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पेड़ों की ज़ुबान (tongue of trees)
पेड़ों की ज़ुबान (tongue of trees): बोला मुझसे एक दिन पेड़,
हैं मेरी उम्र अब भाई अधेड़,
सुनाऊँ मैं तुझे अपनी पीड़ा,
सुनाने लगा अनुभव वह पेड़।
मानव का हूॅं मित्र मैं अभिन्न,
पर कुछ ने की हालात छिन्न-भिन्न,
निस्वार्थी सेवा करूं सदा मैं,
काम आऊँ ले रूप मैं भिन्न-भिन्न।
हूॅं नर तेरा मैं सदैव जीवन दाता,
सब कुछ तू मुझसे ही हैं पाता,
तेरी हर तरह से करता हूॅं मैं सेवा,
पर तेरा नहीं ध्यान कदापि जाता।
हूॅं बिल्कुल मैं तेरे ही नर जैसा,
मित्र रहता भले हूॅं मैं नर कैसा,
काट काट कर नष्ट करे नब्जें,
क्रूर ऐसा तेरा यह व्यवहार कैसा॥
लिखे लेखनी से यह कवि भूताराम,
पेड़ों की ज़ुबान से लिखे ये क़लाम,
करना सरंक्षण संवर्धन सदा पेड़ों का,
इन्हीं से चलेगा नर तेरा जीवन अविराम॥
बुढ़ापा
वृद्ध बैठा है कुर्सी पर,
मन में सोच रहा है वह,
होता बच्चा वह अगर,
करता सब वह फतह।
पर हो गया हूँ मैं अशक्त,
इसलिये कुर्सी पर बैठा हूँ,
पर मन अब भी है सशक्त,
अग्र बढ़ने हेतू ही बैठा हूँ॥
धीरे ही सही पर पाहुँगा मंजिल,
असफलता को पटकनी दूँगा,
अब भी सजती है मन-महफिल,
मैं लोहा मनवा अब भी दूँगा॥
स्वाभिमान की देता सबको सीख,
बता रहा हूँ आपको अपनी पीड़ा,
पढ़ने तो तू कुछ ऐसा ज़रा लिख,
वृद्धों की सेवा का उठा तू बीड़ा॥
बुढ़ापा बचपन की है पुनरावृत्ति,
जो करता है वक़्त पर बचपना,
तो रख सेवा की तू ज़रा मनोवृति,
फ़र्ज निभा वक़्त वक्त पर अपना॥
होती है काया तब ज़रा अशक्त,
जाता है शरीर बड़ा कृशकाय,
होता है तन औरों पर आसक्त,
सेवा ना हो तब वह होता पछताय॥
कहें लेखनी से कलमकार भूताराम,
सेवा करे हम सब वृद्धों की अविराम,
वो होते अनुभव की खान, करे सलाम,
नाक कटे वृद्ध की, ना करे ऐसा काम॥
पिता
माता पिता सदा एक दुसरे के पूरक है,
सन्तान के लिये वे सब सुविधा पूरक है।
माता का सर्व जन गुणगान करता है,
पिता का कौन ध्यान यहाँ धरता है।
पिता पाल पोष कर हमें बड़ा करता है,
दे सुख सुविधा स्व पैरों पर खड़ा करता है।
भूखा रह ख़ुद अपनी पूरी सदा आस करता है,
हारे हिम्मत जब हम वहीं सदा विश्वास भरता है।
जब मांगे हम रूपये दस वह देता है नोट बीस,
जिससे पूरी हो जाये हमारी हर वक़्त ख्वाईश।
ख्वाईशे हमारी पूरी करने करता हर आजमाईश,
इसके लिये करता पल-पल पैसों की करे पैदाईश।
रहम प्रेम करूणा का पिता सदा दरिया है,
भविष्य निर्माता वह सन्तान का नज़रिया है।
रखे सदैव सन्तान का पिता पल-पल ख्याल,
रहता है सदा पिता सन्तान के प्रति बन ढाल।
सदा सन्तान को चाहता अपने से सवाया बढकर,
परिवार के लिये वह सहता हर मुसिबत डटकर।
कुट कुट कर भरी है उसमें वफादारी व जिम्मेदारी,
रखता है सदा वह हर बात हालात की जवाबदारी।
चन्द अल्फाजों में लिख नहीं सकते आप पिता को,
कागज के टुकड़ों पर धर नहीं सकते आप उस अस्मिता को।
कहे सदैव भूताराम माता पिता हमारे लिये सन्सार है।
