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सुभाष चन्द्र बोस
आजादी के नायक थे
मातृभू उन्नायक थे
जीवन अर्पण किया
ऐसे त्यागी वीर थे॥
भारत माँ हुई धन्य
देशभक्ति थी अनन्य
जयहिन्द किया घोष
कर्मयोगी वीर थे॥
त्याग दिया घर बार
किया वतन को प्यार
शत्रु के लिए सदा वो
तेज शमशीर थे॥
भारत माँ के सपूत
साहस भरा अकूत
झुके नहीं रुके नहीं
देश तक़दीर थे॥
नाम सुभाष बोस था
दिल मेंभरा जोश था
देशभक्ति का जुनून
ज्ञानवान धीर थे॥
त्याग दिए सुख चैन
देखे नहीं दिन रैन
देश हित लगे रहे
मातृभूमि वीर थे॥
हिन्द हित सेना जोड़
शत्रुमुख दिया तोड़
पीठ न दिखाई कभी
ऐसे रणधीर थे॥
कभी नहीं मानी हार
शत्रु झुका हर बार
आजादी के लिए लड़े
सुधीर गम्भीर थे॥
धरा
धरा सभी को पालती, सबकी है ये मात।
औषध उपजाती सदा,स्वस्थ करे हर गात।।
जननी हम सबकी धरा,हम इसकी संतान।
सबका सहती भार भू, करें सभी सम्मान।।
क्षमा दया यह धारती, सबका रखती ध्यान।
अचला वसुधा भू मही, धरा धरित्री जान।।
शस्य श्यामला यह धरा,जगती का है प्राण।
रखें प्रदूषण मुक्त हम,होगा जग कल्याण।।
भरती रहती है सदा, अन्न वित्त भंडार।
लेती कुछ भी है नही, देती है हर बार।।
रक्षाबंधन
रक्षा का वादा करे, बहना की हर भ्रात।
रक्षाबंधन पर्व पर, होय प्रेम की बात॥
होय प्रेम की बात, बहन बाँधे है धागा।
भाई हो खुशहाल, प्यार ही सच्चा जागा॥
कहता कवि करजोरि, पर्व ये करे सुरक्षा।
दुनिया का हर भ्रात, बहन की करता रक्षा॥
रखता ये खुशहाल है, राखी का त्यौहार।
रेशम की इक डोर से, बँधा हुआ है प्यार॥
बँधा हुआ है प्यार, भ्रात की सजी कलाई।
रक्षाबंधन पर्व, सभी मन खुशियाँ छाई॥
कहत नवल करजोरि, बहन पर जान छिड़कता।
भाई ही हर हाल, मान बहना का रखता॥
माँ कूष्मांडा
चौथा नवदुर्गा रूप
कूष्मांडा का है स्वरूप
मात है बड़ी निराली
आराधना कीजिये॥
प्रभायुक्ता आदिशक्ति
करे सभी जन भक्ति
अष्टभुजा वाली माता
माँ की भक्ति कीजिये॥
धनुष बाण कमल
चक्र गदा कमंडल
अमृत कलश धारे
दर्शन तो दीजिये॥
अष्टम भुजा संयुक्ता
सिद्धिऔर निधियुक्ता
आयु यश बल हमे
माँ कूष्मांडा दीजिये॥
आधि व्याधि मेटे सभी
सुख समृद्धि दे सभी
सृष्टि को बनाने वाली
सिद्धि हमे दीजिये॥
माँ की है शान निराली
माँ मेरी है शेरा वाली
भवसागर से माता
पार हमें कीजिये॥
माँ कीजोभक्ति करता
पापों को दूर करता
माँआरोग्य देने वाली
हमे स्वस्थ कीजिये॥
शोक को दूर भगाए
माँ सुख समृद्धि लाये
हे कूष्मांडा देवी माता
आशीर्वाद दीजिये॥
श्री राम
अवध के प्यारे हैं श्री राम
जगत में न्यारे हैं श्री राम
राम हैं सकल गुणों कीखान
करें हम राघव का गुण गान
राम हैं मर्यादा आदर्श
राम लाते जीवन में हर्ष
राम है पावनता का नाम
राम में पाते हम विश्राम
राम ने दिया जगत को ज्ञान
राम हैं हम सबकी पहचान
राम हैं त्याग धैर्य दृष्टांत
राम हैं अहंकार का अंत
राम ही करें शोक का नाश
राम ही आस और विश्वास
राम ने स्वयं लिया वनवास
राम का कणकण में है वास
