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जादुई अंगूठी (magic ring)
जादुई अंगूठी (magic ring): एक समय की बात है करीब रात्रि के एक बज रहे थे लाली अच्छा-सा स्वप्न और प्यारी-सी मुस्कान लिये हुए सो रही थी, लाली लगभग सात वर्ष की थी। लाली का ग़ौर वर्ण, मोती जैसे चमकती मोटी आंखे, लम्बे घने बालों की चोटी सभी को अपनी तरफ़ आकर्षित करती थी। अचानक से बहुत मीठी-मीठी आवाजे आई-लाली उठो ना, देखो तो मैं आयी है, तुम्हारे लिये ईश्वर से उपहार लायी हूँ।
लाली ने आँखे खोली पूरे कमरे में चमचमाता प्रकाश नज़र आ रहा था और उसी के मध्य में एक बहुत खुबसूरत स्त्री जैसे कोई अप्सरा हो। खुबसूरत स्त्री का नाम लालिमा था, लालिमा ने लाली से कहाँ की मुझे ईश्वर ने तुम्हारे अच्छे विचारों से प्रभावित होकर भेजा है लालिमा ने लाली को एक जादुई अंगूठी दी और कहाँ की तुम जो भी अच्छे काम करना चाहती हो उसमें यह अंगूठी तुम्हारी बहुत मदद करेगी और हाँ इसे उंगली में नहीं पहनना, नही तो इसकी सारी जादुई शक्ति समाप्त हो जायेगी इसे तुम हमेशा अपने बालों की चोटी में लगाना और मेरा दिया हुआ मन्त्र पढना इतना कहकर वह खुबसूरत स्त्री गायब हो गयी।
लाली को समझने में कुछ वक़्त लगा फिर उसने जादुई अंगूठी को अपनी चोटी में लगा लिया। लाली जैसे ही घर से बाहर निकली उसने देखा की एक लड़की को चार पाँच गुंडे गाड़ी में पकड़कर ले जा रहे थे लाली ने सोचा की मैं उस लड़की को कैसे बचाऊ? लाली को लालिमा का दिया हुआ मन्त्र याद आया और उसने मन्त्र बोल दिया और इतने में ही पुलिस आ गयी और सारे गुंडे भाग गये। फिर लाली थोड़ा आगे चली उसने देखा की एक बेचारा कुत्ता घायल अवस्था में पड़ा हुआ है काफ़ी खुन बह रहा है कीड़े नोच नोचकर खाये जा रहे है लाली सोचने लगी मैं इसको कैसे ठीक करुँ, लाली ने मन्त्र बोला और कुत्ता बिल्कुल स्वस्थ हो गया।
लाली और आगे चली उसने देखा की तालाब में पुरा पानी सुख गया है, मछलियाँ और काफ़ी लोग प्यास से मर चुके है लाली ने फिर थोड़ा सोचा और मन्त्र बोल दिया तालाब पुरा पानी से भर गया सभी गाँव वाले बहुत खुश हुए। लाली ने खुबसूरत स्त्री लालिमा को बहुत धन्यवाद दिया और गाँव वालों ने लाली को। असल में यह लाली का प्यारा-सा स्वप्न ही था।
धन्नो की गाय
धन्नो ग्यारह वर्षीय नन्ही और नटखट बालिका थी। गाँव में वह सबकी चहेती हुआ करती थी। वह हमेशा हँसती मुस्कुराती और सबको हँसाती रहती थी। धन्नो के बाड़े में दस गायें थी उसे एक छोटी-सी गाय अत्यंत प्रिय थी। धन्नो के कोई बहिन नहीं थी केवल एक भाई था वह भी छोटा था। धन्नो उस गाय को अपनी सगी बहिन मानती थी। धन्नो, गाय से बहुत सारी सुख दुख की बातें किया करती थी। धन्नो गाय को कई नामों से पुकारती थी कभी कहती-“मेरी प्यारी सखी माला” , तो कभी-“ओ सुन मेरी लाडो, मुझे छोड़ कर कभी मत जाना” आदि कई प्रकार की बातें किया करती थी।
एक दिन धन्नो की गाय बहुत रोयी तो धन्नो, माला से उसके रोने का कारण पूछने लगी तो माला ने उत्तर दिया तू मेरी सच्ची सहेली है मैं बहुत भाग्यशाली हूँ जो मुझे इस कलयुग में भी इतना लाड प्यार मिल रहा है लेकिन बाक़ी गाये जो कभी वाहनो से टकराई जाती है, तो कभी माँस के लिये जिन्दा ही काट दी जाती है धन्नो, ओ धन्नो तू सुन रही है ना मैं क्या कह रही है गाय ने कहा। धन्नो ने कहाँ-हाँ माला मैं तेरी बात समझ रही हूँ, पर तू अब चिंता मत कर, तू अब देखती जा तेरी धन्नो क्या करती है।
