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सरस्वती वंदना (Saraswati Vandana)
Saraswati Vandana: हे माँ सरस्वती,
तू प्रज्ञामयी मां
चित्त में शुचिता भरो,
कर्म में सत्कर्म दो
बुद्धि में विवेक दो
व्यवहार में नम्रता दो।
हे माँ सरस्वती
हम तिमिर से घिर रहे,
तुम हमें प्रकाश दो
भाव में अभिव्यक्ति दो
मां तुम विकास दो हमें।
हे माँ सरस्वती
विनम्रता का दान दो
विचार में पवित्रता दो
व्यवहार में माधुर्य दो
मां हमें स्वाभिमान का दान दो।
हे माँ सरस्वती
लेखनी में धार दो
चित्त में शुचिता भरो,
योग्य पुत्र बन सकें
ऐसा हमको वरदान दो॥
हे करुणा मयि माँ शारदे
विद्या वाणी की देवी माँ शारदे,
नित तेरी मैं आराधना करु,
ऐसी मुझे विमल मति दे,
गौ, गंगा की मैं नित सेवा करु।
हे मधुर भाषिणी माँ शारदे,
तिमिर का तू नाश करती,
कुविचार का तू सर्व नाश करती,
सबको सुविचार और ज्ञान दे मां।
हे शुभ्र वस्त्र धारणी माँ शारदे,
जो भी तुम्हारे शरण में आये,
उसे सही राह बताना मां,
उसे सद् बुद्धि दे देना मां।
हे माँ सरस्वती ऐसा वरदान दो,
दीन दुखियों की सेवा सदा करु,
राह से भटके राही को मैं सही राह बताओं,
नित नित तेरा ही ध्यान करु मां
हे माँ सरस्वती
हे माँ सरस्वती
हे माँ जनोपकारणी
जग जननी, जल जीवधारणी।
स्वर्णिम, श्वेत, धवल साडी़ में
चंचल, चपल, चकोर चक्षुचारणी।
ज्ञानवान सारा जग करती माँ
अंधकार, अज्ञान सदैव हारणी
विद्या से करती, जग जगमग
गुह्यज्ञान, गेय, गीत, गायनी।
सर्व सुसज्जित श्रेष्ठ साधना सुन्दर
हर्षित, हंस-वाहिनी, वीणा वादिनी
कर कृपा, करूणा, कृपाल, कब कैसे,
पल में हीरक—रूप—प्रदायिनी।
मूर्त ममतामय, ममगात मालती,
जब भटके, तम में माँ तुम्ही संवारिणी,
कितने कठिन, कष्ट कलुषित झेले माँ,
मार्ग प्रकाशित करदे माँ, मोक्षदायिनी।
जनप्रिय माँ जनोपकारणी
जग जननी, जल जीवधारणी। ।
हमारी गौ माता
हिन्दुओं कात्म गौरव गाय ही है,
धर्म ग्रंथों में दिया है इसको सम्मान है,
इसी के दूध से श्रृंगी ऋषि ने,
खीर बनाई थी और हुआ राम जन्म।
गौ हमारी पूज्य माता सदा से,
मानव का दिव्य नाता है सदा से,
इसके दूध से औषधि बनती है
जो रोगों से मुक्ति दिलाती है।
मां तो हमें बचपन में ही दूध देती है,
प्यार से हमारा माथा चूम लेती है,
गाय तो सारी उम्र अमरित देती है,
इसी लिए हर किसी की चहेती है।
गौ माता तो ममता का भंडार है,
जिस घर में गौ रहती है,
पूर्वज भी प्रसन्न हो जाते है,
इसी लिए गाय देवी देवताओं से भी बड़ी है॥
गौ माता
हमको दूध माखन घृत देती है,
अपना पेट नित्य तृण पल्लव से भर देती है।
जन के तीनों ताप मिटाती है,
तैंतीस कोटि देवता गौ के रोम-रोम में रहते हैं।
पाप भार जब बड़े धरा पर,
तब रूप गौ का धरती है।
गौ के सच्चे सपूत मन वांछित फल पाते है,
राजा दिलीप और श्रेष्ठ वीर अर्जुन बन जाते है।
केदारनाथ को घृत का लेपन अति प्यारा है,
