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यमराज (Yamraj) के दर्शन
यमराज (Yamraj): भूले बिसरी यादों को स्मरण करते हुए कई यादें आयी लेकिन आज लिखने के लिए कुछ विशेष ही मन प्रेरित हुआ उस याद को लिखने जिसे अविश्वसनीय, अल्पनीय और रहस्य ही कहा जायेगा। यह घटना बचपन की न होकर भरी जबानी की है जब यमराज के दर्शन हुए।
यही कोई २७-२८ वर्ष की उम्र थी। शिक्षक बने पहला ही वर्ष चल रहा था। मेरे गाँव से लगभग आठ किलोमीटर दूर के गाँव में प्राथमिक शिक्षक नियुक्त हुआ था। उसी वर्ष मेरा घर नया बना था, पक्की दीवार का खपरेल था। बड़े खपरा (अंग्रेजी खपरा) का छत था। खपरा छाने व पानी के रिसाव को मिटाने का अच्छा खासा ज्ञान मुझे आता था। वरसात में जब कभी तेज बारिस से पानी टपकता तो घर का हर सदस्य मुझसे कहता और में सहजता से ही पानी का रिसाव मिटा देता था।
घटना के दिन मैं स्कूल से लौटा ही था कि बरसात की पहली तेज वारिस शुरू हो गई। माँ ने कमरे से बाहर आते ही कहाँ-बेटा कमरे में बहुत पानी चूल्हे पर टपक रहा है। मैंने कपडें उतारे और सीधा कमरे में चला गया। लाठी से खपरों को खिसकाया तो पानी का टपकना कुछ कम तो हुआ पर पूर्णतः नहीं रूका। ध्यान से देखने पर लगा कि खपरे का एक सिराना (कोना) नीचा है, उसके नीचे सपोट देना पड़ेगी। मैं बगैर किसी को बताये, दीवार पर लगी खूटी के सहारे, सात फुट ऊंचीअनाज की कोठी (बिंडा) पर चढ़ गया, जहाँ से खपरे में सपोट दी जिससे पानी टपकना बंद हो गया। तभी पत्नी ने आवाज़ लगा दी, अजी चाय ठंडी हो रहीं है, जल्दी आओ। मैंने आवाज़ सुनते ही उतरने खूटी की ओर पैर बढ़ाया ही था, धड़ाम। याद नहीं क्या हुआ।
मैं पाता हूँ कि एक सफेद स्वच्छ पोशाक वाला व्यक्ति मेरे साथ है तथा मैंने भी सफेद वस्त्र पहने हैं। दोनों पलंग से लगभग चार फुट ऊपर सिरहने (मेरे शरीर के सिर की ओर) हवा में खड़े हैं। घर वालो के सारे क्रियाकलाप, रोना धोना विलाप, वार्ता सुन रहे हैं, कभी-कभी मैं बीच में बोलने की कोशिश करता हूँ, तो वह अजनबी इशारे से रोकता है और बात नहीं कर पाता। यह अवश्य है कि मुझे किसी प्रकार के दुःख व सम्बंधो विछोह जैसा कष्ट नहीं हो रहा था। चलचित्र की भाँति मेरे शरीर पर विलाप और परिजनों भागदौड़ दिखाई दे रही थी। सब मुहल्ला पड़ोस के लोग एकत्रित हो गये। बडेभैया लगभग दो किलोमीटर दूर से किराये की जीप लेकर आ गये। अस्पताल ले जाने की सारी तैयार पूर्ण की गई।

मेरे शरीर को जीप में रखकर, जीप चालू की गई। पता नहीं क्या हुआ बार-बार प्रयास के बाद भी जीप स्टार्ट नहीं हुई। तभी पिताजी ने डांटते हुआ कहाँ, क्या इसी में लगे रहोगे? बैलगाड़ी तैयार करो, बैलगाड़ी में कपड़े बगैरा रखे गये। इस बीच कुछ लोग शरीर की नाड़ी देखते, कुछ सीने की धडकन जाँचते है। कुछ जाने की सलाह देते है, कुछ कानों कान खुसरफुसर करते है। अन्ततः शरीर को बैलगाड़ी पर रखा जाता है। अजनबी स्वच्छ ध्वल परछाई स्वरूप आभा ने कहा-बेटा जाओ, तुम्हारे परिजन बहुत दुःखी हो रहे है, लगभग दो घंटे से परेशान है। इतना कहते ही छाया रूप आत्माएँ गायब हो गयी। मेरा शरीर चैतन्य हो गया, मैंने भीड़ का कारण पूँछ सहजता से समझाने की कोशिश की, पर सभी को हर्ष के साथ दु: ख भी था।
मैंने अपने अनुभव को बहुत ही कम लोगों से सांझा किया क्योंकि मैं स्वयं ही आजतक अचंभित, यमराज के दर्शन पर हर कोई विश्वास नहीं करेगा।
राजेश कुमार कौरव सुमित्र
नरसिंहपुर
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