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मोकलसर की पग बावड़ी (Mokalsar’s step well) : ऐतिहासिक, प्राचीनतम धरोहर का अनुपम उदाहरण
दोस्तों आज हम जानेंगे मोकलसर की पग बावड़ी (Mokalsar’s step well) के बारे में रोचक जानकारी… जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे देश में ऐतिहासिक धरोहरों की कमी नहीं है… ऐसी ही एक ऐतिहासिक धरोहर है, मोकलसर की बाबड़ियाँ… तो आइये पढ़ते हैं यह आलेख… इस आलेख को तैयार किया है कुमार जितेन्द्र व उनकी टीम ने…
ऐतिहासिक प्राचीनतम धरोहर बावडिया
प्राचीन काल में जल संरक्षण प्रणाली का मुख्य आधार केन्द्र बावडिया रही है। बावडियों का प्रारम्भिक काल लगभग छठी शताब्दी में गुजरात के दक्षिण पश्चिमी भाग आरम्भ होकर राजस्थान में यह लगभग ११ वीं शताब्दी से १६ शताब्दी तक पूर्ण चरम सीमा पर रहा है। प्राचीन काल की जल प्रबंधन की परम्परा को निभाते हुए बावडिया महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। यह सीढ़ी द्वार कुओं के जल स्रोत को बावड़ी के नाम जाना जाता है। इन बावडियों को दूर से देखने पर किसी बहुमंजिला हवेली जैसी नज़र आती है।
मोकलसर
बाड़मेर जिले के सिवाना उपखंड के छप्पन की पहाडियों की तलहटी में स्थित मोकलसर गाँव प्राचीन काल में ऐतिहासिक धरोहरों जैसे वावड़ी, जैन मंदिर एवं अनेक छतरियों एवं मन्दिरों का केन्द्र रहा है।
मोकलसर की ऐतिहासिक धरोहर पग बावड़ी
मोकलसर की आबादी क्षेत्र के बीचो-बीच त्रिवेणी संगम का अनोखा केंद्र है। जैसा त्रिवेणी संगम में एक मुख्य पग बावड़ी दूसरी इसके बायी ओर प्राचीन शिव मंदिर तथा दायी ओर साधुओं के मठों के बीच स्थित है।
पग बावड़ी का निर्माण
मोकलसर के बुज़ुर्ग जानकारों के अनुसार पग बावड़ी का निर्माण लगभग संवत १०७८ के आसपास कटक के बणजारा साधुओं द्वारा बताया गया है। पग बावड़ी का निर्माण लगभग तीन चरणों में ईंटों, पत्थरों, रेत, खडी से पूरा किया हुआ प्रतीत होता है। बावड़ी की मुख्य पृष्ठभूमि देखने पर पता चलता है इसमे दस तोरण द्वार बने हुए हैं प्रत्येक तोरण द्वार में दो-दो छोटे-छोटे आले बने हुए देखे जा सकते हैं। दस तोरण द्वार में कुल २० आले है। माना जाता था कि इन प्रत्येक आलों में प्राचीन पत्थरों की खुदाई की देवी देवताओं की मूर्तियाँ रखी हुई थी।
पग बावड़ी के मुख्य द्वार पर शिलालेख
पग बावड़ी के मुख्य द्वार पर जानकारों के अनुसार दो शिलालेख लगे हुए थे। परंतु वर्तमान परिस्थितियों में बावड़ी के मुख्य द्वार पर एक छोटे से पेड़ के पास एक टूटा चौकोर शिलालेख दिखा देता है जिसमें ऊपर की और शिव मंदिर जैसे शिव लिंग व अन्य चित्रों की खुदाई की गई है। शिलालेख के नीचे की ओर कुछ अदृश्य नाम खुदाई किए हुए प्रतीत हो रहे हैं। इस शिलालेख से पुरातत्व सर्वेक्षण के आधार पर एक विस्तृत जानकारी उपलब्ध हो सकती है।
पग बावड़ी का प्रवेश द्वार
पग बावड़ी का प्रवेश द्वार पर ईंटों एवं पत्थरों से दो गुंबद बने हुए हैं। जैसे प्रवेश द्वार से आगे बढ़ते जाते हैं तो लगभग २७ छोटे-बड़े पत्थरों की एक स्तर की सीढ़ियाँ बनी हुए हैं तथा उसके दोनों और पत्थरों की दीवारें है।
पग बावड़ी प्रथम तोरण द्वार
प्रवेश द्वार से २७ सीढ़ियाँ चलने के बाद सुन्दर-सा प्रथम तोरण द्वार जो घुमावदार आकृति की कलाकारी से ईंटों, खड़ी, खड़ी से निर्मित है। तोरण द्वार के ऊपर की ओर दायी-बायी तरफ़ वृत्ताकार फ़ूलों-सी कलाकृति बनी हुई है और तोरण द्वार के अंदर इसमे दो आले बने हुए हैं जिसमें जानकारों के अनुसार प्राचीन समय में देवी देवताओं की मूर्तियाँ रखी हुई थी।
पग बावड़ी का द्वितीय तोरण द्वार
पग बावड़ी के प्रथम तोरण द्वार से जैसे ही पत्थरों की सीढ़ियों से आगे बढ़ते हैं बावड़ी भूमि के अन्दर लगभग २० सीढ़ियाँ चलने के बाद द्वितीय तोरण द्वार पर पहुँच जाते हैं। दीवारें धीरे-धीरे बड़ी होती जाती है। द्वितीय तोरण जो एक के उपर एक कहने का तात्पर्य यह है कि दो तोरण द्वार एक साथ बने हुए हैं। दोनों तोरण द्वार में चार आले बने हुए हैं। इनमे भी प्राचीन पत्थरों से देवी-देवताओ की मूर्तियाँ रखी हुई थी।
पत्थर की प्राचीन मूर्ति
तोरण द्वार के ठीक पहले सफ़ेद पत्थर की बिखरी हुई दुर्लभ मूर्ति देखी जा सकती है। जिसको व्यवस्थित करने पर मूर्ति के उपरी भाग पर गणेश जी की छोटी-सी मूर्ति दिखाई देती है।
पग बावड़ी का तृतीय तोरण द्वार
जैसे ही दूसरे तोरण द्वार से सीढ़ियों की सहायता से आगे बढ़ते हैं तो बावड़ी की दीवारें ऊंची होती जाती है और सीढ़ियाँ भूमि के भू गर्भ की ओर जाती है। लगभग २० सीढिया चलने के बाद हम तृतीय तोरण द्वार पर पहुँचते हैं। इसकी विशेषता यह है कि इसमे एक के उपर एक तीन शानदार हवामहल जैसे तोरण द्वार बने हुए हैं जिसमें सुन्दर-सी कलाकृति देखने को मिलती है। इन तीनों तोरण द्वार में ६ आले बने हुए हैं। इनमे भी बताया जाता है कि प्राचीन मूर्तियाँ रखी हुई थी।
पग बावड़ी का चतुर्थ तोरण द्वार
जैसे ही हम तीसरे तोरण द्वार से सीढ़ियों की सहायता से बावड़ी के चतुर्थ तोरण द्वार पर पहुँचते हैं तो हमे लगभग १६ सीढिया चलना होता है। इस तोरण द्वार पर एक शानदार, बहुमंजिला हवेली जैसा देखने को मिलता है। यह अनोखा द्वार जिसमें एक के ऊपर एक मतलब चार तोरण द्वार बने हुए हैं। सभी तोरण द्वार पर शानदार फ़ूलों से कलाकृति की हुई है। जिसमे आठ आले बने हुए हैं। इन आलों में भी प्राचीन मूर्तियाँ रखी हुई थी। वर्तमान में चतुर्थ तोरण द्वार के नीचे वाले भाग में एक आले में नाग देवता की छोटी-सी मूर्ति रखी हुई है।
पग बावड़ी का मुख्य जल केंद्र
