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विश्व धर्म संसद (world parliament of religions)
विश्व धर्म संसद (world parliament of religions) में वह बालक एक निराला था,
सब सूट बूट में बैठे थे उसने भगवा गमछा डाला था।
सब लगे हुए थे अपने देश धर्म को श्रेष्ठ बताने में॥
फिर नाम पुकारा स्वामीजी का तो जनता भी कुछ अकुलाई थी,
सांप के आगे बीन बजाने वाला क्या बोलेगा ये सोचके मुस्काई थी॥
उस भगवा धारी साधु ने ऐसा कमाल फिर कर डाला,
विश्व धर्म संसद को एक पल में यूं सजा डाला।
अपने मुख से निकले मात्र ५ शब्दो से भारत की संस्कृति का डंका विश्व में बज डाला।
है नमन इस देश की माटी को जहाँ ऐसे कई महान हुए,
यहाँ कृष्ण हुए यहाँ राम हुए और यही पर अब्दुल कलाम हुए॥
ग़ुलामी के कड़वे विष
ग़ुलामी के कड़वे विष को आज़ादी का अमृत बनाया है।
ना जाने कितने वीरों ने अपना शीश कटाया है।
है नमन मेरा उन वीरों को जो आज़ादी का स्तम्भ बने।
एक नमन उन माँ को भी जिसने ऐसे वीर सपूत जने।
याद करो उस खुदीराम को १३ में माँ का आँचल भूल गया,
मातृभूमि की रक्षा हेतु हंसके फासी पर झूल गया।
ज़रा याद करो उस माँ को जिसने झांसी की लाज बचाई थी,
दूधमुहे बच्चे को लेकर अंग्रेज़ो को धूल चटाई थी।
है देश बड़े इस दुनिया में ये हमको पढ़ाया जाता है।
पर ये मत भूलो सारे विश्व में भारत ही केवल माता है॥
भारत ही केवल माता है॥
मात्र भूमि की खातिर
इस मात्र भूमि की खातिर जाने कितनों ने जान गंवाई थी।
ये वही देश है जिसकी खातिर राणा ने घांस की रोटी खाई थी।
न जाने कैसे दीवाने थे जो हँस के फाँसी झूल गए।
आज़ादी हम हर साल मानते क्रांतिकारियों को भूल गए।
क़लम उठा के
एक दिन क़लम उठा के सोचा कुछ तो माँ के नाम लिखू।
क्या वर्ण लिखू क्या लेख लिखू कैसे उसकी ममता का बखान लिखू॥
एक शब्द में पूर्ण कविता मैं बस अपनी माँ का नाम लिखू
फ़ौजी
फ़ौजी के जीवन में कभी शाम नहीं होती।
फौजी के बिना देश में आरती ओर अज़ान नहीं होती।
कुछ तो ख़ास है मेरे देश की मिट्टी में।
वरना इसकी खातिर जान देने को हर माँ की संतान तयार नहीं होती
कृष्ण की लीला
कृष्ण की लीला बड़ी निराली सबसे मैं ये कहता हूँ।
कृष्ण पृथ्वी के कण-कण में उसकी भक्ति में खोया रहता हूँ।
कृष्ण की भक्ति में जीवन का हर एक पाप मिटा।
गीता ज्ञान जो जाना मैने जीवन का हर एक ताप मिटा।
कृष्ण को समझा कृष्ण को जाना तब जीवन का आधार बना।
युद्ध स्वरूपी इस जीवन में कृष्णा शस्त्रों की धार बना।
मुझे पता है
मुझे पता है कि तू दूर जा रही है।
पर तेरी मौजूदगी की महक करीब से आरही है।
मुझे पता है कि चाहत बाक़ी नहीं है तेरे दिल मे।
ओर एक मेरी धड़कन है जो तेरा नाम दोहराये जा रही है।
तूने कहा था
तूने कहा था कभी की बिछड़ने पर कविता लिखना
ये देख बिछड़ने पर अपनी पूरी ज़िंदगी लिख रहा हु॥
तेरे बिना अधूरा हु मैं। तेरे बिना अधूरा हु मैं।
पर ज़माने को पूरा दिख रहा हु।
माँ तेरे बिना
माँ तेरे बिना जीवन अधूरा स लगता है।
