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रक्षाबंधन (Raksha Bandhan)
रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) सावन ऋतु का त्यौहार… बहन भाई के प्रेम का प्रतीक… सावन माह के आते ही बहनों में एक नई उमंग का संचार होने लगता है… मायके जाने की ख़ुशी… एक अलग ही आनन्द देती है… तो चलिए पढ़ते हैं प्रभजोत कौर जी द्वारा लिखी कहानी रक्षाबंधन…
प्रीत एक मासूम-सी लङकी। मगर ज़िन्दगी की मजबूरियों ने उसकी सारी मासूमीयत को ग्रहण लगा दिया। एक मध्यवर्गीय परिवार की लङकी है वह। दो बङी बहनों की शादी हो चुकी थी। एक भाई की भर जवानी में मौत पूरा घर ही बिखर-सा ही गया था। दूसरा भाई नशों की आगोश में खेलने लगा। प्रीत को पढ़ने का बहुत शौक था, पर बाप ने एक अच्छा घर देखकर उसकी उम्र से दस साल बङे लङके से उसकी शादी कर दी। घरबार अच्छा था पर उसका पति भी शराबी था। देर रात घर आना उसकी आदत थी। उसको प्रीत की ख़ुशी की कोई परवाह नहीं थी। वह उसे न मायके जाने देता और ना ही राखी बाँधने भी नहीं जाने देता था। वह विचारी अपने दिल में ही अपने अरमान दबाई रखती। कहती भी तो किसे कहती।
हर साल राखी पर उसकी ननानें आती थी वह बड़े चाव से उनका स्वागत करती है। तरह-तरह की भोजन बनाती है लेकिन कभी भी उसने चेहरे पर उदासी नहीं दिखाई कि वह भी मायके जाने के लिए कितनी व्याकुल है शादी के बहुत सालों बाद उसके पति को समझ आने लगी तो उसने उससे अपनी भाई की राखी पर जाने देना शुरू कर दिया। पर एक शर्त पर कि वह नहीं जाएगा साथ उसके। प्रीत का भाई उससे बहुत साल बड़ा था पर उसने शादी प्रीत की शादी के बाद करवाई लेकिन उसकी भाभी ने प्रीत की ज़िन्दगी में एक और उदासी भरे वक़्त को डाल दिया। जब भी उस प्रीत या प्रीत की बहनें राखी पर मायके आती तो उसकी भाभी उन्हें उसके भाई के साथ मिलने ना देती रात को उसकी भाभी शुरू से ही उसके पति को नींद की गोलियाँ खिला देती थी तो नशे से उसका भाई उठ नहीं पाता था बेचारी बहनें मन मसोसकर भाई को देखे बिना ही राखी के दिन वापस ससुराल लौट आती।
ऐसे ही कई साल बीत गए भतीजे भी हो गए पर उसकी भाभी उनकी शक्ल तक देखने नहीं देती थी खासकर राखी के दिन तो बिल्कुल भी नहीं। फिर वक़्त ने बहुत बड़ा मोड़ लिया उसकी भाभी पड़ोस में रहने वाले किसी व्यक्ति के साथ भाग गई। उसके बाद प्रीत जब भी कभी मायके जाती तो भतीजे और भाइयों के साथ मिलना शुरू हो गया बहुत अच्छा लगता था उसे। उसने भाई के राखी बाँधने भी शुरू कर दी भतीजों के लिए भी घर से ही मिठाई बनाकर लेकर जाती है। पति ने भी उसे मायके जाने की इजाज़त दे दी। लेकिन खुश थी भाई के साथ भतीजे भतीजी उनके साथ तीनों बहनें समय व्यतीत कर लेती थी। पर प्रीत के मन में एक कसक-सी रहती है कि इतने सालों बाद मिली ख़ुशी से वह खुश हो या भाई के बिछड़े हुए परिवार घर को देख कर दुखी हो।
प्रभजोत कौर
मोहाली
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