Table of Contents
योग दिवस (Yoga Day)
योग दिवस (Yoga Day) है योग करो
तन, मन को स्वस्थ्य करो।
जीवन सुखमय जीना है तो
सुबह सुबह से योग करो।
लाख दबा की एक दबा है
घर में रहकर ही हो जाता है।
जहाँ भी रहो वहाँ हो जाता
थोड़ा समय है योग हो जाता है।
बड़ी से बड़ी बीमारी भी
योगा से ठीक हो जाती है।
नियमित योगा करने वालों
पर अटैक नहीं कर पाती है।
योगा करने करवाने के
प्रशिक्षण केन्द्र भी चलते हैं।
बड़े बड़े पैसे वाले ज़्यादा ही
वहाँ पर योगा करने जाते हैं।
किसी की रोज़ी रोटी चलती
कोई शौक से भी जाते है।
महिला पुरूष सभी साथ में
वहाँ पर योगा करने जाते हैं।
शिविर भी योगा के लगते हैं
वहाँ पर भी योगा सिखाते हैं।
बूढ़े युवा जवा महिला पुरूष
आपस में मिलके योगा करते हैं।
आज का दिन योग दिवस (Yoga Day) है
बस योगा ही योगा के चर्चे हैं।
टी वी के हर चैनल में देख लो
कहाँ पर हुआ बस योगा के चर्चे हैं
कहाँ कैसे कब योगा होता है
लाभकारी बस ये योगा है।
ऋषि मुनि भी इसको करते थे
तन मन स्वस्थ्य रखता योगा है।
पिता दिवस
पिता तो बस पिता होता है।
ऊपर से कठोर होता है।
अन्दर से नरम भी होता है
घर की छत्र छाया होता है।
मां बच्चों का नाम
पिता से जुड़ा होता है।
घर मेें पिता हो सबको
सुुख चैन भी मिलता है
पिता के रहने के आभार से
हिम्मत हौसला बढ़ाता है।
घर का मुखिया भी सबका
बस पिता ही तो होता है।
पिता के साथ बेटी
सुरक्षित निडर रहती है।
घर के आंगन में चारों ओर
बुलबुल-सी फुदकती है।
पिता के साये में ही
निश्चिंत होकर रहती है।
मां कभी जब डांटती है।
पिता से शिकायत करती है।
पिता की लाडली
बेटी ही तो होती है।
शादी के वाद बेटी तो
बाबुल की हो जाती है।
मुझे फिर से बच्चा बनना है
समय लौटकर फिर दोबारा नहीं आता।
बुढ़ापे से बचपन भी फिर कभी नहीं आता।
बचपन की यादें थी बहुत ही सुहानी।
स्कूल की छुट्टी भी लगती थी सुहानी।
गर्मी का मौसम लागता था सुहाना।
दोस्तो के साथ में पतंग जो उड़ाना।
मस्ती का रहता है बचपन सुहाना।
होता है बचपन सुन्दर सुहाना।
पुरानी किताबों से पन्ने निकाले।
काटे और छांटे पतंग को बनाने।
ठंड्डा कमान उसमें लगाना।
बेल की गोद से उनको चिपकाना।
ऐसे ही घर में पतंग बनाना।
ऐसा था बचपन सुन्दर सुहाना।
गांव के बाहर खलियान जो होते।
उन्हीं मेें जाकर पतंगें भी उड़ाते।
उड़ती पतंगें आपस में लड़ाते।
आपस में सभी दोस्त मस्ती करते।
नदी एक सुन्दर वही से है बहती।
घंटो उसी में सब मिलकर नहाते।
कपड़ों को उतारे उछल कूद करते।
इस पार से उस पार तक तैरते ही जाते।
बचपन के दिन थे सुन्दर सुहाने।
बचपन की यादों के दिन वह सुहाने।
यादें पुराने मन में आती मुझे फिर बच्चा, बनना है।
भगवन वह बच्चा फिर अब मुझको बनना है।
रानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस
आजादी जिसने दिलवाई
वो महारानी लक्ष्मीबाई थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली महारानी थी।
१८जून १८५८ बलिदान दिवस है
शत शत नमन हम करते है।
आजादी की मशाल जलाई
हम उनको को शीश नवाते है।
