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अन्तर्मन की पीड़ा (inner pain)
निर्बल, शोषित, वंचित वर्ग की गहरी खाई को पाटती
अन्तर्मन की पीड़ा (inner pain) काव्य संग्रह
पुस्तक: अन्तर्मन की पीड़ा (काव्य संग्रह)
मूल्य: १५० / -रूपये
लेखिका: डाॅ. राधा वाल्मीकि
(शिक्षिका, समाजसेविका, कवयित्री)
मो.९४१११५९४८०, पन्तनगर, उत्तराखण्ड
प्रकाशन: रवीना प्रकाशन, दिल्ली
जब नारी का विवेक जाग जाये तो अपने क्रियाकलापों, दृढ़ निश्चय, एकाग्रता, गहन चिंतन, ठोस इरादों, कठिन परिश्रम से वह क्या नहीं कर सकती? यह सम्भव है शिक्षा से, जागरूकता से, सभ्यता से, संस्कार से। उसका शिक्षित होना उसके विवेक का जगना सब प्रकार के शोषण को जगाने वाली नारी हितकारी, शिक्षिका, कवयित्री, समाजसेविका का नाम है डाॅ। राधा वाल्मीकि।
ऐसी प्रेरणा स्रोत, महानुभूति डाॅ. राधा वाल्मीकि का जन्म १२ अगस्त १९६४ को उत्तराखण्ड के जनपद पिथौरागढ़ में एक मेहनतकश व ईमानदार श्री सियाराम वाल्मीकि व श्रीमती मेमो (मीनू) देवी के घर बड़ी सन्तान के रूप में हुआ। पाँच विषयों में परास्नातक, बीएड, एलएलबी, हिमालय वुड बैज (स्काउट) , पीएचडी डिग्री प्राप्त उच्च शिक्षित डाॅ. राधा वाल्मीकि दिसम्बर १९९२ से पं.गो.ब.पं. कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पन्तनगर, उत्तराखण्ड के प्रबन्धन में संचालित पन्तनगर इण्टर काॅलेज में अध्यापिका के रूप में प्रथम नियुक्ति प्राप्त हैं।
रूढ़िवादिता के खिलाफ लड़ने वाली व डाॅ. अम्बेडकर को अपना प्रेरणास्रोत मानने वाली डाॅ. राधा वाल्मीकि को बड़े-बड़े सम्मानों व पुरस्कारों जैसे लाँग टाइम अचीवर अवाॅर्ड, डाॅ.अम्बेडकर साहित्य सम्मान, नेशनल वूमैन अचीवर अवाॅर्ड, समाज का गौरव, अम्बेडकर रत्न, काव्य श्री, श्रेष्ठ कवयित्री, शिक्षा मार्तण्ड, ग्लोबल एचीवर्स, लक्ष्मीबाई साहित्य शिखर, उत्तराखण्ड गौरव, मातृभूमि गौरव सम्मान, नीरज साहित्य रत्न, लक्ष्मीबाई साहित्य शिरोमणि, डाॅ.अम्बेडकर नेशनल फैलोशिप अवाॅर्ड, अखिल भारतीय मेधावी सर्जन सम्मान, सावित्री बाईफुले गौरव सम्मान, नारी शक्ति सागर से भी सम्मानित किया जा चुका है।
देश-प्रदेश के दौरे पर निकलकर वहाँ की जमीनी स्थिति से रूबरू होकर वहाँ की स्थिति को अपने जीवन के पहलू में जोड़े रखना भी इनके जीवन की एक कला है। डाॅ. राधा वाल्मीकि अपने संघर्षमय जीवन के बलिदान को समाज के लिए समर्पित करने को हर सम्भव तैयार है।
अभी हाल ही में डाॅ. राधा वाल्मीकि की अन्तर्मन की पीड़ा (inner pain) काव्य संग्रह पुस्तक आयी है। देश, समाज, आधुनिक भारत, वसुन्धरा, राजनीति, महिला व सफ़ाई कर्मचारियों की दिनचर्या, उनकी पीड़ा, शोषण, प्रेम-प्रसंग, दलित उत्पीड़न, पशु-पक्षी, गाँव-शहर, लोककला-लोकगाथा पर पिछले ४ दशकों से लिखी डाॅ. राधा वाल्मीकि की ५८ कविताओं के संकलन में निर्बल, शोषित, वंचित वर्ग की मार्मिक हृदयस्पर्शी व अन्तर्मन की गहरी खाई को पाटती अन्तर्मन की पीड़ा (inner pain) काव्य संग्रह १०८ पृष्ठों में जीवन से जुड़े पहलुओं का संकलन है।
