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होली की उमंग (Holi Celebrations)
होली की उमंग (Holi Celebrations) उपज तो आयी
पर मन मेरा खिन्न हो आया
पलाश के फूल भले खिल आये
पर रंग उनका मुझ पर न चढ़ पाया
प्रियतम मेरे है रंगरुट फ़ौज के
वे खेलें, अरि संग खून की होली
वो सीमा की रक्षा कर रहे है
तभी हम मना पा रहे हैं रंगोली
वो आएंगे अबके होली पर
उनका मुझ तक यह सन्देश आया
होली की उमंग उपज तो आयी
पर मन मेरा खिन्न हो आया
फक्र मुझे है उनकी होली पर
जिन पर प्यार मेरा उढल आया
होली की हम सब खुशियाँ मनावें
उनका होली पर आना मुझको भाया
पहाड़ों में देखे उन्होंने फूल पलाश के
उनको होली पर आने का मन हो आया
यह अहसास मुझे भी हुआ जब
होली का रंग मुझ पर चढ़ आया
ना मरने दो सपनों को
ना मरने दो तुम उमीदों को
और न मरने दो सपनों को
जो पल जीवन में मिल रहे हैं
व्यर्थ न करो उन पल-पल को
जिन्दा रहने को भोजन है
उससे ज़रूरी होता है पानी
पानी से ज़्यादा है ज़रूरी
वायु मिले तब है जिंदगानी
आयु से भी ज़रूरी होती
इंसानों की आयुष्मनी
जब न रहेगी अगर आयु
फिर काया रज में मिल जानी
पंच भूत के प्रति जो ऋण है
सबको उसे चुकाना है
जो कर्तव्य है इंसानों का
उन्हें पूरा करके ही जाना है
मरने का है नहीं कोई कारण
इंसान बैठे-बैठे मर सकता है
मरने से पहले उस दिन मर जाता
जब उसके सपनों को कोई हरता है
जब हो जाती है, ख़त्म उम्मीदें
और विश्वास भी मर जाता है
इस तरह इंसान जहान में
मरने से पहले मर जाता है
मरने न देना विश्वास किसी का
उम्मीदें उसकी पूरी होने दो
सपने उसने जो है संजोये
उसके सपनों को पूर्ण होने दो
सही है या नहीं
अपने जेहन पर लपेटता गया
फिर वह भी उधड़ता चला गया
लुटता गया और लुटाता गया
छीनता रहा जहाँ में छिनाता गया
यह जो घटित होता रहा है
कहीं वह तुम्ही तो नहीं
तुम जो जहाँ में कर रहे हो
वो देखो सही है या नहीं
हक़ न किया अदा, छीनता गया
द्वेष की दीवारें बनाने लगा
मुहब्बत की मीनारें ढहाते हुए वो
जलते दीयों को बुझाने लगा
खिलने भी न दी कलियों को
कहीं वह तुम ही तो नहीं
तुम जो कर रहे हो जो भी
देख लो सही है या नहीं
खिली कलियों को मसलता रहा
यह हरकत उसकी क्षम्य नहीं
हर तरफ़ जखीरा जुल्मों का सजाया
आज अवाम के आसूँ रुकते नहीं
कितना ही लपेटा, कुछ न रहा
सबका सब गुम हो गया
कुकर्म के करतब करता हुआ
उसने न देखा वह अँधा हो गया
लूटा खजाना, उसका भी न रहा
वो फिर किसी और का हो गया
जितना वह समेटता चला गया
समय बीतते वह भी बिखरता गया
बीते पलों के पन्ने खोलो तुम
जो हिस्से है जीवन की किताब के
वो जो करता रहा छुपा न सकेगा
चाहे छुपाले पीछे हिजाब के
खुश न रहने दिया इंसान को
धरती का तो वह इंसान ही नहीं
तुम जो कर रहे हो वह सब
देख लो सही है या नहीं
कोरोना विषाणु
घर में ही है मंदिर यहीं है मस्जिद
घर में ही लोगों पूजा इबादत कर लो
गिरिजाघर में जाने की ज़रूरत नहीं है
घर में ही प्रभु की प्रार्थना कर लो
कोरोना फिर उछल कूद न कर पायेगा
मुँह और नासिका को मास्क से ढक लो
कोरोना विषाणु न पहुँचे हम तक
अपनी सुऱक्षा स्वयं सुरक्षित कर लो