अग्रेजो की सही गुलामी
उसकी यही कहानी थी।
आजादी को पाने की
लक्ष्मीबाई ने ठानी थी।
सबसे पहले अग्रेजो से
अकेले लड़ी लड़ाई थी।
पेशवा घर में जन्मी थी
वो रानी लक्ष्मी बाई थी।
होश संभाला था जबसे
बस आजादी की ठानी थी।
पढने के ही साथ में उसने
युद्ध कला भी सीखी थी।
तलवार बाजी बचपन में सीखी
और अग्रेजो को ललकारा था
मन ही मन में युद्ध की ठानी थी
ऐसी आजादी की योद्धा थी।
गंगाधर राव पति उनके थे
झाँसी के वह महाराजा थे।
राजा रानी ने मिलकर
अग्रेजो से लड़ी लड़ाई थी।
गलत फेमी के कारण राजा ने
रानी को महल से निकाला था।
फिर भी रानी ने साहस
हिम्मत से है काम लिया था।
महिलाओं को युद्ध प्रशिक्षण
देकर युद्ध कला सिखलाई थी
राजा का जब शक दूर हुआ
तब रानी महल में फिर आई थी।
खोये हुये मनोबल को
राजा को फिर से दिलवाई थी।
पर दुर्भाग्य ने साथ न छोड़ा
और बीरगति भी पाई थी।
अग्रेजो से लड़ते लड़ते
राजा ने वीर गति पाई थी।
रानी पड़ी अकेली फिर
भी हिम्मत नहीं हारी थी।
अग्रेजो से लड़ते लड़ते
स्वमं ही जान गवाई थी।
मरते मरते आजादी की
जो मशाल जलाई थी।
लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस
पर शत-शत नमन हम करते हैं।
महिलाओं की प्रेरणा श्रोत थी
श्रद्धा से नमन वंदन सब करते है।
मां मातृ शक्ति को
मां मातृ शक्ति को नमन प्रणाम करता हूँ।
सुबह दोपहर और शाम हो करता हूँ।
मां मातृ शक्ति है जगत की जननी है।
माँ ही प्रेरणा है पूजा है साधना है।
हर रिश्तों से जुड़ी है माँ है बहन है बेटी है।
हर पति की पत्नी है हर रिश्ते में हर रूप होती है।
बेटी रूप में माँ में समाहित रहती है।
मां के नक़्शे क़दम कदम पर ही चलती है।
माँ की बताई हर राह पर चलती है।
मां का हरदम सहयोग भी करती है।
बहन के रूप में भाई बहनों को
साथ मिलाकर हर पल रहती है।
लड़ती है झगड़ती है भाई बहन के रिश्तों
फिर भी हमेशा साथ जोड़कर भी रखती है।
माँ के रूप में बच्चों की जीवन दायिनी होती है।
ममता लाड़ प्यार दुलार सभी कुछ तो लुटाती है।
माँ की ममता हर बच्चों में होती है।
मां मातृ शक्ति ऐसे ही हर रूप माँ ही रहती है।
ममतामयी मां
मां को तड़फता सिसकता कराहता
देख मन विचलित हो जाता है।
आँखो में आंसू नही मन तड़फ जाता है।
मां की ज़िन्दगी के अंतिम पडाव का ये
हाल देखा नहीं जाता है।
दर्द दिल का सहा नहीं जाता है।
अन्न जल मोह माया सभी तो त्याग दिया है।
सांसो ने जैसे फिर से जकड़ लिया है।
मृत्यु के ऐसे अन्त ने मन को झकझोरा है।
इस समय न कोई तेरा है न मेरा है।
धन न दौलत पति न बेटा न रिश्ते न नाते।
डाक्टर न दवा न कोई नेता
कोई भी कुछ कर पाने में असमर्थ असहाय
निरूत्तर हो गये है।
वाह रे ईश्वर वाह रे जीवन का अन्त
वह विहंगम दृश्य देख जैसे सभी सो गये है।
जिस माँ ने पालपोस कर इतना सामर्थ साहसी बनाया।
उस माँ को इस हाल में देख कुछ नहीं कर पाया।
अपने आपको असमर्थ, असहाय पाया।
जिस माँ को सौ वर्ष जीने की दुआ मांगता था।
उस माँ का ऐसा अन्त देखना बहुत मुश्किल था।
हे ईश्वर अब तो इस करूणामयी माँ का
दुख हरण कर लीजिये।
