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भीगी पलकें (wet eyelids)
दोस्तों… रीना सिन्हा जी देश की जानी-मानी लेखिका हैं… इन्होंने बहुत सी कहानियों का सृजन किया है… आज हम इनके द्वारा लिखी दो कहानियां wet eyelids- भीगी पलकें तथा वह लड़की लेकर आये हैं… तो आइये रीना जी की कहानियों का आनन्द लेते हैं…
सुबह से ही मूसलाधार बारिश और बिजली चमक रही थी। एक बार फिर बिजली दोगुनी ज़ोर से चमकी और जब खिड़की बन्द करते हुए मैंने बाहर झांका तो एक हल्का-सा साया नज़र आया। मैंने सोचा कौन हो सकता है ऐसी तेज़ बारिश में? अचानक बिजली की चमक में वह फिर दिखी, बूढ़ी-सी एक औरत…बेबस कमजोर और अकेली, शायद थी वह थोड़ी-सी पगली भी थी। तेज़ हवा और बारिश में भींगती सड़क के किनारे अकेली खड़ी थी, बिल्कुल कृशकाय…ठंढ से कांपती जाने किस अभागे की बूढ़ी माँ थी वो।
मुझे रहा न गया, मैं जल्दी-जल्दी बाहर आई और जब मैंने पास जाकर देखा तो फटे कपड़ों में तन छुपाये, अपनों से मिली पानी की एक बोतल और पुरानी चादर को सीने से लगाये चुपचाप बारिश में भींगती खड़ी थी। दुखी लाचार और असहाय, उम्र के बोझ से झुकी कमर, उसकी हालत मुझे विचलित कर गई। मैंने घबरा कर पूछा, कौन हैं आप, यहाँ कैसे आ गईं …अकेली क्यो भींग रही हैं?
मेरे सवालों को सुनकर उसनें मेरी तरफ़ देखा। मेरे सवालो से भी कहीं गहरे सवाल उन आंखों में भरे थे। जाने बारिश से भींगी थी पलकें या उन पलकों में आँसू भरे थे। उन भींगी पलकों को देख, मेरी रूह कांप गई। अपनी धीमीं आवाज़ में वह बस इतना ही कह पाई “मेरे घरवाले मुझे यहाँ छोड गए”। जाने किस-किस का नाम बुदबुदा रही थी वो। जाने किसे याद करने की असफल कोशिश में लगी थी। मैं कुछ और देख सुन न पायी। मेरी सारी चेतना सुन्न-सी हो गई, मुझे लगा आज मानवता शायद कहीं खो गई।
शाम से अब रात हो गई और बारिश के साथ ठंड भी बढ़ गई थी। धीरे-धीरे कुछ भीड़ भी जुट गई। पर कोई उसे वहाँ रहने देने को तैयार न था। कुछ समझदार लोगों ने कहा, जल्दी से इस बुढ़िया को यहॉं से हटाओ… यहाँ मत रखना इसे। जाने कहाँ से ये मुसीबत आ गई। मैंने कहा-शायद इसकी यादाश्त खो गई है और इसके घरवाले यहाँ छोड़ गए हैं लेकिन हमलोग इसे यूँ ही भटकनें नहीं दे सकते। मेरी बातें सुनकर एक भले लड़के ने अपनी माँ से माँगकर उस बुढ़िया को कपड़े दिए और फिर उसकी मदत को पुलिस बुला लाया। वह पगली वहीं गीले कपड़े बदलने लगी, कितनी बेबस होगी वह ठंड से। मैं भागकर घर से उसके लिए खाने का कुछ सामान ले आयी। भूख से मज़बूर वह पुलिस जीप में ही जल्दी-जल्दी खाने लगी।
जब बुढ़िया पुलिस की गाड़ी में बैठ वृद्धाश्रम चली तो लोगों नें सोचा चलो बला टली। किसी ने कहा, अच्छा है सही जगह पहुँच जाएगी। मैं बुत बनी सोच रही थी, क्या वृद्धाश्रम ही सही जगह थी उसकी? क्या उस बुढ़िया के बच्चों को उसे इस तरह सड़क पर छोड़ते ज़रा भी हृदय नहीं काँपा? सैकड़ों सवाल मेरे अंतर्मन को झकझोर रहे थे।
उस रात नींद मेरी आंखों से कोसों दूर थी। वह लाचार, कमजोर, कांपती बूढ़ी काया मन को बार-बार झकझोर रही थी। कैसी और कहाँ होगी वो? शायद किसी वृद्धाश्रम में सोई होगी, या अपनो की स्मृति से विह्वल, भींगी पलकें लिए रात भर रोती रही होगी।
काश उस बुढ़िया के बच्चे उसे ढूँढ कर घर ले जाते, काश उन बूढ़ी आंखों की बेबसी समझ पाते। क्यो छोड गए उसके अपने? क्यो किसी को भी उस पर तरस न आया? क्या कभी किसी को उसकी याद आएगी? कहीं मर खप गई तो, नहीं नहीं… इसके आगे मेरी सोच भी थम गई। इतने सवालों के बवंडर और जवाब एक भी नही…
वह लड़की
करीब एक साल से lockdown की वज़ह से घर में बंद रहने के बाद हमलोग का पुरी घूमने का प्रोग्राम बना। कोरोना का डर था मगर अपनी कार से जाना था इसलिए मैं राजी हो गई। पूरी पहुँचकर हम लोगों नें वहाँ के खूबसूरत समुद्रतट का मज़ा लिया और कोणार्क सूर्य मंदिर देखा। मैं बहुत खुश थी कि पूरी का जग्गनाथ मंदिर में दर्शन करूँगी लेकिन हम मंदिर नहीं जा पाए क्योकि तब वह पर्यटकों के लिए नहीं खुला था।
