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संघर्ष (Conflict)
संघर्ष (Conflict): कहानी के पात्र
सुमन- माताजी (माधव की)
माधव- पति (पिता)
सिमरन- पत्नी (मां)
पुष्पा, कनिष्का, सोनू- (बच्चे)
कनिष्का (बेटी)
मिर्जापुर गाँव में एक परिवार रहता था। उसी गाँव में माधव का परिवार भी रहता था। उस परिवार में माधव की माताजी, पत्नी व तीन बच्चे रहते थे। माधव की बड़ी बेटी का नाम पुष्पा, छोटी बेटी का नाम कनिष्का व बेटे का नाम सोनू था। परिवार में सभी लोग प्रेम से रहते थे, बस कनिष्का को सब लोग थोड़ा काम प्यार करते थे। सुमन जी चाहती थी कि पुष्पा के बाद उनका वारिस जन्म ले पर वारिस की जगह उनके घर में कन्या पैदा हुई, पर सिमरन जी खुश थी कि एक और लक्ष्मी ने उनके घर जन्म लिया है। फिर सात साल के बाद माधव के घर में पुत्र ने जन्म लिया, जिससे सुमन जी बहुत खुश थी। घर में चारो ओर खुशियाँ ही खुशियाँ थी। लेकिन घर में सबका बर्ताव कनिष्का के लिए बदलता गया। कनिष्का अपनी दीदी और भाई दोनों से बहुत प्यार करती थी।
कनिष्का से सभी लोग घर का अधिकतर काम करवाते थे, परन्तु फिर भी कनिष्का के मन में किसी के लिए घृणा का भाव नहीं था, फिर भी कठिन परिस्थितियों में कनिष्का लग्न से पढ़ती थी और हमेशा अपनी कक्षा में हमेशा अव्वल स्थान में आती थी।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और कनिष्का कक्षा १० में पहुँच गई। परिवार के सभी लोगों का काम पूरा करके कनिष्का रात में लालटेन कि मदद से अपनी पढ़ाई करती थी। परीक्षा का समय भी नज़दीक आ गया और कनिष्का ने सफलतापूर्वक अपनी परीक्षा दे दी और २ महीने बाद परीक्षा का परिणाम आना था और जब परिणाम आया तो कनिष्का ने अपने विद्यालय में सर्वाधिक अंक हासिल कर सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था। फिर भी कनिष्का के परिवार वालों का रवैया नहीं बदला और उनके नजरो में आज भी कनिष्का के लिए कोई प्रेम भाव नहीं था। फिर भी कनिष्का के मन में उनके लिए कोई घृणा नहीं थी।
समय का चक्र चलता गया और अब कनिष्का १२वी कक्षा में चली गई और इंटर की परीक्षा भी में कनिष्का ने ज़िला टॉप कर सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। उसकी इस सफलता से विद्यालय प्रशासन ही नहीं अपितु गाँव में भी ख़ुशी का माहौल था। कनिष्का के परिवार वाले भी बाहर से खुश थे परन्तु अंदर ही अंदर वह नाखुश थे, क्योंकि उन्हें कनिष्का से कोई लगाव नहीं था वह सिर्फ़ कनिष्का को एक बोझ मानते थे।
अब कनिष्का के सामने आगे की पढ़ाई को पूरा करने की समस्या थी, क्योंकि उसे अपने परिवार से पढ़ाई के लिए एक रुपया तक नहीं मिलता था। फिर भी कनिष्का ने हिम्मत नहीं हारी। उस पता था कि परिवार से उसे कभी कोई प्यार नहीं मिलेगा, फिर भी वह निराश नहीं हुई। घर का सारा काम पूरा करके घर-घर जाकर बच्चो को ट्यूशन पड़ा पडाकर अपना ख़र्चा निकालने लगी इसी तरह उसने अपना बी. ए. की पढ़ाई पूरी कर स्नातक में भी टॉप किया।
कनिष्का ने एम. ए की पढ़ाई हिन्दी साहित्य से की और हिन्दी में भी उसने टॉप किया और अपने कॉलेज से एक वहीं थी जो गोल्ड मेडलिस्ट के लिए चयनित हुई थी। कनिष्का ने अपने कॉलेज के साथ-साथ अपने अध्यापकों का नाम भी रोशन किया। अब उसके सामने यह समस्या थी कि वह आगे की पढ़ाई केसे करें?
कनिष्का ने निश्चय किया कि वह हिन्दी विषय से ने परीक्षा उत्तीर्ण करके पी. एच डी करेगी।
नेट परीक्षा का दिन आ गया और कुछ दिन बाद उसका परिणाम भी घोषित हो गया और कनिष्का ने नेट के परिणाम में अपना ज़िला टॉप किया था, उसे इस बात की ख़ुशी थी और एक उम्मीद थी कि शायद अब परिवार वाले उस प्यार करेंगे और उसे बेटी के रूप में भी स्वीकार कर लेंगे पर उसकी यह उम्मीद टूट गई।
पी एच डी पूरी करके वह कॉलेज में पढ़ाने लगी। कनिष्का अपने परिवार से बहुत प्यार करती थी, इसलिए हर महीने वह अपने वेतन से बीस हज़ार (२०००) रुपए शुभचिंतक के नाम से अपने परिवार को भेजा करती थी। कनिष्का ने बचपन से ही अपने जीवन में अनेक परेशानियों का सामना किया, बिना हिम्मत हारे उसने सभी परेशानियों का डटकर सामना किया, जिसके फलस्वरूप आज वह कॉलेज की टीचर बन गई।
महापुरुषों ने सच ही कहा है जीवन में अनेक बधाए आयेगीं और जो मनुष्य उनका डटकर सामना करेगा वहीं जीवन में सफल हो पाएगा। कनिष्का की कहानी भी इसी का एक उदहारण है।
मानसी जोशी
अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड)
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