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आत्महत्या एक अभिशाप (suicide a curse)
suicide a curse: ये जीवन अनमोल उपहार
ईश्वर का वरदान है
हर क़दम मुस्कराए जा
जीना इसी का नाम है
आते है दुश्वारियाँ राह कठिन हो जाता है
घनघोर अँधेरा छाकर जीवन
व्यर्थ बताता है
इन अंधेरों से लड़कर बढ़ना
थमना तेरा काम नहीं
व्यर्थ गंवाना इस जीवन को
भागना कोई उपाय नहीं
लड़कर तूफानों से
साहिल आगे बढ़ता है
आज का अँधेरा छट जाएगा
कल का सबेरा कहता है
हताश और निराश मन
गरल जीवन में लाता है
मन के हारे हार है
तू क्यों थक घबराता है
कठिन पथ पर ले शपथ
जीवन का रंग अलबेला है
व्यर्थ न गंवा इंसान इसको
जीवन हर पल मेला है।
हिन्दी हिंदुस्तानी
हिंदी मेरा गर्व है हिन्दी ही पहचान है
हिंदी सुसंस्कृत देवनागरी
हिंदुस्तान का अभिमान है
गीता की अनुगूंज है हिंदी
रामायण का बखान है
आजादी के शंखनाद का
वन्देमातरम गान है
मीरा की पदावली कभी
कबीर की साखियाँ हो जाती है
सुर के पद में हिंदी
जीवन दर्शन कराती है।
हो प्रतिष्ठित हिन्दी हमारी
जन गण की सुरभित वाणी हो
गर्व से बोले सुभाषित हिंदी
भाषा हिन्दुस्तानी हो।
कृष्ण
कृष्ण योग है दर्शन है
कृष्ण तत्व प्रेम समर्पण है
कृष्ण कर्मपथ संचेतक दिग्दर्शक है
कृष्ण नियति परिणीति ब्रम्हाण्ड निर्देशक है
कृष्ण गोपी का प्रेम है
कृष्ण रास रंग विदेह है
कृष्ण गीता वेद और पुराण है
कृष्ण सांसो में प्रवाहित प्राण है
कृष्ण सृजेता सृष्टि का पालक है
कृष्ण सम्भवामि अधर्म का संहारक है
कृष्ण अपरिमेय आख्यान जगत विशारद है
कृष्ण धर्म संस्थापक कृष्ण ही पारद है
कृष्ण अयोध्या कृष्ण मथुरा वही आठों याम है
नन्द के आनन्द भयो कृष्ण चारों धाम है
जय हिंद की सेना
छेड़ दिया तूने नाहर को
कायर चीनी चाल से
बच न सकेगा गीदड़ तू
अब भारत माँ के लाल से
डाल संकट विश्व को तूने
जहरीला वायरस फैलाया
जमीन का प्यासा ड्रैगन
तूने काल को अपने बुलाया
बलिदानी वीर का खून
व्यर्थ नहीं अब जाएगा
सुन ड्रैगन तेरी छाती में
अब तिरंगा लहराएगा
हिंदी चीनी भाई-भाई के
बहकावे में नहीं आएंगे
नए युग का भारत है यह
तुझको सबक सिखाएंगे
मेरे देश की मिट्टी में
राणा सांगा बसते हैं
देश हिट में मरमिटने वाले
कफ़न बाँध के रहते हैं
जय हिंद की सेना
वन्देमातरम
पिता के लिए
जिसने न कभी विश्राम किया
स्वेद बहाकर हमे पहचान दिया
दिखाया नहीं अपना दुलार
पर दिल में छुपा प्यार रहा
हर दर्द को सीने में छुपाये
जमाने के झंझावतों से हमे बचाये
आँखों में गुस्सा पर ह्रदय में अनुराग
ऐसा है मेरे पिता का प्यार
ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया
जमाने में जिसने जीना सिखाया
हसरते अपनी भुलाकर
हमारी ख्वाइशों को पूरा किया
अपने सपनो को हममे जिन्दा देखा
उस पिता को आज पिता बनकर
समझ पाया हूँ
अपनी यादों में वही कठोर सीना ले आया हूँ
जो था तो कठोर पर मुलायम
था मेरे निर्माण के लिए
आज सर झुका है मेरा
उस निर्माता मेरे भगवान के लिए