अब धन्नो ने एक फ़ैसला किया उसने अपनी सखी के लिये गायों की रक्षार्थ पूरे गाँव में चंदा मांगना शुरु कर दिया उसके पास काफ़ी पैसे एकत्रित हो गये, धन्नो बहुत खुश हुई और उसने गायों के लिये एक अस्पताल खुलवाया। धन्नो की कामों की प्रशंशा दूर-दूर तक होने लगी और उसे अलग-अलग राज्यों के लोगों का काफ़ी सहयोग मिलने लगा। बस फिर क्या था धन्नो ने गायों के लिये बहुत सारे आवास और अस्पताल बनवा दिये। माला, धन्नो के कार्य को देखकर बहुत खुश हुई और धन्नो को बहुत ज़्यादा प्यार करने लगी।
हौसला महिमा का
किसी गाँव में महिमा नाम की एक विकलांग लड़की थी उसके जन्म से ही दोनों हाथ नहीं थे, उसके घर में माँ, पापा और एक छोटा भाई था। परिवार में कुल चार सदस्य थे। जब भी उसके भाई के कोई दोस्त उसके भाई के साथ खेलने घर आते तो महिमा की ऐसी हालत का मज़ाक उडाते, लेकिन महिमा कभी पलटकर उन्हें जवाब नहीं देती थी और हमेशा मुस्कुराहट में टाल देती थी। उसे उसके पास हाथ ना होने का कोई दुख नहीं था, वह अपनी ही दुनियाँ में खोयी हुई रहती थी और अपनी ही धुन में कुछ ना कुछ गुनगुनाती रहती थी। वह लिख नहीं सकती थी लेकिन उसने अपनी इस कमी को कभी कमी नहीं समझा था उसने शुरु से ही अपने पैरों से लिखने की आदत डाल ली थी वह बहुत ही धैर्यवान, प्रतिभावान और परिश्रमी छात्रा थी इसीलिये वह हमेशा कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करती थी।
जब भी वह अपना परीक्षा परिणाम दिखाने माँ पापा के पास जाती तो उसके माँ पापा बहुत ज़्यादा खुश होते और महिमा को हमेशा प्रोत्साहित किया करते थे। महिमा माँ पापा के लिये कभी बोझ नहीं थी बल्कि उन्हें अपनी महिमा पर गर्व था वह माँ पापा के सर का ताज थी। महिमा को अपने माँ पापा का पुरा सपोर्ट था उसके माता पिता महिमा को आसमां को छूता हुआ देखना चाहते थे, उसके माता पिता का एक सपना था कि महिमा एक दिन बहुत बडी गायिका बने।
एक दिन उनके स्कूल में बहुत बड़ी गायकी प्रतियोगिता थी जिसमें अलग-अलग जिलों की सत्ताईस छात्राओं ने भाग लिया था, महिमा ने भी उसके माँ पापा के कहने पर उस प्रतियोगिता में भाग लिया था और उसमें महिमा को रास्ट्रीय स्तर पर गाने के लिये नामित किया। महिमा और उसके माँ, पापा बहुत खुश हुए फिर महिमा ने रास्ट्रीय स्तर पर गाना गाया उसके बाद फिर उसे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गाने का मौका मिला, उसमें भी उसका चयन हो गया था और महिमा बहुत बडी गायिका बन गयी थी और उसे पाँच लाख का चेक और प्रमाण पत्र मिला था, उस दिन महिमा और उसके माँ पापा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था।
गोलू मोलू
एक समय की बात है किसी गाँव में एक बुज़ुर्ग महिला रहती थी। उसके दो बेटे थे जिसमें बड़े का नाम गोलू था और छोटे का मोलू। गोलू इन्जीनियर था और मोलू अनपड़। गोलू अमेरिका में रहता था और मोलू अपनी बुज़ुर्ग माँ के पास गाँव में।
एक दिन अचानक बुज़ुर्ग माँ की तबीयत बहुत ज़्यादा खराब हो गयी थी तब माँ ने मोलू से कहा था कि गोलू को फ़ोन करके बुला लेना। माँ के कहने पर मोलू ने गोलू को फ़ोन किया था और कहा था कि-गोलू तुम जल्दी घर आ जाओ माँ की तबीयत बहुत ज़्यादा खराब है तब गोलू ने ना नुकुर करते हुए बहाना लगा दिया था कि मैं नहीं आ सकता, मैं आया तो मुझे नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा। मोलू, गोलू के स्वभाव को भलीभांति जानता था गोलू को पैसों से लगाव कुछ ज़्यादा ही था।
