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सावन में बरसात (rain in saavan)
हुई जब सावन में बरसात (rain in saavan)।
नयन से करते नैना बात।
पवन तड़पाती है, चुनर उलझाती है॥
बूँद से झरता पल-पल नेह,
भिगोता भर-भर सारी देह,
अछूता कैसे मन का गेह,
निगोड़ा भाता फिर भी मेह,
उलझते पत्तों से जब पात,
हृदय में होता है उत्पात,
लाज भर आती है। पलक झुक जाती है। ०१
मधुप भी खोज रहा मकरन्द,
हुआ वह पुष्प देह में बन्द,
उठे तब माटी से भी गन्ध,
उड़े मन तोड़ समूचे बन्ध,
सिहरता पल-पल सारा गात।
जगे फिर पूरी-पूरी रात।
नींद कब भाती है। अगन लग जाती है॥ ०२
प्रीति वाला है मधुरिम काल।
भरे सब नदिया पोखर ताल।
लगे है कुदरत में भूचाल॥
बुरा है इस दिल का भी हाल।
हुआ है दिल पर जब आघात।
मिली प्रेमिल-सी यह सौग़ात॥
कोकिला गाती है। राग भर जाती है॥ ०३
हुई जब सावन में बरसात,
नयन से करते नयना बात,
पवन तड़पाती है, चुनर उलझाती है॥
संयमित कर ले हृदय
त्याग दे आलस मनुज नित, प्रात उठकर योग कर।
संयमित कर ले हृदय को, दूर तन के रोग कर॥
आंतरिक हो शुद्धता बल, शक्ति प्राणायाम से।
सिद्ध हो उपयोगिता तब, कब मिले आराम से।
स्फूर्ति ऊर्जा बल बढ़ेगें, नित घटेगा आयतन।
संचरित होगा रुधिर नव, खिल उठेगा तन-बदन॥
स्वस्थ होगा मित्र तन फिर, लोक का उपभोग कर॥
संयमित कर ले हृदय…
भार कितना ही बढ़ा ले, कर बदन को थुल-थुला।
प्राण अस्थिर हैं अतिथि से, नीर का ज्यों बुलबुला।
शोध कर ले चेतना का, अंग हों बलवान तब।
जोड़ ले अंन्तर्मना को, मिल सकें भगवान तब।
हो अगर तन मन गठित तब, क्या सकेंगे लोग कर।
संयमित कर ले हृदय…
ध्यान मुद्रा पद्म आसन, ओम् का नित जाप हो।
धमनियाँ हों शुद्ध अंतस्, दूर नित संताप हो।
भ्रामरी से कर्ण गुंजित, गोमुखासन पीठ बल।
योग हो अष्टांग भी यदि, स्वच्छता के मार्ग चल।
धार जीवन में इन्हे बस, कुछ न कुछ संजोग कर।
संयमित कर ले हृदय को…
बाबू जी
हमारे धन्य जीवन का, रहें आधार बाबू जी।
तुम्हारे पुण्य कर्मो को, कहें आभार बाबू जी॥
सदा पाला है नाज़ों से, हमेशा माफ़ की त्रुटियाँ।
सदा ही दर्द के बदले, रहे वह बाँटते खुशियाँ॥
शरारत हम करें जितनी, करें बस प्यार बाबू जी॥
हृदय के वह बड़े कोमल, दिखें हैं सख्त आँखों से।
उन्हीं पर हक़ जमाना है, हमें मतलब न लाखों से।
जुड़ें जो कीमती रिश्ते, वही बस तार बाबू जी॥
हमेशा नेक राहों पर, हमें चलना सिखाया है
दिये की भाँति ख़ुद जलकर, सही रस्ता दिखाया है
करें हम कर्म अच्छे ही, सिखाते यार बाबू जी॥
कहीं दुख की घिरे आँधी, सँभालें सेतु बनकर वो
हमेशा साथ देतें हैं, ख़ुशी का हेतु बनकर वो।
दुखों कष्टों की दुनिया से, लगाते पार बाबू जी॥
भँवर में डोलती नैया, किनारा भी नहीं दिखता।
कहीं उलझन घिरे आकर, सहारा भी नहीं दिखता।
पुरानी नाव हो अपनी, बनें पतवार बाबू जी॥
घनी रातों में दीपक से, दिखाते रोशनी हमको।
बनें चन्दा सितारों में, दिखाते चाँदनी हमको॥
हमारे ग्रंथ बाबू जी, हमारा सार बाबू जी॥
हाँ मैं अब तक जिन्दा हूँ
अनुभवों का पुलिन्दा हूँ।
हाँ मैं अब तक जिन्दा हूँ॥
पूरी कुछ आधी इच्छा
कुछ सच में मारी इच्छा
बोझ नहीं ख़ुद सँभलूँगा।
आदत है सब सह लूँगा।
पंख हुए कमजोर मगर-
फिर भी एक परिन्दा हूँ॥
हाँ मैं अब तक जिन्दा हूँ॥
सुख-दुख सारे झेले हैं
माना बहुत झमेले हैं
बेटी-बेटे हैं ख़ूब पढ़े
पापा यहाँ अकेले हैं।
अपनी हालत ऐसी है-
गर्वित ना शर्मिन्दा हूँ।