श्री कृष्ण रूप धर सर्व प्रथम गोपाल बने।
पंचगव्य पीकर अपना तन मन पवित्र होता है,
गौ की पूजा कर घर स्वर्ग बन जाता है।
हे करुणामयी माँ शारदे
विद्या वाणी की देवी माँ शारदे,
नित तेरी मैं आराधना करु,
ऐसी मुझे विमल मति दे,
गौ, गंगा की मैं नित सेवा करु।
हे मधुर भाषिणी माँ शारदे,
तिमिर का तू नाश करती,
कुविचार का तू सर्व नाश करती,
सबको सुविचार और ज्ञान दे मां।
हे शुभ्र वस्त्र धारणी माँ शारदे,
जो भी तुम्हारे शरण में आये,
उसे सही राह बताना मां,
उसे सद् बुद्धि दे देना मां।
हे माँ सरस्वती ऐसा वरदान दो,
दीन दुखियों की सेवा सदा करु,
राह से भटके राही को मैं सही राह बताओं,
नित नित तेरा ही ध्यान करु मां
हे माँ शारदे
मैं आराधना तुम्हारी कर रहा हूँ
शब्दों को बनाने के लिए
चुन चुन कर एक लतिका बना रहा हूँ
अक्षर अक्षर जोड़ कर शब्द बना रहा हूँ
शब्दों में जीवंतता, जिजीविषा दो
मां विद्या दायिनी।
हे माँ शुभ्र वस्त्र धारणी
दे मुझे दिव्य दृष्टि निहारिणी
पवित्रता की मूर्ति तुम हो मां
तुम सद् भाव की प्रवाहिनी
ज्ञान दायिनी विमल मति प्रदान कर
मां निश्चय हृदय का दान कर।
हे माँ वीणा धारणी
पाती में वीणा धरै, तू कमल विहारणी
हम अन्धेर से घिर रहे तुम प्रकाश दो
लेखनी में धार दो नित प्रयास दो हमें
हे माँ हमें विनम्रता का दान दो मां
मैं कोटि-कोटि प्रणाम कर रहा हूँ॥
फूल तुम पर मैं बिखराऊँ
आओ मेरी प्रेयसी! जी भर मैं दुलराऊँ।
तेरा रूप मनोहर मेरे मन की ज्वाला,
तुम कुछ इतनी सुंदर ज्यों फूलों की माला,
तेरे चलने पर यह धरती मुस्काती,
देखकर रूप तुम्हारा किरणें भी शरमातीं,
तुम जिस दिन आई थी, मन में मैं सकुचाया,
लेकर छाया-चुम्बन कुछ आगे बढ़ आया,
आओ पास हमारे फूल तुम पर मैं बिखराऊँ।
चंचल सूरज की किरणें धरती रोज़ सजाती,
सिन्धु लहरियाँ तक से बेखटके टकरातीं,
उड़-उड़ जाते पंछी गाकर गीत सुहाना,
खिल खिल पड़ती कलियाँ सुन भौंरों का गाना,
तुम लहराओ लाजवंती-सा अपना आंचल,
मुझ पर करते छाया नभ के कोमल बादल,
छूकर कनक अंगुलियाँ जगती से टकराऊँ,
तेरे नयनों से जब मैंने नयन मिलाये,
उस दिन चांद-सितारे धरती पर झुक आये,
बोल गयी थी कोमल-कोमल कोमल भाषा,
देखो, जी मुस्काओ, आई मन्जुल आशा,
तेरी प्रीति-प्रिया यह इस पर गीत लुटाओ,
तेरी मानस-शोभा इस पर तुम लुट जाओ।
दे-दो अपना आंचल जी भर के फहराऊँ।
वह चन्दन की गलियाँ जिसके नीचे छाया,
उस दिन तुमको जाने क्यों मैंने शरमाया,
अंचल छोर उठा जब दांतों तले दबाया,
नत नयनों से देखा मन-मन मैं मुस्काया,
दुनिया क्या कहती है उसको यों ठुकराया,
जैसे झटका खाकर कन्दुक पास न आया,
आओ लेकर तुमको नभ में मैं उड़ जाऊँ।
प्रेम क्या है
प्रेम कोई प्रर्दशन नहीं है,
प्रेम झूठी उपासना नहीं है,
प्रेम अतृप्त वासना नहीं है,
प्रेम कोई दिखावा नहीं है।
प्रेम शृंगार भी नहीं है,
प्रेम ना ही सत्कार है,
प्रेम कोई परीक्षा भी नहीं,
