Table of Contents
माँ का कमरा (mom’s room)
माँ का कमरा (mom’s room): छोटे-से पुश्तैनी मकान में रह रही बुज़ुर्ग बसंती को दूर शहर में रहते बेटे अनुराग का पत्र मिला-“माँ, मेरी तरक्क़ी हो गई है। कंपनी की ओर से मुझे बहुत बड़ी कोठी मिली है, रहने को। अब तो तुम्हें मेरे पास शहर में आकर रहना ही होगा। यहाँ तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होगी।”
पड़ोसन रेशमा को पता चला तो वह जलन से बोली, “अरे रहने दे शहर जाने को। शहर में बहू-बेटे के पास रहकर बहुत दुर्गति होती है। वह वीणा गई थी न, अब पछता रही है, रोती है। नौकरों वाला कमरा दिया है, रहने को और नौकरानी की तरह ही रखते हैं। न वक़्त से रोटी, न चाय।”
अगले ही दिन बेटा अनुराग कार लेकर आ गया। बेटे की ज़िद के आगे बसंती की एक न चली। “जो होगा देखा जायेगा” की सोच के साथ बसंती अपने थोड़े से सामान के साथ कार में बैठ गई। लंबे सफ़र के बाद कार एक बड़ी कोठी के सामने जाकर रुकी। “एक ज़रूरी काम है माँ, मुझे अभी जाना होगा।” कह, बेटा माँ को नौकर के हवाले कर चला गया। बहू दिव्या पहले ही काम पर जा चुकी थी और बच्चे (आदर्श और भव्या) स्कूल।
बसंती कोठी देखने लगी। तीनों कमरों में डबल बेड लगे थे। एक कमरे में बहुत बढ़िया सोफा-सेट था। एक कमरा बहू-बेटे का होगा, दूसरा बच्चों का और तीसरा मेहमानों के लिए, उसने सोचा। पिछवाड़े में नौकरों के लिए बने कमरे भी वह देख आई। कमरे छोटे थे, पर ठीक थे। उसने सोचा, उसकी गुज़र हो जाएगी। बस बहू-बेटा और बच्चे प्यार से बोल लें और दो वक़्त की रोटी मिल जाए। उसे और क्या चाहिए।
नौकर ने एक बार में उसका सामान बरामदे के साथ वाले कमरे में टिका दिया। कमरा क्या था, स्वर्ग लगता था-डबल बेड बिछा था, बाथरूम भी साथ था। टी.वी. भी लगा था और टेपरिकार्डर भी पड़ा था। दो कुर्सियाँ भी पड़ी थीं। बसंती सोचने लगी-काश! उसे भी कभी ऐसे कमरे में रहने का मौका मिलता। वह डरती-डरती बेड पर लेट गई। बहुत नर्म गद्दे थे।
शाम को जब बेटा घर आया तो बसंती बोली, “बेटा, मेरा सामान मेरे कमरे में रखवा देता।”
बेटा हैरान हुआ, “माँ, तेरा सामान तेरे कमरे में ही तो रखा है नौकर ने।”
बसंती आश्चर्यचकित रह गई, “मेरा कमरा! यह मेरा कमरा! डबल-बेड वाला…!”
“हाँ माँ, जब दीदी आती है, तो तेरे पास सोना ही पसंद करती है और तेरे पोता-पोती भी सो जाया करेंगे तेरे साथ। तू टी.वी. देख, भजन सुन। कुछ और चाहिए तो बेझिझक बता देना।” उसे आलिंगन में ले बेटे ने कहा, तो बसंती की आँखों में आँसू आ गए।
इस प्रकार पुत्र ने प्रेमपूर्वक बड़ी ही सूझ-बूझ तथा बुद्धिमानी से अपने पूरे परिवार को एक छत के नीचे, एक साथ जोड़ लिया।
किसने हार चुराई थी ?
