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आधुनिकता (Modernity)
आधुनिकता (Modernity) शब्द प्राचीनता का विलोम कहें तो कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं होगी। क्योंकि आधुनिकता एक वर्तमान परिपेक्ष्य में जीने का एक ढंग है प्राचीन समय में प्रत्येक वस्तु, प्रत्येक विचार, प्रत्येक गुण, प्रत्येक भाषा,प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक रंग व रूप उस प्राचीन वातावरण के अनुरूप चलता था वही आज के इस वर्तमान में प्रौद्योगिकिकरण के युग में आधुनिकता की चकाचौंध में संपूर्ण जगत में समयानुसार बदलाव हम सभी को देखने में मिलता है और मिल रहा है। बदलते परिवेश में आधुनिकता के दौर में किसी ने ठीक ही कहा है कि-
वक्त बदले तो बदल जाना चाहिए इंसान को, जो न बदले देखकर वक्त के फरमान को, वक्त उड़ा देता है ठोकरों से उस नादान को। अर्थात हमें समय के साथ-साथ बदलाव करते रहना चाहिए। जिससे हम,हमारा समाज व हमारा राष्ट्र प्रगति की ओर बढ़ सके वर्तमान परिपेक्ष्य में आधुनिकता एक सोच है एक विचार हैं जो इंसान को इस दुनिया के प्रति अधिक जागरूक व समयानुसार ढलने की सीख देता है यह आधुनिकता मानवीय दृष्टिकोण से जीवन जीने का ढंग सिखलाती है.
आधुनिकता इंसान को इंसान बनाती हैं ऐसे ही एक सच्चे अर्थों में राष्ट्र का उत्थान संभव है आधुनिकता केवल विकसित या विकासशील देशों में ही नहीं अपितु जीवन के हर एक क्षेत्र में देखी जा सकती हैं आज के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यदि देखा जाए तो हर एक देश आधुनिकता को आत्मसात करने में लगा हुआ है। आधुनिकता का एक सीधा व सरल सा अर्थ यह है कि समय के साथ बदलाव अर्थात ‘नयापन’ जिस प्रकार लोग प्राचीन समय में कोसों दूर की यात्रा बैलगाड़ियों, ऊँटगाडियो पर करते थे उस यात्रा में तकरीबन 8 से 10 सप्ताह लग जाते थे लेकिन उसी प्राचीन काल को आधुनिकता की आंधी ने कोसों दूर की यात्रा हवाई जहाज द्वारा कुछ घंटों में तय करवा दी है।
इस आधुनिकता ने मानव का जीवन अति सरल बना दिया है जब मानव कोई कार्य के लिए कई घंटों लाइनों में लगकर परेशान होकर उस कार्य को अंजाम देता था लेकिन वही कार्य इस आधुनिकता ने कुछ मिनट में घर बैठे करने की शक्ति हमें प्रदान की है, इसके अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं जैसे बिजली का बिल भरना हो, या गैस सिलेंडर बुक करवाना हो, कोचिंग संस्थानों की फीस भरनी हो या बैंक का लेन -देन करना हो। इस आधुनिकता ने मानव के समय की बहुत बचत की है।
आधुनिकता ने मानव को एक समय के सदुपयोग का सुंदर-सा उपहार दिया कि जो कार्य पहले 2 या 3 घण्टे के अंतराल में होता था वही कार्य आज आधुनिकता ने 5 से 10 मिनट में करवाकर एक आदर्श मिशाल पेश की थी। लेकिन आज का मानव उसी बचे हुए समय का सदुपयोग की जगह दुरुपयोग कर रहा है। मानव आज के इस दौर में मोबाइल की दुनिया मे खो गया है मोबाइल का कुछ सदुपयोग भी है तो दुरुपयोग भी कम नहीं है। आधुनिकता की इस आंधी ने सबको अंधा कर रखा है क्योंकि अधिकतर लोग इसका दुरुपयोग कर समय को बर्बाद कर रहे है।
आधुनिकता की आंधी यहां तक ही नही वरन स्त्री-पुरुषों के कपड़ो को भी अछूता नहीं रखा है आधुनिकता व पाश्चात्य संस्कृति ने वेशभूषा को ही बदल डाला है। आज स्त्री व पुरुष अर्धनग्न अवस्था मे आधुनिकता का ठप्पा ऊपर उठाए बैखोफ़ घूम रहे है जिसे हम फ़ैशन की दुनिया कहते है। हाँ आधुनिकता आज के समय की मांग है लेकिन इतना ही नही की इस आधुनिकता की वजह से हमारे माता पिता को हमारी वजह से नीचे देखना पड़े। वस्तुतः हमे समय के साथ चलना चाहिए। क्योंकि ये आज के समय की मांग है।