मोलू ने माँ को बता दिया था कि गोलू नहीं आ सकता। मोलू ने दिन रात माँ की सेवा की जैसे माँ अपने बच्चे का ख़्याल रखती है वैसे ही मोलू ने अपनी माँ का पुरा ख़्याल रखा, जिससे उसकी माँ थोड़े ही दिनो में बिल्कुल स्वस्थ हो गयी थी। गोलू जुआ खेलता था, ज़्यादा कमाने की होड़ ने उसे अन्धा बना दिया था उसे सही ग़लत का बिल्कुल भान नहीं था, जिससे उसने करोड़ो का कर्जा अपने सर कर लिया था और वह पूरी तरह कंगाल हो चुका था।
उधर मोलू ज़रूरत के हिसाब से ही ख़र्च करता था वह भले ही पढ़ा लिखा नहीं था लेकिन अपनी माँ के आशीर्वाद और दिमाग़ से उसने बहुत बड़ा व्यवसाय खड़ा कर लिया था। तभी एक दिन गोलू को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह माँ से मिलने अपने घर गया और माँ से कहने लगा-माँ मुझे माफ़ कर दो, मुझसे बहुत बड़ी भुल हो गयी, तुझे जब मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी तब मैं नहीं आया (रोते हुए) , माँ मैं पूरी तरह कंगाल हो गया, लुट गया। यह सब सुनकर माँ ने उसे माफ़ कर दिया था और मोलू ने सारा वृतांत जानकर गोलू पर जो भी कर्ज़ था सारा उतार दिया था।
नटखट भोलू
भोलू पांचवी कक्षा का छात्र था। वह पढ़ाई में बिल्कुल कमजोर और शरारती था लेकिन उसमें एक बहुत ही अच्छा गुण था, वह था-“रोते हुए को भी हँसा देने का गुण”। एक दिन की बात है जब गणित के एक शिक्षक कक्षा में आये और वह जैसे ही कुर्सी पर बैठने लगे, वह डर गये और उन्हें डरता देख सभी बच्चे हंस पड़े। बात दरअसल यह थी की कुर्सी पर भोलू ने ऐसी छिपकली रख दी थी जो बिल्कुल असली नज़र आ रही थी।
शिक्षक समझ चुके थे, उन्होने भोलू से कहा-“अच्छा भोलू यह तुम्हारी ही शरारत थी ना” , “जल्दी खड़े हो जाओ और सौ उठक-बेठक लगाओ।” क्योकिं भोलू के अलावा किसी भी विधार्थी की हिम्मत नहीं होती थी कि कोई ऐसी शरारत कर सके। भोलू चुपचाप खड़ा हुआ और कान पकड़कर माफी मांगने लगा, कहने लगा-“आगे से ऐसा नहीं होगा” , शिक्षक ने उसकी चिकनी चुपड़ी बातों में आकर उसे माफ़ कर दिया। लेकिन उसकी शरारते तो जारी ही रहती थी।
भोलू बहुत ही सेवाभावी और मजाकिया भी था, कोई भी शिक्षक जब उसे कोई कार्य करने को कहता तो वह आव देखता न ताव, तुरंत कार्य कर देता था। उसने अपने मजाकिया स्वभाव व सेवा भावना की प्रवृत्ति के कारण सभी शिक्षकों व विधार्थियों के दिल में ख़ास जगह बना रखी थी, वह सभी का चहेता बन चुका था।
लेकिन कहते है ना की “होनी को कौन टाल सकता है।” एक दिन अचानक वह दोपहर के बारह बजे के करीब उसके दोस्त के पिताजी की दुकान पर सामान खरीदने गया था। भोलू के दुकान से जाने के लगभग पंद्रह मिनट बाद ही उसके दोस्तो व शिक्षकों को सूचना मिली की भोलू की कुएँ में गिरने से मौत हो गयी है उसके दोस्तों और सारे शिक्षकों को तो जैसे सदमा-सा लग गया था। भोलू ख़ुद तो इस संसार से चला गया था लेकिन सभी शिक्षकों और विधार्थियों के दिलों में एक अमिट छाप छोड़ गया था, जिसे चाहकर भी सारा विधालय परिवार भुला नहीं पा रहा था।
मोटा सेठ
