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हमारे आदर्श और वर्तमान स्थिति (Our ideal and current situation)
Our ideal: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम और धैर्य की मूर्ति माता सीता प्रत्येक भारतीय के व्यावहारिक जीवन के आदर्श स्तंभ है। भगवान श्री राम भारतीय पुरुष समाज और माता सीता भारतीय नारी समाज के विलक्षण आदर्श माने जाते हैं। भगवान श्रीराम ने’ राम’होकर भी जो सामान्य जीवन जी कर के भारतीय जन मानस के समक्ष एक अनंत उदाहरण प्रस्तुत किया है।
प्रभु श्री राम एक सामान्य मानव की भाँति सभी तरह के क्रियाकलापों में व्यवहृत् होते हैं तथा जनमानस के सामने कर्म शीलता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। श्री राम ने अपने जीवन के हर मोड़ पर, अपने जीवन की हर घटना के दौरान, हरेक परिस्थिति में, उस परिस्थिति विशेष के लिए जो आदर्श व्यवहार हो सकता था उसी आदर्श कर्म को जीया तथा भारतीय जनमानस के सामने अमिट जीवटता को प्रस्तुत किया।
प्रभु श्री राम ने हमारे लोक जीवन के व्यावहारिक चरित्रों का आदर्श रूप हमें जी कर दिखलाया है। वे आज्ञाकारी पुत्र के रूप में, आदर्श भ्राता के रूप में, आदर्श पति के रूप में, आदर्श सखा के रूप में, आदर सेनापति के रूप में, आदर्श शत्रु के रूप में, आदर्श स्वामी के रूप में, इत्यादि विभिन्न चरित्रों में प्रभु श्री राम ने अपना आदर्श रूप प्रस्तुत किया है।
स्वामी विवेकानंद की’ भारतीय नारी ‘शीर्षक पुस्तक के अध्ययन के दौरान मेरे मन में सहजता के साथ कुछ प्रश्न उठ खड़े हुए और मैंने उसी सहजता के साथ छात्रों के समक्ष उन प्रश्नों को रख दिया। मेरा पहला प्रश्न था’ कि राम कौन थे? लगभग सभी छात्रों ने शायद? जानकारी और ज्ञान के अभाव में जो प्रत्युत्तर दिया वह विचारणीय है। मेरा मन स्तब्ध रह गया क्योंकि बालकों का जवाब आशातीत था, मेरी अपेक्षाओं के विरुद्ध था।
हम कहाँ पहुँच गए हैं? हमारे आदर्श भगवान श्रीराम ने कितनी कठिन यात्रा करके अपने आप को, अपने आदर्श चरित्र स्थापित किया-किया था और आज हमारे युवा और हम उन्हें सिर्फ़ एक नाम के रूप में जानकार रह गए हैं। मेरे व्यथित मन का हल यही हो सकता है कि हमें चाहिए कि हम सब अपने हरेक चरित्र में राम-सीता के आदर्श चरित्र को व्यवहृत करें।

हम राम-सीता के आदर्श रूप को भूल गए हैं या हम उसको अपनी दूसरी पीढ़ी को स्थानांतरित करना भूल गए हैं। हमें चाहिए कि एक आदर्श मानव समाज की स्थापना के लिए हमें राम-सीता के व्यवहृत जीवन के आदर्श चरित्रों को स्वयं में जी कर के उन्हे पीढ़ी दर पीढ़ी चलायमान करना होगा। मेरा दूसरा प्रश्न था ‘कि सीता कौन थी? इसका जवाब भी सीधा ही था। छात्रों का जवाब था कि सीता राम की पत्नी थी।
फिर मुझे लगा कि हमनें सीता के आदर्श चरित्र को हमारी सामाजिक पृष्ठभूमि से छीन लिया है। फिर मुझे स्वामी विवेकानंद जी द्वारा अपनी पुस्तक ‘भारतीय नारी’ में वर्णित कुछ अंश याद आया। स्वामी जी लिखते हैं…” भारत तुम मत भूलना कि तुम्हारी स्त्रियों का आदर्श माता सीता, सावित्री दमयंती है। प्रत्येक बालिका सीता के भव्य आदर्श की आराधना करती है।
भारतवर्ष की प्रत्येक स्त्री की यह आकांक्षा है कि वे अपने जीवन को भगवती सीता के समान पवित्र, भक्ति पूर्ण और सर्वसंह बनाएँ। सीता का चरित्र हमारी जाति के लिए सहनशीलता का आदर्श है। माता सीता भारतीय आदर्श की प्रतीक है। उपर्युक्त उद्बोधन तथा छात्रों के जवाब के मध्य बहुत अंतर है। हम शिक्षा लगातार को बढ़ावा दे रहें हैं। लेकिन हम बहुत कुछ पीछे छोड़ रहे हैं। हम उनको मनावोचित व्यावहारिक दीक्षा से वंचित कर रहे हैं। यहाँ मैं एक बात को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मेरा उद्देश्य छात्रों पर किसी भी प्रकार का आक्षेप लगाना नहीं है।
छात्रों का उत्तर भी ठीक ही था लेकिन हमें चाहिए कि छात्रों का जवाब सीमित नहीं होना चाहिए। वे राम-सीता के आदर्श को अपना लें। मैं चाहता हूँ कि वे इन दोनों चरित्रों को अपना द्येय बना लें। बस यही मेरी अनंत कामना है। यहाँ यह दोनों प्रश्न हमारे जहन में बहुत सारे दूसरे प्रश्न खड़े कर देते हैं। क्या हम आधुनिक होने के साथ-साथ व्यावहारिकता को खो रहे हैं? क्या हमारे आदर्श हमारे आधुनिक तक साथ नहीं चल सकते हैं? अगर आधुनिक होने का मतलब सभ्य होना है तो क्या हम पहले असभ्य थे?
ऐसे बहुत से प्रश्न मेरे जहन में उठ रहे थे। हमारे आदर्श चरित्र और हमारे व्यावहारिक जीवन के मध्य जो खाई पड़ गई है उसको पाटने के लिए हमें कुछ उपाय करने होंगे। हमें हमारी बहन बेटियों को शिक्षित करने तथा आधुनिक बनाने के साथ-साथ उनके स्वभाव में माता सीता, सावित्री, दयमंती आदि के आदर्श चरित्रों का बीजांकुरण करना होगा। यह चरित्र इनमें केवल पतिव्रता होने का आदर्श स्थापित नहीं करेगा बल्कि उनमें साहस, धैर्य, सहनशीलता इत्यादि स्त्री उचित गुणों की स्थापना करेगा।
कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि राम सीता की कथा में कोई ऐतिहासिक तथ्य भी है क्या? इस पर बहस करने की कोई आवश्यकता भी नहीं है। भले ही इनकी कहानी कल्पना की उपज हो? हमारे लिए इतना ही काफ़ी है कि प्रभु श्री राम और सीता का आदर्श चरित्र मानव जाति के लिए परम उज्ज्वल रूप में स्थापित हो रखा है और आगे भी अक्षुण रूप में रहेगा तथा इनका आदर्श रूप हमारे धर्म और संस्कृति के अनंत अस्तित्व के लिए परम आवश्यक है।
बंशी लाल जयपाल
उपेंद्र
व्याख्याता, महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय
‘जावाल’ ज़िला सिरोही राजस्थान’। संपर्क सूत्र ७७९०९७३०८५
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