समाज और पंच
हमारी भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल में पंच को परमेश्वर का दर्जा दिया गया था ।पंच को परमेश्वर इसलिए कहा गया क्योंकि समाज में कोई भी कार्य हो,न्याय हो वो पंच ही किया करते थे और वो भी निष्पक्ष।
जैसे-जैसे समय बीतता गया भारतीय संस्कृति में पाश्चात्य संस्कृति का समावेश होता गया वैसे वैसे समाज के यह पंच अपनी परमेश्वर की उपाधि होते गए। इसका एकमात्र कारण यही रहा है की वर्तमान परिपेक्ष में उनके द्वारा किया गया कार्य या उनके द्वारा दिया गया निर्णय निष्पक्ष से पक्षपात की ओर अधिक बढ़ गया।
हमारे भारतवर्ष में नियम व कानूनों का एक पुंज है जिसे संविधान कहा जाता है संपूर्ण भारतवर्ष संविधान से चलता है लेकिन अधिकतर गांव में पिछड़े इलाकों में विभिन्न प्रकार के निर्णय सामाजिक परिपेक्ष में न्याय का अधिकार केवल इन पंचों के पास ही है।
प्राचीन काल में तो इनका निर्णय सटीक,उचित व निर्णायक होता था लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे इनके निर्णायक फैसले धूमिल होते गए इसका यही कारण है कि इन पंचों ने समाज के साथ पक्षपात पूर्ण व्यवहार करके कमजोर तथा निर्दोष पक्ष को दोषी ठहराया है।
अनेक जगहों पर नासमझ व स्वयं को बादशाह समझने वाले इन पंचों ने समाज को गर्त में डालने का काम बखूबी किया है यह पंच कमजोर पक्ष पर इस प्रकार हावी होते हैं जैसे एक भूखा शेर किसी शिकार पर होता है।
कई जगहों पर इन पंचों ने दबाव बनाकर मृत्यु भोज करवाए हैं, बाल विवाह करवाए हैं,विभिन्न प्रकार के नशों को शुरू करवाया है,अनेक प्रकार की समाज में बुराइयां व कुरुतिया अगर है तो इनका एकमात्र कारण है :-ये पंच कई बार तो कार्य करने वाले व्यक्ति के पास इतना धन नहीं होता है कि वह मृत्यु भोज में अच्छे पकवान बना सके,बेटी को दहेज में महंगा सामान दे सके तथा कोई भी सामाजिक कार्य सही ढंग से कर सकें फिर भी इन पंचों के दबाव में आकर वो या तो अपनी जमीन जायदाद गिरवी रखता है या साहूकार से ऋण लेकर वह कार्य संपन्न करता है।
धिक्कार है ऐसे पंचो पर जो किसी गरीब के पेट पर लात रखकर स्वयं मौज उड़ाते रहते हैं मुंशी प्रेमचंद जी के द्वारा लिखी गई पंच परमेश्वर कहानी आज के वर्तमान परिपेक्ष्य में बहुत सटीक सिद्ध होती नजर आ रही है।
जो पक्ष मजबूत होता है और दोषी भी होता है वह रातोंरात पंचों की जेब गर्म करके सुबह कमजोर व निर्दोष पक्ष पर आरोप लगा देते हैं और यह समाज इन झूठे पंचों के निर्णय को स्वीकार कर निर्दोष को दोषी करार दिया जाता है क्योंकि आखिर पंच परमेश्वर जो है….जिसके चलते पंचों के शिकार अनेक लोगों ने आत्महत्या करके अपनी ईहलीला समाप्त तक कर ली है।
मेरी विनम्र अपील रहेगी कि पंच ऐसे लोगों को बनाए जो परमेश्वर के समान हो जिनका निर्णय निष्पक्ष हो।झूठे मक्कार, पक्षपाती व भ्रष्ट व्यक्तियों से दूर रहें। अधिक आवश्यकता पड़ने पर भारत के कानून व नियमों का पुंज संविधान का सहारा लें और अपने आपको समाज में श्रेष्ठ सिद्ध करें समाज को आगे बढ़ाएं,समाज को शिक्षित करे, अपने आप को आगे बढ़ाएं इसमें हमारा और अपने राष्ट्र का कल्याण संभव है।
कमलेश कटारिया तिंवरी
प्रधानाध्यापक देचु
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