रमेश एक बड़े और अमीर घर का नौकर था। रमेश को उस घर के मुखिया, दादा जी ने जब वह आठ साल का था, तब अपने घर लाए थे। तब से रमेश ने उस घर के सभी कामों का जिम्मा अपने ऊपर ले रखा था। वह बचपन से ही घर के सारे कामों को करने में माहिर था। उससे हर काम आसानी से हो जाता था और कोई गड़बड़ी भी नहीं होती थी, इसलिए उस घर के सभी सदस्य रमेश पर बहुत ज़्यादा भरोसा करते थे।
रमेश एक सीधा साधा लड़का था, जिसका अपना तो कोई नहीं था। लेकिन वह उसी घर को और उस घर के सभी सदस्यों को अपना परिवार समझता था। इसलिए वह उन सभी का बहुत ज़्यादा सम्मान करता था।
वह दिन भर घर के कामों में लगा रहता था और उसके बदले वह कुछ भी नहीं लेता था। वह कभी किसी से कुछ मांगता नहीं था। घर के लोग उसे कई बार पैसे और नई-नई चीजें देने की कोशिश करते थे, लेकिन वह मना कर देता था।
अब रमेश जवान हो चुका था। घर का पूरा काम वही करता था। घर की साफ़ सफ़ाई करना, सब्जियाँ लाना, गाड़ियों की देखरेख करना, घर में लगे पेड़ पौधों की देखरेख करना और इसके साथ पूरे परिवार की देखरेख करना उसका ही काम था।
उस घर में बड़े बेटे संजय की शादी हो चुकी थी और उसके दो बच्चे भी थे। रमेश ही उसके बच्चों को स्कूल लाता और ले जाता था। दोनों बच्चे रमेश को बहुत पसंद करते थे और अक्सर उसके साथ खेला करते थे।
संजय की पत्नी थोड़ी भुलक्कड़ थी और उससे ज्यादातर काम ठीक से नहीं हो पाता था, जैसे–कोई काम करते वक़्त घर की चीजें तोड़ देना, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना भूल जाना, पैसे रखे हुए अलमारी को खुला छोड़ देना! इसलिए संजय अक्सर अपनी पत्नी को समझाया करता था और कभी-कभी डांटा भी करता था।
रमेश हर रोज़ सुबह जल्दी उठ जाता था और घर के काम करना शुरू कर देता था। उसका पूरा दिन व्यस्त ही जाता था। अपने लिए बिल्कुल भी समय नहीं होता था, फिर भी अपने परिवार को खुश देखकर वह हमेशा खुश रहता था।
रमेश पर अटूट विश्वास होने के कारण, उस घर के सभी लोग रमेश के भरोसे पूरा घर छोड़ देते थे। अगर उन्हें कहीं जाना होता था, तो वे लोग रमेश को घर रुकने के लिए कहते थे। एक दिन पड़ोस में शादी की पार्टी हो रही थी, जिसमें उन सभी को जाना था। इसलिए उन सभी लोगों ने रमेश को घर रुकने के लिए कहा। सभी लोग तैयार होकर पार्टी के लिए निकल जाते हैं और रमेश घर पर अकेला था। वह खाना खाकर सभी के आने का इंतज़ार कर रहा था। कुछ समय बाद सभी लोग वापस घर आ जाते हैं।
सभी लोग बहुत खुश थे और पार्टी की तारीफ कर रहे थे। फिर थोड़ी देर बाद सभी लोग अपने-अपने कमरे में चले जाते हैं और फिर थोड़ी देर बाद संजय की पत्नी की चिल्लाने की आवाज़ आती है कि–हाय मेरा सोने का हार कहाँ गया! यह आवाज़ सुनकर सभी लोग ऊपर जाते हैं, तो देखते हैं कि संजय की पत्नी ने अपना पूरा कमरा अस्तव्यस्त कर डाला है। वह कुछ चीज ढूँढ रही थी, चिल्ला रही थी और रो रही थी!
सभी लोग आश्चर्य में पड़ जाते हैं और पूछने लगते हैं कि आख़िर क्या हो गया? तब संजय की पत्नी जोरों से चिल्लाते हुए कहती है कि मेरा सोने का कीमती हार चोरी हो गया है! सभी लोग आश्चर्य में पड़ जाते हैं और पूछते हैं कि आख़िर तुमने हार कहाँ रखा था, कैसे चोरी हो गया, कहीं तुमने हार को यहाँ वहाँ तो नहीं रख दिया है?
संजय की पत्नी कुछ नहीं कहती है, बस चिल्लाकर रो रही थी! पर रोते हुए कहती है कि अभी पार्टी में जाने से पहले मैंने अपना हार यहीं पर देखा था और अब नहीं मिल रहा है। मैंने अपना पूरा कमरा ढूँढ लिया है!
सभी घरवाले और रमेश पूरे घर की तलाशी करने लगते हैं। पर उनको कुछ भी नहीं मिलता है! इससे संजय की पत्नी और ज़्यादा दुखी हो जाती है और रोने लगती है!
