धर्म पत्नी (lawful wife)
पिछले हफ्ते मेरी धर्म पत्नी (lawful wife) को बुखार था। पहले दिन तो उसने बताया ही नहीं कि उसे बुखार है, दूसरे दिन जब उससे सुबह उठा नहीं गया तो मैंने यूं ही पूछ लिया कि तबीयत खराब है क्या? उसने कहा कि नहीं, तबीयत खराब तो नहीं है, हाँ थोड़ी थकावट है। मैं चुपचाप अख़बार पढ़ने में मशगूल हो गया।
ज़रा देर से उस दिन वह जगी और फटाफट उसने मेरे लिए चाय बनाई, बिस्किट दिए और मैं अख़बार पढ़ते-पढ़ते चाय पीता रहा। मुझे पता लग चुका था कि उसे थोड़ा बुखार है और ये बात मैंने उसे छू कर समझ भी ली थी।
खैर, मैं यही सोचता रहा कि मामूली बुखार है, शाम तक ठीक हो जाएगा। उसने थोड़ें बुखार में ही मेरे लिए नाश्ता तैयार किया। नाश्ता करते हुए मैंने उसे बताया कि आज खाना बाहर है, इसलिए तुम खाना मत बनाना। उसने धीरे से कहा कि अरे ऐसी कोई बात नहीं, खाना तो बना दूंगी। लेकिन मैंने कहा कि नहीं, नहीं दफ्तर की कोई मीटिंग है, उसके बाद खाना बाहर ही है। फिर मैं तैयार होकर निकल गया।
मैं पुरुष हूँ। पुरुष मज़बूत दिल के होते हैं। ऐसी मामूली बीमारी से पुरुष विचलित नहीं होते। मैं दफ्तर चला गया, फिर अपनी मीटिंग में मुझे ध्यान भी नहीं रहा कि पत्नी की तबीयत सुबह ठीक नहीं थी। खैर, शाम को घर आया, तो वह लेटी हुई थी। उसे लेटे देख कर भी दिमाग़ में एक बार नहीं आया कि यही पूछ लूं कि कैसी तबीयत है? वह लेटी रही, मैंने अपने कपड़े बदले और पूछ बैठा कि खाना?
पत्नी ने मेरी ओर देखा और लेटे-लेटे उसने कहा कि अभी उठती हूँ, बस अब ठीक हूँ। जैसे ही उसने कहा कि मैं ठीक हूँ, मुझे ध्यान आ गया कि अरे सुबह तो उसे बुखार था। खैर, अपनी शर्मिंदगी छिपाते हुए मैंने कहा कि कोई बात नहीं, तुम लेटी रहो। मैं रसोई में गया, मैंने अंदाजा लगाया कि उसने दोपहर में खाना नहीं खाया, क्योंकि खाना तो बना ही नहीं।
मैंने फ्रिज से कुछ-कुछ निकाला, उसके लिए ब्रेड जैम लिया और अपने पति धर्म को निभाते हुए, ख़ुद पर गर्व करते हुए उसके आगे खाने की प्लेट कर दी। पत्नी ने ब्रेड का एक टुकड़ा उठाया, मुझे आंखों से धन्यवाद कहा और मन से कहा कि पति हो तो ऐसा हो, इतनी केयर करने वाला। मैंने एक दो बार यूं ही पूछ लिया कि तुम कैसी हो, कोई दवा दूं क्या? और अपने कम्यूटर आदि को देखता हुआ सो गया।
पत्नी अगली सुबह जल्दी उठ गई, मुझे लगा कि वह ठीक हो गई है और मैंने फिर उसके बुखार पर चर्चा नहीं की। मैंने मान लिया कि वह ठीक हो गई है। कल मुझे सर्दी हो गई थी। दो तीन बार छींक आ गई थी। घर गया तो पत्नी ने कहा कि तुम्हारी तो तबीयत ठीक नहीं है। उसने सिर पर हाथ रखा और कहा कि बुखार तो नहीं है, लेकिन गला खराब लग रहा है। ऐसा करो तुम लेट जाओ, मैं सरसों का तेल गरम करके छाती में लगा देती हूँ।
मैंने एक दो बार कहा कि नहीं-नहीं ऐसी कोई बात नहीं। लेकिन पत्नी ने मुझे कमरे में भेज ही दिया। मैं बिस्तर पर लेटा ही था कि मेरे लिए शानदार काढ़ा बन कर आ गया। अब मेरा गला खराब था तो काढ़ा बनना ही था। काढ़ा पी कर लेट गया। फिर दस मिनट में गरमा गरम सूप सामने आ गया। उसने कहा कि गरम सूप से गले को पूरी राहत मिलेगी। सूप पिया तो वह मेरे पास आ गई और मेरे सिर को सहलाने लगी। कहने लगी कि इतनी तबीयत खराब है, इतना काम क्यों करते हो?
बचपन में जब कभी मुझे बुखार होता था, माँ सारी रात मेरे सिरहाने बैठी रहती। मैं सोता था, वह जागती थी। आज मैं लेटा हुआ था, मेरी पत्नी मेरा सिर सहला रही थी। मैं धीरे-धीरे सो गया। जागा तो वह गले पर विक्स लगा रही थी। मेरी आँख खुली तो उसने पूछा, कुछ आराम मिल रहा है? मैंने हाँ में सिर हिलाया। तो उसने पूछा कि खाना खाओगे?
मुझे भूख लगी थी, मैंने कहा, “हाँ।” उसने फटाफट रोटी, सब्जी, दाल, चटनी, सलाद मेरे सामने परोस दिए और आधा लेटे-लेटे मेरे मुंह में कौर डालती रही। मैने चुपचाप खाना खाया और लेट गया। पत्नी ने मुझे अपने हाथों से खिला कर ख़ुद को खुश महसूस किया और रसोई में चली गई। मैं चुपचाप लेटा रहा। सोचता रहा कि पुरुष भी कैसे होते हैं?
कुछ दिन पहले मेरी पत्नी बीमार थी, मैंने कुछ नहीं किया था और तो और एक फ़ोन करके उसका हाल भी नहीं पूछा। उसने पूरे दिन कुछ नहीं खाया था, लेकिन मैंने उसे ब्रेड परोस कर ख़ुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था। मैंने ये देखने की कोशिश भी नहीं की कि उसे वाकई कितना बुखार था। मैंने ऐसा कुछ नहीं किया कि उसे लगे कि बीमारी में वह अकेली नहीं।
लेकिन मुझे सिर्फ़ जरा-सी सर्दी हुई थी और वह मेरी माँ बन गई थी। मैं सोचता रहा कि क्या सचमुच महिलाओं को भगवान एक अलग दिल देते हैं? महिलाओं में जो करुणा और ममता होती है वह पुरुषों में नहीं होती क्या? सोचता रहा, जिस दिन मेरी पत्नी को बुखार था, उस दोपहर जब उसे भूख लगी होगी और वह बिस्तर से उठ न पाई होगी, तो उसने भी चाहा होगा कि काश उसका पति उसके पास होता?
मैं चाहे जो सोचूं, लेकिन मुझे लगता है कि हर पुरुष को एक जन्म में औरत बन कर ये समझने की कोशिश करनी ही चाहिए कि सचमुच कितना मुश्किल होता है, औरत होना। माँ होना, बहन होना, पत्नी होना।
देव नारायण शास्त्री
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