उनकी विभिन्न कविताएँ देश-प्रदेश के विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं जैसे हाहा-हीही-हूहू-हेहे, मूल निवासी टाइम्स, कीर टाइम्स, वंचित स्वर, उदय प्रभात, वाल्मीकि जनसंदेश, ग्लोब दर्पण, वाल्मीकि बाण, अंबेडकर इन इण्डिया, उत्तराखण्ड ज्योति, दलित दस्तक, उत्तरांचल दर्पण, डिप्रेस्ड एक्सप्रेस, प्रतिबद्ध एवं सोशल मीडिया व काव्य मंचों का आधार बन चुकी है।
जिनमें माँ की ममता पिता का प्यार, नमन और वंदन, यह उत्तराखण्ड मेरा है, अन्तर्मन की पीड़ा, बेटियों का अस्तित्व, ये दलित की बेटी है, भूख, आख़िर क्यूँ, शैक्षिक क्रान्ति की मशाल, मलिन बस्तीयाँ, जाति, सूदखोर, व्यवस्था बदलनी चाहिए, लोकतंत्र खतरे में है, वोट की चोट, गंगा की व्यथा, निष्ठुर बादल, दरिन्दों का कोई मजबह नहीं होता आदि जैसी समाज को आइना दिखाती कविताएँ उनकी सोच से क़लम के सहारे पृष्ठ पर उकेरती इनकी अन्तर्मन पीड़ा ने वास्तव में दलित समाज तो क्या सर्वसमाज पर भी अमिट छाप छोड़ी है। अन्तर्मन की प्रथम रचना माँ की ममता पिता का प्यारः
वर्णी न जाए माँ की ममता, तोला न जाए पिता का प्यार,
माता-पिता के चरणों में है, छिपा हुआ सुख का संसार। (पृष्ठ संख्या १७)
रचना से साफ़ झलकता है कि डाॅ. राधा वाल्मीकि अपने माता-पिता को कितना सम्मान, आदर व सत्कार देती हैं, उन्हें अपने जीवन में भगवान की तरह पूजती हैं और रचना के माध्यम से युवापीढ़ी से आग्रह कर रही हैं कि माता-पिता का सम्मान करो। बाबा साहब डाॅ। भीमराव अम्बेडकर को समर्पित नमन और वंदनः
बाबा अम्बेडकर को हमारा, बारम्बार नमन और वन्दन,
इनके बलिदानों से पाया हमने, मान-सम्मान और अभिनन्दन। (पृष्ठ संख्या १८)
रचना में एक सच्ची अम्बेडकरवादी कवयित्री होने का परिचय देते हुए बाबा के दिखाये मार्ग पर चलने का आहवान किया है और उक्त रचना में दर्शाया कि अगर बाबा न होते तो कैसे मिलता जीने का हक़ और अधिकार न मिलता किसी को कोई सम्मान। मेरे भारत की वसुन्धराः
कितनी विशाल महिमामयी, मेरे भारत की वसुन्धरा,
परम पुनीता पावनतमा, मेरे भारत की वसुन्धरा,
उत्तर में अडिग प्रहरी सा, नगाधिराज हिमालय है,
जिसके उत्तुंग भाल पर स्थित, शिवजी का शिवालय है। (पृष्ठ संख्या २०)
रचना के माध्यम से चारों दिशाओं में झील-मानसरोवर, घाटी की मनमोहक वसुन्धरा का वर्णन करते हुए वसुन्धरा के प्रति प्रेम को भी दर्शाया है। यह उत्तराखण्ड मेरा हैः
गगनचुम्बी पर्वतमाला पर सुरमई सवेरा है,
नैसर्गिक सुन्दरता ने इन्हें चहुँओर से घेरा है। (पृष्ठ संख्या २२)
रचना में अपने गृह राज्य उत्तराखण्ड की प्राकृतिक सौन्दर्ययुक्त रंग-बिरंगी फूलों की घाटी, झरने, नागिन-सी सड़के, लोककला-लोकगाथा का वर्णन डाॅ. राधा वाल्मीकि का उत्तराखण्ड के प्रति प्रेम दर्शा रहा है। उक्त रचना ने डाॅ. राधा वाल्मीकि को उत्तराखण्ड राज्य में साहित्य के क्षेत्र में एक अलग पहचान दिलायी, पत्र-पत्रिकाओं व सोशल मीड़िया के माध्यम से इस रचना से इन्हें मान-सम्मान मिला है। मुहब्बतः
दुनियाँ में मुहब्बत से बड़ी शय नहीं कोई,
इस शय को मिटा सकता ज़माने में न कोई। (पृष्ठ संख्या २४)
रचना के जरिये मुहब्बत के बंधन धर्म, नस्ल, जाति के दम्भ को तोड़ते हुए प्रेम-प्रसंग की दास्तां को जीवंत किया है। मुहब्बत करता तो हर कोई है लेकिन उसके सही मायने क्या हैं? इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। अन्तर्मन की पीड़ाः