प्रवेश द्वार से द्वार से मध्य भाग तक ईंटों, पत्थरों से मज़बूत निर्माण किया है। तथा पत्थरों की लगभग ८३ सीढियों एवं चार तोरण द्वारो से गुजरते हुए बावड़ी मुख्य जल केंद्र पर पहुँचते हैं जिसमें सीढियों के माध्यम से जो कुए नुमा जल स्तोत्र बना हुआ है। जो किसी भू गर्भ के जल स्रोत से जुड़ा हुआ हो सकता है। बावड़ी का मुख्य केंद्र देखने से प्रतीत होता है कि यह अंग्रेज़ी के यू आकार के अनुसार लगभग २० घेरे बने हुए जो लाल रंग की ईंटों से निर्मित है।
पग बावड़ी मोकलसर के सांस्कृतिक जीवन का केंद्र थी
मोकलसर के जानकारों के अनुसार पग बावड़ी जल संरक्षण के साथ-साथ ग्रामीण जीवन का सांस्कृतिक केंद्र भी थी। यहा पर महिलाओ के द्वारा पूजा अर्चना की जाती थी तथा बावड़ी के चारो ओर परिक्रमा भी की जाती है। जिससे बावड़ी का जल स्तर ऊपर उठा रहे। इस ऐतिहासिक बावड़ी से मोकलसर की एक पहचान बनी हुई है।
वर्तमान में मोकलसर पग बावड़ी की उचित देखभाल की आवश्यकता है
पग बावड़ी के नाम से प्रसिद्ध मोकलसर की बावड़ी को वर्तमान परिस्थितियों में उचित देखभाल की बड़ी आवश्यकता है। क्योकि धीरे-धीरे यह बावड़ी अपना अनोखा रूप खोती जा रही है। बावड़ी के उपरी भाग में कंटीली झाड़ियों हवाओं में हिल रही है और इस बावड़ी का प्रवेश द्वार खुला है, इसके १० तोरण द्वार में रखी हुई मूर्तियाँ नहीं है। तथा बावड़ी के प्रवेश द्वार से लेकर मुख्य जल केंद्र तक कचरे के ढेर लगे हुए हैं। जो एक चिंता का विषय है। क्योकि प्राचीन समय में मोकलसर गाँव के लिए जल का मुख्य स्त्रोत, सांस्कृतिक केंद्र वर्तमान में कचरे से भरा हुआ है। उचित देखभाल से इस ऐतिहासिक मोकलसर की धरोहर पग बावड़ी को पुनः अपनी मुख्य अवस्था में लाया जा सकता है। तथा आसपास क्षेत्रों के लिए एक दर्शनीय धरोहर विकसित हो सके।
सहयोगी टीम-कुमार जितेन्द्र “जीत” ,
लतीफ खान, गजेंद्र सुथार और हितू सागर
ग्राम मोकलसर, तहसील-सिवाना, जिला-बाड़मेर, राजस्थान
संगीत की दुनिया में अनोखे सफ़र से बने लाखो दिलों के बादशाह
बाल कलाकार अनिल नागौरी ने मधुर वाणी से जीत लिए लाखों दिल
जुनून के सफ़र में उम्र कभी बाधा नहीं डाल सकती है। ऐसा ही संगीत का जुनून बाल्यावस्था में ही अनिल नागौरी के ऊपर चढ़ गया। आधुनिक युग में नागौरी को अगर संगीत की दुनिया में लाखों दिलों के बादशाह कहे जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आईए मोकलसर विश्लेषक और वरिष्ठ अध्यापक कुमार जितेन्द्र “जीत” के साथ अनिल नागौरी के अब तक के संगीत के बेह्तरीन सफ़र को विश्लेषण से जानते हैं।
नागौरी के बाल्यावस्था का अनोखा राज
राजस्थान के नागौर जिले के छोटे से गाँव सथेरण में जसमल ईन्दलिया के घर माता हुरमो देवी की कोख से जन्मे बालक की तीव्र ज्योति-सी चमक उसी समय पालने में दिखाई दी थी। हवा के समान संगीत की धारा में खेलने वाले बालक का नाम पारिवारिक सदस्यों ने अनिल रखा गया। जैसा कि अनिल शब्द का शब्दिक अर्थ वायु है। यानी वायु का उल्टा अगर देखा जाए तो युवा नज़र आता है। आज नागौर का वहीं युवा जिसे अनु भी कहा जाता है वह संगीत की दुनिया में अनोखे ढंग से छाया हुआ है।
संगीत के नागौरी की शिक्षा और दीक्षा
बालक को भविष्य की उड़ान भरने के लिए वास्तविक शिक्षा और दीक्षा बहुत ज़रूरी है। यह उसके भविष्य के कंक्रीट भरे रास्तों को बेह्तरीन बनाती है। इसी के मध्य नज़र पिता जसमल ईन्दलिया ने बालक को गाँव सथेरण के निजी शिक्षण सस्थान में दाखिला दिलवाया। तथा घर में अतिरिक्त समय संगीत की दीक्षा पिता जसमल ईन्दलिया ने बखूबी से निभाई है। पिता के अच्छे संस्कारों और गुरु अभयदास महाराज तगतगढ (पाली) के आशीर्वाद से अनिल आज संगीत के शिखर पर पहुचे हैं।
नागौरी के संगीत का एक सफ़र
अपनी मधुर वाणी से लाखो दिलों में राज करने वाले बाल कलाकार अनिल नागौरी के संगीत के सफ़र की अगर बात करे तो नागौरी ने गायन कला की शुरुआत पाँचवी कक्षा में अध्ययन के दौरान विद्यालय में हुए कार्यक्रम में बाबा रामदेव के भजन “लीलो लीलो घोड़ों बाबा रामदेव” से की थी। तथा अब तक ४००० हज़ार से अधिक भजनों की प्रस्तुति देकर देश भर के दर्शकों को आकर्षित कर उनके हृदय में जगह बना ली है।
पिता की विरासत को बढ़ाए रखा
अनिल नागौरी को गायन की कला अपने पिता से विरासत के रूप में प्राप्त हुई है। परिवार में पिता को संगीतमय देख कर नागौरी के मन में गायन का जुनून जाग उठा। उसी जुनून ने नागौरी को संगीत की दुनिया में आज शिखर पर पहुचा दिया।
अनिल नागौरी का ख़्वाब
संगीत का बादशाह बाल कलाकार अनिल नागौरी का ख़्वाब ग़ज़ल गायक उस्मान मीर की तरह बनना हैं।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी नागौरी की शानदार धूम
सोशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबूक और यू ट्यूब चैनल के माध्यम से अनिल नागौरी ने हज़ारों भजनों से देश के दर्शको के बीच लोकप्रिय हुए हैं। नागौरी को दर्शकों का प्यारी इतना मिला कि आज उनके फेसबूक पर सात लाख से अधिक फ्लेवर्स और यू ट्यूब चैनल पर तेरह लाख से अधिक सब्सक्राइव हैं।
यूट्यूब की ओर से सिल्वर और गोल्डन बटन से नवाजे जा चुके हैं
देश के दर्शकों के बीच बढ़ती लोकप्रियता के कारण यू ट्यूब चैनल ने नागौरी को सिल्वर और गोल्डन बटन से सम्मानित किया जा चुका है।
पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने भेंट किया “गोल्डन बटन”
यूट्यूब चैनल पर बढ़ती लोकप्रियता के कारण १० लाख से अधिक फ्लेवर्स होने पर यू ट्यूब हेड ऑफिस अमेरिका से प्राप्त गोल्डन बटन को पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे द्वारा अपने निवास धौलपुर हाऊस पर आयोजित कार्यक्रम में अनिल नागौरी को गोल्डन बटन से सम्मानित किया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं पीठ थपथपाकर हौसलाफजाई
