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मैं गांधी को ढूँढ पाऊँ
मैं गांधी को ढूँढ पाऊँ
वो कल कहाँ से लाऊँ
मैं गाँधी को ढूँढ पाऊँ
कहीं दिख जाये वह मुझको
मैं शरण में उनकी चल जाऊँ
जकड़ा हुआ था मैं विगत में
परतंत्रता की बेड़ियों से
घुट रही थी साँसें मेरी
घिरा था मैं फिरंगी भेड़ियों से
हथियार थाम अहिंसा का
मुझे गाँधी जी बचाने चले आये
अनाचार जो कर रहे थे ब्रितानी
उससे निजात दिला के चले गए
मैं बड़ा व्यथित रहा हूँ विगत में
अंग्रेज बड़ी यंत्रणा देते थे
मेरे दीन हीन भाईओं का
कर बतौर खून चूसा करते थे
गाँधी ने सत्याग्रह अपनाया
तभी आज मैं आजाद कहाऊँ
वो कल फिर मैं कहाँ से लाऊँ
जो मैं गाँधी जी को पा जाऊँ
आर्थिक समानता हो मेरे यहाँ
गाँधी ने इस पर ज़ोर दिया
औरतें बढे सशक्तिकरण की तरफ़
यह प्रयास गाँधी ने पुर ज़ोर किया
नंगे बदन पर मेरे गाँधी ने
चादर खादी की औढ़ाई
नशा बंदी का बिगुल बजा के
नशा खोरों को धूल चटाई
गाँधी की अहिंसा के बल पर
परतंत्र दशा से मैं मुक्त हुआ
वो कल आज मुझे कहाँ मिलेगा
जब मेरा जन गण गाँधी हुआ
भारत भू पर बापू गाँधी
दीया उजाले का हाथ में ले के
भारत भूमि पर कोई आया था
लौ जल रही थी आजादी के दीये की
किसी ने उसको बुझाया था
जलती लौ को एक दुष्ट ने
उंगली से ट्रेगर दबा बुझा दी थी
हरकत ऐसी वह क्यों कर बैठा
किसने हरकत यह उसे सुझा दी थी
लौ जलाई थी, जलने लगी थी
लौ से लौ अमन की जलती गयी
हो गया सर्वत्र उजाला अमन का
दुष्ट के हाथों एक बड़ी गलती हुई
फ़ैल उठी थी ख़ुशबू जहान में
अमन की रोशनी, रोशन हो गयी थी
शांति हो, विश्व शांति जग में
हर ओर यह आवाज़ बुलंद हो गयी थी
बहुत दमित थे, दबे हुए थे
उन्हें ऊँचा उठाने कोई आया था
दीया उजाले का हाथ में ले के
भारत भूमि पर कोई आया था
बापू तुम
बापू तुम हमसे दूर न जाओ
दुनिया को दिलासा देने आ जाओ
दुनिया में सब रह सके अमन से
उनको मानवता आप सिखा जाओ
अहिंसा व्रत सब पालने लगे
सबके दिलों में यह ज्योति जला जाओ
सच से दूर जो चले गए है
उन्हें सत्य का मार्ग दिखा जाओ
अपरिग्रह को सब जान जाने
इसका आकर के बिगुल बजाओ
बापू तुम हमसे दूर न जाओ
दुनिया को दिलासा देने आ जाओ
स्व राष्ट्र से सब को प्रेम हो
स्वदेशी जागरण की अलख जगा जाओ
ग्रामोद्योग फिर में पनपे सब तरफ़
और चरखा भी अपना चला जाओ
आजादी खतरे में न पड़ जाये
हम सबको आग जलाने आ जाओ
बापू तुम हमसे दूर न जाओ
दिलासा दुनिया को देने आ जाओ
महबूब की महफिल
मेरे महबूब मेरे लिए ग़लत राय रखते हैं
यों तो वह मुझे कभी याद करते नहीं है
जहाँ सजी होती है, महबूब की महफिल
उस जगहों पर मुझे वह पसंद करते नहीं हैं
सोचते हैं वह शायद यही मेरे लिए
मैं उनकी महफिल को बिगाड़ देता हूँ
कितनी ही तोहीन हुई है पहले मेरी
उन सबको बलात में उधाड़ देता हूँ
जब भी मैं नज़दीक महबूब के जाता हूँ
झगड़ालू समझ कद्र मेरी वह करते नहीं है
मेरे महबूब मेरे लिए ग़लत राय रखते हैं
यों तो वह मुझे कभी याद करते नहीं है
उनके उलाहने में भी मुझे इश्क़ झलकता है
जब भी देखूं उन्हें, दिल मेरा मुलकता है
वो याद करे मुझको चाहे जैसे भी
इश्क का अलाव मुझमें आज भी सुलगता है
यही है बहुत मेरे लिए वह मुझको याद करते है
इसी बेफिक्री में मेरी आंखों में आसूं मरते नहीं है
मेरे महबूब मेरे लिए ग़लत राय रखते हैं
