
नया साल
Table of Contents
न्यूज चैनल (news channel)
ये तो उनका रोज़ का ही काम है
खबरों में झूठ बोलना आम है
कोई मरता हो तो जल्द मर जाएँ
उनके चैनल (news channel) का लक्ष्य ही है कि
जेब उनकी भर जाएँ।
बात का बतंगड़ बनाते हैं रोज
न जाने कहाँ से लाते खबरों को खोज
रहना है सुखी और स्वस्थ तो
दूरी बना लो उनसे
अगर नहीं तो इक रूम बुक कर लो
आम आदमी लड़ते थक चुका है
और अब बीमार होता जा रहा है
अपनों को खो रहा है
मगर फिर भी न्यूज देखने
को शामिल हो रहा है
डाटा चाहिए
अब जीवन का हिस्सा बन गया है
बिना इंटरनेट के सोशल
लाइफ अधूरी मानी जाती है
और स्मार्ट फ़ोन की संगत
ज़रूरी मानी जाती है
भले उनके घर में सब्जी आए या न आए
पर फोर जी मोबाइल चार घर में मौजूद हैं
मैंने कहा इतनी फिजूल खर्ची किसलिए
जरा पैसेको बचना सीख लीजिए।
मंहगाई में काम आएंगे
अगर नहीं बचे तो
आप क्या मोबाइल खाएंगे
वो चीखें और क्रोध में बोले
तुम क्या जाने हम कितने बड़े लेखक है
इक पोस्ट कर दे हंगामा मच जाएँ
हम से टकराने वाला भूलकर भी न टकराएँ
वरना नानी जी याद दिला देते हैं
शहर
सुनी पड़ी है गलियाँ
लोग मर रहे हैं
कितने बुरे ये दिन
जो अब गुजर रहे हैं
ये रोना धोना और सड़कों
पे ये मातम
जो जा चुका है अपना
है उनको वहीं तो है ग़म
अभी दूर है मगर
हम निकल ही जाएंगे
मगर जो बिछड़े है
हम वह याद तो आएंगे
ठेला लाकर गरीब करें गुजारा
क्यो तुमने जाकर उसको
क्यो है मारा
सोचों ज़रा तुम ये न कमाएंगे
तो कैसे मंहगाई में ये घर चला पाएंगे
शर्म नहीं बची
घर पर रहो ये भीषण काल है
कुछ तो सोचो जान सवाल है
हक मांगा तो चढ़ गई आंखें
और पूछने पर हो रहा बबाल है
विश्वगुरु बन जाना पर उससे पहले
जनता को बचा लो जो मर रहीं हैं
और तुम्हारी आँख भी नम नहीं ये कमाल है
कोरोना कुछ नहीं लापरवाही है हमारी
रखना होगा अपना और भी ख्याल
जिंदगी बचीं तो पा लेंगे मुकाम क, ई
अभी कहो नहीं तुमको कोई मलाल है
शर्म करो ज़िन्दगी को न बचाने वाले
शवों के ढेर पर बैठकर खाने वाले
आंसू का फायदा उठाने वाले
लोगों को ठगकर रुपया कमाने वाले
इक दिन सवाल करेगा तुमसे परत्मा
जब कोई ज़बाब न बन पड़ेगा
और ख़ुद को अपराधी मानोगे
और फिर पछताने के सिवा
कुछ न होगा तुम्हारे पास करने को
प्रीत के रंग
यारों को बुलाओ घर पर इस बार।
वहीं मनाओ होली का त्योहार
लगाओ रंग पर सावधानी के साथ
यहीं संदेश देता है ये त्योहार
मिटे आपस का झगड़ा
और पनपे दिलों में प्यार
यहीं संदेश देता है ये त्योहार।
सभी हो सुखी भर जाएँ सभी कि झोली
मिट जाएँ नफ़रत बोली ऐसी बोली
फिर लौटे रंगत बाज़ार हो गुलज़ार
यहीं संदेश देता है ये त्योहार
निराशा को भूलो
और आशा बन बनकर
तुम आसमान छूलो
न हो कोई दुःखी तुमसे रहे तुम्हारा।
ऐसा व्यवहार
यहीं संदेश देता है ये त्योहार
खूब उड़े रंग
मिट न ये उमंग
नफरत की हो जाएँ हार
यहीं संदेश देता है ये त्योहार
खाल बन जाएँ फूल
न चुभे किसी को बबूल
हो मेरी ये दुआ कबूल
जहाँ बढ़ जाएँ
फिर आपस का प्यार
यहीं संदेश देता है ये त्योहार
जैसे तुम चाहो
ये तुम्हारी सोच पर
निर्भर करता है
कि तुम क्या देखना चाहते हो
हरे भरे पेड़ों जो
बर्षा करने में मदद करते हैं
या तुम देखना चाहता हो
ऐसा समय
जिसमें पेड़ ही नहीं बचे
और बिगड़ जाएँ सन्तुलन
प्रकृति का
कभी हो जाएँ इतनी बारिश
कि कुछ दिन