एक कार्यक्रम के दौरान लोकप्रिय बाल कलाकार अनिल नागौरी ने भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर उन्हें गाना सुनाया। गाने से बेहद खुश होकर बाल कलाकार के कंधे पर हाथ रखकर पीठ थपथपाकर नागौरी का हौसलाफजाई भी किया है।
नागौरी अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में रहे अव्वल
संगीत के बादशाह बाल कलाकार अनिल नागौरी अपनी मधुर गायन शैली के बदौलत अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों रहे अव्वल तथा विभिन्न प्रतिभा सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। गायन में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए लगातार दो बार सांस्कृतिक अवार्ड और नेहरू युवा केंद्र भारत सरकार की ओर आयोजित में अव्वल आने पर अवार्ड मिल चुका है।
बाड़मेर की धरा पर सम्मान
बाड़मेर जिले के खंडप गाँव में वैदिक सनातन मेघवाल समाज जालमपूरा आश्रम में आयोजित महाशिवरात्रि के भव्य कार्यक्रम बेह्तरीन प्रस्तुति से दर्शकों को आकर्षित करने पर भव्य स्वागत एवं सम्मान किया गया। कार्यक्रम में उनके मित्र मंडली के सदस्य रामसा राठौड की भूमिका सहरानीय रही।
आओ हम सब मिलकर पराधीनता से स्वतंत्र होकर, आत्मनिर्भरता की ओर क़दम बढ़ाए
पराधीनता
पराधीनता शब्द का अर्थ दूसरों के अधीन अर्थात् शारीरिक और मानसिक रूप से गुलाम रहकर जीवन यापन करना l पौराणिक काल की पराधीनता की तुलना अगर वर्तमान से की जाए तो हमें पराधीनता के कई स्वरुप देखने को मिल जाएंगे l आईए मित्रो कुमार जितेन्द्र “जीत” के साथ विश्लेषण से पराधीनता को समझने का प्रयास करते हैं l
कैसी होती है पराधीनता जानिए
मानसिक पराधीनता
इंसान की सबसे बड़ी पराधीनता मानसिक पराधीनता है l क्योंकि इंसान अपने मन में ईर्ष्या, स्वार्थ, लालचा, एकांतवास एवं अन्य अवगुणों को भरे रखता है l और यह सभी अवगुण इंसान को मानसिक से रूप खोखला कर देते हैं l जिससे वह स्वयं का गुलाम हो जाता है l जिसका परिणाम उभर कर सामने आता है कि इंसान किसी दूसरे के प्रति अच्छा सोचने या कुछ अच्छा करने की जो आदत पहले से थी वह धीरे-धीरे ख़त्म हो जाती है l और इसी मानसिक पराधीनता के कारण इंसान नाममात्र का हो गया है l वास्तविक इंसानियत के गुण बहुत ही कम देखने को मिलेंगे l मानसिक पराधीनता के इस विकराल रूप धारण से इंसान का भविष्य अंधेरे में नज़र आ रहा है l वर्तमान का युवा मानसिक रूप से खोखला और उसके पराधीन है l
शारीरिक पराधीनता
इंसान की पराधीनता का दूसरा कारण शारीरिक पराधीनता भी है l पौराणिक काल में इंसान का खान-पान बेहतरीन होता था l सब कुछ स्वयं के हाथों से तैयार किया हुआ भोजन मिल जाता था जिससे इंसान शारीरिक रूप से मज़बूत होता था l और किसी भी कार्य में पीछे नहीं हटता था l और एक दीर्घायु जीवन यापन करता था l परंतु वर्तमान समय में मशीनरी के युग में इंसान आलसी हो गया है l सब कुछ मशीनरी पर निर्भर हो गया है जिससे पौष्टिक आहार में बहुत कमी देखने को मिल रही है l यहा तक देखा गया है कि इंसान भोजन भी मशीनरी से करने लग गया है l इन्हीं सब कारणों से आधुनिक इंसान आंतरिक रूप से खोखला होता जा रहा है पीछे केवल हड्डियों का ढांचा रह गया है l जिससे वह छोटे से छोटे कार्य भी स्वयं नहीं कर पाता है l और देखते ही देखते शारीरिक पराधीनता का शिकार हो जाता है l जो भविष्य के लिए चिंतनीय है l
वातावरण पराधीनता
सुनने में थोड़ा अजीब-सा लगेंगा की वातावरण पराधीनता कैसी होती है, परंतु वातावरण पराधीनता है वास्तविक रूप से l देखिए इंसान को जीवित रहने के लिए अच्छे वातावरण की भी आवश्यकता होती है l वातावरण चाहे जीना रहने के लिए हो या अच्छी परिस्थितियों में ढलने के लिए हो l सुव्यवस्थित वातावरण हमारे जीवन को बेहतरीन बनाता है l परंतु वर्तमान में वातावरण को हम आपको दो प्रकार से बताएंगे l जिसमे पहला ज़िंदा रहने के स्वच्छ ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है परंतु वर्तमान में स्वच्छ ऑक्सीजन पाना बेहद मुश्किल है l वातावरण जहरीले धुएँ से भर गया है l दूसरा कारण देखे तो इंसान को सुव्यवस्थित परिस्थितियों में ढलने के अपने आसपास का वातावरण (माहौल) ठीक होना ज़रूरी है जो वर्तमान में नहीं दिखता है अगर दिखता है तो चारो ओर क्रोध, झगडे, हीनता और भयानक रूप लिए डरावना-सा वातावरण जिससे इंसान स्वयं से पराधीन हो गया है l यह पराधीनता भी इंसान के लिए विपरीत परिणाम ला सकती है l
आर्थिक पराधीनता
पराधीनता का एक मुख्य कारण आर्थिक पराधीनता भी है l वर्तमान समय में इंसान अगर मानसिक और शारीरिक रूप से सही है तो आर्थिक रूप से कमजोर हो गया है l क्योंकि समय पर रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं होते हैं l जहाँ तक देखा गया है कि एक बड़े परिवार में कमाने वाला एक इंसान है और उसको भी तय समय पर काम नहीं मिल पाता है तो उसका पूरा परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हो जाता है l वर्तमान में वैश्विक महामारी के मध्य नज़र लॉकडाउन के दौरान समय लोगों को आर्थिक पराधीनता का अधिक सामना करना पड़ा है l जिससे उनके परिवार में मानसिक, शारीरिक रूप से कमी नज़र आई है l वैश्विक महामारी जैसी परिस्थितियों के उत्पन्न होने से आर्थिक पराधीनता का प्रकोप बढ़ जाता है l और एक बुद्धिमान इंसान खोखला बन जाता है l
पराधीनता से परिणाम की ओर
आख़िर पराधीनता से क्या परिणाम उभर कर सामने आते है यह हमारे लिए जानना ज़रूरी है l क्योंकि इंसान एक बुद्धिमान प्राणी है l उसे ग़लत और सही का फ़ैसला करना अतिआवश्यक है l देखिए पराधीनता शब्द को पढ़ते ही मन में कई तरह के विचार आ जाते हैं l यानी एक पल हम सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि इंसान स्वयं बुद्धिमान होते हुए भी ख़ुद से पराधीन होने से मानसिक, शारीरिक, वातावरण और आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हो जाता है l जिसमे इंसान के जीवन में हजारों की संख्या में समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है l उन समस्याओं से निपटने के लिए जीवन भर प्रयास करता है परंतु सफल नहीं हो पाता है क्योंकि इंसान पराधीनता से स्वतंत्र नहीं हो पाता है l जिससे परिणाम अनुकूल से विपरीत ही प्राप्त होते हैं l
