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ॐ नमः शिवाय (Om Namah Shivay)
डेरा उनका कैलाश पर कैलाशपति हम कहते हैं,
मन प्रसन्न हो जाता है जब़ ॐ नमः शिवाय (Om Namah Shivay) हम़ कहते हैं…,
जटाओं से बहती है गंगा, चंदा भी वहाँ सजता है,
मृग छाल से तन ढाके, कंठ में विष चमकता है,
हाथ़ में डमरू, त्रिशूल बहुत ही जंचते हैं,
मन प्रसन्न हो जाता है जब़ ॐ नमः शिवाय हम़ कहते हैं…,
शांत स्वभाव, शांत चित् है उनका,
ना कोई आरम्भ ना अंत है उनका,
सदा साधना ध्यान में ही मग्न बाबा रहते हैं,
मन प्रसन्न हो जाता है जब़ ॐ नमः शिवाय हम़ कहते हैं…,
सृष्टि संचालक, पालक़, बुराई के संहारक है,
सच्चे मन से जो पुकारे शिव उसके सहायक है,
त्रिनेत्रधारी अपनें भक्तों के वश में रहते हैं,
मन प्रसन्न हो जाता है जब़ ॐ नमः शिवाय हम़ कहते हैं…,
शिव से मिलती शक्ति, शिव-शक्ति के स्वामी है,
छिपा कुछ उनसे रहता नहीं भोले अंतर्यामी है,
आलौकिक़ इस रूप अर्द्धनारीश्वर भी कहते है,
मन प्रसन्न हो जाता है जब़ ॐ नमः शिवाय हम़ कहते हैं…,
शिवरात्री पर बाबा की भक्तों पर होती है विशेष अनुकम्पा,
व्रत धारण करें जो मन से फल मिलता बिना विलंबा,
भक्तों के संग-संग सदा ही महादेव रहते हैं,
मन प्रसन्न हो जाता है जब़ ॐ नमः शिवाय हम़ कहते है…,
डेरा उनका कैलाश पर, कैलाशपति हम कहते हैं,
मन प्रसन्न हो जाता है जब़ ॐ नमः शिवाय हम़ कहते हैं…!
शक्ति स्वरूपा
आधुनिकता के काल़ में वह आज़ भी उपेक्षित़ की जाती है,
ये जीवऩ पानें को भी वह संघर्षं किये जाती है,
सफऱ है इसका कठिनाइयों से भरा,
आरम्भ़ से ही वह शक्ति स्वरूपा बऩ जाती है…,
पालती है नौ माह़ स्वयं में, वह जीवऩ हमें देती है,
प्रसव़ की घनघोऱ पीड़ा भी वह सहती है,
प्रथम़ रूप़ यह़ नारी का वह़ बखूबी निभाती है,
विपत्ति अगऱ आये संताऩ पऱ, ले रूप़ वह शक्ति का उसको टाल़ देती है…,
बाँध़ धागा प्याऱ का वह बलाएँ लिये जाती है,
मांगती वह कुछ़ नहीं रक्षा का प्रण़ वह चाहती है,
दूजा़ रूप़ बहऩ का वह प्रेम़ से निभाती है,
छोटी है तो बेटी, बड़ी हो वह माँ बऩ जाती है,
सात़ फेरें लेकऱ वह जीवऩ में आती है,
सुःख मिलें चाहें दुःख वह सातों वचऩ निभाती है,
तीसरा रूप़ पत्नी का समर्पंण की मिसाल़ है,
ले रूप़ वह गृहलक्ष्मी का घऱ जीवऩ को स्वर्गं बनाती है…,
नन्हें-नन्हें कदमों से वह जीवऩ में आती है,
किलकारियों से अपनी सूना बाग़ वह महकाती है,