ज्यादा कैसे लिखूँ उनके बारे में जो जीवन आधार है।
हैं नहीं बेजुबान पक्षी
करते हैं विभिन्न प्रकार की आवाज,
संगीत सुर कुदरत को देता वह साज।
कैसे कह सकता है कि इंसान है बुद्धिमान,
नहीं सुन पाता है वह कुदरत को अपने कान॥
सुबह शाम शान्त चित होकर कुछ समय,
एकान्त में सुनिये प्राकृतिक कलरव कुछ समय।
तब आपको वह बात समझ में आ जायेगी,
जो आपकी श्रवेणन्द्रिय नहीं बता पायेगी॥
अगर असफल हो जाता है तू सुनने में,
भुल कर बैठा है तू कुदरती ताना बुनने में।
ऐ इन्सान तू है कुदरत का हीरा अनमोल,
तू क्यों नहीं सुनता है कान से कलरव रूपी बोल॥
जब कौआ करता है कलरव कांव कांव,
बैठ प्राणवायू प्रदानकर्ता पेड़ों के छांव छांव।
जब कोयल तान देती है मीठी अपनी सुरीली राग,
कुकड़ूँ कू कुकड़ूँ कू कर बांग दे कहता मुर्गा तू अब जाग॥
मस्ताने मौसम में मोर मेआओ-मेआओ करता है,
मदमस्त मौसम में मौसमी बयार वह भरता है।
सुहावनी घटाये घनघोर आसमां में छा जाती है,
जब प्यारे-प्यारे पक्षियों की आवाजे छा जाती है॥
कोई अलग अंदाज़ में करते हैं आवाजे अजीब,
किसी की कार्यकुशलता किसी को मिलती नहीं नसीब।
देख बया के घोसलें को, खा जाता है मानव मात,
नहीं जान पाते इन्सान, जीते जागते इनके जज्बात॥
कोई होता है बड़ा और कोई होता छोटा,
करते मिलकर काम, ना कोई बड़ा या छोटा।
कुदरत का क्या ग़ज़ब नायाब नज़रिया है,
सीखने का हमें प्रकृति को पक्षी एक ज़रिया है॥
कहे कलमकार ले अपने कर क़लम भूताराम,
चल रही है प्रकृति इनके कारण अनवरत अविराम।
मत कह मूक बेजुबान ऐ इन्सान तू पक्षी को,
सम्मान सरंक्षण दे तू सृष्टि के सर्जन साक्षी को॥
बेरोजगारी
ये सहमी-सहमी कैसी फैली लाचारी है,
चारों ओर फ़ेली जो यह बेरोजगारी है।
लेकर बड़ी-बड़ी डिग्रीयाँ घूम रहे हैं,
ना मिले तो कामयाबी फंदे झूम रहे हैं।
फंदे झूम रहे हैं इसके ज़िम्मेदार कौन है,
पूछने पर पाक-साफ सब हो जाते मौन है॥
बेरोजगारी की आज चारों ओर फेली भरमार है,
सबको मिले काम और चाहिए सबको रोजगार है।
पढ़े लिखे लोग नौकरियाँ चाहते हैं आज,
करने को छोटा मोटा काम आती हैं लाज।
आती हैं उन्हें लाज घर में वे पड़े रहते हैं,
फिर घुमते रहते हैं बेरोजगार ख़ुद को कहते हैं।
बढ़ रहा बुरा प्रभाव आज बेरोजगारी का,
जन्म दिनो-दिन अपराध ले रहे हैं इनकी लाचारी का।
करना प्रारम्भ कर देते हैं बेरोजगार नशाखोरी,
रोजगार दिलाने वाले भी करते हैं बाते कोरी,
करते हैं बातें कोरी तो कैसे कब मिलेगा रोजगार,
बेरोजगारी को मिटाने करे ऐसी व्यवस्थायें सरकार।
लेखनी से लिखे कुछ लफ़्ज़ भूताराम बेरोजगार को,
हर छात्र बेरोजगार तरस रहा आज रोजगार को।
व्यवसायिक शिक्षा प्रणाली को है हमें अपनाना,
मिटा इस दंश को समृद्धशाली भारत है बनाना।
और बनाना है भारत को विश्व आर्थिक महाशक्ति,
ये तभी सम्भव है जब पाये हम इस दंश से मुक्ति॥
ईमानदारी
इन्सान का सच्चा गहना है,
ईमानदारी का ही कहना है।
होती है इससे हमारी पहचान,
करवाती सदा हमारा गुणगान॥
