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मृत्युभोज (Mrityubhoj) एक सामाजिक कलंक
परिवार से किसी भी सदस्य की मृत्यु होने पर प्रतिभोज करना मृत्युभोज (Mrityubhoj) कहलाता है। इन दिनों पूरे देश में कोरोना महामारी के चलते मृत्युभोज जैसी सामाजिक कुरूतियों पर पूर्ण रूप से पाबंदी है। मृत्युभोज को रोकने के लिए राजस्थान मृत्युभोज निवारण अधिनियम १९६० पारित किया हुआ हैं।
उक्त एक्ट की धारा ३ में कहा गया हैं कि कोई भी व्यक्ति राज्य में मृृत्युभोज का आयोजन नहीं करेगा न ही उसमें शामिल होगा। इस नियम की पालना करते हुए हम सभी को मिलकर सर्वसहमति द्वारा यह निर्णय लेना चाहिए कि इसे हमेशा के लिए बन्द कर दिया जाए। देहात में बसे भोले भाले लोग इस दलदल में इस भांति फसे हुए है कि मृत्युभोज करने के लिए अपनी पुस्तेनी ज़मीन तक बेच देते हैं।
इंसान स्वार्थ व खाने के लालच में कितना गिरता है उसका नमूना होती है सामाजिक कुरीतियाँ। ऐसी ही एक पीड़ा देने वाली कुरीति वर्षों पहले कुछ स्वार्थी लोगों ने भोले-भाले इंसानों में फैलाई थी वह है मृत्युभोज। मानव विकास के रास्ते में यह गंदगी कैसे पनप गई यह समझ से परे है। जानवर भी अपने किसी साथी के मरने पर मिलकर दुःख प्रकट करते हैं। लेकिन इंसानी बेईमान दिमाग़ की करतूतें देखो, यहाँ किसी व्यक्ति के मरने पर उसके साथी, सगे-सम्बंधी भोज करते हैं, मिठाइयाँ खाते हैं। यह एक सामाजिक बुराई है। इसको ख़त्म करने के लिए हम सभी को जागरूक होकर काम करना पड़ेगा।
किसी घर में ख़ुशी का माहौल हो तो समझ आता है कि मिठाई खिलाकर ख़ुशी का इज़हार करें, ख़ुशी जाहिर करें। लेकिन किसी व्यक्ति के मरने पर मिठाइयाँ खाई जाएँ, इस शर्मनाक परम्परा को मानवता की किस श्रेणी में रखें। इंसान की गिरावट को मापने का पैमाना कहाँ खोजे, इस भोज के भी अलग-अलग तरीके हैं।
कहीं पर यह एक ही दिन में किया जाता है, कहीं तीसरे दिन से शुरू होकर बारहवें-तेरहवें दिन तक चलता है, कई लोग श्मशान घाट से ही सीधे मृत्युभोज का सामान लाने निकल पड़ते हैं। कई समाजसुधारक तो ऐसे लोगों को सलाह भी देते हैं कि क्यों न वे श्मशान घाट पर ही टेंट लगाकर खा लें ताकि अन्य जानवर आपको गिद्ध से अलग समझने की भूल न कर बैठे। यही हक़ीक़त है और हम सब इसमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं।
चला गया संसार छोड़ कर
जिसका पालन हारा,
पड़ा चेतना हीन जहाँ पर वज्रपात दे मारा।
खुद भूखे रह कर भी परिजन
तेरहबी खिलाते,
अंधी परम्परा के पीछे जीते जी मर जाते।
इस कुरीति के उन्मूलन का
साहस कर दिखलाओ,
धर्म यही कहता है बंधुओ, मृत्यु भोज मत खाओ॥
तेजराज भाटी (अध्यापक)
रा.उ. मा. विद्यालय थुम्बली,
बाड़मेर, राजस्थान।
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