चौथा रूप़ है बेटी का बेटों से ज़्यादा वह फर्जं निभाती है,
समय़ पड़े तो बेटियाँ स्वयं बेटा बऩ जाती है…,
आधुनिकता के काल़ में वह आज़ भी उपेक्षित़ की जाती है,
ये जीवऩ पानें को भी वह संघर्षं किये जाती है,
सफऱ है इसका कठिनाइयों से भरा,
आरम्भ़ से ही वह शक्ति स्वरूपा बऩ जाती है…,
नारी के समस्त़ रूपों को मेरा प्रणाम़ औऱ सभी को अंतर्राष्ट्रीय़ महिला दिवस़ की हार्दिक़ शुभकामनायें॥
नमन है
नमन है, नमन है, नमन है,
राष्ट्र रक्षकों तुमको मेरा नमन है,
अलग-अलग लेकर रूप तुम सबको बचा रहे हो,
हऱ पल़ जाऩ का लेकऱ जोखिम़ अपना फर्जं निभा रहे हो…,
धरती पऱ दूसरे भगवाऩ तुम़ कहलाते हो,
पहने रंग़ शान्ति का सबकी जाऩ बचाते हो,
स्वयं करते हो सामना भयंकऱ खतरों का,
मृत्यु के मुहँ से भी वापिस़ लेकऱ आ जाते हो,
जीवनरक्षक़ प्राणीमात्र के तुमको मेरा नमन है…,
हऱ चप्पे हऱ राह़ की निगरानी किये जा रहे हैं,
लापरवही कोईं ना होने पाये, हऱ पल़ वह आ जा रहें हैं,
कभी प्याऱ से तो कभी सख्ती से लेकऱ काम़,
लाकडॉउऩ का पालऩ सभी से करवा रहे है,
प्रहरी मेरे देश़ के तुमको मेरा नमन है…,
सुबह़-सवेरें सबसें पहले तुम़ आ जाते हो,
चला कऱ झाडू अपना सब़ बीमारी ले जाते हो,
इस़ कोरोना काल़ में भी तुम़ अग्रणी भूमिका निभा रहे हो,
गली-मोहल्लों, अस्पतालों से सारी बीमारी दूऱ लिये जा रहे हो,
खतऱा उठाकऱ जाऩ का तुम़ सब़ कचरा ले जाते हो,
हे सफाईं सैनिक़ हमारें तुमको मेरा नमन है…,
नमन है, नमन है, नमन है,
राष्ट्र रक्षकों तुमको मेरा नमन है…!
दिलचस्प़ जिन्दगी
ए ज़िन्दगी तू कितनी दिलचस्प़ है,
रंग़ हऱ पल़ में कितनें बदलती है…;
खुशियों का लगाकऱ मेला कभी भरपूऱ हंसाती है,
तो कभी तोड़कर पहाड़ गमों का अनगिनत़ पल़ रुलाती है…;
सुःख का है अहसास़ कभी तो दुःख भी इसका साथी है,
कभी है ये एक़ जलता दीपक कहीं ये बुझती हुयी बाती है…;
करती है अठखेलियाँ कदम़ दऱ कदम़ थाम़ कऱ हाथ़ दौड़ा ले जाती है,
थमती नहीं सदा ही चलती रहती बस़ सासें इंसाँ की रूक जाती है…;
कभी रहती है सरल़, सुगम़, सुंदर कभी विकराल, विकल हो जाती भंयकर,
हऱ पल़ में है अपने रोमांच लिये ये कभी पीड़ा पऱ लगती बऩ मरहम़…;
एक़ पहेली अनसुलझी-सी है जिन्दगी, नित् रंग़ नए-नए दिखलाती है,
जब़ तक़ हैं खुलकऱ पूरा जीओं बस़ यही सीख़ सिखलाती है…;
ए ज़िन्दगी तू कितनी दिलचस्प़ है,
रंग़ हऱ पल़ में कितनें बदलती है…!