तेरी ममता के सिवा इस बाज़ार में सब बिकता है।
एक तू ही है जो मेरे दुख में मुझसे ज़्यादा रोइ है।
मूझे सूखे में सुलाक़े ख़ुद गीले में सोई है।
हात पकड़ कर पहला अक्षर लिखना भी तूने सिखाया था।
मान मर्यादा संस्कारों का पाठ भी तूने पढ़ाया था॥
दास्तान
दास्तान सुनाऊ भारत माँ के एक वीर की।
हाथों में जिसके मुगलों के काल की लकीर थी।
लहरा के भगवा जिसने बचाया हिंदुस्तान को।
नरसिंह बन नाखून से फाड़ दिया अफ़ज़ल खान को॥
जय भवानी जय शिवाजी॥
मेरी आँखों में
मेरी आँखों में देख तस्वीर तेरी मिलेगी।
तेरे मेरे इश्क़ के किस्सों से ये दुनिया जलेगी।
जबतक हात है तेरा मेरे हातों में वादा है
सनम तबतक ही बस मेरी सांसे चलेंगी॥
तेरी आँखों में
तेरी आँखों में जो देखा चेहरा मेरा ही पाया है।
लोग इश्क़ में हद से गुज़र जाते है
मैंने तेरे इश्क़ को ही अपनी हद बनाया है।
गर यक़ीन नहीं मेरे इश्क़ पर
तो मेरे दिल की आवाज़ सुन।
मैंने अपनी धड़कन में भी तुझे बसाया है
अल्फ़ाज़
अल्फ़ाज़ है जज़्बात है पर बता नहीं पाता।
तुझसे इश्क़ तो बहुत है पर जता नहीं पाता।
वो दूर कही है मेरी नज़रो से।
पर कम्भख्त ये दिल है जो उसकी तस्वीर मिटा नहीं पाता॥
हिजाब में
वह निकली मेरी गली से एक दिन हिजाब में।
तबसे ही मंगा है खुदा से उसे हर दुआ हर ख़्वाब में।
वो समझती है मैं मर मिटा हु उसकी सूरत पे।
पर मुझे इश्क़ है। उस सुरमे से जो लगा है उसकी आँख में॥
भोलेनाथ
बिराजे है कैलाश पर सर पर चाँद का ताज है।
गंगा है जटाओं में गले में जिसके नाग है।
नंदी की करते है सवारी बगल में बैठे पार्वती मा हमारी।
डमरू के डम-डम पर नृत्य करता वह नटराज है।
मैं किसी से क्यों डरूँ मेरे सर पर भोलेनाथ का हाथ है॥
अभिमन्यु
माँ की कोख में सीखा मैंने चक्रव्यू को तोड़ना।
मौत समक्ष देख रथ को न मोड़ना।
कैसे न जाता रण में दाव पर लगा पिता का मान है।
धर्म के लिए लड़ूंगा जबतक इस देह में जान है।
सामने जो थे खड़े वह सातों बड़े वीर थे।
मेरी पीठ पर जो आके लगे वह सभी अपनो के तीर थे।
तेरहवे दिन के युद्ध का वह दृश्य बड़ा कमाल था।
धरती माँ की गोद में लेटा उसका लाल था।
यूँ तो वीर कई महाभारत में सभी बड़े कमाल थे।
सबको बोना करदिया
सुभद्रा के लाल ने॥
मोहब्बत
ग़र न मिले मोहब्बत तो ये मत सोचना की नाकाम होगये।
इश्क की गलियों में खामखा ही बदनाम होगये॥
ज़रूरी नहीं की कामयाब हो मोहब्बत सभी की।
बिना मिले ही देख राधा के श्याम होगये॥
कोख में ही मार गिराया
किसी ने बेटी का प्यार दिया।
किसी ने पैरों की धूल समझ धुत्कार दिया।
किसी ने मांग में सिंदूर भर अर्धांगनी बनाया।
तो किसी ने मेरे आंचल में अपना सर छुपाया।
किसी ने पूजा मुझे दुर्गा समझके।
तो किसी ने मुझे बोझ समझ के कोख में ही मार गिराया।
अमन श्रीवास्तव
शिक्षक, स्वामी विवेकानंद स्कूल, रायसेन
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२- प्यार के फूल
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