किसी आँगन से न सुनने को मिले चीखें
कोरोना का हमला न किसी पर होने दो
जहाँ भी उभरे है इसके विषाणु
उसको वहाँ ये अपराध न करने दो
इस बीमारी को तुम हलके में न लेना
शत्रु समझ कोरोना का खात्मा कर लो
न जाओ मंदिर न जाओ मस्जिद
घर में ही लोगों पूजा इबादत कर लो
जमीं को बचा लेंगे
जमीं से जुदा ना हम हो सकेंगे
जब जल जंगल ज़मीं को बचा लेंगे
जमीं को बचा हम जहान को बचाये
तभी जीव जगत में जी सकेंगे
अगर करेंगे रक्षा जंगलों की हम
तभी यहाँ हम जशन मना पाएंगे
जल का संरक्षण करना होगा
नहीं तो प्यासे हम मर जायेंगे
जब तक जग में जल जंगल है
तभी जमी पर जीवों में जान है
यह जग केवल हमारा ही नहीं है
जीव जंतु पेड़ो का भी थान है
हवा पानी मृदा और नदियों को
हम कभी प्रदूषित न होने देंगे
जमीं से जुदा ना हम हो सकेंगे
जब जल जंगल ज़मीं को बचा लेंगे
आदमी की सोच
आदमी की सोच को यह क्या हो गया
खजाना इंसानियत का उससे खो गया
प्यार करना था उसे अपनी ज़मीन से
नफरत करने लगा वह अपने ज़मीर से
पाप की खन्दकों में वह जा सो गया
जिसका वह अंश था उससे दूर हो गया
दुष्कर्म करने लगा, क्यों वह ऐसा हो गया
दरिंदा बन गया उसे यह क्या हो गया
भूल कर इंसानियत वह हैवान हो गया
जगत के जीवों का वह दुश्मन हो गया
अब जाग जा आदमी क्यूँ तू सो गया
दया धर्म शांति से, विमुख क्यों हो गया
अपनी धरा, प्रकृति से तू प्यार कर
पशु, पक्षियों, जीव जन्तुओं से प्यार कर
अच्छी सोच का इंसान तू बनजा
अपनी मातृ भूमि से भी तू प्यार कर
हँस लिया करो
तुम हर वक़्त क्यूँ रोया करते हो
कभी तो तुम हंस लिया करो
अपने आँसुओं को थोड़ी फुर्सत दे दो
इन पर ज़रा रहम तुम कर लिया करो
हर वक़्त रोना नहीं होता अच्छा
वक्त को, मिज़ाज अच्छा कर लेने दो
इतनी-सी दिल को छूट दे दो तुम
उसे अपनी बात कह लेने दो
आँसू होते है काम के बहुत
जरा उनकी तरफ़ तुम देख लिया करो
तुम हर वक़्त क्यों रोया करते हो
कभी तो तुम हंस लिया करो
तुम हंसोगे तो दुनिया भी हंसने लगेगी
दुनिया से भी प्यार तुम कर लिया करो
शक्ल रोनी-सी हमें अच्छी नहीं लगती
कभी तो तुम मुस्कुरा लिया करो
हमारी गुजारिश पर ग़ौर करना तुम
जरा अपने लबों पर मेहर कर लिया करो
क्यूँ हर वक़्त तुम मायूस रहा करते हो
कभी तो तुम हंस लिया करो
अमन से ओत प्रोत
अमन से ओत प्रोत हमेशा रहे
मेरे मुल्क का जर्रा जर्रा
खिड़कियाँ बंद नहीं हो कहीं की
न चले उनपे गोली छर्रा
खिड़कियाँ और दरवाजों में
अमन की बहार आती रहे
शांति के गीत गूंजते रहे वहाँ
मधुरम गूंज सबको सुहाती रहे
हरियाली में हो मेरा मुल्क सारा
हर ओर हो वह हरा ही हरा
अमन से ओत प्रोत हमेशा रहे
मेरे मुल्क का जर्रा जर्रा
रंग बरसे मेरी धरा पर
कोई बदरंग इसे न कर पाए
हर दिल में हो उल्लास भरा
आपस में दिलों को हुलसाए
निडर हो मेरे मुल्क का आदमी
न रहे कभी वह डरा डरा
अमन से ओत प्रोत हमेशा रहे
मेरे मुल्क का जर्रा जर्रा
प्यार के लिए
मेरी नज़र और तुम्हारी निगाहें
एक बिम्ब में आ जाये तो अच्छा
पनपता रहे प्यार, प्यार के लिए
आपस में प्यार हो जाये तो अच्छा
मेरी नज़रों में प्यार की प्यास है
प्यार की पुकार मुझसे निकल रही है
