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तू मेरी जान (You are my life)
तू मेरी जान (You are my life) से बेईमान बन गयी
दिल के मेरी बातें श्मशान बन गयी
दिल लगाने से हमें फिर क्या फायदा
हमें रुला के तू अभिमान बन गयी।
तू मेरी जान है, तू मेरी जान है (You are my life)
तेरे इश्क में मैं हरपल हैवान है
तेरी यादें बिना मैं रह नहीं सकता
अब ना मुझे कोई करता सम्मान है।
मुहब्बत करने वाला कभी डरता नहीं
बदनाम हो कर किसी को कुछ कहता नहीं
वह छोड़ता नहीं, वह छोड़ता नहीं कभी
कितने मार हो उस पर फिर लड़ता नहीं।
दिल को जोड़ना कैसी वह जवानी है
दिल को तोड़ना कैसी वह कहानी है
हमें मन थे तेरे दिल में रहने का
मुहब्बत में जन्म-जन्म की निशानी है।
इश्क़, मोहब्बत में
इश्क़, मोहब्बत में मुझे लगती फ़िर से ज़माना है
जानू से मिलने कि मुझे कॉलेज का बहाना है
अब तेरी मुलाक़ात की मेरी अच्छी क़िस्मत है
तेरे नाम की गाना में अब कैसा तराना है।
तुझे पाने या खोने का मुझे तो ज़िक्र होता है
कभी ना कभी रोने का मुझे तो ज़िक्र होता है
अंधेरी रातों में मैं पल-पल याद करता हूँ
तेरी सोच में सोने का मुझे तो ज़िक्र होता है।
तेरा फ़ोन उठाने से मैं रातों में डरता हूँ
पापा जी है निकट में धीरे से बातों करता हूँ
मोहब्बत करने में सब, सब से चौरी करते हैं
जब तू भूल जाती है, मैं अंधेरों में मरता हूँ।
निकला घर का काम से मुलाक़ात कर लिया मैंने
जिंदगी भर संग रहने की बात कर लिया मैंने
पराया है तू लेकिन सदा मेरी धड़कन बनी है
बात से बात लड़ी जब दिन में रात कर लिया मैंने।
मोहब्बत करता हूँ नहीं
मैं मोहब्बत करता हूँ नहीं, मोहब्बत हो जाती है
लेकिन कोई निभाती नहीं शरारत हो जाती है
कभी श्याम दीवाना था, अभी अँचल दीवाना है
दिलों के क़ैद में खून की तिजारत हो जाती है।
अब तेरी यादों में मुझे नहीं होश व हवाश है
हर मोड़ में मुझे, तुझ से मिलाने प्रभु की आश है।
मुझे चाहने वाले बहुत हैं, कहीं दिल नहीं लगता
तुम्हीं पर मरता है वह दिल तभी तो होता हताश है।
अरमान हैं, तुम्हें पाने तभी तो याद करते हैं
इश्क़ को समझे हैं, तभी तो वक़्त बर्बाद करते हैं
जो इश्क़ को समझता, वो समझता दौलत को नहीं
दूर हो कर भी हम कभी नहीं फ़रियाद करते हैं।
तेरी मोहब्बत को पाने बड़ी उलझन में रहे
सनम तेरे रूप का ख़्याल हमेशा धड़कन में रहे
संत का रूप छोड़ कर पागल के रूप में रहते हैं
अब मिलने खड़े हैं धूप में, नहीं आंगन में रहे।
मेरे मुक्तक
{1}
मेरी जान हरपल खान – पान का सवाल करते हैं
उधर एक आप ही हैं, जो हमैसा ख्याल करते हैं
लेकिन मैं दूर में हूं आप को नज़दीक लगता हूं
मेरी प्यार का एहसास आप को कमला करते हैं।
{2}
तरुनाई की मोहब्बत ही बर्बादी का निशान है
प्रेमिका का प्यार के चक्कर में घर का अपमान है
इंसान हो या खुदा हो सब को प्यार का गुलशन हैं
किसी का प्यार पाना को कोई न कोई अरमान है।
{3}
मुझे मोहब्बत की तमन्ना किसी से कम नहीं होगी