इस जन्म में तेरा पुत्रबना
हर कर्तव्य को निभाउंगा
संस्कारों से आपके
अपने पुत्रि को सजाऊंगा
बदरा
अब की बदरा ऐसे बरसो
बुझ जाय धरती की प्यास रे
उदासी हटे किसानों की
पूरी कर दो आस रे
धानी चुनरिया वसुंधरा ओढे
दमक उठे शृंगार रे
चातक बैठा जिस बून्द को
पूरी उसकी चाह रे
धरती माँ की अन्तस् से सूखी
जल धार की स्रोतें
छेद हजारों सीने पर जिसके
कैसे स्रोत न सुखें
उन छिद्रों को भर दो
अपनी प्रेम की फुहार से
जड़ चेतन जागृत हो
सृजन की रसधार से
उपवन सूखा मधुवन फीका
ताल तलैया सूखे हैं
जंगल हमने जला दिया
स्वार्थ के हम भूखे हैं
आशाओं के दीप जलाकर
उपवन फिर महकाओ रे
अब की बदरा ऐसे बरसो
उम्मीदों को सहलाओ रे
कलम का विश्वाश
अंधेरी रातों में गुम सुबह का उजास ढूँढता है
सच को सामने रख प्रकाश बिखेरता है
बिकता नहीं जिसका ईमान
कलम का सिपाही व्यापार नहीं करता है
जिसने सहेजा संस्कृति को अविचल
अभय पथ का राही निष्कंटक
रीति कुरीति का कर पहचान
सच को सच कहता है
कलम का सिपाही अटल रहता है
जिस राह में बढ़ा कटीला पथ
कुछ शूल चुभे पांवो में
कुछ ज़ख़्म मिले उन राहों में
विरोध की परवाह नहीं करता है
तोड़ झूठ का छद्मजाल पर्दाफाश
करता है
कलम का सिपाही निरतंर चलता है।
बन निर्बल का सहारा सबलता का
दे विश्वाश
अन्याय पर बन न्याय की आस
हर पल आगे बढ़ता है
कलम का सिपाही कभी नहीं थकता है।
आगे बढ़ते रहता है।
मुंह कैसे दिखाओगे
ऊंची अट्टालिकाओं में बैठकर
मरहम का ढोंग करते
तुम्हे रोशनी की बारात मुबारक
उनके अंधेरे जीवन में कैसे दीप जलाओगे
कल मुंह कैसे दिखाओगे
जिन्होंने तुम्हारे उजाले के
लिए जीवन अपना समर्पित किया
उस ज़हर उगलती चिमनियों का
हलाहल अपने अन्तस् में लिया
आत्मा बेचकर सोये हो तुम
उससे क्या छिपा पाओगे
कल मुंह कैसे दिखाओगे
जिस लाये थे तुम सब्जबाग दिखाकर
उनकी दुनिया उजाड़कर
रोटी की ज़रूरत थी उनकी
तुम छोड़ दिये काल हो कर
अपनी अन्तरात्मा से क्या छुपाओगे
कल कैसे मुंह दिखाओगे
जिनके हथौड़ों की धमक
और श्रमजल से खड़े हुए
तुम्हारे सपनो के महल और बाग
उन फूलों को मूरझाओगे
कल कैसे मुंह दिखाओगे
जिनको बेचा था झूठा सपना
वो सपनों के सौदागर
लाशें बिछाकर पटरियों में उनका
क्या तुम सो पाओगे
कल उनको कैसे मुंह दिखाओगे
थकते वह क़दम जख्मी हर पांव
शहर से बेबस वह लौट रहे गांव
उनके बाजुओं की ताकत को सोखा
मौके पर क्यों दिया उनको धोका
बेजार आंसुओं की चीत्कार से
बच पाओगे
कल कैसे मुंह दिखाओगे
उन्हें कल कैसे मुंह दिखाओगे।
परिवार हमारा
बरगद की शीतल छाया
दादा दादी का प्यार है
इनके संस्कारों में पल्लवित
सुंदर हर परिवार है
बुआ हमारी सबसे प्यारी
परिवार की वह धुरी है
चाचा चाची सङ्ग मिलके सारे
करते कहानी पूरी हैं
मां की ममता कौन न जाने
पिता कर्तव्य की माला है
दीदी भैया मित्र हमारे
घर ही तो पाठशाला है
नाना नानी मामा मामी
ममता की ये छांव है
गर्मियों की धमाचौकड़ी से
मौसी बड़ी हैरान है।