फिर वह बिना सोचे समझे रमेश के ऊपर सारी गलती लगा देती है और गुस्से में कहती है कि हम सब तो पार्टी में गए थे, यहाँ सिर्फ़ तुम ही अकेले थे, ज़रूर तुमने ही मेरा हार चुराया होगा। मुझे मेरा हार वापस लौटा दो, नहीं तो मैं पुलिस के पास तुम को लेकर जाऊंगी! यह सुनकर रमेश डर जाता है और अंदर से काफ़ी दुखी हो जाता है कि–उस पर चोरी का इल्ज़ाम लग रहा है!
सभी घरवाले रमेश की तरफदारी कर रहे होते हैं और कह रहे होते हैं कि रमेश ऐसा कभी नहीं कर सकता! हमको रमेश के ऊपर पूरा भरोसा है! लेकिन संजय की पत्नी चिल्ला-चिल्ला कर रमेश के ऊपर ही सारा इल्ज़ाम लगा रही होती है और फिर कुछ समय बाद वह गुस्से में आकर रमेश का हाथ पकड़कर उसे घर से बाहर खींचते हुए ले जाती है और कहती है कि–निकल जाओ यहाँ से, यह तुम्हारा घर नहीं है।
तुमने मेरा कीमती हार चुराया है। तुम एक चोर हो, इसलिए वापस हमारे घर में नहीं आना! वरना मैं तुमको पुलिस के हवाले कर दूंगी! सभी घरवाले संजय की पत्नी को ऐसा करने से रोक रहे होते हैं, लेकिन वह रूकती ही नहीं है, क्योंकि वह गुस्से में थी! उसे अपने कीमती हार चोरी हो जाने का बहुत ज़्यादा दुख हो रहा था और गुस्सा भी आ रहा था।
रमेश अंदर से पूरी तरीके से टूट चुका होता है, क्योंकि उसने इतने साल जिस परिवार की पूरी ईमानदारी से सेवा की है, वही परिवार आज उस पर हार की चोरी का इल्ज़ाम लगा रहा है! रमेश को यह दुख बर्दाश्त नहीं हो रहा था, इसलिए वह भागता हुआ वहाँ से चला जाता है। सभी घरवाले और बच्चे रमेश को चिल्ला रहे होते हैं कि–रमेश वापस आ जाओ मत जाओ! लेकिन रमेश दौड़ता हुआ बिना रुके चला जाता है।
इस घटना के बाद सभी लोग दुखी थे, हार के गुम हो जाने से ज़्यादा दुख सभी को रमेश के चले जाने का था।
अगले दिन सभी को संजय की पत्नी का खोया हुआ हार, उनके बगीचे में लगे एक पेड़ के नीचे पड़ा हुआ मिलता है। सभी लोग हैरान हो जाते हैं कि आख़िर यह हार बाहर कैसे पड़ा हुआ है। संजय जब उस पेड़ के ऊपर ध्यान देता है तो वह देखता है कि वहाँ तो कौवे का एक घोसला है। जब वह उस घोसले में देखता है, तो वहाँ और भी कई छोटी मोटी चीजें रखी हुई होती है, जो सूरज की किरणें पड़ने के कारण चमक रही होती है।
तब संजय को याद आता है कि पार्टी में जाते वक़्त जल्दी-जल्दी में उसकी पत्नी ने शायद कमरे की खिड़की खुली ही छोड़ दी थी और फिर शायद कौवे ने आकर हार को उठा लिया होगा।
जैसे ही यह बात सभी घरवालों की समझ में आती है वह तुरंत ही रमेश को ढूँढने बाहर निकल जाते हैं। सभी लोग रमेश को आसपास ढूँढने की पूरी कोशिश करते हैं, पर रमेश उनको मिलता ही नहीं है। सभी लोग दुखी हो जाते है कि हमारे कारण रमेश घर छोड़कर चला गया। संजय रमेश को ढूँढते हुए रेलवे स्टेशन तक पहुँच जाता है। वहाँ रमेश बैठा हुआ था और ट्रेनों को आता जाता हुआ देख रहा था। संजय रमेश के पास जाता है और उसको सारी कहानी बता देता है।
साथ ही अपनी पत्नी के द्वारा की हुई गलती की माफी मांग कर उसे अपने घर भी ले आता है! सभी लोग रमेश को देख कर खुश हो जाते हैं। रमेश की पत्नी सभी के सामने रमेश से माफी मांगती है!
गोपाल मोहन मिश्र
कमला हेरिटेज, ब्लॉक- ‘ए’
फ्लैट नंबर-२०१,
बरहेता,
पी.ओ.-लहेरियासराय,
दरभंगा (बिहार)
यह भी पढ़ें-
१- नमन तुम्हें
२- मानवता
2 thoughts on “माँ का कमरा (mom’s room)”