आओ हम सब मिलकर पराधीनता को दूर करने का संकल्प लेवे-वर्तमान में आंतरिक रूप से पराधीनता के कारण खोखले हो रहे बुद्धिमान प्राणी का भविष्य सुरक्षित रखने के लिए हमें एक दृढ़ संकल्प लेना होगा जिसमें ईर्ष्या, स्वार्थ जैसे अनेक अवगुणों को त्यागना होगा l जिससे आधुनिक इंसान के भविष्य की राह आसान दिखे l और पराधीन जैसे खतरनाक जहरीले कीड़े को जड़ से मिटाने के लिए तत्पर रहना होगा l आओ पराधीनता से स्वतंत्र होकर, आत्मनिर्भरता की ओर क़दम बढ़ाएl
तगा राम मेघवाल की अनुपम देन है जत्था गेर नृत्य कला मोतीसरा
राजस्थान के बाड़मेर जिले के सिवाना उपखंड के छोटे से गाँव मोतीसरा के तगा राम मेघवाल के अद्वितीय प्रयासों से ग्रामीण संस्कृति की पौराणिक कला गेर नृत्य को आधुनिक समय में जीवित रखना एक मुश्किल कार्य है। परंतु तगा राम मेघवाल के नेतृत्व में जत्था गेर नृत्य कला मोतीसरा ने गाँव से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक अपनी कला का अनोखा सफ़र तय किया है।
कौन है तगा राम मेघवाल जिन्होंने जत्था गेर कला को राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाया?
बाड़मेर के छोटे से गाँव मोतीसरा के तगा राम मेघवाल सुपुत्र हेमा राम मेघवाल वर्तमान में वरिष्ठ अध्यापक संस्कृत के पद चयन हुआ है। जिनका पौराणिक संस्कृति की कला गेर नृत्य से बड़ा लगाव है। तगा राम मेघवाल बताते हैं कि मेरे पिताजी हेमा राम मेघवाल ग्रामीण संस्कृति को जीवित रखने वाले विभिन्न त्यौहारों पर गेर नृत्य को बड़े अनोखे ढंग से किया करते थे। उनके इस कार्य से प्रभावित होकर तगा राम मेघवाल ने गेर नृत्य कला को एक विशिष्ट स्थान दिलाने का मन ही संकल्प लिया। तगा राम मेघवाल छोटी-सी उम्र में ही पढ़ाई एवं खेती के कार्य के साथ-साथ गैर नृत्य कला में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। अपनी गेर नृत्य कला को बड़े स्तर पर पहुचाने के लिए गाँव एवं आसपास के क्षेत्र से युवाओं को गेर नृत्य में तैयार करने में कठिन परिश्रम किया है।
जत्था गेर नृत्य कला मोतीसरा की शुरुआत
नेतृत्वकर्ता तगा राम मेघवाल बताते हैं कि प्रारम्भ में जत्था गेर नृत्य कला में बड़े बुजुर्गों को साथ लेकर गाँव स्तर पर ही नृत्य कला को किया जाता था। परंतु समय के पहिए रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। बुज़ुर्ग लोगों का शरीर गेर नृत्य कला को करने में धीरे-धीरे साथ नहीं दे रहा था तभी युवाओं को जत्था गेर से जोड़ने का प्रयास किया। शुरुआत में युवाओं को गेर नृत्य सीखने में कठिनाइयों का सामना करना-करना पड़ा था परन्तु धीरे-धीरे जत्था गेर एक मजबूती के पायदान पर पहुच गई। वैसे यहाँ के गैर नृत्य की शुरुआत देश आजाद से पहले हो चुकी थी लेकिन इस अद्भुत गैर नृत्यकला को राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाने की भरसक सार्थक प्रयास मैने साथी कलाकारों के सहयोग से २०१५ से शुरु किया था। जो निर्बाध रूप से जारी है। सन २०१५ से जत्था गेर नृत्य कला मोतीसरा की शुरुआत मानी जाती है।
जत्था गेर नृत्य की वेषभूषा एवं नृत्य सामग्री
जत्था गेर नृत्य में पुरुष ग्रामीण परम्परागत संस्कृति की वेषभूषा सफ़ेद धोती-कुर्ता, सिर पर चुनरी साफा, कलंगी, तिलक, पैरों में भारी भरकम घुँघरू, चमड़े की रंगीन जूते, कमर पर कमरपट्टा, हाथों में सटीयाँ (डांडिया) , घन वाद्य यंत्र, ढोल एवं थाली शामिल है।
जत्था गेर नृत्य कला मोतीसरा के सदस्य
गेर नर्तक दल नेतृत्वकर्ता तगा राम मेघवाल बताते हैं कि वर्तमान में हमारी टीम में २८ सदस्य है जो निम्न प्रकार से है-
- नेतृत्वकर्ता तगा राम मेघवाल,
- हेमा राम मेघवाल (पिताजी),
- किशना राम मेघवाल,
- चेला राम गर्ग,
- चतरा राम चौधरी,
- खीमा राम चौधरी,
- भंवर लाल मेघवाल,
- झाला राम मेघवाल,
- माला राम मेघवाल,
- गोविंद राम मेघवाल,
- पोकर राम मेघवाल,
- अमराराम मेघवाल,
- रणजीत मेघवाल,
- तारा राम मेघवाल,
- अशोक मेघवाल,
- दौला राम मेघवाल,
- केवल राम मेघवाल,
- जोधा राम मेघवाल,
- जगदीश पुंसल,
- जीवाराम मेघवाल,
- मंगलाराम मेघवाल,
- भंवराराम पुंसल,
- नरेन्द्र कुमार मेघवाल,
- ओमप्रकाश मेघवाल,
- कनाराम मेघवाल,
- रामाराम भील,
- हड़मानाराम थालीवादक,
- वींजाराम ढोलवादक।
तीन पीढ़ियाँ एक साथ खेलती है जत्था गेर
मोतीसरा गाँव के बाशिंदे अपने गाँव की वर्षो पुरानी पारम्परिक जत्था गेर नृत्य कला की पहचान बनाए हुए हैं। होली के पर्व पर मारवाड़ के ग्राम्य संस्कृति से ओत प्रोत अद्भुत पुरुषों की ओर से अद्वितीय नृत्य किया जाता है। मोतीसरा गाँव में आज भी तीन से चार पीढ़ियों (बेटा, बाप, दादा और परदादा) एक साथ गेर खेलते नज़र आते हैं। जत्था गेर नृत्य के दौरान १५-२० पुरुष ग्रामीण परम्परागत संस्कृति की वेषभूषा से सज-धजकर पैरों में भारी भरकम घुँघरू, कमर पर कमरपट्टा, हाथों में सटीयाँ (डांडिया) लेकर घन वाद्य यंत्र, ढोल की थाप एवं थाली की मधुर टंकार से मोहित होकर बड़े जोश, उमंग और उत्साह के साथ जत्था बनाकर गोल घेरे में नाचते हैं। ढोलवादक ढोल को जत्थे के बीच में खड़े रहकर बजाता है वहीं गेरिए (नृतक) ढोल एवं थाली की ढंकार के अनुरुप जत्था गेर की विभिन्न शैलियाँ एकवड़ी, बेवड़ी और खोटीटांग में स्फूर्ति से अपने आजू-बाजू एक दूसरे से नृतक से डांडिया टकराते हुए अपना हुनर दिखाते हैं। नाचते-थिरकते गेरियों का यकायक बैठना और पलक झपकते खड़ा होना मोतीसरा की गेर का अपना अलग ही ढंग है।