इन्ही रिश्तों का ताना बाना
जीवन सफल कराती है
पाठ सीखा कर्तव्य त्याग का
परिपूर्ण हमें बनाती हैं।
नर्स
नर्स स्वरूप है जननी का
सेवाधर्म है अपनाया
जन जन की पीड़ा हरने
देवी का यह रूप पाया
घृणा नहीं जिसे घावों से
समर्पण ही उसकी पूजा है
पीड़ित जनों की सेवा करती
धर्म न उसका दूजा है।
कुछ पाखंडी इनकी सेवा को
दागदार कर जाते हैं
हवशी काम घृणित विचारों से
मानवता रुद्ध करवाते हैं
निष्काम इनकी सेवा को
शत शत प्रणाम करते है
चिकित्सा सेवा की अधिष्ठात्री का
कोटि वन्दन करते हैं अभिनंदन हम करते हैं।
मां
माँ मंदिर की आरती,
मस्जिद की अजान है।
मां वेदों की मूल ऋचाएँ,
बाइबिल और कुरान है।
मां है मरियम मेरी जैसी,
मां में दिखे खुदाई है।
मां में नूर ईश्वर का
रब ही माँ में समाई है।
मां आंगन की तुलसी जैसी
सुन्दर इक पुरवाई है।
मां त्याग की मूरत जैसी
मां ही पन्ना धाई है॥
मां ही आदि शक्ति भवानी
सृष्टि की श्रोत है
मां ग्रन्थों की मूल आत्मा
गीता की श्लोक है।
मां नदिया का निर्मल पानी
पर्वत की ऊंचाई है
मां में बसे हैं काशी गंगा,
मन की ये गहराई है।
मां ही मेरा धर्म है समझो
मां ही चारों धाम है।
मां चन्दा की शीतल चाँदनी
ईश्वर का वरदान है।
प्रेम
प्रेम सहज सरल हृदय में उमड़ता रसभाव है।
अनुभूति इस प्रेम की संगीतमय इक राग है।
इसी प्रेम में माँ सबरी ने राम को
दर में बुलाया था
चख चख के मीठे बेर
प्रेम बस ही खिलाया था
प्रेम अनुभूति का नेह निमंत्रण
कान्हा ने कैसे स्वीकारा था
दुर्योधन के राजभोग तज
साग विदुर का खाया था
यही प्रेम तो प्रभु को बाँधे
भक्त से बंधे जाते हैं
प्रेम मयि गोपी के आगे
उद्धव चुप हो जाते हैं।
राधे राधे कहके कन्हैया
प्रेम धुन जब बजाते हैं
सुध बुध खोई सारी गोपियाँ
नाच नाच खो जाते हैं।
छत्तीसगढ़ के मजदूरों को श्रद्धांजलि
मौत की थी पटरी वह
भूख वहाँ पर लेटा था
पास पड़ी थी एक रोटी
खा नहीं पाया कोई बेटा था
उम्मीदों में अपना घर लेकर
चल पड़े थे मंज़िल पाने को
मजबूर थे मज़दूर वही थे
पास नहीं था कुछ खाने को
जिनके घर हैं अपने सलोने
वो सुखनिद्रा में सोते हैं
जो बेजार इन हालातों से
वो पटरी पर सोते हैं
जीवन भी है मौत की पटरी
सिग्नल से हम अनजान हैं
ये तन है माटी का पुतला
बाकी सब अभिमान है
मयखाना
छलक रहें हैं जाम कहीं पर,
आँसू कहीं पर छलक रहें हैं।
मदिरालय की रौनक देखी,
जन्मों के प्यासे तरस रहें हैं॥
जिनके घर अनाज न थी,
जो पांच दिनों से भूखा था।
कतार में वह ही पहले खड़ा था,
नजारा बड़ा अनोखा था॥
टूट पड़े हैं ऐसे जैसे
अमृत मंथन की बेला है
धक्का मुक्की छीना झपटी
साकी भी अलबेला है
मदमस्त होकर ये अपनों में
प्रेम सन्देशा लाएंगे
जिन घरों में शांति थी
वहाँ डिस्कोडान्स दिखाएंगे
महके गुलशन महके घरौंदा
हाथ में ले लो विजयमाला,
सुर्ख आंखों का नेह निमंत्रण
खुली हुई है मधुशाला।
अविनाश तिवारी “अवि”
अमोरा
जांजगीर चाम्पा
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