरा-सा मुस्कुराने को
ये दुनिया सोहरतो के साथ है
पर मन परेशां क्यो
यहाँ सब साथ रहते है तो
फिर ये डर हमेशा क्यो
क्या मन और आत्मा की
बंदगी से है अलग ये सब
अगर पैसा ही सब कुछ है
तो फिर ये प्रीत रिस्ता क्यो
क्यो सब कुछ पा लिए फिर भी
चले ख़ुद को मिटाने को
क्यो तुमने छोड़ दी दुनिया
बताया क्या ज़माने को
क्या तुमको था नहीं मालूम
बस ये दुनिया है सताने को
कभी हमको भी मौका दो
जरा-सा मुस्कुराने को
मनीष कुमार तिवारी ‘मनी टैंगो’
भोजपुर, बिहार
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Thanks sir