
भारतीय संविधान (Indian Constitution) में आरक्षण (Reservation) का दंश
भारत एक लोकतांत्रिक देश है! सन् १९५० में भारत का संविधान (Indian Constitution) लागू हुआ था! संविधान भारत का सर्वोच्च विधान माना जाता है, पर संविधान में कुछ बड़ी खामियाँ भी है, इसलिए संविधान को कुछ हद तक सही नहीं माना जाता! जैसे-जातिगत आरक्षण स्वस्थ समाज के लिए एक दंश है!
नि: संदेह आज जातिगत आरक्षण समाज में द्वेष फ़ैलाने का ही कार्य कर रहा है पर स्वस्थ्य समाज के निर्माण के लिए हर क्षेत्र में समान भागीदारी के साथ समान शिक्षा भी आवश्यक है, जो आरक्षण कभी मनुवादी सोच नहीं बनने देगा!
आरक्षण समाज को अपने भाग्य स्वयं गाढ़ने की स्वतंत्रता छिन लेता है, उसका साहस नष्ट कर देता है! सही मायने में देखा जाए तो आरक्षण आरक्षित समाज की सोच (थोट्स) को सीमित यानी छोटी कर देती है यह आरक्षण स्थिति न तो समाज के लिए सही है और न ही सरकार के लिए! केवल जाति कैसे आरक्षण का निर्धारण कर सकती है? ग़रीबी क्या जातिगत है? आज ग़रीबी तो सभी वर्गों में है, पर आरक्षण कुछ जातियों को ही क्यों?
आज समृद्ध शक्तिशाली नेता जैसे मूलायम सिंह यादव, मायावती, पासवान आदि किस मायने में अन्य से कमजोर है, तो भी यह आरक्षण की श्रेणी में क्यों? क्यो न जाति रहित आरक्षण की आवाज़ को बुलन्द करते है?
इसलिए संविधान को कुछ हद तक सही नहीं माना जाता! जब तक कि भारतीय संविधान में आरक्षण जाति रहित नहीं होता!
संविधान में आवश्यक संशोधन कर स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए सभी वर्गों के पिछड़े लोगों को आरक्षण देना होगा, ताकि जो पिछड़े या गरीब लोग हैं, वह आगे बढ़ सके! और शिक्षा क्षेत्र में समानता का अधिकार मिल सके! ताकि देश के विकास के लिए कुछ योगदान दे सके!
मैं संविधान का अपमान तो नहीं करता, बल्कि भारत को सर्वोच्च बनाने के लिए भारतीय संविधान में आरक्षण का जाति रहित होना ज़रूरी है!
जय हिंद, जय भारत
भरत पटेल
हाड़ेतर जालौर
राजस्थान
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