जो ईमानदार सदा रहता है,
सलाम संसार उसे करता है।
जो कभी अन्याय ना सहता है,
जो अपने ईमानदारी भरता है॥
जो सच्चे राह पर चलता है,
बेईमान को सदा खलता है।
बेईमानी पर वह सदा पलता है,
ईमानदार नहीं कहीं फिसलता है॥
होती है सच्ची दोस्त ईमानदारी,
सीखाती है इन्सान को जिम्मेदारी।
सच्ची सलाह संग है यह समझदारी,
सदा अपने दूर रखो बेईमानदारी॥
कर क़लम से लिखे यह भूताराम,
आती नहीं कदापि राह में रुकावट,
जो करे सदा ईमानदारी से हर काम,
मिट जाये आपसी इंसानी कड़वाहट॥
किताब
किताब गुरु का सार होती है,
कुछ के लिये समझो संसार होती है।
कभी किताबे ख्यालों में खो जाती है,
कभी अपनत्व की पहचान करवाती है॥
कभी प्रेम की फुहार होती है तो
कभी नफ़रत की संहार होती है,
किताबे तो कभी कभार तो सारा जहाँ दिखा देती है,
तो कभी कभार प्यारा-सा मधुर व्यवहार सिखा देती है॥
किताब है तो ख़्वाब है,
किताब है तो जवाब है,
किताब है तो ज्ञान है,
किताब है तो ध्यान है,
किताब है तो व्यवहार है
किताब है प्रेम की बहार है,
किताब है तो नफ़रतों का नाश है,
किताब है तो जीतने को आकाश है,
किताब है तो अपनी अभिव्यक्ति है,
किताब है तो जीने की शक्ति है,
किताब है तो यह सब रिश्ते है,
किताबो के कारण कुछ फरिश्ते है,
किताब है तो संवेदना है
किताब है तो व्यक्त वेदना है,
किताब है तो क़लम है,
किताब है तो रहम है,
किताबों की बाते बड़ी जुदा है,
किताबे कुछ के लिये खुदा है,
किताबों की तुलना किसी से करनी बेमानी है,
कहत क़लम से भूता राम किताब किरदार कहानी है।
परिवार
परिवार देता है पल-पल हमें पनाह,
करता है हर पल हमसे हर आगाह।
सहनशक्ति सत्य साहस सरस सलाह,
परिवार ही है जो हर पल देता गवाह॥
परिवार में ही गुण सीखे जाते हैं,
संस्कार परिवार में ही लिखे जाते हैं।
परिवार में पवित्र रिश्ते देखे जाते हैं,
परिवार में ही हमें पाक साफ़ किये जाते हैं॥
समाज की सबसे छोटी इकाई है परिवार,
चलता है इसी से सर्वजन का है घरबार।
आज्ञा पालन कर आदर सीखा जाता है,
यहीं से इन्सान का भावी भाग्य लिखा जाता है॥
परिवार में माँ की ममता प्रेम पिता का होता है,
बिना लाड़ बहिन के जिसमें भोला भाई रोता है।
परिवार में ही प्यार पत्नी पति का पवित्र होता है,
परिवार ही हर बच्चे का पहला विद्यालय होता है॥
बिना परिवार के सब लगता संसार सूना है,
लगता हर वाकया यहाँ इसके बिना अनसूना है।
परिवार में प्रत्येक का पालन पोषण होता है,
परिवार ही है जो प्रत्येक के लिये सब कुछ खोता है॥
अब तो बढ़ गये हैं सब जगह एकल परिवार,
होती रहती हैं जहाँ सदा आपस में तकरार।
सयुंक्त परिवार को अब सब भूल गये हैं,
अब तो समस्याओं के मंझधार में झूल गये हैं॥
लिखे भूताराम कर में लेकर यह लेखनी,
वापस है हमें झलक सयुंक्त परिवार की देखनी।
मत बांटो आपस में पवित्र इस परिवार को,
कैसे देंगे हम भावी समाज के आकार को॥
मास्टर भूताराम जाखल
जालोर राजस्थान
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