इस तड़फती ममतामयी माँ का अन्त कीजिए।
और हमेशा के लिये इस तड़फती ज़िन्दगी
से मुक्ति दीजिए।
नर्स दिवस
अस्पताल में रोज़ रोज ही
मरीजों की जो सेवा करती है।
महिला बच्चे बूढ़े जवान हों
सभी की सेवा वह करती हैं।
अस्पताल में डॉक्टर के बाद
नर्स ही सभी काम संभालती है।
इन्जेकशन लगायें दवा भी देती
डाक्टर की लिखी दवा समझतीं है।
दिन हो या रात्रि हो डियूटी
भी हर शिफ्ट में करतीं है।
मरीजों की सेवा धर्म-कर्म है
उसको अच्छे से निभाती हैं।
प्यार से सभी मरीजों की
देखभाल भी करती हैं।
महिला पुरुष जो मरीज हो
हमदर्दी से बात वह करती हैं।
मरीजों की देखभाल में
कोई कभी नहीं रखती हैं।
नर्स का काम मिला जो उनको
सेवा धर्म वह अपना मानती हैं।
नर्सों का घर परिवार होता है
ससुराल, मायका भी होता है।
माता पिता या सांस ससुर हों
सेवा भाव उनका भी होता है।
पति से पत्नी धर्म निभाती
बच्चों की प्यारी माँ होती हैं।
पति बच्चों के साथ में मिलकर
अपना घर परिवार चलाती हैं।
आत्म सम्मान
घर में अपने ही कहते है
अपने आप को बदल लो।
बाहर न सही कम से कम
मोहल्ले में पंगा मत लो।
पहले युवावस्था और
नौकरी का सहारा था।
बस सच कहने का और
सच बोलने का साहस था।
रिटायरमेन्ट की इस उम्र में
न जोश है न ही होश है।
जोर ज़ोर से बोलने में ही
हांफते हो और कांपते हैं।
वी पी बढने से ख़ुद अपने
आपको संभाल नहीं पाते।
बोलने में आपा खो देते हो
गुस्से को संभाल नहीं पाते।
रिटायर हो गया तो क्या हुआ
सच बोलने की हिम्मत रखते हैं।
सच बोलना सच का साथ देना
आत्म सम्मान से भी जीते हैं।
आत्म सम्मान से जीने में
क्या और कैसी बुराई है।
मन के विश्वास में ही तो
बस सच की ही सच्चाई है।
भगवान परशुराम जी
भगवान परशुराम अवतारी थे
पृथ्वी पर अवतरित हुये थे
अक्षय तृतीया को जयंती है
भगवान विष्णु के छटवें अवतारी थे।
पिता ऋषि जमदग्नि उनके
माता रेणुका के पुत्र हुये थे।
ऋषि जमदग्नि सप्त ऋषियों
में से एक महान ऋषि भी थे।
हिन्दु धर्म में त्रेता युग से
द्वापर युग तक अमर रहे है।
रामायण और महाभारत में
परशुराम जी के चरचे बहुत रहे है।
सीता जी के स्वयंवर में भगवान
श्रीराम ने धनुष जो तोड़ा था
परशुराम बहुत क्रोधित हुये थे
शिव जी का पिनाक धनुष वह था।
मध्यप्रदेश का महेश्वर जो
नर्मदा नदी किनारे बसा हुआ है।
वही परशुराम जी जन्म स्थल है
मान्यताओं में यही लिखा हुआ है।
भारद्वाज और कश्यप गोत्र
के कुल गुरु भी माने जाते है।
युद्ध कला के निपुण योद्धा
परशुराम जी माने जाते है।
ब्राह्मण कुल में जन्म लिया
फिर भी योद्धा बहुत ही भारी थे
फरसा उनका अस्त्र भारी था
क्षत्रियों का भी विनाश किये थे।
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में
अक्षय तृतीया को जयंती है।
भगवान परशुराम जी की
सब मिलकर मनाते जयंती है।
भगवान परशुराम की जय
शोक संदेश कोरोना से
शोक संदेश की खबरों से
मन विचलित हो जाता है।
कोरोना की महामारी से
मन बहुत दुखित हो जाता है।
बीमारी बहुत देखी सुनी है
किसी ने ऐसा कहर, नहीं ढाया है।
देश में हा-हा कार मचा हुआ है