बर्ष जाएँ मेघ
जितने बर्षा काल बरसते हैं
या पड़ जाए सूखा
जिसमें हमें पानी के लिए
तरसना पड़े
तुम अपने सुख में मत बनो
अंधे इतने
कि आने वाली
नस्लो को तक रोना पड़े
और वह तुम्हे दोषी माने
अब बताओ
तो मुझे तुम्हे अच्छा लगेगा
माँ
कुछ भी कहने की ज़रूरत
पड़ ती नहीं क्योंकि वो।
जानती है मेरी खामोशी को
और समझ जाती है
मेरी उलझनों को
जो मेरे दिल में चलती रहती है
बड़े ही प्यार बोलतीं है मुझसे
कि तुम अपने जीवन
मैं ज़रा बदलाव लाओ
और देखो
सबकुछ मिलेगा
तुमको बदला हुआ
क्योंकि सबकुछ हमारी
सोच पर निर्भर करता है
और हमारे देखने
के तरीके पर
बेटी
शर्म आती थी मुझे
उस दुनिया में आते हुए
जिस दुनिया में बेटी
को जलाया जाता है
दहेज न मिलने पर
अच्छा हुआ में मर गई
जन्म लेती तो मुझको
भी जला देते
दहेज की जलती आग में
और मैं ख़ुद पर आंसू बहाती
अच्छा हुआ
अब न आ सकी
ऐसी दुनिया मैं नहीं आती
तुम नहीं हो दोषी मेरे पिता
तुमने भला ही किया
कोख में मारकर
वरना इस दुनिया आके भी
मरती तेरी बेटी
और मर जाते मेरे बच्चें
बिना मेंरे जीतें हुए
परिवार ज़रुरी है
सुख दुःख में परिवार ज़रुरी है
आपस का संसार ज़रूरी है
काटने को दौड़े ये अकेलापन
चुभती बहुत है जो अपनों से ये दूरी है
मां दिन रात करतीं हैं ख़िद्मत सबकी
परिवार की वह कहलाती है वह धूरी है
परदेश का दिन लगता है सालों के बराबर
मां के बिना ज़िन्दगी लगती ये अधूरी है
शाम के समय बैठकर सभी बातें जो करतें हैं
अकेले हम उन्ही को याद बहुत करते हैं
गली पर शोर है
इस गली पर शोर है
वाहनों का गाड़ियों का
आदमियों का
जो कोसते हैं एक दूसरों को
नीचा दिखाते हैं गरीबों को
फ़ायदा उठाते हैं
दूसरों की मजबूरियों का
और फिर कर लेते हैं ऐसी कमाई
जो कभी काम नहीं आती
हराम की कमाई
हमेशा हराम में ही जाती है
खुद को मज़बूत रखो
खुद को मज़बूत रखो
तकि रोना न हो
तुम रहो स्वस्थ तुमको
कोरोना न हो
इक बार जो हो भी जाये
तो मत घबराना
मनोबल को ऊंचा रखकर
इसको तुम हराना
इक सीख सभी को तुमसे मिलनी चाहिए
तुम्हारी ही चली है तुम्हारी ही चलनी चाहिए
ये कोराना कमजोरों पर करता है वार
खुद को मज़बूत करो यार
चार क़दम आगे
अगर झुकने से बन जाता है काम
रोज करो सभी को सलाम
पूछ लो खैर ख़बर उनकी
और अगर हो बीमार तो लगाओ बाम
बात में निपुणता आनी चाहिए
चाशनी खोल के लो विन्रमता से तुम काम
ये स्वार्थ का मेला है
जो भोला है वह अकेला है
और जिसने चाशनी को ख़ूब घोला है
वो हर किसी के दिल पर राज करता है
कल तो करता था और आज करता है
तू भी बातों में मिसरी-सी घोल लें
सभी से कुछ देर हंसकर बोल ले
देखना फिर सभी आगे पीछे होंगे तेरे
और नहीं सताएंगे तन्हाई के अंधेरे
रोज तुझको साथ ऐसा मिल जाएगा
यानि तू भी देखना राजनीति में आ जाएगा
वोटों की सीडी पर चढ़ जा
जरा चार क़दम आगे बढ़ जा
बहिनों की रक्षा
भाई को कलाई पर बाँधती है राखी बहिन।
कितनी मुश्किल घटी में साथ निभातीं है बहिन।
घर को घर बनाएँ रखतीं हैं जब तक रहतीं हैं
और विदा होकर याद छोड़ जाती है बहिन।
जानती है पिता के दिल की बात को
जब भी होते हैं निराश तो हंसाती है बहिन।
बहिनों की रक्षा करनी होगी तुमको सारे ज़माने से
प्रेम का संदेश यहीं है गुरूओ का आदेश यही है
भाई बहिन का प्यार
भाई बहिन का प्यार है इसमें
जो मज़बूत है ज़माने में