हाँ मैं अब तक जिन्दा हूँ॥
जोश बचा, हूँ थका हुआ
थोड़ा-थोड़ा पका हुआ
काम अधूरे कई मगर
कठिन अभी है बड़ी डगर।
आँखें रोशन हैं लेकिन-
माना आज उनीन्दा हूँ॥
हाँ मैं अब तक जिन्दा हूँ॥
जय अम्बे माता
हे जगजननी अम्बे माता, मुझको सेवा का वर दो।
ध्याऊँ मैं दिन रैन तुम्हें ही, दया दृष्टि माते कर दो॥
हे जगजननी…
दीप तुम्हारा जले रात-दिन, ज्योति अखण्ड जले माता।
निशदिन ध्यान तुम्हारा धरती, हृदय में प्रेम पले माता
झोली सबकी भरती दाती, दासी की झोली भर दो॥
हे जगजननी…
सर्वमंगला हे! जगदम्बे, रक्तिम सारी है धारी।
स्वर्ण मुकुट सिर पर है साजत, आंख तिहारी कजरारी।
देती हो वरदान हे देवी, मुझको भी सुख का वर दो।
हे जगजननी …
नवदुर्गा है शेरोवाली, शरण तिहारी मैं आयी।
दुखभंजनि हे मेहरावाली, सबने है महिमा गायी।
भटक रहीं हूँ, जानूँ किस विधि, कोइ बता मैया दर दो॥
हे जगजननी …
कारी अँधियारी रजनी है, चहुँ दिश तम ने है घेरा।
नैन मूंद कर मैं बैठी हूँ, करो मात मन में डेरा॥
माना अपराधिन हूँ तेरी, बालक जान क्षमा कर दो।
हे जगजननी …
ये दुखियारी चल के आयी, द्वार तिहारे जगजननी।
सारे कष्टों की तुम तारक, भक्तों की हो दुखहरनी॥
आस तुम्हीं से मैंने की है, शीश हाथ माते धर दो॥
हे जगजननी …
हे जगजननी अम्बे माता, मुझको सेवा का वर दो।
ध्याऊँ मैं दिन रैन तुम्हें ही, दया दृष्टि माते कर दो॥
भरोसा या विश्वास
भरोसा, उम्मीद, विश्वास
मात्र एक शब्द नहीं …
एक भाव है, जो उग आता है सहज ही…
जीने की आरज़ू को रखता जीवित …
बहुत शक्तिशाली शब्द है यह…
उतना ही नाजुक भी…
कहीं पर तो अनायास और निश्चित होता है …
जन्म से ही, आँख मूँदकर …
रिश्तों, माँ बाप परिवारीजनो पर…
कहीं पर जाँच परख कर किया जाता…
दोस्ती, परिचय, आभासी दुनिया में …
हाँ अचानक नहीं कर लेना चाहिए …
कुछ चीज़ें निश्चित ही होती…
अँधेरे के पश्चात उजाला…
रात के पश्चात दिवस…
चन्द्र के पश्चात सूर्य …
दुख के पश्चात सुख…
यही भरोसा रखता है …जीवित …
हमारे भीतर की सकारात्मकता को…
जीने का हौंसला और सम्बल…
जीने की संभावना प्रबल…
सूर्य की किरण न सही …
एक दीप की लौ पर भी भरोसा हो सकता है …
टूटती साँसो और छूटती ज़िन्दगी को…
ईश्वर का होता है भरोसा …
दुआओं, प्रार्थनाओं का भरोसा …
सद्कर्मो का भरोसा …
नेक मार्ग का भरोसा …
गुरु, ईश व माँ का भरोसा …
जीवन साथी का भरोसा …
मजबूत और अटूट…
क्योंकि यदि एक बार भरोसा टूटता है…
दोबारा शायद ही जुड़ पाता है…
देता है भयंकर पीड़ा और दर्द …
…भयंकर पीड़ा और दर्द …
—है ना…?
बेटियाँ बचाएँ
भ्रूण हत्या होता है पाप।
सहे भारी मन से माँ ताप।
मगर मैं पूछूँ एक सवाल।
सुता क्या होती है अभिशाप॥
बचाएँ बेटी क्यों यह बोल।
छुपी है भीतर सारी पोल।
शिकारी बैठें हैं नित ताक।
लिए विष का मन में वह घोल॥
जन्म ले कन्या जिस भी द्वार।
समझते हैं सब उसको भार।
कहे किससे वह जी की बात।
प्रकट कैसे हों मन उद्गार॥
पढ़ाई के हित जाती दूर।
पढ़ाना भी है उसे ज़रूर।
बुरी डालें जब कोई दृष्टि।
स्वप्न सब हो जातें हैं चूर॥
रहे कोई भी चाहे काम।
न बिटिया को मिलता आराम।
वृद्ध बच्ची हो रहे जवान।
जन्म का चुकता करती दाम॥
गली में घूमें नित हैवान।
बचाएँ कैसे उनसे आन।
लड़े यदि हित में करें विरोध।
गँवानी पड़ जाती है जान॥
उर्वशी कर्णवाल
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२- शिक्षक
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