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रिश्ते ऑनलाइन बनाम ऑफलाइन (relationships online vs offline)
रिश्ते ऑनलाइन बनाम ऑफलाइन (relationships online vs offline): ऑफलाइन रिश्तो की बात ही कुछ ओर थी, मजे ही मजे हुवा करते थे एक अलग ही तरह की आत्मीयता थी प्रेम था अपना पन का अनौखा ऐहसास था। कुछ पुराने आप और मुझ जैसे समझ सकते है। पर आज के बच्चे इस एहसास से अंजान है उस आत्मीय सुख से दूर बहुत दूर है वे इस ऑफलाइन सुख के लिये तरस रहे है। कल की यादें ताजा होते ही हमारे दिल और दिमाग मे से निकल ही आता है, वो भी क्या दिन थे!
ऑफलाइन की हमारी दुनियां बहुत ही हसिंन जवा रही थी, कितनी खुशनुमा आनंद ओर मस्ती भरे वै हमारे दिन थे। मैं यदी मेरे बचपन की बात करू तब तो ऑनलाइन क्या होता है दूर दूर तक भी आभास ही नही था न मोबाइल थे न फोन थे न टीवी थी हा कुछ कुछ धनवान (श्रीमंत) लोगो के घर फोन ओर टीवी आने शुरू हो चुके थे जो गरिब मध्यम वर्गिय परिवार थे उनसे यह सुख कोशो दूर थे।
यही कारन था हमारा बचपन खुशनुमा था आनंनदायक था तब हम अन्टी, भवरी, गुल्ली डन्डा, कब्डडी, खो खो, छुपा छई, खेला करते थे हममे घनिष्ट मित्रता थी समय पर सभी एक जगह भेला हो जाते थे बिना किसी सुचना के सब के सब समय पर एक जगह पहुच जाना अपने आप मे आज के समय एक मिशाल ही कही जायेगी वो दिन याद आते ही मन में खुशियों की बहार आ जाया करती है आनंद का संचार हो जाता है ऐसी हमारी मित्रता थी ऐसा हमारा प्यार था।
सुबह से साम हो जाती थी पता ही नही चलता था न भूख लगती थी न प्यास लगती थी हम इतने अपने खेलो मे व्यस्थ हो जाते थे की माँ हमे बुला बुला कर थक जाती थी। थोड़े बड़े क्या हुये तो पत्र लेखन शुरू हुवा मामा काका दादा नाना के पत्रो का हमे बे शबरी से इंतजार रहता था उन पत्रो को आज भी हमने सम्भाल कर रखे है। जब हम दादा नाना के यहा जाते थे तो बिलकुल भी उनहें नही छोड़ते थे सभी भाई बहन साथ ही रहते थे बहुत प्रेम था बहुत समय था ओर विश्वास भी ऐसी हमारी ऑफलाइन रिश्तो की कहानी थी।
अब आज के ऑनलाइन रिश्तो (online relationship) की बात करे तो यह दुनियां भी बड़ी निराली है हर सक्त यहा ऑनलाइन रहना पसंद करता है पर जब साथ होते है तो बात करने तक का समय नही होता है घर मेहमान बैठे है और हम ऑनलाइन रिश्ते निभाने मे व्यस्थ है जो प्यार ऑनलाइन दिखाया जा रहा है ऑफलाइन (online relationship) मे वह धार वह आत्मीयता नजर नही आती।
सब कुछ खाली खाली सुना सुना बुझा बुझा नरवस सा प्रतित होता है आज के मित्रों के पास साथ बैठने उठने का समय नही है सयुक्त खेल खालना तो बहुत दूर की बात है। ऑनलाइन ऐसे लगे है की किसी चिज का आभास ही नही है रिश्तों मे ऑनलाइन घन्टो बात होती है पर जब मिलते है बात करने को कुछ विशेष रहता ही नही मेरे मत से ऑनलान से रिश्तो मे जमीनी प्रेम मे बहुत ही कमी आई है।
आत्मीयता कम हुई है इससे बेहतर तो ऑफलाइन का जमाना बेहतर था प्रेम था सेवा थी जिज्ञासा थी मिलने की आतुरता थी उत्सुक्ता थी ऑनलाइन को कम कीजिये ऑफलाइन को आगे बढाइये सभ्यता संस्कृती की रक्षा कीजिये। रिश्तो की गरिमा बनाये रखीये आत्मीयता किसी ऑनलाइन से कम न हो ध्यान रखीये यै किमती रिश्ते है इनहे संझोकर रखिये।