कोरोना ने ऐसा आतंक मचाया है।
किसी की माँ किसी ने पिता
किसी ने पति को खोया है।
कोरोना का जो ग्रास बना है
उससे कोई नहीं बच पाया है।
माता पिता बेसहारा हुए हैं
अपना ही बेटा जो खोया है।
इस भयानक महामारी के
डर से सबका मन घबड़ाया है।
अमीर गरीब नहीं देखता
सभी पर हमला करता है।
जिसकी जांच पाज़िटिव हो
उसका बचना मुश्किल होता है।
घर घर में क्रंदन मचा हुआ है
लाशों से शमशान भरा है।
मिट्टी में कंधा देने में भी
अपनों से अपना डरा हुआ है।
फ़ोन की घंटी बजते ही
मन में घबराहट होती है।
खबर शोक संदेश की न हो
आशंका ऐसी होने लगती है।
वाट्सएप मंचों को भी देखो
शोक संदेश की ख़बर होती है।
कोरोना से मरने वालों की
खबरें पढ़ने को मिलती है।
मां तो माँ ही है
मां तो माँ है माँ के
रूप में भगवान है।
मां की सबसे ही
अलग पहचान है।
मां तो माँ ही है माँ ही
जगत की जननी भी है।
मां देवी है माँ भक्ति है।
मां-सी नहीं कोई शक्ति है।
सारा जगत माँ की
ही सब संतान है।
मां का हर बच्चा
आज बड़ा इंसान हैं।
मां बच्चो को अपने
गर्भ से जन्म देती है।
नौ माह बच्चो को
गर्भ में भी रखती है।
बच्चे को गर्भ में कष्ट न हो
इसका भी ख़्याल रखती है।
मां बनने पर अपने आप पर
गर्भ महसूश भी करती है।
जिस माँ के बच्चे न हो
मां बनने को तड़फती है।
मन ही मन में यही सोचती
मां की ममता ऐसी होती है।
मां तो माँ ही है
ममता की मूरत है
जगत में श्रेष्ठ है।
गुरू है पिता की सूरत है।
बच्चा पैदा होते ही
मां माँ कहकर रोता है
बच्चा जब रोता है।
दर्द माँ को भी होता है।
झठ से उठाती है
कलेजे से लगाती है।
अपने आंचल का
दूध पिलाती है।
बच्चा शान्त जब होता है।
सुकुन माँ को मिलता है।
मां का दिल बच्चो के
लिये ऐसे ही तड़फता है।
मां है दर्द माँ को भी
अपने दिल में होता है।
मां तो बस माँ ही है
मां का दिल बड़ा होता है।
गृहणी
घर परिवार में गृहणी ही
ख्याल सभी का रखती है।
रोज सुबह जल्दी उठ जाती
और रात में देर से सोती है।
सबसे पहले सुबह से उठकर
घर आंगन में झाड़ू लगाती है।
सुबह सुबह नल भी आते हैं
घर का पानी भी पूरा भर्ती हैं।
बच्चों की मां, पति की पत्नी
सास ससुर की बहू होती है।
ननद, देवर की भाभी होती
कुछ बच्चों की चाची होती है।
पेट पूजा तो सभी की करती
ख्याल सभी के खाने का रखती।
सुबह सुबह सभी बच्चों को
स्कूल का टिफिन बनाकर देती।
सुबह बड़ों को चाय बनाती
बच्चों को दूध भी देती है।
सास ससुर, पति को नाश्ता
समय पर बनाकर देती है।
नहा धोकर पूजा भी करती
फिर खाना बनाने में लगती है।
किसको कैसा खाना चाहिए
सबका ख़्याल वह रखती है।
दोपहर का खाना शाम का खाना
सब गृहणी को ही करना पड़ता है।
सभी सदस्य जब खाना खा लेते हैं
तब गृहणी का फिर नंबर आता है।
गृहणी की यही दिनचर्या है
थककर चूर-चूर हो जाती है।
सोने का जब समय हुआ तो
पति का साथ मिल पाता है।
रोज की दिनचर्या का यही
क्रम जारी हमेशा ही रहता है।
गृहणी जो एक नारी होती है
जिससे घर परिवार चलता है।
कोरोना की बीमारी से
हाहाकार मचा हुआ है
इस कोरोना की बीमारी से।