मुझ से मोहब्बत की समस्या कभी नम नहीं होगी
तेरे शिकवा से मैं हर पल दूर चला जाऊंगा
इश्क़ की शायरी लिखने वाली कलम नहीं होगी।
{4}
तेरी मोहब्बत से मैं हर तरफ मशहूर हो गया
इस मोहब्बत का अरमान में मज़दूर हो गया
तुझ पे हुकूमत करने से चूर – चूर हो गया हूं
तेरे छोखा से मैं अपनों से भी दूर हो गया।
{5}
इश्क़, मोहब्बत में मुझे लगती फ़िर से ज़माना है
जानू से मिलने कि मुझे कॉलेज का बहाना है
अब तेरी मुलाक़ात की मेरी अच्छी किस्मत है
तेरे नाम की गाना में अब कैसा तराना है।
{6}
तुझे पाने या खोने का मुझे तो जिक्र होता है
कभी ना कभी रोने का मुझे तो जिक्र होता है
अंधेरी रातों में मैं पल- पल याद करता हूँ
तेरी सोच में सोने का मुझे तो जिक्र होता है।
{7}
तेरा फोन उठाने से मैं रातों में डरता हूँ
पापा जी है निकट में धीरे से बातों करता हूँ
मोहब्बत करने में सब,सब से चौरी करते हैं
जब तू भूल जाती है, मैं अंधेरों में मरता हूँ।
{8}
निकला घर का काम से मुलाक़ात कर लिया मैंने
जिंदगी भर संग रहने की बात कर लिया मैंने
पराया है तू लेकिन सदा मेरी धड़कन बनी है
बात से बात लड़ी जब दिन में रात कर लिया मैंने।
{9}
तेरी हर मुलाकातें मुझे सदा याद आती है
चलती हुई घड़ी में तेरी ही आवाज आती है
लगती है मुझे वैसी तुझे भूल नहीं पाऊंगा
कुछ ही महीनों में तू मुझे क्यों भूल जाती है?
{10}
सनम से मिलने मैं हर रोज तो मन्दिर जाता हूं
इशारों वक़्त सब के नजरों में मैं गिर जाता हूं
तरुनाई का इश्क़ ही अंत जीवन का निशान है
इश्क़ का इल्ज़ाम लगा कर घर आखिर जाता हूं।
{11}
पहली मोहब्बत में मशहूर हो गया हूं मैं
मोहब्बत में परिवार से दूर हो गया हूं मैं
इश्क़,मोहब्बत की किस्सा तो मुझ पता नहीं थी
अब पढ़ने-लिखने में भी मजबूर हो गया हूं मैं।
{12}
अरमान है , तुझे पाने तभी तो याद करता हूं
इश्क़ को समझा हूं, तभी तो वक़्त बर्बाद करता हूं
जो इश्क को समझता, वो दौलत को नहीं समझता
दूर हो कर भी मैं कभी नहीं फरियाद करता हूं।
{13}
तेरी हर मुलाकातें मुझे सदा याद आती है
चलती हुई घड़ी में तेरी ही आवाज आती है
लगती है मुझे वैसी तुझे भूल नहीं पाऊंगा
कुछ ही महीनों में तू मुझे क्यों भूल जाती है?
{14}
सनम से मिलने मैं हर रोज तो मन्दिर जाता हूं
इशारों वक़्त सब के नजरों में मैं गिर जाता हूं
तरुनाई का इश्क़ ही अंत जीवन का निशान है
इश्क़ का इल्ज़ाम लगा कर घर आखिर जाता हूं।
{15}
पहली मोहब्बत में मशहूर हो गया हूं मैं
मोहब्बत में परिवार से दूर हो गया हूं मैं
इश्क़,मोहब्बत की किस्सा तो मुझ पता नहीं थी
अब पढ़ने-लिखने में भी मजबूर हो गया हूं मैं।
{16}
अरमान है , तुझे पाने तभी तो याद करता हूं
इश्क़ को समझा हूं, तभी तो वक़्त बर्बाद करता हूं
जो इश्क को समझता, वो दौलत को नहीं समझता
दूर हो कर भी मैं कभी नहीं फरियाद करता हूं।
अनुरंजन कुमार “अँचल”
कवि/ शायर/ गीतकार
अररिया, बिहार
यह भी पढ़ें-
१- जुनून
२- सपने