पछतावे की रैली
एक गलती इतनें दिनों की मेहनत़ को ले डूबी,
तिरंगें का अपमाऩ करते रहें
दुश्मऩ देश के तेरी आड़ लेकऱ,
अन्नदाता इस रैली की तुझको क्या सूझी,
कल़ साथ़ खड़े थे तेरे हऱ प्रान्त, हऱ घर के वासी,
आज़ समर्थन लौट रहा है तुझसे, छायी है एक़ उदासी,
क्यूँ हाथ़ कापें नहीं, आत्मा ने क्यूँ ना झकझोरा,
देश़ के सम्मान को जिसने भी उस पल़ तोड़ा,
गये थे सम्मान से शान्ति से बात़ मनवाने,
ये क्या करवा आये हो तुम, अब़ लगे जो पछतानें,
वो आये नाम़ तुम्हारा लेकर बाज़ी अपनी खेल गये,
लाठी, डंडों, पत्थरों और तलवारों से ये व्रत तुम्हारा तोड़ गये,
अब़ पछताये हौत क्या जब़ चिड़िया चुग गयी खेत़,
इतनें दिनों का संघर्ष यूँ टूटा मुट्ठी से फिसली जैसे रेत,
एक गलती इतनें दिनों की मेहनत़ को ले डूबी,
तिरंगें का अपमाऩ करते रहें
दुश्मऩ देश के तेरी आड़ लेकऱ,
अन्नदाता इस रैली की तुझको क्या सूझी
भारतवासी
हवा में इसकी बहती है देशभक्ति,
नदियों की बहती धारा भी है ये कहती,
ऋषि-मुनियों की ये है पावन धरती,
गर्व होता है जब़ कहे जाते हैं हम़ भारतवासी,
राम, कृष्ण, गौतम, गाँधी, सुभाष, बाबा साहेब की जन्मभूमि ये धरती महान है,
भगत, सुखदेव, राजगुरू, आजाद़ और अनेक वीरों ने यहाँ दिया बलिदान है,
राणा प्रताप, पृथ्वीराज, अशोक की यहाँ गाथा गायी है जाती
गर्व होता है जब़ कोई कहता है हम़ हैं भारतवासी,
एक लड़ता है सीमा पर, एक पानी में जाऩ बचात़ा है,
एक आसमाँ से रक्षा करें, एक खाक़ी पहन लड़ जाता है,
देशप्रेम की बोली हर पल़ कानों में रस घोले है जाती,
गर्व होता है जब़ कहे जाते हैं हम़ भारतवासी,
प्रयोगों के जगत में कोईं इतिहास बनाता है,
कोई स्वयं जलकऱ भी शिक्षा का दीप जलाता है,
धरती का सीना चीर कर अन्नदाता अन्न उपजाते है,
खाद़ी जाम़ा पहन कर कोईं देश चलाता है,
सहयोग की इस़ भावना से देश की तरक्क़ी हो जाती,
गर्व होता है जब़ हम़ कहे जाते हैं भारतवासी,
मन्दिर के भजऩ हों या मस्जिद़ की अजाऩ,
बाइबिल का ज्ञान मिलें, या गुरूबानी का साऱ,
सभी मजहबों से सिर्फ़ एक ही बात़ है आती,
मुल्क़ अपना एक़ है, गर्व से कहो हम हैं भारतवासी,
हम़ हैं भारतवासी, हम़ हैं भारतवासी
खामोश़ आवाज़ें
हौंसला बाक़ी है अभी मेरा,
ए जाऩ अभी गिरा नहीं हूँ मैं,
कोई नज़रों से गिरा दे तो क्या…
खामोशियों से घिर रहा हूँ हर पल,
पर अभी थ़का नहीं हूँ मैं,
कोईं आवाज़ ही ना सुनें तो क्या…
जिंदा हूँ सघंर्ष कर रहा हूँ खुद़ से,
वादे से अपने डिगा नहीं हूँ मैं,
कोईं साथ़ ही नां दे तो क्या…
इक़ दुनियाँ जल़ रही है, नज़रों के सामने,
साँसें बाक़ी है मुझमें, अभी जल़ा नहीं हूँ मैं,
कोईं अगन् ही ना बुझाये तो क्या…
तमाश़ा नहीं था, तमाश़ा हो गया हूँ,
कठपुतली के खेल़-सा हो गया हूँ मैं,
अपना ही जब़ नाच़ नचाये तो क्या…
नसीब़ तो अर्से पहले ही रूठ़ गया था,
बिगड़े इस़ नसीब़ को जगाऊँ मैं,
