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कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) पर शहीदों को श्रद्धांजली
Kargil Vijay Diwas: वीरोंं की शहादत पर हम,
आँसू नहीं बहायेंगे,
याद रखेंगे कुर्बानी यह,
दुश्मन को दहलाएंगे।
जान गँ वाई वतन के खातिर
, छोड़ गये अपने जन को।
त्याग और संघर्ष से हम,
स्वर्णिम इतिहास बनायेंगे।
वीरों की शहादत••••••••••••••
शान रहे इस देश की ऊँची,
मान सदा बलिदानों का।
व्यर्थ ना हों निर्दोष के आँसू,
झन्डा ऊंचा लहराएंगे॥
वीरों के बलिदानों पर••••••••••••
अलग रंग और जाति धर्म हैं,
हैं अनेक पर एक हुए।
सदा रहे बुनियाद ये पक्की,
जय के दीप जलाएंगे॥
वीरों की शहादत पर •••••••
हरी धरा से नीलाम्बर तक,
गूंजे स्वर बलिदानो का,
नहीं पीठ पर छुरा भोंकते,
कहना वीर जवानों का॥
किन्तु कोई ललकारे तो,
पीछे न क़दम हटाएंगे।
वीरों••••••••••••••••••••••
अपनी संस्कृति आन के हित हम,
करते कुछ समझौते हैं,
शांति हमारी भंग यदि हो,
छक्के हम छुड़वाएंगे।
वीरों की••••••••••••••••••
धन्य हमारी भारत भूमि,
देश भक्त यहाँ हुये महान।
शौर्य के परचम लहराए हैं,
वीरों ने देकर के जान॥
जो सम्मान हमारा छीने,
उनको मज़ा चखायेंगे।
वीरों की शहादत पर हम
आँसू नहीं बहायेंगे॥
देश की माटी की ख़ुशबू
हरी-भरी फसलें लहरातीं,
सरसों मन सरसाती है।
जिस मिट्टी में जन्म लिया,
उसकी ख़ुशबू मन भाती है॥
मेहनत का दम भरते हरदम,
डरते ना दुश्मन से कभी।
अलग अलग हैं धर्म व बोली,
अलग रूप और रंग सभी॥
सुख दुख और सफलता के फल,
हम मिलजुल के चखते हैं।
कुछ गर्मी नर्मी उदारता,
हम स्वभाव में रखते हैं॥
विदुषी वीर सती महिलाओं ने,
यहाँ परचम फहराये।
प्रतिभाओं की पावन धरती,
माँ का आंचल लहराये॥
कल-कल गातीं गान हैं, नदियाँ,
“माँ” कह पूजी जायें यहाँ।
मन्दिर से आरति, मंत्रों घंटों की,
ध्वनियाँ आयें यहाँ॥
बड़े-बड़े राजा-ज्ञानी, ध्यानी
और योद्धा यहाँ हुये।
बसे “प्रीति” दिल में सबके,
होकर अनेक भी एक हुये॥
भांति-भांति मिष्ठान और व्यंजन
सुगंध ललचाती है।
जियें मरे हम देश के हित,
कुर्बानी भी रंग लाती है॥
नित्य ही त्यौहारों के उत्सव,
से झूमे है यह धरती।
धनधान्य फल फूल रत्न,
उपहारौं से आंचल भरती॥
चाहूँ मैं हर बार जन्म लूँ,
प्रकृति कला मन हर्षाती है।
योगदान दें उन्नति हम
यह अमर ज्योति जगाती हैं॥
जिस मिट्टी में जन्म लिया,
उसकी ख़ुशबू मन भाती है॥
भाईचारा
कहने को तो घर समाज में,
होते हैं सम्बंध कई।
निभा सका न साथ कोई है,
टूट रहे अनुबंध कई॥
रिश्तों की लम्बी कतार में,
कितना कौन हमारा है।
क्या जो दिखता है समाज में,
होता भाईचारा है॥
गाते गीत एकता के हम,
मिल उत्सव साथ निभाते हैं।
मुश्किल घड़ियों विपदाओं में,
क्या सच साथ निभाते हैं॥
व्यर्थ में द्वेष दंभ, स्वारथ वश,
तोड़ रहे हैं, प्रीति की डोर।
मिटें भेद सौहार्द हो सब में,
चाहूँ हो नूतन-सी भोर॥
जाति धर्म पद ऊँच नीच,
धन मद में करें लड़ाई है।
कैसा है यह भाईचारा,
कैसे भाई-भाई हैं॥
एक दूजे के भाव को समझें,
और सम्मान परस्पर हो।
राम राज स्थापित हो जब,
सहयोगों में तत्पर हों॥