राम का रखो हृदय में वास
करें हम सब रावण का नाश
राम हैं दुर्बलता का अंत
राम ही इस जग में बलवंत
राम ही करते जग उद्धार
राम हैं विजय नहीं है हार
राम ही करते जग कल्याण
राम में जीवन पाता त्राण
राम से हुई सृष्टि भी धन्य
राम सम नहीं जगत में अन्य
राम हैं जन-जन के आराध्य
राम हैं इस जग के सुखसाध्य
राम ने किया सुखों का त्याग
लोकहित में किया परित्याग
राम ने किया नारि सम्मान
राम ने रखा पिता का मान
राम हैं रघुवंशी अभिमान
राम हैं भारत की पहचान
राम का नाम करे भवपार
राम है इस जग के आधार
राम ने किया असुर संहार
राम ही दुर्बल का आधार
राम कोअपनाओ इकबार
राम है जीवन का ही सार
वृक्ष लगाओ
पानी की मची है त्राहि
पृथ्वी भी है गरमाई
शुद्ध पर्यावरण हो
तब ही जी पाएंगे॥
मिट गई हरीयाली
जंगल हो गए खाली
वन्य प्राणियों के लिए
जंगल बचाएंगे॥
प्रदूषण कम करे
जीवन में श्रम करे
पर्यावरण के लिए
वृक्षों को लगाएंगे॥
जल पवन शुद्ध हो
न धरा ताप वृद्ध हो
प्राण रक्षा करने को
जल भी बचाएंगे॥
प्रकृति का ये कहर
बन जायेगा जहर
सुधर जाओ वरना
सब पछताएंगे॥
मिलके लगाओ वृक्ष
जल को बनाओ स्वच्छ
बून्द बून्द अमृत है
जल को बचाएंगे॥
पर्यावरण बचाओ
प्रदूषण को हटाओ
शुद्ध प्राण वायु होगी
जीवन बचाएंगे॥
जल जीवन आधार
वायु प्राणों का संचार
वृक्ष लगा कर हम
धरा को बचाएंगे॥
माँ
माँ महानता की मूरत है,
माँ है भोली भाली।
माँ वात्सल्य कागार है,
माँ देती खुशहाली॥
माँ के चरणों में जन्नत है,
माँ का हृदय विशाला।
माँ देती है बलिदान सदा,
माँ ही देत निवाला॥
माँ सृष्टा की प्रथम सृष्टि है,
माँ है सबसे न्यारी।
शक्ति का आधार है जननी,
सबको लगती प्यारी॥
माँ के जैसा इस दुनिया मे,
और न कोई दूजा।
मिलता हैआशीष हमेशा,
करके माँ की पूजा॥
पूत कपूत भले हो जाए,
मात न होय कुमाता।
सेवा करता है जो माँ की,
वही सदा फल पाता॥
देवी सम है माँ का स्वरूप,
माँ है बड़ी निराली।
माँ इस सृष्टि का आधार है,
होय न झोली खाली॥
प्रेम और विश्वास का नाम,
माँ ईश्वर का वंदन।
माँ से बड़ा नहीं कोई भी,
माँ माथे का चंदन॥
दुनिया की कोई क़लम नही,
जिसमे इतनी ताकत।
माँ को करदे परिभाषित जो,
कर ना सके हिमाकत॥
हम सब तो एक शब्द ही है,
माँ है पूरी भाषा।
त्याग व पावनता है जिसमे,
माँ की यह परिभाषा॥
माँ काँचल है इस जग में,
रंगों की फुलवारी।
शब्द नहीं हैं माँ वंदन में,
माँ है सबसे न्यारी॥
माँ सरस्वती का निवास है,
मात शब्द है अनुपम।
माँ सृष्टि का सुंदरतम रूप,
माँ घावों पर मरहम॥
जंगल कटते जा रहे
जंगल कटते जा रहे रोज
प्राणी तरस रहे है।
ताल तलैया सूख गए सब
प्यासे भटक रहे हैं॥
नदिया नाले बंद हो गए
वसुन्धरा है प्यासी।
सूर्य आग से जला रहा अब
झुलसे पृथ्वी वासी॥
हरियाली मिट गई धरा से
जंगल भी हैं खाली।
तड़प रहे हैं वन्य जीव भी
प्यासे अरु बेहाली॥
चारों और प्रदूषण घोर
जल थल नभ में फैला।
बून्द बून्द पानी को तरसे
प्रकृति का है झमेला॥
प्यास से व्याकुल हर प्राणी
धरती तडप रही है।