जत्था गेर नृत्य कला की अनुपम प्रस्तुतियां
स्थानीय स्तर पर प्रस्तुति
जत्था गेर प्रत्येक वर्ष होली के अवसर पर ग्रामीण सांस्कृतिक मेलों में जिले भर में अपनी बेहतरीन प्रस्तुति देकर कई सम्मान प्राप्त किए हैं।
राष्ट्रीय पर्व पर प्रस्तुति
जत्था गेर प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तहसील एवं ज़िला स्तर पर मनमोहक प्रस्तुति देकर उपखंड अधिकारी और ज़िला कलेक्टर द्वारा सम्मान प्राप्त किए हैं।
पर्यटन विभाग राजस्थान एवं अन्य विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में प्रस्तुतियां
जत्था गेर नृत्य कला मोतीसरा ने समय-समय पर सांस्कृतिक विरासत को संरक्षण देने के लिए उद्देश्य से पर्यटन विभाग एवं अन्य विभागों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में अपनी बेहतरीन प्रस्तुतियाँ देकर कई सम्मान प्राप्त किए हैं। जैसे जालोर महोत्सव २०१६ से प्रत्येक वर्ष, मीरा महोत्सव चित्तौडग़ढ़, मेवाड़ महोत्सव, कुम्भलगढ महोत्सव, शिल्प ग्राम उत्सव, मारवाड़ महोत्सव, रणकपुर उत्सव, मत्स्य उत्सव अलवर, चन्द्रभागा मेला झालरापाटन (झालावाड़) , गणपति महोत्सव लुणावा (फालना) , गणगौर महोत्सव जयपुर, मरु महोत्सव एवं अन्य कई कार्यक्रमों में अनुपम प्रस्तुतियाँ देकर सैकड़ों की संख्या सम्मान प्राप्त कर छोटे से गाँव मोतीसरा का नाम रोशन किया है।
संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार एवं अन्य राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित कार्यक्रमों में प्रस्तुतियां
भारत देश त्योहारों एवं ऐतिहासिक संस्कृति का देश है। ऐतिहासिक संस्कृति को बचाने के लिए संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जिसमे अंतरराष्ट्रीय पुष्कर मेला, लोक तरंग महोत्सव मुंबई, लोपामुद्रा महोत्सव अमरावती (महाराष्ट्र) , आदि महोत्सव जयपुर २०२०, संयम शृंगार महोत्सव शंखेश्वर (गुजरात) एवं अन्य कार्यक्रमों में बेहतरीन प्रस्तुतियाँ देकर सैकड़ों सम्मान प्राप्त कर जत्था गेर नृत्य कला मोतीसरा ने राष्ट्रीय स्तर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
मरु महोत्सव २०२० के वर्ल्ड रिकार्ड में सम्मलित
विश्व विख्यात मरु महोत्सव जैसलमेर में सम के लहरदार रेतीले धोरों पर माघ पूर्णिमा की धवल चांदनी के नीचे भव्य लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं शानदार आतिशबाजी के बीच ८५१ लोक कलाकारों ने एक साथ मंच पर प्रस्तुति देकर वर्ल्ड रिकार्ड क़ायम किया जिसमें जत्था गेर नृत्य कला मोतीसरा के गेर नृतक भी अपनी मह्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
क्या कहते हैं नेतृत्वकर्ता?
गेर नृतक तगा राम मेघवाल के मुताबिक जत्था गेर नृत्य उनके गाँव की सांस्कृतिक विरासत है। इस अद्भुत कला को कई वर्षो से संजोये रखे हुए हैं। सरकार अगर गेर नृत्य कला को भी राज्य स्तर का दर्जा प्रदान करे और समय-समय गेर नृतको के लिए विभिन्न योजनाओं का लाभ प्रदान किया जाए तो सांस्कृतिक विरासत गेर नृत्य कला का बेहतरीन संरक्षण किया जा सकता है।
वर्तमान समय में गांवों में “कोटि” का कहर
अर्थात को-कोरोना, टि-टिड्डी
वर्तमान समय में एक ऎसा शब्द जो हमारे आसपास कहर मचा रहा है l वह शब्द है कोटि अर्थात को-कोरोना और टि-टिड्डी l वर्तमान समय में कोटि आमजन और किसानों के लिए घातक सिद्ध हो रहा है l
कोरोना
कोटि में को का अर्थ कोरोना से है l वर्तमान में वैश्विक महामारी कोरोना ने पूरी दुनिया को प्रभावित कर दिया है l जिस वुहान शहर से लाखों किलोमीटर दूर गाँव सुरक्षित थे वहाँ आज कोरोना धीरे-धीरे अपने पैर जमा रहा है l जो गाँव वुहान शहर और कोरोना महामारी के बारे जानते नहीं थे l आज उन गांवों को कोरोना ने बंधक बना लिया है l वैश्विक महामारी कोरोना अब धीरे-धीरे शहरों से गाँव की ओर पलायन हो रही है l जो एक चिंता का विषय है l गांवों की पृष्टभूमि शहरों से भिन्न है परंतु कोरोना ने गांवों को भी शहर बन दिया है l वर्तमान समय में एक नज़र डाली जाए तो कोरोना ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है l आम आदमी प्रतिदिन दैनिक जीवन के लिए मजदूरी करता था l
आज वह मजदूरी लगभग तीन महीने से ठप्प है l गांवों में आम आदमी की आर्थिक स्थिति अब धीरे-धीरे कमजोर हो रही है l क्योंकि कोरोना की वज़ह से लोग घरों में बंद है l जिन गांवों का वातावरण स्वच्छ और ऊर्जावान होता था आज कोरोना ने वह वातावरण धूमिल-सा कर दिया है l गाँव की युवा पीढ़ी जो उज्ज्वल भविष्य के लिए शहरों में गई थी, शहरों में उनका अच्छा-सा रोज़गार चल रहा है परतुं कोरोना की दस्तक से युवा पीढ़ी शहरों से पुनः गाँव की ओर लौट आई है l जिससे युवा पीढ़ी का शहरों में लाखों रुपये का रोजगार ठप्प हो गया है l जिससे गांवों की स्थिति और भी कमजोर हो गई है l कहने का तात्पर्य यह है कि कोरोना ने गांवों को घरों तक सीमित कर दिया है l जिन गांवों ने कभी कर्फ्यू नहीं देखा आज कोरोना की वज़ह से गाँव कर्फ्यू में तब्दील हो गए हैं l जिससे गांवों के लोगों का दैनिक रोजगार बंद हो गया है जिससे उनका घर चलाना मुश्किल हो गया है l
टिड्डी