प्रगति रहे परिवार राष्ट्र की,
दिल में प्रेम दया जब हो।
वक्त में साथ निभाएँ, सच्चा,
बंधु भाई सखा सब हों॥
प्रकृति संरक्षण व वृक्षारोपण
वृक्षों की बाहें डोल रहीं
कलियाँ और फूल हैं मुस्काते।
सौरभ से सुरभित है बयार,
भंवरे गुंजन कर मंडराते॥
अमुआँ में कोयल बोल रही,
चहके बुलबुल गाना गाती।
उन्माद में थिरके जीवजंतु,
वन उपवन में मधुरितु भाती॥
हरियाली चुनरी ओढ़ धरा,
कलरव कल-कल ध्वनि संग थिरके।
अम्बर आतुर हो चरण छुये,
बरसे जल मेघ संग गिरके।
अनुपम उपहार लिये दुल्हन
है सजी, महल ना ताशों का।
बन निष्ठुर ना उजाड़ इसको,
यह प्रश्न सभी की सांसों का।
कहलाते यदि तुम हो मानव,
मत कर दोहन नित कुदरत का।
रोये तो ये आ जाये कहर,
तू कर सुधार इस फ़ितरत का॥
चहुँ ओर लगाओ तरु ‘नूतन’
सांसों का करोबार चले।
मुरझा ना सकें जीवन के कमल,
सौगातों से घर बार पले॥
सांसों में सरगम-सी बजती,
सर सर समीर मन महकाते।
आओ श्र्ंगार करें ‘भू’ का,
जन जीवन को हैं चहकाते॥
घरौंदा
उन से पूंछो, घर की कीमत,
जिनके छत न होती सर।
गर बुनियाद नहीं हों पक्कीं,
तूफां से ढह जाते घर॥
तिनके तिनके लाकर चिड़िया
एक घोसला बुनती है।
प्यार और एहसासों के संग
सुन्दर सपने चुनती है॥
अपनों की परवाह है करती,
चुनकर लाती है दाने।
करें परिश्रम, हों न व्यथित
ये जीवन के ताने बाने॥
घर तो आख़िर घर होता है,
दिल का हो या दीवारों का।
प्रेम और परवाह सुकून दे,
घर कच्चा या मीनारौं का॥
उड़ने दो अम्बर में इनको,
बिछड़-गिरे ना कोई परिन्दा।
विश्वासों की नींव हो पक्की,
टूटे ना फिर कोई घरौंदा॥
जनसंख्या दिवस ११ जुलाई
बढ़े रोज़ आबादी देखो,
बढ़ती जनसंख्या रोकें हम।
संकट भांति-भांति के छाये,
कर प्रयास कुछ दूर करें हम॥
संसाधन हो रहे प्रभावित,
जूझ रहे नित संकट से।
बेरोजगारी, बढ़ी गरीबी,
आश्रय, भोजन झंझट से॥
पर्यावरण प्रदूषित होता,
हवा में कैसे सांसे लें हम।
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं
को कैसे तब सुदृढ करें हम॥
रहे प्रणाली सही संतुलित,
यही राष्ट्र के हित में है।
करें नियन्त्रण जनसंख्या को,
हो विकास जनहित में है॥
चला रही “परिवार नियोजन“
कर प्रयास सरकार रही।
दो से अधिक यदि हों बच्चे,
मिले न कुछ फटकार रही॥
जीवन शैली हुई प्रभावित,
हिंसा और अपराध बढ़े हैं।
घुला “जहर” ज्यूँ हवाओं में है,
वाहन और उद्योग बढ़े हैं॥
दूर करें अन्ध विश्वासों को,
चलो देश खुशहाल बनायें।
हो समृद्ध-सुखी जीवन सब,
शिक्षा ‘लौ’ हर-हाल जगायें॥
सख्त करें कानून देश के,
आओ मिल कर पहल करें हम।
भू को स्वर्ग बनायें कैसे,
कर उपाय कुछ चहल करें हम॥
समय का महत्त्व
समय बहुत अनमोल रत्न है,
इसका मूल्य स्वयं पहचानो।
पल में राजा रंक हुये हैं,
इसकी शक्ति को तुम जानो॥
समय के अवसर को पहचाने,
माटी को हम स्वर्ण बना लें।
नहीं रुका ये नहीं रुकेगा,
साथ समय का सदा घना लें।
वक्त नहीं आरम्भ है होता,
ना ही इसका अन्त हुआ है।
जैसे सदा बदलता मौसम,
सावन शरद बसंत हुआ है॥
चक्र निरंतर इसका घूमे,
निकले तो वापस न आता।
समय मूल्य को जो समझे हैं,
विश्व विजेता वह बन जाता॥