किसी नगर में मनन नाम का एक लड़का था, उसे बचपन से ही मोटा सेठजी की मुर्ति, जो हाथ जोड़े खड़ा रहता हो, उसको अपने पास रखने की चाह थी। एक समय की बात है मनन अपने कॉलेज से घर छुट्टियाँ बिताने के लिये जा रहा था रास्ते में ही उसे मोटा सेठ जी की मुर्ति दिख गयी, मुर्ति में केसरिया रंग का बदन, हरे, लाल और सुनहरे रंग से युक्त पगड़ी जो सिर पर चन्द्रमा के शोभायमान थी, लाल और सुनहरे रंग का कुर्ता जिसमें सेठजी, गुलाबी हरे लाल और सुनहरे रंग की धोती, नीले रंग की जुती सेठजी पर काफ़ी जँच रही थी, मनन ने उसे तुरंत खरीद लिया और उसे अपने घर लेकर आ गया। वह चमत्कारी मुर्ति थी यह बात मनन को भी नहीं पता थी। मनन बहुत खुश था आखिरकार उसकी तमन्ना पूरी हो गयी थी वह मुर्ति से बाते करने लगा और मुर्ति भी जवाब देने लगी, यह देख मनन दंग रह गया। फिर मुर्ति ने कहा घबराओ नहीं मैं तुम्हारा मित्र हूँ तुम्हारे सुख और दुख का साथी। मनन ने उसे अपनी अलमारी में रख दिया।
अब दोनों एक-दूसरे की जान बन चुके थे। मनन को जब भी सेठजी से बात करनी होती अलमारी खोल कर बात कर लेता और सेठ को जब भी मनन से बात करनी होती मनन के दिल तक आवाज़ पहुँच जाती, शायद पिछ्ले जन्मों का कोई गहरा सम्बन्ध था। एक दिन मनन को मुर्ति से बात करते हुए उसके दोस्त ने देख लिया और सोचने लगा तभी मैं सोचू आजकल मनन सभी प्रतियोगिता में अव्वल क्यूं आता है तो ये राज है इसका अब मज़ा चखाता हूँ साले को। मनन के दोस्त रिदम ने मुर्ति छिपाने की एक योजना बनाई और एक रात को मनन के घर आकर मुर्ति चुरा ली।
प्रात: उठकर मनन ने जब अलमारी खोली तो मुर्ति गायब थी यह देख मनन फुट फुटकर रोने लगा मानों उसकी जान ही निकल गयी हो लेकिन सेठ्जी ने मनन के रोने की आवाज़ सुन ली थी और प्रभू से विनती की-है भगवान मुझे मेरे मनन के पास भेज दो उसे मेरी बहुत ज़रूरत है तभी भगवान ने एक चमत्कार किया मुर्ति को बिल्कुल भद्दा बना दिया मनन के पिताजी कबाड़ी का काम करते थे एक दिन रिदम की गली में कबाड़ के लिये गुजर रहे थे तभी रिदम ने उस बेकार मुर्ति को कबाड़ी को दे दिया। मनन के पिताजी जब कबाड़ी का सामान लेकर घर आये तो मनन भी सामान देखने पहुँचा उसे सेठ्जी को देखकर बहुत ख़ुशी हुई और उनकी भद्दी हालत पर रोना भी आया। मनन ने तुरंत उसे अलमारी में रख दिया, अलमारी में रखते ही वह मुर्ति बिल्कुल पहले की तरह बन गयी। जब मनन ने बात करने के लिये अलमारी का दरवाज़ा खोला तो मनन सेठ्जी को पहले जैसी अवस्था में पाकर बहुत खुश हुआ।
चार बंदर और जादुई परी
एक समय की बात है किसी जंगल में चार बन्दर रहते थे, चारों बंदर एक पेड़ की डाल पर बैठे-बैठे केले खा रहे थे और छिलकों को नीचे की और फेंकते जा रहे थे अचानक से एक खूबसूरत जादुई परी चिड़िया का रूप बनाकर बंदरों के पास आई और बंदरों से बोली कृपया मुझे भी एक केला दे दिजीये, बहुत भूख लगी है, नहीं खाऊंगी तो मैं मर जाउंगी। बंदर बहुत चालाक थे। सभी ने केले देने से इन्कार कर दिया, तभी परी अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हुई और अपनी जादुई शक्ति से बहुत सारे केले प्रकट किये, यह देख चारों बंदर परी के पास आये और कहने लगे हमें माफ़ कर दिजीये परी रानी आपने तो हमसे केवल एक ही केला मांगा था वह भी हमने आपको नहीं दिया, धिक्कार है हमे, बहुत ही लालची हो गये थे हम सब।