प्रेम कोई समझौता भी नहीं।
प्रेम कोई झूठे स्वप्न नहीं दिखाता,
प्रेम मोह जाल में भी नहीं फंसाता,
प्रेम में धोखा नहीं दिया जाता है,
प्रेम सम्बन्धों में वैर नहीं करता।
तो फिर प्रेम क्या है,
प्रेम मीरा के गीत है,
प्रेम राधा की प्रीत है
प्रेम असत्य पर सत्य की जीत है।
प्रेम शबरी के बेर है,
प्रेम अहल्या की प्रतिक्षा है,
प्रेम द्रोपदी का कृष्ण पर विश्वास है,
प्रेम देश के प्रति मर मिटने का भाव है।
प्रेम गीता का ज्ञान है,
प्रेम तुलसी का राम के प्रति सम्मान है,
प्रेम हीर रांझा की पहचान है,
प्रेम निस्वार्थ किया गया हर काम है।
कैसे तुमको दर्द बताऊँ
मन करता है गीत लिखूँ मैं,
मन करता है प्रीति जताऊँ।
संध्या की हर किरण दिवानी,
पखुरियों की मांग सजाती।
खिलती वन-वन संध्या रानी,
जीवन के मधु गीत सुनाती।
इस मधुमय बेला पर संगिनि,
आओ अपने अंक लगाऊँ।
उड़े विहंगम के मादक स्वर,
गगनांचल के छोर बिलाते।
सुमन दलों पर कर अठखेलियाँ,
मधुपरियों के शिशु अकुलाते।
मुझको दर्द बहुत है संगिनि,
कैसे तुझको दर्द बताऊँ।
वह चंदन की मंजुल डलिया,
रह-रह याद बहुत है आती।
जिसकी छाया नीचे बैठा
रहता था मैं तुम शरमाती।
तुमसे प्यार लगन है मेरी,
कैसे तुमको आज भुलाऊँ।
जय जय-जय श्री हनुमान जी
जय जय-जय श्री हनुमान जी
संकट मोचन कृपा निधान,
बल-बुद्धि विद्या के धाम
आपको मेरा शत्-शत् प्रणाम।
मारुत नंदन असुर निकन्दन,
जन मन रंजन भव भय भंजन,
सन्त जनों के सुखनंदन
अंजना नंदन शत्-शत् वंदन।
भक्तजनों के प्रति पालक
दीनों के आनन्द प्रदायक,
अनवरत रामगुण गायक,
बाधा विध्न विदारक।
हे राम दूत पवन पूत
शांति धर्म के अग्रदूत,
सतमार्ग के तुम प्रदर्शक
सत्य धर्म के हो तुम रक्षक।
मानवता के महाप्राण हो
मृतकों में भी भरते प्राण हो
हृदय में बसते सीताराम
प्रभु श्री हनुमान को प्रणाम।
अनाचारी आज प्रचण्ड है
रक्षक भी हो गये उदण्ड है
करो अनाचार का दमन
जग का भय ताप शमन।
दुख दरिद्रता का नाश करो
अनाचारियों का विनाश करो
दीन दुखियों के कष्ट हरो तुम
जय जय-जय श्री हनुमान जी।
भक्तो के तुम रक्षक हो
करो अनाचारियों का दमन,
हे राम भक्त पवन पुत्र
तुमको कोटि-कोटि प्रणाम।
धरती पर हरियाली लाये
आओ मिलकर पेड लगाए,
धरती पर हरियाली लाये,
इस धरती पर बढ़ गया प्रदूषण,
पेड लगाकर प्रदूषण भगाये,
आज जीवन खतरे में है,
पेड लगाकर जीवन बचायें।
जल प्रदूषण चारों ओर फैला है,
सभी नदियों का जल हुआ कसैला,
यदि जल ही शुद्ध न मिल पायेगा,
जीवन फिर कैसे बच पायेगा,
प्रकृति को संरक्षण देना ज़रूरी है,
पेड लगा कर रिस्ते मधुर बनाये।
हवा भी हो गई है प्रदूषित,
आसमान में ज़हर घुल रहा,
प्रदूषित हो गया तन-मन सारा,
मिट जाय प्रदूषण इस वसुन्धरा का,
पूरी धरा को स्वच्छ बनाए
पेड लगाकर धरती को सजाये।
भारत माँ की सन्तानों को,
यह संकल्प लेना ही होगा,
वृक्षारोपण करके देश सजाना होगा,