करें वक़्त की ना बर्बादी,
इसका सद उपयोग करें।
फिसले ना यह रेत की भांति,
इसका न दुर्पयोग करें॥
वक्त से बड़ा गुरु नहीं कोई,
कितना कुछ सिखला देता है॥
बहो समय की धारा के संग,
रंग सभी दिखला देता है॥
संस्कार
भले बुरे का भान कराते
हैं संस्कार हमारे हमको,
संकट में साहस न खोएँ
सिखलाते संस्कार हैं हमको॥
बुरा यदि कोई करे हमारा,
फिर भी सोचें बुरा न हम।
झुकना एक सीमा तक अच्छा,
नहीं झुकें जहाँ रहे अहम॥
आभूषण संस्कार हमारे,
सजता है इनसे जीवन।
शिक्षा और संस्कार के बल ही,
बनता है महान कोई जन॥
संस्कारों की परम्परा से,
दिव्य गुणों का दर्शन होता।
कार्य और व्यवहार आचरण का,
चले चक्र सुदर्शन होता॥
सदाचार की नींव इन्हीं से,
संयम शील हैं, सिखलाते॥
परोपकार मानवता के,
संस्कार दृश्य हैं, दिखलाते॥
वैदिक संस्कृति में सोलह,
संस्कार हमारे होते हैं।
विमल बनाये तन-मन, मति-गति,
नैतिक आचार ये होते हैं॥
मित्र
साथ देता है सुख दुख में,
दुखी मन को है, सहलाता।
दूर करता है दोषों को,
वह सच्चा दोस्त कहलाता॥
खड़ा हो साथ जीवन की,
हर एक मुश्किल में हो डटके।
राह सच्ची दिखाता है,
झूठे ना मन को बहलाता।
दोस्त अनमोल वह हीरा,
अंधेरों में रोशनी दे।
कृष्ण हो साथ अर्जुन के तो
दुश्मन को है दहलाता॥
साथ देता है सुख ••••••••••••••••
मिले यदि मीत कोई सच्चा,
तो ऊंचा भाग्य तुम समझो।
करे स्वीकार कमियोँ संग,
दिल से रिश्ता है निभाता॥
साथ देता है सुख दुख में••••••••••••
मोल जो मित्र का समझे,
वही एक दोस्त है सच्चा।
देखकर हाले सुदामा,
कन्हा असुअन से नहलाता॥
भरे जीवन को खुशियों से,
वह सच्चा दोस्त कहलाता।
साथ देता है सुख दुख में,
दुखी मन को है सहलाता॥
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें सभी को।
चलो आज की बात करें
बीती बातों को बिसारकर,
नूतन एक शुरुवाँत करें,
बीते अनुभव से सीखें हम,
चलो आज की बात करें॥
बहू बेटियाँ सभी हों शिक्षित,
नहीं मान पर घात करें।
स्वच्छ रहे परिवेश, सभी जन,
स्वर्णिम पुन: प्रभात करें॥
चलो आज की बात करें••••
दुखियों के प्रति, दया हो मन में,
मानवता का भाव हो जन में।
घायल ना जज़्बात करें••
चलो आज की बात करें•••••
नहीं अचंभित हों इसमें हम
लोग काम पर याद करें,
जिनसे काम निकालें अपना,
उनको ही बर्बाद करें॥
अहम वहम के सुलझें धागे,
नहीं कोई आघात करें
बीते अनुभव से सीखें हम,
चलो आज की बात करें॥
वह वैसा ही समझे जाने,
जैसी जिसकी फ़ितरत है।
द्वेष स्वार्थ दूजे को गिराते,
विषमय मन की हँसरत है॥
देखें दूजे में अच्छाई,
नहीं मान पर घात करें।
नूतन सोच से, उन्नति होती,
नहीं जात और पांत करें।
चलो आज की बात करें••••
रखें नेह सभी के हित में,
नित नूतन उत्थान करें।
भूलें ना निज संस्कारों को,
सहें न और अपमान करें॥
चलो आज की बात करें••••••
आजादी का पर्व मनाएँ
आओ स्वदेशवासी ये पर्व हम मनाएँ,
कुर्बान हुए वीरों पर गर्व हम मनाएँ।
ऊँची रहे ये आन बान शान सदा माँ की,
याद करें दिल से उन्हें शीश हम झुकाएँ॥
अपने वतन के खातिर जो फ़र्ज़ निभाते हैं,
ये रँग तिरंगे के बलिदान दिखाते हैं।
यूँ ही नहीं तो पाई, आजादी ऐसे हमने,