कोईं तकद़ीर छिन ले जाये तो क्या…
दुनियाँ से तो फिऱ भी लड़ लेता है इंसान,
तेरे साथ़ सारी दुनियाँ से लड़ जाऊँ मैं,
अपना भी जब़ दुनियाँ से मिल जाये तो क्या…
फरियाद़ लगाऊँ मिन्नतें बार-बार करूँ,
तू ही बता कितनें अश्क़ बहाऊँ मैं,
कोईं इल्तिज़ा भी ना पगली मानें तो क्या…
हौंसला बाक़ी है अभी मेरा,
ए जाऩ अभी गिरा नहीं हूँ मैं
कोई नज़रों से गिरा दे तो क्या…
माफ़ कर देना
ए, ज़िन्दगी माफ़ कर देना,
तुझे समझ़ नहीं पा रहा हूँ,
सुलझाता हूँ जितना तुझे,
उतना उलझता जा रहा हूँ,
ए, ज़िन्दगी माफ़ कर देना…
ना कोईं रास्ता है मेरा,
ना कोईं मँजिल है मेरी,
ना जानें क्यूँ किस रास्ते से जा रहा हूँ,
ए, ज़िन्दगी माफ़ कर देना,
तुझे समझ नहीं पा रहा हूँ…
तूफ़ान दिल़ में उमड़ रहा है जज्बातों का,
“राज” भटक रहा खुद़ में उलझा-उलझा-सा,
किस तरह़ कहूँ कि दिल़ क्या आरज़ू है मेरी,
बिन किये ही हर गुनाह़ की सज़ा पा रहा हूँ,
रूह़ जख़्मी दिल़ लहूलुहान है,
कोईं जाकर उसको कह दे,
“राज” का बुऱा हाल़ है,
बस़ जिस्म़ का बोझ़ लिये जा रहा हूँ…
ए, ज़िन्दगी माफ़ कर देना,
तुझे समझ नहीं पा रहा हूँ…
तुम मुझसे दूर मत जाना
खुशियाँ गयी सारी, सुःख सारे चले गये,
अरमानों के जो महल़ बने थे, वह भी बिख़र गये,
हालात़ हो कैसे भी बस़ तुम़ साथ़ निभाना,
जाँ तुमसे है फरियाद़ यही, तुम़ मुझसे दूर मत़ जाना…
मैं पल़-पल़ में टूट रहा हूँ,
पर तुम़ बिख़र मत जाना,
जानता हूँ ये दौऱ मुश्किलों भरा है,
सम्भालना मुझको, खुद़ भी संभल जाना,
जाँ तुमसे है फरियाद़ यही, तुम़ मुझसे दूर मत़ जाना…
हँसीं इन लबों से रूठ गयी है,
साँसें भी जिस्म़ से छूट रही है,
आँसू बहुत दिये हैं तुम्हें मैनें,
इन आँखों से कह दो, उनको भूल़ जाना,
जाँ तुमसे है फरियाद़ यही, तुम़ मुझसे दूर मत़ जाना…
मुझे हऱ मोड़ पर है ज़रूरत़ तुम्हारी,
ये ज़िन्दगी किसी की नहीं, ये अमानत़ है तुम्हारी,
तुम्हें मालूम़ है, “राज” अकेला ही रहा है उम्र भर से,
मुझे आदत़ नहीं है, तुम्हारे बिना रहने की,
अब़ तुम भी अकेला मत़ कर जाना,
जाँ तुमसे है फरियाद़ यही तुम़ मुझसे मत़ जाना,
जाँ तुमसे है फरियाद़ यही, तुम़ मुझसे दूर मत़ जाना…
वो कहती है
वो कहती है, तुम क्यूँ इतना प्यार करते हो,
कुछ नहीं ऐसा मुझमें जिस पर इतना मरते हो,
वो कहती है, तुम क्यूँ इतना प्यार करते हो…
यही सवाल मन में आता है बार-बार,
कैसे कर लेते हो मुझे इतना प्यार,
क्या हूँ मैं, क्यूँ मुझे ख़ोने से डरते हो,
वो कहती है, तुम क्यूँ इतना प्यार करते हो…
बात-बात पर तो मैं तुमसे खफ़ा हो जाती हूँ,
हर पल हर घड़ी तुम्हें सताती हूँ,
फिर भी किस बात से मुझे यूँ चाहते हो,
वो कहती है, तुम क्यूँ इतना प्यार करते हो…
क्या है मुझमें, क्यूँ बिन मेरे नहीं रहते तुम,
क्यूँ मेरी ख़ातिर सबके सितम़ सहते हो तुम,
मेरे जाने की बात से क्यूँ आसूँ पलकों पर लाते हो,