कोटि में टि का अर्थ टिड्डी से है l टिड्डी का नाम सुनते ही किसानों के मन में डरा छा जाता है l वर्तमान समय में वैसे तो वैश्विक महामारी कोरोना के किसानों की कमर तोड़ है l क्योंकि देखा जाए तो किसानों ने कोरोना से पहले फ़सल तैयार कर अपने घर ले आए थे जैसे ही बेचने कुछ दिनों में बेचने वाले थे तो कोरोना महामारी ने दस्तक दे दी थी l जिससे उनकी फ़सल कई महीने घरों में पड़ी है l कोरोना की वज़ह से अपनी मेहनत से तैयार की हुई फ़सल को बेच नहीं पाए हैं l जिससे किसानों को आर्थिक नुक़सान अधिक हुआ है l वर्तमान में कोरोना ने तैयार हुई फसलों के दाम घटा दिए हैं जो किसानों के लिए चिंता का विषय है l हम जानते हैं कि जो अन्न हमारी थाली में पहुँचता है उसके लिए किसान भाई कितनी मेहनत करते हैं l किसान न गर्मी, सर्दी, बारिश सभी ऋतुओं में खेतों में डटे रहते हैं l जिनकी कड़ी मेहनत से हमारे घर तक अन्न, फल और सब्जियाँ पहुँचती है l
दूसरी तरफ़ किसान भाई जैसे ही नई फ़सल को तैयार कर रहे थे और फ़सल लगभग तैयार भी हो गई थी तभी एकाएक टिड्डीयों के बड़े-बड़े दलों का खेतों में खड़ी फसलों पर आक्रमण शुरू हो जाता है l किसान भाई टिड्डी दलों को घरेलु सामग्री उपयोग में लेकर बड़ी मुश्किल से अपने-अपने खेतों से निकाल पाते है l तब तक टिड्डी दल खेतों में खड़ी फ़सल को तबाह कर देते हैं l जिससे किसानों को अपनी आखों के सामने खेतों में खड़ी फसलों की ऎसी दुर्दशा देखकर निराशा और मन बेहद दुःखी हो जाता है l कही महीने से तैयार हुई फसलों को एक सेकंड में तबाह होती देख हृदय कांप उठता है l वर्तमान समय में खेतों में खड़ी फसलों पर टिड्डी दलों का आक्रमण लगातार बढ़ रहा है l जो किसानों के लिए चिंता का विषय है l
दोनों स्थितियों से साफ़ नज़र आ रहा है कि वर्तमान समय में गांवों में कोटि का कहर अधिक देखा जाए रहा है l कोटि के कहर से आमजन और किसानों की हालत गंभीर बनी हुई है l
चार “क” के चक्रव्यू में गांवों का सफ़र
गाँव का नाम सुनते ही एक पल शांति मिल जाती है मिलनी भी चाहिए क्योंकि गांवों की पृष्टभूमि सबसे निराली है l यह वही गाँव होते थे जहाँ दो पल सुकून के गुज़रते थे l वह बरगद का बड़ा पेड़, उसकी गहरी छाया, उस पर प्यारे पंछियों का बसेरा, प्रभात वेला में सुमधुर गूंजती कोयल की वाणी, स्वच्छ पानी, वायु, बुजुर्गों के साथ गुजरा पल और गौधूलि वेला में घर लौटते प्यारे पशु… यह सभी मिलकर गाँव के सौन्दर्य को दर्शाते थे l वर्तमान में गाँव का अनोखा सौन्दर्य धीरे-धीरे फीका पड़ता जा रहा है क्योंकि गांवों अब शहरों की ओर क़दम बढ़ा लिए है l वह पुरखों की ज़मीन बंजर होती जा रही है, वह घर अब खण्डहर में तब्दील होने के कगार पर आ गए थे l क्योकि गाँव अब शहरो की ओर बढ़ रहा है और शहरों की रूप रेखा बदल गई है l
कोरोना
वर्तमान में वैश्विक महामारी कोरोना से पूरी दुनिया चपेट में आ गई है l इस वैश्विक महामारी कोरोना और गांवों के बीच लाखो किलोमीटर में दूरिया थी l जिस देश से वैश्विक महामारी की शुरुआत हुई हैं वहा से यह वैश्विक महामारी गांवों में पहुँचेंगी ऎसा गांवों ने कभी सोचा भी नहीं था l परंतु इस महामारी ने धीरे-धीरे अपने क़दम गांवों की बढ़ा लिए है l क्योंकि शहर अब गांवों की ओर लौट रहा है जिससे गाँव भी अब शहर बनते जा रहे हैं l जिस गाँव में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक हलचल होती रहती थी अब वैश्विक महामारी ने गली-मौहल्ले सुनसान कर दिए हैं l वह गाँव में बरगद का बड़ा पेड़ अकेला खड़ा है, पंछी सोच रहे हैं इंसान कहा गायब हो गया है l कहने का तात्पर्य यह है कि इस वैश्विक महामारी कोरोना ने गांवों की परिभाषा ही बदल डाली है l
कर्फ्यू
सुनहरे गांवो की ज़िन्दगी में कर्फ्यू शब्द कोसों दूर था l गांवों की ज़िन्दगी कर्फ्यू को केवल समाचार पत्रों या दूरदर्शन के माध्यम से देखने को मिलते थे l परंतु इस वैश्विक महामारी कोरोना के बढ़ते प्रभाव से शहरो का कर्फ्यू अब गांवों की रंगीन दुनिया में पहुच गया है l गांवों की रंगीन ज़िन्दगी अब कर्फ्यू से थम गई है l गांवों ने कभी अपनी कल्पना भी नहीं की होगी कि हम भी एक दिन शांत रहेंगे l कोरोना के कर्फ्यू से गांवों की ज़िन्दगी बहुत प्रभावित हुई है l वह खेत-खलिहान किसानों के इंतज़ार में खड़े है l कोरोना के कर्फ्यू से गाँव एक पल थम-सा गया है l गांवों की पगडंडीयों को कर्फ्यू ने वही रोक दिया है l
किराणा दुकान
गांवो की दिनचर्या का एक अलग ही रूप है l जहाँ प्रभात वेला में ही छोटी से लेकर बड़ी दुकाने शुरू हो जाती है जो देर रात्रि तक चलती रहती है l कहने तात्पर्य यह है कि गांवों में कोई भी व्यक्ति अपने सामान को जब भी वक़्त मिले ले आता है, कोई समय निश्चित नहीं होता है क्योंकि उनका व्यवहार दुकानदारों से घुलमिल जाता है l जिससे उनके पास कभी नकद पैसे नहीं होते है तो भी अपनी वस्तु खरीद के ले आते हैं और सामग्री का भुगतान बाद में कर देते हैं l यह सिलसिला ही गांवों की मुख्य ज़िन्दगी है l परंतु वैश्विक महामारी कोरोना ने गांवों की मुख्य ज़िन्दगी को बदल दिया है l
कैश (नकद) की किल्लत
वर्तमान परिस्थितियों ने गांवों की पृष्टभूमि को बहुत बड़े स्तर पर बदल दिया है l इस वैश्विक महामारी कोरोना से गांवों में प्रत्येक व्यक्ति के पास नकद पैसे होना बड़ा मुश्किल है l क्योंकि लॉकडाउन के चलते गांवों विभिन्न कार्य रुक गए हैं जिससे लोगों के पास नकद मिलना मुश्किल हो गया है l बहुत कुछ किसी ने आर्थिक सहयोग किया होगा तो वह कुछ दिनों में ख़र्च हो होगा l अब गांवों में कोरोना के संकेत मिलने से कर्फ्यू की दस्तक भी हो चुकी है l और इसी बीच खाद्य सामग्री भी घर-घर तक पहुचाने की जिम्मेदारी दुकानदारों ने ले ली है परतुं वह सामग्री का नकद भुगतान लेते हैं l जहाँ एक तरफ़ कई दिनों से लॉकडाउन तो दूसरी ओर अब कर्फ्यू फिर लोगों के पास नकद मिलना मुश्किल है l इससे हो सकता है कोई व्यक्ति किसी दुकानदार को खाद्य सामग्री के लिए सूचित भी नहीं करेंगा l जिससे कुछ विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है l घर में रहे, मास्क लगाए, सुरक्षित रहे, अफ़वाहों से दूर रहेl
लौट चले आत्मनिर्भरता की ओर!