नजरें इनायत ग़र हो जाये तुम्हारी
हलक में मेरे यह प्यास पल रही है
तुम्हारी तड़फ जो है मेरे दिल में
यह तड़फ मेरी मिट जाये तो अच्छा
मेरी नज़र और तुम्हारी निगाहें
एक बिम्ब में आ जाये तो अच्छा
एक टकटकी में स्थिर है निगाहें मेरी
बस वह तुम्ही को देखती रहती है
दीदार हो जाये प्यार के समंदर का
यह ख़्वाहिश मुझमें पलती रहती है
तस्वीर से मेरा दिल अब भरता नहीं है
अब दीदार तुम्हारा हो जाये तो अच्छा
मेरी नज़र और तुम्हारी निगाहें
एक बिम्ब में आ जाये तो अच्छा
बुलंद है हौसला मेरा
ख्वाहिश एक उमड़ती है मुझमे
एक तस्वीर मैं ऐसी बना लूँ
वो मुस्कुराती रहे सामने मेरे
उसे देख के मैं मुस्कुरा लूँ
सिलसिला यह कभी रुके ना
जमाना मुझे चाहे कुछ भी कहे
भूलना चाहता हूँ मैं वह हादसे
जिनसे मेरी आंखों से आँसू बहे
नए नए रंग मैं भरता रहूँगा
मैं अपनी इस तस्वीर में
रंगों से सजाता जाऊँगा इसे
रंगत आएगी मेरी तस्वीर में
बुलंद है आज हौसला मेरा
ऐसी तस्वीर बनाऊँगा मैं
एक की न हो वह सबकी हो
ऐसी जागीर बनाऊंगा मैं
रंगों की बारात इकट्ठी हो आयी
रंगने को वह छटपटा रही है
ख्वाहिशों की तूलिका आतुर हुई
कुछ नया करने को जता रही है
रास्ता अपना यादें न भूल पायी
फिर कैसे मैं उनको भुला दूँ
जिसे अपनी कह सकूँ मैं
उसकी ऐसी तस्वीर मैं बना लूँ
मंजिल की राह
अनेकों सफ़र तय करता रहा वह
मंजिल उसे नज़र आयी नहीं
मुस्कुराना उसको आता भी कैसे
दिल से सुमधुर गान कभी गाया नहीं
थक गया वह अकेला चल-चल के
चाह को न पा सका वह कभी
सहचर बनाके अगर वह चलता
चहेती मंज़िल उसको मिलती तभी
न घाव खाता अग़र वह न घाव देता
न रोता जब किसी को न रुलाता
बुरे कर्म अगर वह करता ही नहीं
तो नहीं वह कभी उपालंब खाता
तड़फ़ाना अगर बंद कर देता वह
आत्मा उसकी भी तडफती नहीं
न रसपान बुरे पेय का करता
तो बद मंशाएँ उसमें पनपती नहीं
पाप को पाप समझ न सका वो
तभी पुण्य प्राप्ति उसको हुई नहीं
अनेकों सफ़र का राही बनके भी
मंजिल उसे नज़र आयी नहीं
गुरुजी का ज्ञान
गुरुजनों ने फैलाया है
सारे जगत में उजियारा
ज्ञान को फैला करके उन्होंने
दूर भगाया है अंधियारा
निरक्षर से हमें साक्षर करके
उन्होंने ज्ञान बढ़ाया है हमारा
जो ज्ञान मिला है हमें गुरुजनों से
वो इल्म हमारा आज बना सहारा
गुरुजनों ने हमें पोथी पढ़ाई
बहने लगी है ज्ञान की धारा
गुरुजनों ने फैलाया है
सारे जगत में उजियारा
सही दिशा में बढ़ने के खातिर
गुरुजी का ज्ञान है ध्रुवतारा
ज्ञान की मशालें हमें सौंप के
गुरु ने हमको तम से उबारा
वंदनीय है गुरुजन जगत में
गुरु कृपा ही है अमृत धारा
गुरुजनों ने फैलाया है
सारे जगत में उजियारा
गृहलक्ष्मी
तू क्यूँ समझती है अभी भी यह
कि आदमी बिना तू अधूरी है
मानवों में सर्वश्रेष्ठ कृति तू ही है
तू तो इंसानी दुनिया की धुरी है
तुझे किसी उपमा की ज़रूरत नहीं है
जो तुझे मिली है किसी आदमी से
तू अपने दम पर जीवन जी सकती है
कमजोर नहीं है तू किसी आदमी से
गृहलक्ष्मी तू यूँ ही नहीं कहलाती
घर चलाती है तू अपने हौंसले से
उड़ान तेरी हर जगह संभव है
न डर तू अब किसी के कोसने से
न सहना अत्याचार अब तू कहीं
तुझमें इंसानी ताकत पूरी है