अन्तर्मन की गागर जब पीड़ा से भर जाती है
चुपके से तब नयनकोर से ये छलक ही जाती है।
दिल के बन्द दरवाजे कर लो या लगा दो अधरों पर ताले
फिर भी बादल बनकर ये आँखों से बरस ही जाती हैं। (पृष्ठ संख्या ३०)
डाॅ. राधा वाल्मीकि के काव्य संग्रह अन्तर्मन की पीड़ा है और उनकी यह रचना ही पूरे काव्य संग्रह का सार भी है। उक्त रचना अन्तर्मन को झंझोड़ती है, सवालों को खड़ा करती है भले ही आप शब्दों से कुछ बयाँ न कर पाओ किन्तु दिल की बात आँखों से कह जाते हो। जश्न ए आजादीः
जश्न मना रहे हैं हम हमने पा ली आजादी,
गर हमने पा ली आजादी तो कहाँ गयी वह आजादी।
जिस आजादी में आज भ्रष्टाचार का बोलबाला है
उजले हैं चेहरे लोगों के लेकिन धन्धा काला है। (पृष्ठ संख्या ३१)
उक्त रचना आज के भयावह दौर में आजादी की धज्जिया उड़ा रहे समाज से सवाल खड़ा करती है कि आजादी के सही मायने क्या हैं? आजादी का मतलब क्या है? भ्रष्टाचार में लिप्त समाज निम्न वर्ग से हर स्तर पर आजादी छीन रहा है। बेटियों का अस्तित्वः
मानव कब दानव बन बैठा, सोच-सोच हैरान हूँ मैं
पशुता का पोषक बन बैठा देख-देख परेशान हूँ मैं।
लूटपाट व्यभिचार जन्य कृत्य क्रूर कलुषित दुव्र्यहार
रिश्ते मान-मर्यादायें सब हो रही हैं तार-तार। (पृष्ठ संख्या ३३)
उत्पीड़न, अन्याय, अत्याचार, हो रहे जुल्म-ज्यादती, मानव रूपी दरिंदे द्वारा उसकी हैवानियत का शिकार हो रही बहन-बेटियों पर डाॅ। राधा वाल्मीकि ने उक्त रचना में अफ़सोस जताया है। इंसानियत कहाँ खो गईः
पता नहीं ये सिलसिला कब थमेगा
हवस और रक्तपात का काफ़िला कब रूकेगा।
अब तो वहशियत की भी इंतिहा हो गयी है
पता नहीं इंसानियत कहाँ खो गयी है। (पृष्ठ संख्या ३५)
मानव रूपी दरिंदे पर घोर लांछन लगाते हुए ललकारा है माँ, बहन, बेटी की आबरू पर वार करोगे तो कहाँ से लाओगे माँ, बहन, बेटी, डाॅ। राधा वाल्मीकि ने उक्त रचना में हैवानियत की घोर निंदा की है। ये दलित की बेटी हैः
पग-पग प्रताड़ना की बेदी पर मूक बनी जो बैठी है
निरीह डरी सहमी-सी अबला ये दलित की बेटी है।
घ्रणित वर्ण व्यवस्था के कारण ये अछूत कहलाती थी
देह प्रताड़ना देनी हो तो ये सछूत बन जाती थी। (पृष्ठ संख्या ३६)
सदियों से हो रहे दलित समाज पर अत्याचार, उत्पीड़न ओर उसमें भी महिला की स्थिति तो वह तो ओर निंदनीय, ऐसी भयावह स्थिति का वर्णन अपनी उक्त रचना में किया है। इस रचना के माध्यम से डाॅ। राधा वाल्मीकि को दलित साहित्य में एक विशेष सम्मान मिला है। भूखः
गरीब को रोटी की भूख है युवा को रोज़ी की भूख है
किसी को दौलत की भूख है किसी को वैभव की भूख है।
फाइलों को नोटों की भूख है नेता को वोेटों की भूख है
अच्छी फ़सल किसान की भूख है अच्छी मजदूरी मज़दूर की भूख है। (पृष्ठ संख्या ४०)
उक्त रचना में भूख भी कई प्रकार दर्शायी गयी है, इन अलग-अलग भूख के मापदण्डों का कहर आम जनता, महिला, मज़दूर ओर तो ओर राजनीति में भी चरम पर है। बड़ी ही मार्मिक रचना है जो मनुष्य जाति की भूख की घोर निंदा करती नज़र आ रही है। आख़िर क्यूँ:
आज फिर अखबारों की सुर्खियों में छपा था
कुछ जिन्दगियाँ सीवरों में हलाल हो गयी।
फिर कुछ सुहागनों को सिन्दूर लुटा
फिर कुछ माताएँ बे-लाल हो गयीं। (पृष्ठ संख्या ४३)