आत्मनिर्भरता अर्थ
सरल शब्दों में इसका अर्थ हम देखते हैं कि स्वयं पर निर्भर होना है। कोई भी कार्य चाहे वह छोटा हो या बड़ा अगर हम स्वयं के दृष्टिकोण से पूरा किया जाए तो उसे आत्मनिर्भरता कहा जा सकता है। परन्तु वर्तमान में बहुत-सी परिस्थितियाँ अलग-अलग है कहने का तात्पर्य यह है कि वर्तमान में कोई भी इंसान आत्मनिर्भरता नहीं होना चाहता है उसे कोई भी सामग्री या कार्य बस तैयार किया हुआ मिलना चाहिए। ऎसी स्थितियाँ क्यों उत्पन्न हुई, इसके क्या कारण है, वास्तविक आत्मनिर्भर कौन-कौन है… बहुत-सी सटीक जानकारी का कुमार जितेन्द्र “जीत” के साथ विश्लेषण करके समझने का प्रयास करते हैं।
किसान
आत्मनिर्भरता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण आपको अगर देखना है तो वह है किसान। किसान ही प्रत्येक कार्य को स्वयं की नजरों और हाथों से पूरा करने का प्रयास करता है। चाहे परिस्थितियाँ किसान के अनुकूल हो या प्रतिकूल… परन्तु कार्य हमेशा ख़ुद ही करता है, दूसरों के भरोसे कदापि नहीं छोड़ता है। किसान सर्दी, गर्मी और वर्षा ऋतुओं में हमेशा डट कर कार्य करता है। उन्हीं की मेहनत से हम लोग अपनी थाली में भोजन को देख पाते हैं। परंतु ऎसा कभी नहीं की हम भोजन करने से पहले किसान को धन्यवाद दिया होगा। जबकि वास्तविक भोजन की मेहनत तो किसान द्वारा ही की जाती है।
वर्तमान में हमने बहुत-सी ऎसी घटनाओं पर भी नज़र डाली है जिसमें किसान निराशाजनक स्थिति में पहुँच गया है, आत्म निर्भर से अब आत्म हत्या तक क़दम उठाने को मजबूर हो गया है। ऎसा क्यों… आईए मित्रो समझने की कोशिश करते हैं। बात यह है कि किसान विभिन्न परिस्थितियों में आत्मनिर्भरता से कार्य करता है। वह विभिन्न प्रकार के अनाज का उत्पादन करता है। परतुं उसका उचित दाम नहीं मिल पाता है। यानी किसान ने बैंक से कर्ज़ लिया, फ़सल उत्पादन किसी परिस्थिति से कम हो गया, फिर उसका उचित मूल्य और भी कम हो जाता है। जिससे किसान बैंक कर्ज़ और घर का पालन-पोषण समय पर पूरा नहीं पाता है। यह सभी स्थितियाँ किसान को निराशाजनक कर देती है, फिर किसान आत्मनिर्भर से आत्महत्या तक क़दम उठा रहे हैं।
मजदूर
आत्मनिर्भरता का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हमारे सामने है मज़दूर। किसी भी देश के विकास को बढ़ावा देने के लिए आधार स्तंभ मज़दूर है। मज़दूर नाम में ही सब कुछ समाहित है। मज़दूर यानी मज़बूत और घर से दूर-दूर तक बिना किसी सहारे पहुच जाते हैं। घर, परिवार या तक अपना देश भी छोड़ कर पेट के दूर-दूर तक चले जाते हैं और कठिन से कठिन काम जिसमें न सर्दी, न गर्मी और न वर्षा देखते हैं। हर पल, भूखे प्यासे अपने काम में मस्त रहते हैं, वह मज़दूर है मजबूर नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि आत्मनिर्भरता का दूसरा रूप मज़दूर है जिसने सभी को टक्कर दे दी है। या तक मशीनरी भी मज़दूर के आगे फैल है। मजदूरों के हाथों से किए गए कार्य वर्षो तक अपनी जगहों पर जैसे है वैसे टीके हुए मज़बूत रहते हैं। मजदूरों के प्रत्येक कार्य उनकी मह्त्वपूर्ण उपलब्धि को दर्शाता है।
युवा
आत्मनिर्भरता का तीसरा रूप युवा है। जो भविष्य को दर्शाता है। परंतु वर्तमान समय में युवा अपनी आत्मनिर्भरता को बिल्कुल भी बढ़ावा नहीं दे रहे हैं। जो एक चिंतनीय विषय है। क्योंकि युवाओं के हाथों में सुनहरा भविष्य है। वर्तमान का युवा मशीनरी के युग से दिनों-दिन कर्महीन होता जा रहा है। क्योंकि उसको सभी कार्य व्यवस्थित और तैयार मिलते है। युवाओं पुनः अपनी आत्मनिर्भरता को बढ़ाना होगा और एक मज़बूत युवा होने का प्रमाण देना होगा।
मशीनरी युग ने छीनी आत्मनिर्भरता
पौराणिक काल में जहाँ आत्मनिर्भरता को अपनी मह्त्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता था। वह उपलब्धि मशीनरी युग में धीरे-धीरे धूमिल होती जा रही थी। मशीनरी युग ने किसानों और मजदूरों की आत्मनिर्भरता को छीन लिया है। जैसे किसानो के खेतों के प्रत्येक कार्य अब मशीनों से होने जा रहे हैं चाहे वह कार्य छोटा हो या बड़ा। खेतों की जुताई, बुवाई, फ़सल कटाई, अन्न को प्राप्त करने जैसे कार्य मशीनरी ने अपने हाथों में ले लिए है। जिससे खेतों को उपजाऊ ज़मीन अपना अस्तित्व खोती जा रही है। दूसरी और मशीनरी ने मजदूरों से भी अपना रोजगार छीन लिया है जैसे पहले किसी कार्य को करने लिए अधिक मजदूरों की आवश्यकता होती थी अब उसी कार्य को मशीनरी ने सीमित मजदूरों से कार्य पूरा हो रहा है। मशीनरी युग ने किसानों और मजदूरों की आय का स्रोत भी कम कर दिया है। सारांश यह है कि मशीनरी युग में किसानों और मजदूरों की आत्मनिर्भरता में बहुत कमी हुई है और दिनों दिन निराशाजनक देखने को मिल रही है।
वर्तमान परिस्थितियों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा कैसे सम्भव
वर्तमान समय में पूरा विश्व भयंकर वैश्विक महामारी कोरोना से डटकर मुकाबला कर रहा है और इस महामारी में भी किसान और मज़दूर सबसे मज़बूत है। दूसरी तरफ़ सबसे अधिक हृदय विचलित करने वाले दृश्य हम सभी देख रहे हैं वह दृश्य है मजदूरों की दशा। सोशल मीडिया और तमाम टीवी, समाचारों पत्रों में जो तस्वीरे हमारे सामने जब देखने मिलती है एक पल सोचने को मजबूर हो जाते हैं और सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि इन तस्वीरों से कैसे बनेंगे आत्मनिर्भर?