शुरुआत हो चुकी है
भारतीय सभ्यता संस्कृती और परिवेश में विधवा स्त्री को काफी सम्मान की दृष्टी से देखा जाता रहा है, वही दूसरी ओर विधवा स्त्री पर बहुत से प्रतिबंध भी लगाकर रखे गये है। जो विधवा स्त्री को शालिन वृस्त्र पहने अंजान व्यक्तीयों से मर्यादा मे वार्ता करने अनअव्शयक गुमने फिरने की मनाही रही है। कुछ ऐसे बंधनो मे बांध कर रखा जाता रहा है।
कल तक बड़े परिवार थे सयुक्त परिवार थे पुरा घर आंगन हराभरा रहता था तब तक तो सब ठिक था चलता रहता था पर अब समय का परिवर्तन देख प्राश्चात्य संस्कृती के बढते प्रभाव को देखते हुये आज के टुटते बिखरते सयुक्त परिवार को देखते हुये अब विधवा स्त्री के इस परिवेश मे काफी परिवर्तन की आहट सुनाई दे रही है, और परिवर्तन हो भी रहा है।
वह भी हमारे आस पास ही मेरे ही मित्र है जीन्होने एक विधवा स्त्री से विवाह किया और आज भी सफलता से खुशहाल भरा जीवन जी रहे है एक ऐसा खुशहाल हस्ता खेलता परिवार हमारे सम्मुख है। जीसे देखकर ही उस मित्र पर अभिमान होने लगता है। गर्व होने लगता है।
ऐसे ही मेरे एक अन्य सजातीय मित्र के साले का असमय मृत्यु हो जाती है वै अपने पिछे पत्नी और एक बच्ची छोड़ जाते है माँ बाप का एकलौता सहारा छिन जाता है फिर भी सास ससुर अपनी बहु का विवाह बेटी बन कराते है। एव पोती को अपने पास रख कर स्वयं ही पालन पोशन कर रहे है। ऐसे विशाल सह्रदय लोग बहुत कम इस संसार मे हमे देखने को मिलते है। पर सुरवात हो चुकी है समाज एक नई करवट लेने को त्यार है।
समाज मे परिवर्तन हो रहा है। सबसे बड़ी समस्या तब आती है जब विधवा स्त्री के बच्चे भी हो विधवा स्त्री जो अब माँ है बच्चो को छोड़ नही सकती और उनके और पती के नाम के सहारे जीवन बिताना इस स्त्री की जुमेदारी भी होती है और संतान के प्रती प्रेम भी कोई भी पुरूष स्त्री को तो अपना लेता है पर बच्चो को अपनाना उसके लिये और समाज के लिये बड़ा जोखिम भरा होता है। फिर बच्चो के पिता के नाम पर बात अड़ जाती है।
यह मसला बड़ा ही सामाजिक भावनात्मक और मानसिक त्रस्दी भरा रहता है। यहा कुछ कहना अनुचित ही मुझे लगता है। ओर वह विधवा स्त्री बच्चो के सहारे ही तब संघर्ष करना होगा और बच्चो को एक नई उचाइयो पर ले जाना होगा और एक नई कहानी लिखनी होगी आखिर उन बच्चो का माँ के अलावा सच्चा हमद्रद कौन होगा?
हाँ यदि विधवा स्त्री निसंतान है या अभी तक उसे कोई संतान नही है तो परिवार के लोगो ने ही विधवा स्त्री का विवाह बेटी की तरह करना चाहिये। ओर समाज के सम्मुख एक मिशाल कायम करनी चाहिये, और मैं युवा नौजवानो से भी आव्हान करूगा की वै विधवा स्त्री संग विवाह कर उनका जीवन खुशहाल बनाये यह सभी कार्य हमे घर के बड़े बुजूर्गो के आशिर्वाद से पुरा करना चाहिये।
ताकि समाज मे एक मिशाल कायम हो उपर मे बता ही चुका हूँ सुरवात हो चुकी है बस हमे मजबुती से खड़े रहने समर्थन करने उत्साह बढाने की देरी है। देखो फिर कैसे समाज मे परिवर्तन आता है कैसे एक बेरंग जीन्दगी रंगीन होती है। खुशहाल होती है और कैसे एक विधवा स्त्री अपनी खुशियो के साथ आपका दामन कैसे खुशियो से भर देती है।
कुन्दन पाटिल
देवास
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