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भैया का बलिदान (sacrifice of brother)
दोस्तों संजय गुप्ता ‘देवेश’ जी एक बेहतरीन साहित्यकार हैं… इन्होंने अब तक दर्जनों कहानियों का सृजन किया है… आइये उनकी कहानियां sacrifice of brother (भैया का बलिदान) तथा बड़ी पूजा को पढ़ें…
भैया… आज रक्षाबंधन है। आपकी बहुत याद आ रही है। याद क्या …बचपन में जब से होश संभाला है, तब से आपको याद कर रही हूँ। एक चलचित्र-सा गुजर रहा है मेरी आंखों के सामने। छोटा-सा घर था अपना। पापा ने बाहर के ही एक कमरे मे, किराना की दुकान खोल रखी है। उसी से बस अपने घर के चार लोगों का गुज़ारा होता रहा।
पर यह स्वर्ग था और है, मेरे लिये। बचपन में, आप अपनी हरेक अच्छी खाने की वस्तु, मेरे लिये छोड देते थे। आती ही कम थी घर में। बढे हुए घर ख़र्च में गिनी जाती थी। आप कभी पेट दर्द का, कभी बाहर दोस्त के यंहा खा लिया, जैसे बहाने देते थे, ताकि आपके हिस्से की वह चीज मुझे मिल जाये। हर समय मेरा ध्यान रखना। ग़लत बोल गयी। अपना छोडकर मेरा ही ध्यान रखना।
मैं बडी हुयी। स्कुल जाने लगी। कितना ध्यान रखते थे, अपनी इस छोटी बहिन का। पहले मुझे छोडते और फिर भागकर अपने स्कुल जाते। लाते भी मुझे साथ। अरे …शायद ही कभी मुझे बस्ता उठाने दिया होगा।
मौहल्ले में, बच्चों के साथ खेलती, तो आप पास में खडे रहते। हार केसै जाये आपकी छोटी बहन? कभी तो आप, किसी को पीट भी देते थे। सभी कहते हैं और मम्मी, पापा भी कहते हैं कि आप मेरे बडे भाई और पापा, मम्मी भी रहे हो। घर पर मुझे पढाते थे। आपने, अपने लिये सपना नहीं देखा। पर आपकी आंखों में, मेरे लिये सपना बसता था।
आप कालेज में दूसरे साल में थे। एक दिन घर पर कह दिया कि आपका पढाई में बिलकुल मन नहीं लगता। आपने पढाई छोड दी। पिछले साल मैंने आपका संदूक खोल कर देखा था। प्रथम और दूसरे साल की, मार्क शीट देखी। ८०% अंक। वाह भैया! समझ में आ गया था। मेरी पढाई के ख़र्च के लिये और पापा की सहायता के लिये, आपका छोटी बहन के लिये बलिदान और आपने यह दुकान सम्भाल ली।
फिर मेरी टयूशन, कोचिंग का खर्चा, फिर मेरा मेडिकल में चुनाव, हास्टल और कालेज का खर्चा, लाखों रुपये लगे होंगें ना आपकी इस छोटी बहिन के डाक्टर बनने पर। नौकरी लगते ही, आपके चेहरे पर चमक देखी थी। मानो डाक्टर मैं नहीं, आप बने थे। उसी आपके संदूक में देखा था, चुपके से। चालीस लाख का लोन लिया था आपने। इतने सालों तक अपने आप को कोल्हू के बैल की तरह खपते रहे। मेरे लिये।
मैंने सोचा था कि डाक्टर बन गयी। आपको ओर तकलीफ नहीं होने दूंगी। पर आप मेरे बडे भैया से, बडे भाईसाहब बन गये। मेरे हाथ पीले कर देने की दिन रात चिंता और मेरे पसंद के डाक्टर मित्र के हाथ, मुझे सौंप कर, कन्या दान कर, आपके चेहरे पर मैंने अथाह उल्लास और ख़ुशी देखी थी। आपकी वह नन्हीं बहन, एक डाक्टर बहन, परायी हुयी।
परायी ही कंहूगी। जो कागजात आपके बक्से में, देख रहीं हूँ, आपने कब बताये मुझे। पराया ही तो समझ बैठे थे। इन्हीं कागजातों के बीच दो चिटठीयाँ भी थी। आपने लिखी, अपने किसी प्यार को। माफी के साथ, सम्बध बनने से पहले ही तोड लिया और भी कहीं, मेरे लिये अपनी कुर्बानियाँ छुपा रखी हों तो बता दीजिये? पर आपने मेरे लिये इतना सब कर दिया और छुपा लिया। अपना बहन के लिये, कर्तव्य समझा होगा। है ना। तो मैं भी आपकी बहन का कर्तव्य निभाऊंगी। माँ की बतायी एक बात सभी से, अपने आप से छुपाऊंगी। जीते जी और मरते दम तक।
माँ मृत्यु शैया पर थी। आठ महीने पहले। आपने मुझे बुला लिया था। समय आ चुका था। मैं, डाक्टर हो कर भी लेखनी नहीं टाल सकती थी। माँ ने, मेरे कान में कहा था, कि यह तेरा सगा भाई नहीं है। छः साल तक संतान नहीं हुई, तो गोद लिया था। गाँव छोडकर, शहर आ बसे। ईश्वर की लीला देखो। चार साल बाद तू भी आ गयी। तू इसका सगे भाई से भी ज़्यादा आदर करना …और सांस टूट गयी।
