हिन्दी
हर भाषा को गले लगाती
हर बोली में घुल मिल जाती
गुड़ सी मीठी ज़ुबान है हिंदी
हिन्द की पहचान है हिंदी
इकतालीस व्यंजन, स्वर हैं बारह
सोने सा है हर इक आखर
मात्राओं के जेवर से सजकर
दुल्हन सी तैयार है हिंदी
विपरीतार्थक शब्द और पर्यायवाची
तत्सम ,तत्भव, मुहावरे, लोकोक्ति,
स्त्रीलिंग पुलिंग का भेद बताती
सहज सरल, कभी कठिन है हिंदी
बाबूजी का दुलार है हिंदी
माँ की लोरी और डांट है हिंदी
है भाई बहन का पावन प्यार
बुजुर्गों का आशिर्वाद है हिंदी
देश विदेश कहीं हम जाएं
परदेश में भी स्वदेश दिखाए
लगती है बड़ी ही अपनी सी
संस्कारों की अमिट छाप है हिंदी
आधुनिकता के इस युग में
हिंदी बोलना हुई शर्म की बात
अपनों की ही अवहेलना पाकर
आज थोड़ी उदास है हिंदी
है भारत माँ के चरणों की धूल
कैसे जाएँ हम इसको भूल
चाहे पिछड़ा चाहे कहो गँवार
हमको तो स्वीकार है हिंदी
रीना सिन्हा
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