यह क्यूँ समझती है तू अभी भी
कि आदमी बिना तू अधूरी है
आदमी हूँ मैं
मैं एक नया परिवेश देखना चाहता हूँ
आदमी हूँ, नेक इंसान बनना चाहता हूँ
शांति का माहौल हर तरफ़ दिखे मुझे
मैं अमन की राह पर चलना चाहता हूँ
भविष्य का वक़्त हो सबका उज्ज्वल
मैं रूप इसका स्वर्णिम देखना चाहता हूँ
निष्क्रिय अब मैं रहना नहीं चाहता
मुस्कुराता हर चेहरा देखना चाहता हूँ
आदमी कहीं न दिखे मुझको अधुरा
आदमी में आदमियत देखना चाहता हूँ
मैं एक नया परिवेश देखना चाहता हूँ
आदमी हूँ, नेक इंसान बनना चाहता हूँ
साथ दे सदा सब एक दूसरे का
प्रीत की गंगा बहती देखना चाहता हूँ
कोई न हो दबा हुआ किसी आदमी से
सब को उभरता हुआ देखना चाहता हूँ
हर आदमी में हो शालीनता और नम्रता
हर आदमी को यही मैं बताना चाहता हूँ
मैं एक नया परिवेश देखना चाहता हूँ
आदमी हूँ, नेक इंसान बनना चाहता हूँ
मेरी उमंग
जब भी मैं तुझको देखता हूँ
तेरी आँखों में डूब जाता हूँ
जैसे हो आए समंदर सामने मेरे
उसके गहरे में मैं उतर जाता हूँ
तेरी नज़रों की लहरें छूती है मुझे
इनमे एकाकार मैं हो जाता हूँ
लहरों से खेलने लगता हूँ मैं
एक तिलस्म में मैं आ जाता हूँ
नजर आता है मुझे इंद्रधनुष
देखता हूँ जब तेरी आँखों को
उन रंगों में रंग कर के मैं ख़ुद
खोल लेता हूँ मैं अपनी पाँखों को
इश्क के नभ में उड़ने लगता हूँ मैं
प्यार की पवन को ले तेरे संग
तेरे प्यार को पाने के खातिर
उछलती रहती है मेरी उमंग
जब भी झाँका है मेने तेरी आँखों में
मैं अपने को भूल जाता हूँ
तुझको देख-देख कर मैं
तेरे प्यार में डूबा जाता हूँ
सजने दो संसार को
कोई गढ़ गया मूरत
चित्रांकन कोई कर गया
जहान सजने को तैयार है
उसका आँगन भी सज गया
किसी को तराशनी है मूरत
चित्रों में रंगों को भरना है
मूरत पाषाण बनी न रहेगी
रंग के चित्रों को चहकना है
मूरत मुखर हो बोल उठेगी
लगेंगे चित्र भी चहचहाने
गुलशन के फूल खिल उठेंगे
लगने लगेंगे भ्रमर मंडराने
शोभा किसे अच्छी न लगती
कोई इसे बिगड़ना मत
लगे चित्रों को न बिगाडे कोई
मूरत को खंडित करना मत
सजने दो संसार को तुम
खुशबू उसको दे देने दो
सुंदरता जो मिली है जग को
उससे इसको सज लेने दो
उसकी मेहनत को मत मारो
जो चित्रकार है, चित्रित कर गया
चोट न पहुँचाना उन हाथों को
जो मूरत हमें सुपुर्द कर गया
स्त्री हक़
हक तुझको किसने दे दिया है
कि तू महिला पर हक़ जताता है
एक औरत के बलबूते पर ही तू
सलीके से जीवन जी पाता है
इसके त्याग की तरफ़ तू नज़र कर
सम्मान दे तू उसे हे पुरुष
गर नज़र अंदाज़ किये उसके कर्म
तो ज़िन्दगी तुझसे जाएगी रूँस
बिना माँ के तू आता कहाँ से
उसी की कोख से जन्म ले आता है
बहिन बेटी तेरी ये ही तो बनती
क्यूँ रूढ़ियों में अपने को पाता है
जहाँ दिखे तुझे महिला उत्पीड़न
या हिंसा की कोई हुई शिकार
रक्षा उसकी तू कर हे पुरुष
तुझे सौंपता हूँ मैं यह कार्य भार
स्त्री हक़ की रक्षा ही करना तू
क्यूँ औरत को तू रुलाता है
हक तुझको किसने दे दिया
कि तू महिला पर हक़ जताता है
रमेश चंद्र पाटोदिया “नवाब”
६३/१४८ प्रताप नगर श्योपुर रोड सांगानेर जयपुर
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