माँ यह तुमने क्या कह दिया? नहीं भी कहती तो भी, इस दुनिया में मेरा भाई, मेरा भगवान है। सगा और सौतेला। कुछ नहीं होता। बस भैया, अगर लेश मात्र भी मेरे मन में, सौतेला भाई का खयाल आया, तो मुझे भगवान भी माफ़ नहीं करेगा। बस यही बात, मैं, आप से छुपाऊंगी कि माँ ने मुझे यह बता दिया।
इस बार कोरोना की वज़ह से, मैं आपको राखी बाँधने नहीं आ सकी। पर हर दिन सुबह उठते ही, मैं आपकी तस्वीर को नमन करके, आशीर्वाद लेती हूँ। पर हाँ, मैंने भी प्रतीक्षा कर ली है। पुरी करके ही मानूंगी। आख़िर एक महा जिद्दी भाई कि उससे भी बडी जिद्दी बहन जो ठहरी। अगली राखी तक, मैं मेरी भाभी लेकर ही आऊंगी। मेरे प्यारे भैया के लिये, दुनिया की सबसे अच्छी दुल्हन और मेरी भाभी।
बड़ी पूजा
रोज़ की दिनचर्या थी। पंडित राधेशयाम शर्मा जी ने मंदिर में, फ़र्श साफ़ किया। साथ-साथ पंडिताइन पानी की बालटीयाँ उंडेल रही थी। और वह पानी सूत रहे थे। फिर नहा धोकर, भगवान कृष्ण और राधा के वस्र बदले। श्रृंगार किया। ढोल, ढपली की मशीन लगी थी। वह चालू की। आरती स्पीकर पर बजने लगी। यह भी अच्छा प्रबंध है। भक्त चाहे ना हों, भक्ति पूरी गुंजायमान रहती है। श्रृद्धा पूर्वक दोनों ने आरती की। पंडिताइन अंदर चली, खाना बनाने और पंडित शर्मा जी बाहर सीढ़ियों पर बैठ गये।
दस बजे के करीब लाला गिरधारी सेठ वंहा से गुजरते थे। घडी मिला लो। बाहर से ही भगवान को सिर नवाते थे। इसके बाद लाला रोज़ की तरह कहते थे “क्यों पंडित। कोरोना कब ख़त्म होगा? तू तो ज्ञानी हैं। भविष्य देखता है। कुछ दान दक्षिणा आती है कि नहीं?”
दो महीने से लोकडाउन था। मंदिर पूरा बंद था। थोडे बहुत पैसे थे, तो गुज़ारा हो गया। यह मंदिर एक मोहल्ले में था। करीब २०० के आस पास घर, परिवार थे। मौहल्ले के कुछ लोगों ने ही दुकानें खोल रखीं थी। उस लाला की भी एक किराने की दुकान। लाकडाउन में भी जम के कमाया। डेढ दुगने में माल बेचा। यह मंदिर भी पूरे मोहल्ले का था। छोटा-सा राधा कृष्ण का मंदिर। पंडित जी और पंडिताइन ही सब कुछ कर्ता धर्ता थे।
सावन में लाकडाउन खुला। हर साल सावन में, हर दिन श्रृद्धालुऔं की भीड उमडती थी। पर इस बार नहीं। चार-पांच रोज़ आ जायें, तो बहुत। सभी और कोरोना का ख़ौफ जो है। ऐसे ही सावन पंडित जी के लिये सूखा गुजर रहा था। और उपर से यह लाला, आते जाते, उपहास कर जाता था। धनी होने का घमंड होना स्वाभाविक ही है। दो तीन बार तो, मौहल्ले के लोगों को बुलाकर, चंदे के पैसै चुरा लेने और हिसाब गडबड करने का इल्ज़ाम भी लगाया। पर पंडित जी तो किसी से द्वेष रखते ही नहीं थे। बच्चे नहीं हुये। सारा जग बच्चे जैसा देखते थे। अरे, दस कभी के बज गये। लाला आज नज़र नहीं आये। सही समय पर रोज़ दुकान खोलने, मंदिर के सामने निकलते हैं। तभी मास्टर साहब, वंहा से गुजरे। राम-राम किया और कहा, ” पंडित जी। अच्छा हुआ जो अपने मंदिर में, भीड भाड नहीं हुई। लाला गिरधारी सेठ और उसके पूरे परिवार को कोरोना हो गया है। हास्पीटल ले गये हैं।
पंडित जी सन्न रह गये। मजाक उडाते थे। पर मंदिर के लिये भी तो खुब दान करते हैं। कितनी बार, उनहोंने अपने परिवार के भले के लिए, बडी पूजा करवाई थी। यह क्या काल आ गया? कोरोना कब जायेगा नहीं पता। ये सेठ साहुकार सलामत रहें। विष्णु प्रिया लक्ष्मी, इन्हीं के माध्यम से कृपा करती हैं। उठे। पंडिताइन को आवाज़ लगाई। “सुनो। बडी पूजा का सारा समान लाना। आज लाला और उनका परिवार कष्ट में है। वो नहीं तो क्या। मैं उनके और परिवार की शीघ्र ठीक होने की बडी पूजा करूँगा।”
संजय गुप्ता ‘देवेश’
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