वो कहती है, तुम क्यूँ इतना प्यार करते हो…
निःस्वार्थ चाहत ये कैसी है तुम्हारी,
जब भी होती हूँ मुश्किल में तुम ही क्यूँ नज़र आते हो,
ख़्याल में भी ग़र तुम्हें पुकार लूँ,
तुम हकीक़त बन आ जाते हो,
बस एक बार ये कह दो मेरी ख़ातिर,
तुम क्यूँ इतनी शिद्दत़ से मुझे चाहते हो…
वो कहती है, तुम क्यूँ इतना प्यार करते हो,
कुछ नहीं ऐसा मुझमें जिस पर इतना मरते हो,
वो कहती है, तुम क्यूँ इतना प्यार करते हो…
मैं कहता हूँ
मैं कहता हूँ, दिल पर रख हाथ तुमसे इकऱार करता हूँ,
दुनियादारी की कोई मिलावट नहीं तुम में,
बस यूँ ही तुमसे प्यार करता हूँ…
भटक रहा था ज़िन्दगी के अंधेरों में साथी ना सहारा था,
मैं तन्हाइयों से घिरा था जब तुमने पुकारा था,
जिंदगी हो मेरी यूँ तुम्हें खोनें से डरता हूँ,
मैं कहता हूँ, दिल पर रख हाथ तुमसे इक़रार करता हूँ…
ख़फा हो जाओ कितना ही फिर भी बस मुझे ही चाहती हो,
हक़ है मुझ पर तुम्हारा तभी मुझे सताती हो,
इस वफ़ा पर ही तो मैं मिट जाता हूँ,
मैं कहता हूँ, दिल पर रख हाथ तुमसे इक़रार करता हूँ…
रहूँ कैसे तुम बिन ये मुझे नहीं आता है,
इक तेरी ख़ातिर ये दिल सितम सारे सह जाता है,
तू खो ना जाये मुझसे दिल ही दिल में घबराता हूँ,
मैं कहता हूँ, दिल पर रख हाथ तुमसे इक़रार करता हूँ…
तुमने वफ़ाएँ इतनी की है मुझसे,
हर ख़ता भूलकर सीने से लगाया है,
खुशियाँ लूटा दूँ तुम पर सारे जहान की,
मेरी दुनियाँ में तुमने खुद़ को काबिल बनाया है,
प्यार बरसाया है दिल-ओं-जाँ से मुझ पर,
अपना हर वादा तुमने निभाया है,
यही सब तो है जो तुम्हें मेरे करीब़ करता है,
हाँ तुम वह तुम ही हो जिसे मेरा दिल प्यार करता है,
मैं कहता हूँ, दिल पर रख हाथ तुमसे इक़रार करता हूँ,
दुनियादारी की कोई मिलावट नहीं तुम में,
बस यूँ ही तुमसे प्यार करता हूँ…
बस यूँ ही तुमसे प्यार करता हूँ…
पर्यावरण और कोरोना
जन-जन जब से घर में क़ैद हुआ,
पर्यावरण का उद्धार हुआ,
सरकारें जो ना कर पायी वर्षों से,
एक वायरस से वह सपना साकार हुआ…
अब आसमां में गैसों के बादल कम छाते हैं,
बादल झूम कर जल बरसाते हैं,
पर्यावरण का अब नया आकार हुआ,
एक वायरस से वह सपना साकार हुआ…
नदियों, नहरों का जल अब एक आइना है,
जहऱ इनमें ना घुले अब मेरा ये कहना है,
सदियों बाद प्रकृति का नया अवतार हुआ,
एक वायरस से वह सपना साकार हुआ…
पंछी सुबह शाम ख़ूब चहचहाते हैं,
पंख फैला आसमां में दौड़ लगाते है,
परिंदो की धरती, सारा आसमान हुआ,
एक वायरस से वह सपना साकार हुआ…
काश! ये वायरस रूप बदलकर,
जनहित के काम आएँ,
लोगों को कोई हानि ना पहुँचे,
पर्यावरण पर ये वायरस वरदान बन जाएँ,
प्रकृति से खिलवाड़ का हमें बहुत नुक़सान हुआ,
एक वायरस से वह सपना साकार हुआ…
जन-जन जब से घर में क़ैद हुआ,
पर्यावरण का उद्धार हुआ…
वरूण राज ढलौत्रा
सहारनपुर(यू०पी०)
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