मंदिर नहीं जाने की वज़ह से एक पूरा दिन था हमारे पास तो मैंने पास के एक गाँव गोपालपुर जाने की सोची जो कि एक हेरिटेज गाँव है और अपने पट्टचित्र पेंटिंग्स के लिए प्रसिद्ध है। मुझे बहुत दिनों से इक्क्षा थी वहाँ जाने की और जब वहाँ पहुँची तो वहाँ के सीधे साधे लोगों की असाधारण प्रतिभा को देखकर दंग रह गई। गाँव हर छोटे-छोटे घर में न जानें कितनी सुन्दर पेंटिंग्स लगी थी। गाँव का हर घर सुन्दर कलाकृतियों से सजा था और वह लोग हमें बुला-बुला कर अपनी पेंटिंग्स दिखा रहे थे। उन लोगों नें और उनकी कला नें मेरा मन मोह लिया, मैंने पेंटिंग और कुछ कलाकृतियाँ खरीदीं और इन्हीं सब बातों में कब दिन निकल गया पता ही नहीं चला।
वापस लौटनें का वक़्त हो चला था, शाम हो गई थी और हम वापस लौट रहे थे तभी गाँव का एक आदमी अपने घर से निकल हमारे पास आया और हमें अपनें घर आकर पेंटिंग्स दिखाने का आग्रह करने लगा। मैंने कहा हम पेंटिंग्स खरीद चुके हैं, पर वह कहने लगा चाहे खरीदिये नहीं पर बस एक बार देख लीजिए। मेरा दिल भर आया उसकी बात सुनकर और मैं इनकार नहीं कर सकी। उसका घर सामने ही था, वह हमे अंदर ले गया।
बिल्कुल छोटा से कमरा था जो उसकी बनाई पेंटिंग्स से भरा था। उसकी पत्नी बाहर बरामदे में बैठी एक कलाकृति को पेंट कर रही थी जो हमें देख कर शर्मा कर अंदर चली गई। वह अपनी पेंटिंग्स दिखाने लगा और अपने बारे में बता भी रहा था। उसने बताया कि उसकी एक बेटी है जो दसवीं में पढ़ती है और वह बहुत अच्छा गाना गाती है। हमारे मना करनें पर भी उसने अपनी बेटी को आवाज़ लगाई और वह तुरंत आ खड़ी हुई। साथ में एक करीब दस साल का बच्चा भी तबला लेकर आ गया जो उसका भाई था। बहुत ही साधारण से घर के ही कपड़े पहने थी, न कोई दिखावा न ही कोई सजधज, बस एक मीठी-सी मुस्कान लिए आई और आते ही उन दोनों नें हमारे पैर छू लिए। उस आदमी नें अपनी बेटी को गाना सुनाने के लिए कहा और बिना किसी हिचक के वह गानें लगी और साथ में उसका भाई तबले पर थाप दे कर बजाने लगा। जैसे ही उसने गाना शुरू किया मैं चौंक गई।
वह शास्त्रीय संगीत पर आधारित कोई लोक गीत गा रही थी जो कि एक भजन था। उसकी सधी हुई आवाज़, पक्के सुर और ताल पर उसकी पकड़ देख कर मैं हैरान थी, साथ ही उस छोटे से बच्चे को तबला बजाते देख मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था। मैं अपलक, मंत्रमुग्ध-सी उसके गानें में खोई हुई थी, गाना ख़त्म हुआ तो मेरी तंद्रा टूटी। कितना सुंदर गा रही थी वह लड़की, कितनी प्रतिभा थी उसमें। उसके बाबा ने बताया कि वह गाना सीख रही है। इतनी ग़रीबी में भी संगीत के लिए उसकी ललक देखकर मैं हैरान थी। उस छोटे से घर में इतनी सारी प्रतिभा थी कि मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या बोलूँ। तुमने बहुत अच्छा गाया बस इतना ही बोल पायी मैं…उसे कुछ पैसे देना चाहती थी पर पैसे देना उसकी कला का अपमान होता। वह लोग कलाकार थे, बिना कारण पैसे नहीं लेते।
हम वापस होटल लौट रहे थे पर मैं रास्ते भर उस लड़की के बारे में सोच रही थी। मैं सोचने लगी क्या उसकी प्रतिभा को सही अवसर मिल पायेगा? कितनी ही ऐसे लोग हैं और ऐसी प्रतिभाएँ छिपी हैं हमारे देश के कोने-कोने में, क्या वह आगे आ पाते हैं? या खो जाते हैं ग़रीबी के अँधेरों में। इसके पहले की वह खो जाएँ बहुत ज़रूरत है उन्हें पहचान कर आगे लानें की और मान देने की…
तो ये थी मेरी कहानी उस लड़की की जिसकी प्रतिभा नें अचानक मुझे चौंका दिया था। उम्मीद करती हूँ मेरी कहानी आप सबको अच्छी लगी होगी। तो चलती हूँ… फिर मिलूँगी किसी और कहानी के साथ… सबको आदर और आभार…
रीना सिन्हा
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