फिर परी रानी ने कहा-मैं तुम्हे माफ़ करती हूँ पर आगे से ध्यान ज़रूर रखना, तुम सब हमेशा ज़रूरतमन्द की मदद करना। नेक कार्य को करने में ज़रा भी वक़्त मत लगाना। मैंने भी कई ज़रूरतमंदो की मदद की थी इसिलिए भगवान ने खुश होकर मुझे परी रूप और जादुई शक्ति प्रदान की है। यह सब सुनकर चारों बंदरों ने फ़ैसला किया की वह आगे से हर ज़रूरतमन्द की मदद करेंगे।
मुन्नू की मुनिया
एक समय की बात है किसी जंगल में दो मोर और एक मोरनी रहते थे। एक मोर का नाम चुन्नू और दूसरे मोर का नाम मुन्नू था। मोरनी का नाम मुनिया था। मुनिया बहुत सुन्दर और बुद्धिमान थी। चुन्नू मुन्नू दोनों मुनिया को पाना चाहते थे, लेकिन मुनिया केवल मुन्नू को चाहती थी बात दरअसल यह थी की, मुनिया पूरी की पूरी सोने से बनी हुई थी इसलिए चुन्नू उसे पाना चाहता था ताकि, वह उसे बेचकर बहुत अधिक धनवान बन सके। लेकिन मुन्नू, मुनिया को सच्चे दिल से चाहता था उसके लिये वह अपनी जान भी दे सकता था।
एक दिन अचानक से मुन्नू को स्वप्न आया की चुन्नू ने उसका अपहरण कर लिया है और अगले ही दिन यह घटना सच हो गयी चुन्नू ने वास्तव में मुनिया का अपहरण कर लिया, मुनिया ने मुन्नू को मन ही मन बहुत पुकारा, प्यार सच्चा होने की वज़ह से थोड़ी ही देर में मुन्नू आ गया और मुनिया को चुन्नू की बुरी नियत से बचा लिया और चुन्नू को बड़े प्यार से समझाया की वह कितना ग़लत कर रहा था इसलिए चुन्नू को भी अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने मुनिया से माफी माँगी, मुनिया ने उसे माफ़ कर दिया। फिर मुनिया ने मुन्नू से अपने प्यार का इज़हार किया, मुन्नू को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ उसे लगा की जैसे वह कोई एक मीठा स्वप्न देख रहा हो लेकिन वास्तव में यह एक हक़ीक़त थी। मुन्नू मुनिया को पाकर बहुत खुश था, वह पहले से कई अधिक धनवान, समृद्ध और प्रसिद्ध बन गया था।
रीमा की रसोई
एक समय की बात है किसी गाँव में रीमा नाम की एक सीधी साधी लड़की थी। रीमा की माता का नाम चंचला और पिता का नाम श्यामल था। रीमा जब पंद्रह साल की हुई तभी उसके पिता का निधन हो गया था। इसलिए चंचला ने जैसे तैसे करके रीमा की शादी जल्दी ही केशव नाम के लड़के से कर दी क्यूं की रीमा के तीन छोटी बहिने और भी थी। रीमा की शादी बहुत बड़े घराने में हुई। “कहने को था बडा घराना” ससुराल वालों ने रीमा की माँ को विश्वास दिलाया था कि हमारे यहाँ “राज करेगी आपकी बेटी राज” , रीमा की माँ ने “आव देखा न ताव” तुरंत ही अपनी बेटी की शादी कर दी और नतीजा यह हुआ की रीमा से सभी काम करवाये जाने लगे, सारे नौकरो को छुट्टी दे दी गयी और उसे नौकरानी बनाकर रख दिया गया।
रीमा जो भी सब्जी या पकवान बनाती चाहे उसने कितनी ही मेहनत और प्यार से बनाया होता उसको तो हमेशा डांट-फटकार ही मिलती, तारीफ का तो नाम ही नही। कभी-कभी वह बहुत रोती लेकिन फिर अपने आप को सम्भाल लेती क्योंकि रोने से कहाँ कुछ होने वाला था केवल लड़ाई-झगड़ा और क्लेश। वह तो अपने पति को खुश रखने की हरसंभव कोशिश करती। वह एक ही सब्जी को कई तरीको से बनाने की कोशिश करती उसने ऐसा करते-करते बहुत अधिक सीख लिया था और हुआ यह की वह पूरी दुनिया में एक बेहतरीन और प्रसिद्ध रसोइया बन गयी। अब उसका पति और सास अपनी गलतियों पर बहुत अधिक शर्मिन्दा थे।
लक्ष्मी जैन
सवाई माधोपुर, राजस्थान
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