लहू पसीना देना ये वीर सिखाते हैं॥
जिनके डर के आगे, दुश्मन के सर हैं झुकते,
आगे क़दम बढ़ाते, नहीं मुश्किलों में छुपते।
गुलशन में बहारें भी हैं जिनके दम से होतीं,
सहते चुभन शुलों की, सौ संकटों में हँसते॥
वीरों की जन्मभूमि विदुषी हुई बालाएँ,
आये जो आन पर तो, ये बन गई ज्वालाएँ।
मिटाएँ भेद मन के, हो संस्कृति की रक्षा,
आओ सभी हम मिलके नेहदीप हैं जलाएँ॥
अपना यही हो सपना, उन्नत हो देश अपना,
इस कर्मभूमि में तो, सबको पड़ा है तपना॥
ऊंचा हो तिरंगा ये, आओ सभी फहराएँ।
कुर्बान हुए वीरों पर गर्व हम मनाएँ
आओ स्वदेश वासी ये पर्व हम मनाएँ॥
आया सावन झूम के
रिमझिम बूँदों की फुहार से,
धरणी का स्पर्श हुआ है।
मिलन हुआ अवनी अम्बर का,
बागों में भी हर्ष हुआ है॥
चटकी कलियाँ हरियाली है,
कोयल कू-कू करती हैं।
पपिहा टेक लगाये फिर भी,
विरहन आहें भरती है॥
सावन का सतरंगी मौसम,
चितवन को हर्षाता है।
बिखर रही यादों की खुशबू,
घन घुमड़-घुमड़ बर्साता है॥
हिंडोला डोला सखियों संग,
यौवन का श्र्ंगार किये।
बहू बेटियाँ मुदित रहें सब,
प्रणय गीत झंकार लिये॥
तुम बादल से मैं बूदों सी,
सावन में हम घूमड़े बरसें।
तुम अम्बर से मैं अवनी सी,
बन क्षितिज घटाओं संग हरषे॥
ये काली घटायें छट जायें,
सन्ताप धरा के मिट जायें।
बारिश की ठंडी बंदों संग,
कुछ बातें यादें घुल जायें॥
याद आ गए बचपन के दिन,
उछल कूद और धूम के,
पुन: बनाओ सुन्दर यादें,
आया सावन झूम के॥
बातें
बातों से अपनापन झलके,
यही पराया है कर देतीं।
कुछ बातें सम्मान दिलातीं,
स्वप्नों में उड़ान भर देतीं॥
कुछ बातें, मन को छू जातीं,
हृदय को घायल कर जातीं हैं।
कुछ बातों से मधुर हों रिश्ते,
और कुछ कायल कर जातीं हैं॥
कुछ बातों से रुठे दूजा,
चुभती और रुला जातीं है।
और कोई हैं प्रखर बनातीं,
अनुभव कटु दिला जातीं है॥
याद कोई मन थका है जाती,
और कोई मन हर्षाती है।
बात कोई पहचान दिलाती,
स्व व्यक्तित्व को दर्शाती है॥
सम्बंधों की डोर है संवरे,
कुछ अच्छी सच्ची बातों से।
नहीं बिगाड़े किसी का जीवन,
व्यर्थ की भली बुरी घातों से॥
छाप छोड़ती हृदय भूमि पर,
मन उपवन को ये महकाती।
बातों से विश्वास पनपता,
यही हैं जीवन को भरमाती॥
भाई बहन का रिश्ता
भाई बहन का रिश्ता होता है, अनमोल,
इस रिश्ते के निर्मल भाव का ना है तोल।
जब भी जीवन में कठिनाई आती है,
एक दूजे को देते सम्बल इनके बोल।
लड़ना और सताना चलता रह्ता है,
रूठ ना जाना बहना, भाई कहता है।
हंसी ख़ुशी उपहार खजाना बहना खोल,
भाई बहन का रिश्ता होता है, अनमोल।
बहना हर लेती है, बलाएँ भाई की,
पापा की गुड़िया है, छवि है माई की।
डांटे कभी-कभी देती मन में मिश्री घोल,
भाई-बहन का रिश्ता होता है, अनमोल।
सही राह एक दूजे को दिखलाते हैं,
विश्वासों से जीना ये सिखलाते है।
प्रेम और परवाह की ये मज़बूत है डोर,
भाई बहन का रिश्ता होता है अनमोल।
छोटी हो या बड़ी उम्र में, बहन सयानी ही होती,
भाई देता साथ बहन का, भली निभाता दोस्त का रोल।
प्रीति तिवारी “नमन”
गौतम बुद्ध नगर (उ.प्र.)
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