सफ़ाई कामगार समुदाय की व्यवस्था व उसके साथ हो रहे अन्याय की निंदा करती उक्त रचना ने दलित साहित्य पर अमिट छाप छोड़ते हुए समाज के ठेकेदारों व नेताओं को निवस्त्र कर उन्हें तार-तार कर रही है। शैक्षिक क्रान्ति की मशालः
शैक्षिक क्रान्ति की मशाल को हर हृदय में सुलगने दो
असीम वेदना के शोलों को दावानल-सा दहकने दो।
शिक्षित बनो गटर से निकलों खुली हवा में साँस लो
पुश्तैनी पेशों को छोड़ो कुछ नये अहसास लो। (पृष्ठ संख्या ४५)
डाॅ. राधा वाल्मीकि उक्त रचना में सफ़ाई कामगार भाईयों को चिल्ला-चिल्ला कर साफ़ कह रही हैं कि अपने नारकीय जीवन से बाहर निकलो ओर अपने बच्चों को अंधकार, अशिक्षा से दूर करते हुए शिक्षालय तक पहुँचाओं। उक्त रचना अन्तर्मन की पीड़ा का एक अभिन्न अंग नज़र आ रही है। मलिन बस्तियांः
नदियों व गन्दे नालों के किनारे बसी है मेरे देश की मलिन बस्तियाँ
इनमें रहते हैं शोषित वंचित कूड़ा बीनने वाले खानाबदोश
मजदूर, भिखारी, मदारी व ढ़ोलक बजाने वाले लोग। (पृष्ठ संख्या ४९)
दलित प्रताड़ना को दम्भ भरती उक्त रचना ने मलिन बस्तियों में रह रहे लोगों की वास्तविकता का वर्णन करते हुए शासन-प्रशासन को मलिन बस्तियों की योजनाओं के माध्यम से खुली चुनौती दी है। जातिः
हाय रे जाति कैसी जाति तू कहीं क्यूँ चली न जाती
जाति के आगे है जाति-जाति के पीछे है जाति। (पृष्ठ संख्या ५७)
उच्च जाति द्वारा निम्न वर्ग की जाति को अपमान का घूंट पीना पड़ता है ऐसी घोर निंदनीय उक्त रचना ने जाति क्यों नहीं है जाती? हर प्रकार की जाति को चुनौती दी है। सूदखोरः
निर्बल शोषित वर्ग से ही उपजे ये समाज के सूदखोर
निर्धनता की दलदल में धकेलते ये समाज के सूदखोर। (पृष्ठ संख्या ५९)
उक्त रचना में पैसे से पैसो को जन्म देने वाले सूदरखोरों ने निचले तबके के मनुष्य को पैसो के तले रौंद दिया है और उनकी जिस्म व सांसों को बेचकर भी पैसा कमाने की योजना को जन्म दिया है। व्यवस्था बदलनी चाहिएः
घन से भी घनघोर हो चुकी पीड़ा निकलनी चाहिए
असमान अस्प्रश्यतायुक्त व्यवस्था बदलनी चाहिए। (पृष्ठ संख्या ६३)
अपने हक़ अधिकार व समान व्यवस्था के खिलाफ बिगुल फूंकते हुए डाॅ. राधा वाल्मीकि ने व्यवस्था पर प्रहार करते हुए अस्प्रश्यतायुक्त असमानता व्यवस्था की निंदा की है।
५८ कविताओं के संग्रह अन्तर्मन की पीड़ा १०८ पृष्ठों में डाॅ. राधा वाल्मीकि ने हर स्तर की समाज में घट रही घटनाओं पर संवेदनशील होकर अपनी क़लम चलायी है, प्रत्येक रचना को पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि मानो कवयित्री के जीवन पर हर रचना ने गहरी छाप छोड़ी है।
आज वर्तमान में ऐसी ही कर्मठ, जुझारू महिला शक्ति की ज़रूरत है जो स्वयं पर हो रहे अन्याय का खुली चुनौती से सामना कर अपना हक़ अधिकार प्राप्त कर सके तथा समाज का हर वर्ग अपने हक़ और अधिकारों की लड़ाई के लिए सक्षम हो सके। सभी अपने देश से प्रेम करें। समता, समानता और बन्धुत्वयुक्त सामाजिक व्यवस्था क़ायम हो, स्वस्थ लोकतंत्र हो और देश का प्रत्येक नागरिक जागरूक हो।
समीक्षकः
आशीष भारती (लेखक / कवि)
मो. ७८३०२६२१४२, ७६६८४१८५८८,
टैगोर गार्डन, पेपर मिल रोड़,
सहारनपुर-२४७००१ (उ.प्र.)
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