और दिखाने में वह मुझे प्यार करते नहीं हैं
झलक
हम अगर देखने आ जाये तुम्हारी झलक
गुस्ताखी समझो तो हमें माफ़ कर देना
देने को हमारे पास कुछ भी नहीं है
बस लेना हो तो हमारा दिल ले लेना
दिल तो हम पहले ही दे चुके हैं सनम
तोहफा यह हमारा तुम स्वीकार कर लेना
और कोई चाहना हमारी बाक़ी नहीं है
इस चाहत को तुम दिल में घर कर लेना
दीदार जब तुम्हारा हमें हो जायेगा
तभी समझ लेंगे हम जन्नत में आये हैं
थोड़ी फुर्सत तुम निकालना हमारे लिए
हम तुमसे रूबरू प्यार करने आये हैं
मालिक से हम मांग लाये है इश्क़ तुम्हारा
यह बात तुम दिल में साफ़ कर लेना
हम तुम्ही को देखने को चले आये हैं
गुस्ताखी समझो तो हमे माफ़ कर देना
बेरुखी उनकी
ख़ुशी अगर वह मुझको नहीं भी देवे
उनसे नाराज मैं कभी न हो पाउँगा
वो आ के भी न रखे क़दम मेरे दर पर
मैं तो इन्तजार उनका करता रहूँगा
उनकी बेरुखी को मैं क्या नाम दूँ
उन्हें बदनाम मैं नहीं देखना चाहता हूँ
वो मेरी और देखें या न भी देखें
मैं उनकी नजरों में रहना चाहता हूँ
जालिम नहीं हूँ मैं महबूब के लिए
न जालिमाना हरकत करना चाहूंगा
जो भी गुस्ताखियाँ उनसे होती रहेंगी
उन्हें मैं अपने नाम करता जाऊंगा
वो सुने या न सुने आवाज़ मेरी
मैं सदा उनके लिए ही गुनगुनाऊँगा
वो ख़ुशी मुझको देवें या ना भी दे
मैं उनसे नाखुश न होना चाहूंगा
हसीन मौका
काश मिल जाये मुझको कहीं
तेरी जुल्फों से छुई हुई खुशबू
झोंका हवा का जो छू के बह रहा
उससे होना चाहता हूँ मैं रूबरू
बातें करुँ में तुझसे मुलाकात करके
ऐसा हसीन मौका मिल जाये मुझको
कहूँगा मैं तुझको मेरे लिए हो तुम
मैं तुम्हारा हूँ ऐसा कहो तुम भी मुझको
जो रस तेरे लबों से रिस रहा है
उसकी मेरे लबों से सगाई हो जाए
विरह में, रुदन मेरा अभी साथी है
उससे मेरे दिल की रिहाई हो जाये
एक रंग का हो जाये रंग हमारा
साँसें हमारी करे प्यार की गुफ़्तगू
काश मिल जाये मुझ को कहीं
तेरी जुल्फों से छुई हुई खुशबू
क्यूं दे दी यह तड़फ
रूंठ कर ग़र तुम हमारे सामने होते
शर्तियाँ हम तुमको मना ही लेते
रूंठना मनाना तो चलता ही रहता
इश्क कितना है तुम्हे हम बता ही देते
क्यूं दे दी यह तड़फ तुमने हमें
न रुकी है रुलाई सामने आ गई है
नाराज हो के जो तुम हमें छोड़ गए
हमारी आंखों में रुलाई समा गई है
रूंठ के जो वापस चले आया करते
वे अपनी ज़िन्दगी रोशन कर ही लेते
रूंठ कर ग़र तुम हमारे सामने होते
शर्तियाँ हम तुमको मना ही लेते
कसमें वादे हमारे तुम भूल बैठे हो
हमें तन्हा छोड़ के चले गए हो
इश्क में हम तुम्हारी ज़िन्दगी से जुड़े थे
इस रिश्ते को तुम तोड़ के चले गए हो
नफरत अगर थी तुमको हमारे से
अंदाज इसका तुम हमें बता ही देते
रूंठ कर ग़र तुम हमारे सामने होते
शर्तियाँ हम तुमको मना ही लेते
क्यूं किया सलूक ऐसा हमारे लिए
हमारी ज़िन्दगी में मायूसी छा गई है
अलगाव के अंधेरे से हमें डर लगता है
इसके ख़ौफ़ की आंखें हमे डरा रही है
जिंदगी अगर हमारी लेनी थी तुमको
खुशी से हम तुम्हारे हवाले कर ही देते
रूंठ कर ग़र तुम हमारे सामने होते
शर्तियाँ हम तो तुम्हे मना ही लेते
रमेश चंद्र पाटोदिया “नवाब”
प्रताप नगर सांगानेर जयपुर
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१- पायल
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