घर परिवार मोहल्ले में
मौतें हो रही महामारी से।
किसी की माँ किसी का बेटा
लपेटे में आया कोरोना से।
पति पत्नी भी संक्रमित हुए
इस कोरोना की बीमारी से।
डर भय सबके मन में फैला
आतंक मचा है कोरोना से।
शासन प्रशासन लगा हुआ है
जीत जायें इस कोरोना से।
स्वस्थ्य विभाग लगा हुआ है
तत्पर अपनी सभी सेवाओं में।
डाक्टर नर्सों को निगल गया
मरीजों की करती सेवाओं में।
क्या लाक डाउन लगाने से
कोरोना का ही इलाज़ सही है।
सच कहना ये भी मुश्किल है
हाँ मास्क और दूरी सही है।
अर्थ व्यवस्था चौपट न हो
यह भी तो देखना ज़रूरी है।
बाजार बंद आवागमन बंद
पर पेट भर भोजन भी ज़रूरी है।
सेवा भाव और भक्ति भाव हो
ईश्वर में भी श्रद्धा भाव ज़रूरी है।
कोरोना के इस कहर से बचने
सभी व्यवस्थाएँ भी ज़रूरी हैं।
वाधायें और विपदाएँ सभी तो
समय पर आती जाती रहतीं है।
संयम और साहस न छोड़ना
मुसीबत में कठिन परीक्षा होती है।
कौन कोरोना हो सकता है
कौन कोरोना हो सकता है
कहना बहुत ही मुश्किल है।
छंद्म भेष में जो आया है
उसको समझना मुश्किल है।
रावण का वंशज लगता है
छंद्म भेष वहीं रखते थे।
अदृश्य रूप धरकर ही वो
अक्सर हमला भी करते थे।
विश्व विजेता रावण ही था
कोरोना भी विश्व में फैला है।
आतंक मचाकर दुनिया में
अदृश्य कोरोना अकेला है।
प्रकृति का कोई कहर लगता है
या जो अदृश्य रूप में फैला है।
प्रकृति का रूठना लाजिमी है
ऐसा भय जो पृथ्वी पर फैला है।
अपने आपको भगवान समझते
ऐसा गुरूर भी टूटना ज़रूरी है।
जरा-सी सर्दी खाशी आई और
कोरोना होने की लगती बीमारी है।
सांस लेने में दिक्कत होती है
सांसें भी इससे थम जाती है।
आक्सीजन समय पर नहीं मिली
मरीज की मौत भी हो जाती है।
कोरोना कब किसको हो जाये
मास्क पहनना भी ज़रूरी है।
समय समय पर हाथों को धोना
और आपस की दूरी ज़रूरी है।
एक कातिल बीमारी हवा रूप में
कब किसके अन्दर घुस जाती।
कोरोना के रूप में अदृश्य रहती
सांसों को जो अवरोध है करती।
मजदूर दिवस
एक मई मज़दूर दिवस है
गरीब अमीर का अन्तर है।
भेद भाव आपस में होता
छोटे बड़े का अन्तर होता।
पहचान काम से होती है
मुहर वही लग जाती है
मजबूरी जब आती है
पेट में भूख जब लगती है।
खाली पेट में खाने को
रोटी का टुकड़ा मिल जाये
बदले में काम मिले कोई
इसमें काहे का डर भाई।
जीवन की आपा धापी में
कुछ तो करना पड़ता है।
मजदूरी का काम मिले तो
काम वही करना पड़ता है।
पढ लिखकर भी काम मिले न
कब तक बोझ बने बैठोगे।
मजबूरी में मजदूरी करना
और ईटा पत्थर ही ठोओगे।
मजदूर दिवस जब आता है
कवि अपनी कविता लिखता है।
नेता इस पर भाषण देता है
बस मज़दूर दिवस हो जाता है।
कुली गिरी जो करता है
वह भी तो मज़दूर होता है।
ईंटा रेता गिट्टी पत्थर जो
जो सिर पर रखकर ढोता है।
घर परिवार का पेट भरने में
काम कोई छोटा न होता
काम तो बस काम होता है
मजदूरी भी काम होता है।
राम नाम का
राम नाम का सुमिरन करलो
जीवन नैया को पार लगा लो।
मोह माया सब त्याग करो
भव सागर को पार भी कर लो।
मानुष तन अनमोल मिला है
व्यर्थ में इसे गंवाओ ना।
