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गीता (Geeta)
गीता (Geeta) के सार को,
जीवन में उतार लो।
सार्थक होगी जिंदगी,
गीता को धार लो।
मन की मलिनता,
मन की दुर्बलता,
क्षण में धुल जाए,
गीता की मान लो।
गीता के सार को ।
छल, कपट, द्वेष भावना,
क्षण में मिट जाए।
आंखों में पड़ी धूल,
क्षण में धुल जाए।
गीता के सार को ।
काम, क्रोध, लोभ,
मोह का जंजाल।
तोड़ देती सब,
गीता यह जंजाल।
गीता के सार को।
सुख दुख है जीवन का,
अंग मान लो।
जीवन और मृत्यु,
यह सच जान लो।
गीता के सार को।
हमको दिखाती है,
आइना गीता।
जीवन का सत्यार्थ,
सिखाती है गीता।
गीता के सार को।
स्वाभिमान से जीना,
सिखाती है गीता।
कुमार्ग से सन्मार्ग,
दिखाती है गीता।
गीता के सार को।
कर्म की महता,
बताती है गीता।
आत्मशक्ति मन में,
जगाती है गीता।
गीता के सार को।
योग का महत्त्व,
बताती है गीता।
व्यष्टि से समष्टि का,
संदेश देती है गीता।
गीता के सार को।
दिशाहीन जीवन को,
दिशा दिखाती है गीता।
इंसान को इंसान,
बनाती है गीता।
गीता के सार को।
जीवन के रहस्यों से,
पर्दा उठाती है गीता।
साक्षात्कार आत्मा से,
करवाती है गीता।
गीता के सार को,
जीवन में उतार लो।
सार्थक होगी जिंदगी,
गीता को धार लो।
तुलसी
तुलसी लगाओ आंगन में,
महक उठे तुलसी आंगन में।
हवा सुवासित होती है,
जहाँ तू विराजित होती है।
हो सर्व सौभाग्य वर्धनी
आधी-व्याधि निवारनी।
हो साला ग्राम की पटरानी,
लोगों के लिए वरदानी।
तुलसी को पानी अर्पण कर,
अपना घर आंगन पुण्य कर।
कितने काम हो आती,
बीमारी से हमें बचाती।
रोगों से रखती अति दूर,
कुदृष्टि से हमें बचाती।
कई नामों से जानी जाती,
कहीं वृंदा, कहीं नंदिनी।
वृंदावनी, विश्वपावनी,
पुष्पसारा, विश्वपूजिता।
तुलसी और कृष्णजीवनी,
तुम तो हो सबकी संजीवनी।
घर आंगन में अपने लगाओ,
सर्वदा सुख जीवन में पाओ।
तुलसी लगाओ आंगन में,
महक उठे तुलसी आंगन में।
नूतन वर्ष का आगमन
नूतन वर्ष का हुआ आगमन,
करो स्वागत सब मिल जन।
कुछ नई उम्मीदें मन में जगाओ,
कुछ कटु अनुभव मन से भुलाओ।
नया मार्ग करो प्रशस्त,
सबके लिए जो बने आदर्श।
प्राथमिकता हो प्रथम हमारी,
जो जन के लिए हो हितकारी।
नूतन वर्ष का नया सूरज,
बने खुशियों का आगाज।
अपनों का साथ मिले,
गिले शिकवे सब भूले।
मीठी यादों की गठरी बनाएँ,
याद कर जिसे एकांत में भी मुस्काए।
कभी परिवार संग गुनगुनाए,
तो कभी मित्रो संग महफिल सजायें।
जीवन में बिखरे खुशियाँ अपार,
हृदय के मिटे सब विकार।
मिलजुल कर सभी रहें,
करती हूँ दुआ रब से बारंबार।
एकबार फिर नववर्ष की हार्दिक,
बधाई और शुभकामनाएँ
उम्र का असर
उम्र का असर चेहरे पर छाने लगा