पेट को पालने के घर से निकले थे मज़दूर अब घर पहुचने को तरसते जा रहे हैं मज़दूर है। सड़कों पर मजदूरों का मेला लगा हुआ है उन मेले को देखने से हृदय कांप जाता है। कोई बच्चे को उठा के ले जा रहे हैं, कोई नंगे पैर चलने को मजबूर है… कोई भूख से जा रहे हैं, तो कोई प्यासे ही क़दम बढ़ा रहे हैं क्योंकि वह मज़बूत मज़दूर है। उससे भी अधिक वह आत्मनिर्भर मज़दूर है। दूसरी ओर किसान भी खेतों में डटकर, महामारी से मुकाबला करके प्रतिदिन सब्जियों और अनाजों को हमारे घरों तक पहुचाने का कार्य कर रहे हैं। परतुं उनका उचित दाम नहीं मिल रहा है जिससे वें अपनी मेहनत को भी निराशाजनक मानते है। वर्तमान में जब किसानों और मजदूरों की यह दशा है तो कैसे बनेंगे हम आत्मनिर्भर? क्योंकि आत्मनिर्भरता अब घरों की ओर लौट रही है।
क्या सोशल मीडिया पर आत्मनिर्भरता सफल होगी
वर्तमान समय में सोशल मीडिया पर तरह-तरह की आत्मनिर्भरता की परिभाषाएँ देखने को मिल रही है। क्या इन परिभाषाओं से किसान और मज़दूर पुनः आत्मनिर्भर बनेंगे? क्या इनकी वास्तविक आत्मनिर्भरता में कोई फर्क़ पड़ेंगा। प्रश्न यहा उठता है कि जिस सोशल मीडिया का हम उपयोग कर रहे हैं वह हमारी आत्मनिर्भरता का प्रमाण है या नहीं? यह भविष्य ही तय करेंगा।
युवा-किसान–मज़दूर तीनों की आत्मनिर्भरता को समझना होगा। उनको सही दिशा देने के लिए जागरूकता के क़दम उठाने होंगे। क्योंकि इनकी आत्मनिर्भरता हमारा सुनहरा भविष्य है।
सबसे बड़ा धर्म मानवता है
धर्म का अर्थ
ध-धरा पर, र-रखे, म-मानवता मित्रो हमे इस धरा पर मानवता को जीवित रखना ज़रूरी है। इसके लिए हमें जागरूकता का संदेश भी देना होगा।
भारत देश और धर्म
भारत विभिन्न धर्मों का देश है और ये विभिन्न धर्म एक मानवीयता का संदेश देते हैं। यहा सभी धर्मों की संस्कृति, शिक्षा, वेशभूषा और धार्मिक देवी / देवता भिन्न-भिन्न होते हुए भी मानव जाती के लिए संदेश एक ही दे रहे हैं। हमारे देश का सौभाग्य है कि हमारा देश सभी धर्मों का देश है।
धार्मिक कट्टरता
हमने ऊपर भी उल्लेख किया है कि धर्म किसी दूसरे धर्मों के प्रति कट्टरता की भावना का संदेश नहीं देता है। ना ही किसी को विपरीत दृष्टी से देखता है। सच्चे धर्म की यही पहचान है कि वह हमेशा किसी भी धर्म के मानव मूल्यों के प्रति जागरूकता एवं उनको हितों की रक्षा करने के लिए सदैव तत्पर रहता है। कोई भी सच्चा धर्म किसी भी दूसरे धर्म से ईर्ष्या, द्वेष और हीनता की दृष्टि से नहीं देखता है। किसी भी धर्म का उद्देश्य हमेशा इन्सानियत को जीवित रखना होता है।
अपवाद दृष्टि
सभी धर्मों की राय एक ही है, सभी का लक्ष्य भी एक ही है। परन्तु अपवाद तो सभी जगह पर होता ही है। मित्रों वह अपवाद किसी धर्म में नहीं है… वह अपवाद इंसान में देखा जा सकता है। किसी भी धर्म में कुछ अपवाद रूपी ऎसे इंसान होते हैं जो धर्म को विपरीत दिशाओं में ले जाते हैं। धर्म के उद्देश्य के विपरीत कार्य करते हैं। इंसान को इंसान से भटकाने में लगे रहते हैं। विभिन्न प्रकार की कट्टरता पूर्ण भाषाओं के प्रयोगों से शांति के माहौल को भंग करने का प्रयास करते हैं तथा चारो ओर ज़हर फैलाने का कार्य करते हैं। वर्तमान समय में भी कुछ ऎसे अपवाद रूपी असामाजिक तत्वों की वज़ह से किसी भी धर्म की परिभाषा बदल गई है। मित्रों हमने अपने आसपास कुछ ऎसे दृश्य देखे होंगे जिनका धर्म एक अच्छा संदेश देता है परंतु अपवाद रूप तत्व संदेशों पर मिट्टी डालते हुए अपने कार्य से चारों ओर धार्मिक कट्टरता का प्रदुषण फैलाने में लगे हुए हैं जो वर्तमान में इंसानियत को ख़तरा उत्पन्न करता है। ऎसे अपवाद रूप तत्व भविष्य के लिए भी बुरे संकेत है।
धार्मिक संदेश
इस धरा पर सभी धर्म हमें इंसानियत बनाए रखने का संदेश देते हैं। सभी धर्म भाईचारे की भावनाओं को बढ़ावा देते हैं। विभिन्न त्यौहारों, भाषाओं, संस्कृति और इतिहास से परिपूर्ण धर्म एक श्रेष्ठ इंसान होने का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। सभी धर्मों की दृष्टि से मानव जाति हमेशा शांति, सद्भावना से प्रकृति को जीवित रखने में सहयोग करे।
सबसे बड़ा धर्म मानवता है जिससे भविष्य की राह उज्ज्वल होगी।
कुमार जितेन्द्र “जीत”
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