भारत माँ को प्रदूषण से,
मिलजुलकर बचाना ही होगा,
पेड लगाकर हरियाली लानी होगी।
संस्कृति की पोषक होती है बेटियाँ
हिमालय की चोटियाँ होती है बेटियाँ,
प्रेरणा की मूरत होती है बेटियाँ,
शहद-सी मिठास जैसी होती है बेटियाँ,
पतित पावनी गंगा-सी होती है बेटियाँ।
मां बाप की दुलारी होती बेटियाँ,
भोर की किरण होती है बेटियाँ,
बासन्ती बयार जैसी होती है बेटियाँ,
जीवन की व्याख्या होती है बेटियाँ।
दो परिवारो की लाडली होती बेटियाँ,
धर्म, न्याय की रक्षक होती है बेटियाँ,
प्रातःकाल की प्रार्थना होती है बेटियाँ,
संकट में राह बताती है बेटियाँ।
त्याग-तप की खान होती बेटियाँ,
कुल का गौरब होती है बेटियाँ,
बेटे से ज़्यादा ज़िम्मेदार होती बेटियाँ,
अपनी कक्षा में प्रथम आती है बेटियाँ।
वैदिक ऋचाएँ जैसी होती है बेटियाँ,
गुरु ग्रंथ की वाणी जैसी होती बेटियाँ,
भोर की शीतल हवा होती है बेटियाँ,
दक्षता का दीप होती है बेटियाँ।
घर की आनबान शान होती है बेटियाँ
स्नेह की ख़ुशबू होती है बेटियाँ
फूलों से भी नाज़ुक होती है बेटियाँ
चिडिया-सी उड़ जाती है बेटियाँ।
सीमाओं की रक्षा भी कर रही बेटियाँ
वायुयान भी उडा रही है बेटियाँ
पूजा की थाल होती है बेटियाँ
आँसुओं को भी छिपाती है बेटियाँ।
जन्नत का नूर होती है बेटियाँ,
सबका ध्यान रखती है बेटियाँ,
ईश्वर की विलक्षण रचना है बेटियाँ,
परिवार की रौनक होती है बेटियाँ।
बेटा बेटी में न करो कोई भेद भाव,
दोनों को दे बराबर का प्यार,
आओ करें बेटियों का संरक्षण,
दे इनको महत्त्व और अभिरक्षण॥
आंतकवाद से परेशान है
मानवता के दुश्मन है
प्रगति के वे बाधक है
इस धरा पर वे राक्षस है
आंतकवादी वे कहलाते है।
दुनिया के सभी देश
आंतकवाद से परेशान है
कुछ देश ही आंतकवादी है
मेरा देश भी परेशान है।
भारत में समय-समय पर
आंतकवादी लोगों की जान ले रहे है
सीमा पर सिपाही भी
आंतकवादियों से लोहा ले रहे है।
आज देश के बाहर
और देश के भीतर
आंतकवाद पनप रहा है
राजनीति के संरक्षण से
आंतकवाद बड़ रहा है।
यदि जीवन को बचाना है
सब को संगठित होना होगा
इन विनाशकारी ताकत से
मिलजुल कर लड़ना होगा।
शब्द ब्रह्म है
शब्द से ही पीड़ा
शब्द से ही गम
शब्द से ही खुशी
शब्द से ही मरहम।
शब्द से प्रेम
शब्द से दुश्मन
शब्द से दोस्ती
शब्द से ही प्यार।
शब्द से ही समृद्धि
शब्द से ही दीनता
शब्द से निकटता
शब्द से ही दूरियाँ।
शब्द से ही अर्पण
शब्द से ही समर्पण
शब्द से ही अमृत
शब्द ही विष।
शब्द से ही नजदीकी
शब्द से ही दूरियाँ
शब्द से ही शीतलता
शब्द से ही उष्णता।
शब्द से हम सिखते है
शब्द से लिखते है
शब्द से कहते है
शब्द ही सुनते हैं।
शब्द ही बह्म है
शब्द ही कर्म है
शब्द ही जीवन है
शब्द ही मृत्यु है॥
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजाररूद्रप्रयाग उत्तराखंड
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