पूरी दुनिया बुरे दौर से
अब ही गुजर रही है॥
बून्द बून्द हम नीर बचाएँ
तब ही प्यास बुझेगी।
हम पानी को व्यर्थ करे ना
तब ही बात बनेगी॥
चारों और हम वृक्ष लगाय
पर्यावरण बचाएँ।
वर्षा का जल संग्रह करके
सबकी प्यास बुझाएँ॥
हरी भरी हो जाय धरा ये
फिर से वन बस जाएँ।
नदी ताल हो जल से पूरित
भू की प्यास बुझाएँ॥
इस सृष्टि का आधार है जल
सबकी तृषा मिटाता।
होती है इससे ही खेती
कृषक अन्न उपजाता॥
रखें प्रकृति को शुद्ध सभी हम
दोहन व्यर्थ ना हो।
जल को भी हम शुद्ध रखें सब
कोई अनर्थ ना हो॥
सावन
सावन की रुत आई
कृष्ण घटा अब छाई
मिलके झूमे मस्ती में
खुशियाँ मनाइए॥
मेंढक टर्राने लगे
झींगुर भी गाने लगे
सावन की फुहारों में
प्रेम गीत गाईये॥
अमृत-सी बून्दें आई
मन में खुशियाँ छाई
सुहानी रुत है बड़ी
मन महकाईये॥
गाओ मिलकर सभी
संगीत मल्हारअभी
सावन में झूला डले
होले झोटा खाइए॥
मेहनत
पुरुषार्थ सदा करो
आलस को दूर करो
जीवन उन्नति हेतु
मेहनत कीजिए।
आए कर्म करने को
व्यर्थ न विचरने को
तोड़ न मेहनत का
सदा कर्म कीजिए॥
खुश होते भगवान
देते वह वरदान
जीवन में मेहनत
हमेशा ही कीजिए॥
करता जो मेहनत
जो रखता है हिम्मत
भाग्य पर नहीं रहे
पुरुषार्थ कीजिए॥
मेरा हिंदुस्तान
सागर की गहराई,
हिमगिरि की ऊंचाई
हरियाली-सी मुस्काई,
मेरा हिंदुस्तान है॥१॥
पावन गंगा की धारा,
सूरज-सा उजियारा
पूरी दुनिया से न्यारा,
भारत महान है॥२॥
विभिन्नता में एकता,
सामाजिक समानता,
दुनिया में महानता,
जो विश्व की शान है॥३॥
जहाँ नारी का सम्मान,
अतिथि का होता मान,
हर बात में ईमान,
विश्व का कल्याण है॥४॥
वसुधा ही परिवार,
जिसकी सीमा अपार,
जिसे पूजता संसार,
जो आर्य संतान है॥५॥
जो विद्वत्ता में हैआगे
दुश्मन जिससे भागे
जहाँ सभी स्वार्थ त्यागे
ये देश महान है॥६॥
जोचिड़ियाहैसोने की
जहाँ प्रथा है देने की
नही किसी से लेने की
वो त्याग का नाम है॥७॥
छवि
मोहिनी छवि श्याम की
प्यारे श्री घनश्याम की
मन हो मगन देख
हिय में बिठाइए॥
मुरली की तान सुन
मन में उठी है धुन
रोम रोम हर्षित है
सभी हरषाइए॥
देख कृष्ण का ये रूप
संग राधा का स्वरूप
सुध बुध भूल बैठे
मन से ही ध्याइए॥
छोड़कर मोह माया
तजके नश्वर काया
मनमोहनी छवि को
भक्ति द्वारा पाइए॥
मंगल
मंगल होय सृष्टि का
नाश होय कुदृष्टि का
करें सभी शुभकर्म
शुभफल पाइये॥
करो ईश पर विश्वास
होय अमंगल नाश
करें ना बुरा किसी का
मंगल मनाइये॥
मंगल कामना करो
दया भाव चित्त धरो
मिटे सभी रोग शोक
सभी सुख पाईये॥
मंगल का होय गान
अमंगल अवसान
खुशहाली चहुँओर
मिलके फैलाइये॥
करता जो पूजाध्यान
पा लेता हैआत्मज्ञान
हृदय में मंगल हो
मंगल ही पाईये॥
भावना रहे विशुद्ध
होय न कोई विरुद्ध
करे मंगलकामना
मन में हर्षाईये॥
मन से करें विचार
मंगल का हो प्रसार
करें शुभकर्म सभी
अशुचि हटाइये॥
करें कर्म का आह्वान
सभी सुने गीताज्ञान
अमंगल नाश कर
मंगल को पाईये॥
डॉ. एन. के. सेठी
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