राम नाम का सुमिरन करलो
व्यर्थ में समय गंवाओ ना।
श्रद्धा भाव और भक्ति में
अपने मन को लगाओ।
राम नाम का भजन करो
राम नाम का गुण गाओ।
सिया राम दो शब्द हैं
महिमा है अपरम्पार।
सीताराम का नाम लो
हट जायें सारे दुख दूर।
राम नाम स्मरण करो
हो जायेगी नैया पार।
सब क्लेश कट जायेगें
जीवन का है उद्धार।
जय श्री राम के नाम से
जीवन का कल्याण है।
राम नाम का भजन करो
सभी का होगा कल्याण है।
हनुमान जयंती
रूद्र रूप अतुलित बलशाली
जय हनुमान बजरंग बली है।
महादेव के अवतारी प्रभु हैं
जय जय-जय बजरंग बली है।
राम काज करने को जन्में
अंजनी गर्भ से जन्म लिए।
केशरी नंदन वह कहलाए
सेवा राम की करने आए।
पवन गति से आये थे
पवन पुत्र भी वह कहलाए।
सबके संकट भी हरते थे
संकटमोचन नाम कहलाए।
सीता मैया का हरण हुआ
श्रीराम लक्ष्मण से मिलन हुआ।
मैया सीता खोज में निकले
लंका में विभीषण से मिलन हुआ।
सीता मैया का पता लगाए
सोने की लंका को जलाए।
लक्ष्मण जी को शक्ति लगी
हिमाचल से संजीवनी लाए।
राम रावण का युद्ध हुआ
राम लक्ष्मण के प्राण बचाए।
बल बुद्धि और चतुराई से
राम भक्त हनुमान कहलाए।
महावीर बजरंग बली है
मारूति नंदन भी वह हैं।
संकट में रक्षा करते हैं
महाबली बल साली वह हैं।
भूत पिसाच पास न आवे।
नाम लेत सब दूर ही भागें।
साधु संतों के हैं रखवाले
कांधे गदा देख सब भागें।
जय जय-जय बजरंग बली
जय हो मारूति नंदन महाबली।
बारिश की बूंदों से
बारिश की बूंदों से है सबका मन हर्षाया है।
वर्षा के इस मौसम ने ऐसा कर दिखलाया है।
गर्मी से राहत पाई है रिमझिम वर्षा आई है।
आसमान में बादल छाये वर्षा की ऋतु आई है।
चारों तरफ़ छाई है देखो हरियाली ही हरियाली है।
आहमान में बदली छाई विलकुल काली-काली है।
सजनी के दिल में अगन लगी है साजन विन वह भी अकेली है
धकधक करके दिल धड़कता
साजन बिन बारिश बनी पहेली है।
आंगन में बैठी इन्तजार में साजन के घर आने को।
रिमझिम रिमझिम पानी से भिगो रही है तन मन को।
बारिश की बूंदों से तन को गीला करते बैठी है।
मन की आग बुझाने को साजन बिन बैठी रूठी है।
पितृ पक्ष
हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष को
श्रद्धा पूर्वक सभी मनाते हैं।
सितम्बर के भादों माह में
पन्द्रह दिनों तक चलते हैं।
पूर्णिमा से अमावस्या तक
पितृ पक्ष को श्रद्धा से मनाते हैं।
माता पिता को मृत्यु तिथि पर
श्राद्ध विधि विधान से करते हैं।
पन्द्रह दिनों तक सभी लोग
अपने पितरों को जल देते हैं।
मृत्यु तिथि पर जौ चावल का
पिंड दान भी श्रद्धा से करते हैं।
बड़ा पुत्र ही रोज़ सुबह
स्नान करके जल देते हैं
ताजे पकवान बना करके
कौवों को रोज़ खिलाते हैं।
माता पिता की मृत्यु के बाद
उनकी आत्मा तृप्ति को करते हैं।
श्रद्धा पूर्वक किए गये इस कर्म
को पितृ श्राद्ध ही कहते हैं।
पूर्वजों और स्वमं को भी
आत्म शांति इससे मिलती है।
पितृ पक्ष में एक बार श्रद्धा से
पूर्वजों की श्राद्ध सभी करते है।
अनन्तराम चौबे ‘अनन्त‘
जबलपुर
यह भी पढ़ें-
१- सपने
२- जुनून
1 thought on “योग दिवस (Yoga Day) : अनन्तराम चौबे”