बहिनों का प्रेम अमर है
गहरा उनका नाता है
उनको प्रीत निभाना आता है
जग में यह बंधन ऐसा है
जो सारे बंधन में प्यारा है
बहिन को भाई का सहारा है
मेवाड़ की रानी ने राखी भेजकर
भाई को था पुकारा
और वह भाई ने रक्षा की थी
और राज बचाया था
कहाँ हो तुम
जिनके साथ
बीता था बचपन
और ज़वानी आते आते
खो गये
आपा धापी मैं
भूल गए हैं सबकुछ
कमाने के चक्कर में
दोस्त जुदा हो गए
पहले हर बात सुनते थे
और मान लेते थे
और जो नहीं मानना
उसको भूला देते थे
लेकिन अब जाने क्या बात हुई
जो ख़फ़ा हो गए
चार पैसों की खनक मैं
दूर बहुत जाना पड़ा
और फिर लौटे नहीं
याद बहुत आते हैं
ऐसे लोग जिनके साथ होने भर से
हमें नहीं सताते थे दुनिया भर के ग़म
वो हर लेते थे, इक पल में ही तमाम दुःख
और बांटते थे, कभी न ख़त्म होने वाली खुशियाँ
साथ देते थे, झगड़ों में
भिड़ जाते थे दुनिया से
क्योंकि
वो जानतें थे मुझको कि मैं
ग़लत हो ही नहीं सकता
समझते थे मुझको, टोकते थे गलतियों पर
हौंसला भी बढ़ा देते थे
कहाँ गये वह तमाम दोस्त
जो हमें जीना सीखा देते थे
कभी बदनाम नहीं होने देते थे
हमारे बातें छुपा लेते थे
और फिर कुछ देर रूक कर
बातें बना देते थे
कहाँ गए वह दोस्त जो
हमें जीना सीखा देते थे
आज भी वह रास्ते हैं
बस तुम को गये हो
कहाँ ढूँढें तुमको
जुदा हो गये हो
प्यार मुहब्बत
सभी से प्यार मुहब्बत दिखाते रहो
काम सभी के जगत में तुम आते रहो
बैर से कुछ यहाँ हासिल होता नहीं
मैल अपना दिलों से मिटाते रहो
ये उदासी तुम्हारी दुश्मन है बनी
मन में खुशियों को सदा सजाते रहो।
अपनों से कभी मुंह न मोड़ें आप
गलतियाँ उनकी सदा भूल जाते रहो
रोटियाँ बच जाएँ तो यूं भी करो
भूखे बच्चों को रोटियाँ खिलाते रहो
जिनको सुनकर सम्मान से भर जाएँ दिल
दास्तां उन शहीदों की सुनाते रहो
वो दुःख दे तो दो न उसे बद्दुआ।
दुआ में हाथ उसके भी तुम उठाते रहो।
जो भी दर पर आएँ मदद मांगने
उसके काम सदा तुम बनाते रहो
ये वीरों की भूमि है हमारा वतन
उसकी माटी को अपने माथे से लगातें रहो
ये वतन है सभी का सभी है अपने यहाँ
इस बात को सभी से बताते रहो
पिता
बहुत मज़बूत बनकर
अक्सर राह दिखलाई मुझे
तभी मुश्किल राह आसान नज़र आईं मुझे
पिता ने कर दी अपनी खुशियों को कुर्बान।
तकि बन सके जहाँ में मेरी कुछ पहचान।
अपने शौक को पूरा न करके मेरा ध्यान किया
पिता ने जीवन भर ऐसा एहसान किया
गलतियाँ मेंरी माफ़ की और भूलो पर डांटा
और अक्सर अपने अनुभव को बांटा
बनाया ऐसा जो वह न कभी बन पाएँ
आज पिता मुझको बहुत याद आएँ
खर्च करने पैसे दिए और नहीं मांगा हिसाब
रखा मेंरे लिए अपने दिल को हरदम साफ
मासूम से जीवन को मज़बूत बनाया
आपने ही हाथ को थामकर चलना सिखाया
मां का स्थान दिल में ख़ास है
मगर साथ मेरे पिता का अनुभव पास है
योग को पहचान लो
बात मेरी अब तो तुम मान लो
योग बनाएगा नीरोग योग को पहचान लो
रोज सुबह उठकर नित करो योग
अगर रहना तुमको निरोग
ये सब बीमारी को हर लेता है
और ताज़गी को जीवन में भर देता है
तुमको रोज़ योग करना होगा।
तकि ज़िन्दगी में कभी बीमारी न आएँ
और दवा का बिल भारी होगा
जो योग न प्रतिदान तुम्हारा जारी होगा
उसमें छुपा है सेहतमंद होने का राज
होना तैयार तुम योग के लिए आज
अनुलोम-विलोम ज़रूरी है
तकि बीमारी तुमसे रहे दूर
और जीवन जियो भरपूर
अभिषेक जैन
यह भी पढ़ें-