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विधवा पुनर्विवाह (widow remarriage)
विधवा पुनर्विवाह (widow remarriage) : भारत में प्राचीन काल से ही अनेक कुप्रथाएं चली आ रही हैं। ये कुप्रथाएं हमारे गौरवशाली भारत के नाम पर एक धब्बे की तरह हैं। इनमें से कुछ कुप्रथाएं हैं जैसे बाल विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा इत्यादि। इनमें से कुछ कुप्रथाएं समाप्त हो गई हैं। परंतु कुछ कुप्रथाएँ अभी भी चलन में हैं। इनमें से ही एक कुप्रथा के बारे में हम आज चर्चा करने जा रहे हैं।
प्राचीन काल में यदि किसी जवान लड़की का पति मर जाता था, तो उसे पति कि चिता पर ही ज़िंदा जला दिया जाता था या फिर उनका सिर मुंडवा दिया जाता था। इस प्रकार प्राचीन काल में विधवा स्त्रियों की दशा बहुत ही दयनीय थी। उनके साथ बहुत ही बुरा व्यवहार किया जाता था। परंतु कुछ समाज सुधारकों ने विधवा विवाह पर बल दिया। जिसके फलस्वरूप १८५६ ईसवी में हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के तहत विधवा विवाह की सभी रूकावटों को समाप्त कर दिया गया। जिसके फलस्वरूप यदि किसी स्त्री का पति मर जाए तो वह पुनर्विवाह कर सकती है।
आजकल हिंदू समाज में एक बड़े वर्ग में विधवा पुनर्विवाह को बुरा नहीं समझा जाता। वास्तव में आजकल लगभग सभी जातियों में विधवा पुनर्विवाह को स्वीकार कर लिया गया है। परंतु कछ लोग आज भी इसे बुरा समझते हैं। लेकिन पढ़े-लिखे लोगों में विधवा विवाह का विरोध नहीं के बराबर है। इसलिए शिक्षा का प्रसार करके इन कूप्रथाओं का अंत किया जा सकता है। इसलिए शिक्षा को हमें इन कुप्रथाओं के विरोध में अस्त्र की भांति प्रयोग करना चाहिए। अगर हम इन कुपरथाओं को जल्दी ही नहीं समाप्त करेंगे तो ये कुप्थाएँ हमारे समाज को दीमक की भाँति खोखला कर देंगी।
रूबी
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