जीवन का तजुर्बा बातों में आने लगा।
सुख दुख जीवन में चलता रहा,
हुई शाम सब याद आने लगा।
कौन है अपना, कौन पराया,
व्यवहार उनका बताने लगा।
ना चाह कर भी बेबस होता है इंसा,
चक्रव्यू जीवन का ऐसे फसाने लगा।
कर्म से ही बनता है मुकद्दर,
परिणाम जीवन का समझाने लगा।
भूल का अपनी हुआ एहसास,
जब कोई अपना दूर जाने लगा।
मीत जीवन में है कितना ज़रूरी,
अकेलापन एहसास करवाने लगा।
अहमियत अपनों की पता चली,
विपत्ति में जब सर चकराने लगा।
बांटने से बढ़ती हैं खुशियाँ सभी,
इसीलिए महफिल सजाने लगा।
बात करती हूँ
न मैं छंद की बात करती हूँ,
न अलंकार के बात करती हूँ।
दोहा-चौपाई नहीं आती मुझे,
मैं तो केवल जज़्बात की बात करती हूँ।
जो देखती हूँ चारों ओर,
उसकी ही बात करती हूँ।
अधिकार और कर्तव्य के,
सामंजस्य की बात करती हूँ।
रहती हूँ जिस देश में,
उसकी बात करती हूँ।
जिन्होंने आजादी का उपहार दिया,
उन वीरों की बात करती हूँ।
कर्म की बात करती हूँ,
धर्म की बात करती हूँ।
सरहद पर बैठे,
उन वीरों की बात करती हूँ।
जन के बात करती हूँ,
मन की बात करती हूँ।
नहीं बंधना मुझे किसी बंधन में,
मैं तो केवल सच की बात करती हूँ।
न मैं छंद की बात करती हूँ,
न अलंकार की बात करती हूँ।
दोहा चौपाई नहीं आती मुझे,
मैं तो केवल जज़्बात की बात करती हूँ।
गुरु
प्रथम गुरु है मेरी माँ,
जो मुझे खूबसूरत जग में लायी,
जिसने मुझे दुनियाँ दिखलायी।
बोलना, चलना, खाना सिखलाया,
संस्कारों का महत्त्व बतलाया।
दूसरे गुरु है मेरे पापा,
जिन्होंने जीवन का पाठ पढ़ाया,
हरदम मेरा साथ निभाया,
धूप छाँव का अंतर बतलाया,
परिवार का महत्त्व समझाया।
तीसरे गुरु है मेरे शिक्षक,
जिन्होंने मुझे अक्षर ज्ञान करवाया,
शिक्षा देकर व्यक्तित्व बनाया,
समाज में रहने का गुर बतलाया,
देश के प्रति फ़र्ज़ समझाया।
चौथे शिक्षक हैं मेरे दोस्त,
जिन्होंने दोस्ती निभाना सिखलाया,
पग पग पर पास है पाया,
नकारात्मकता को दूर भगा कर,
सदा हौंसले को बढ़ाया।
पांचवां गुरु है मेरा जीवन साथी,
जिन्होंने प्रेम करना सिखलाया,
समता का भाव जगाया,
जीवन साथी का अर्थ बताकर,
सुख दुख में साथ निभाना सिखाया।
छटा गुरु है मेरे बच्चे,
जिन्होंने मुझे माँ बनाकर,
दो पीढ़ियों में सामजस्य बिठाना सिखलाया,
सहनशीलता का पाठ पढ़ाया,
नयी नयी तकनीक समझाकर,
मेरा मनोबल बढ़ाकर,
मुझे गर्वित करना सिखलाया।
सातवें गुरु जीवन में जाने अनजाने,
कई अच्छे बुरे लोग मिले,
जिन्होंने मेरा ज्ञान बढ़ाया,
यथार्थ के समीप पहुँचाया।
राखी
भैया मैं तुझसे मिलने आयी,
राखी में ढेर दुआयें लायी।
याद जब मां-बाप की आयी,
तेरी बांहों ने की वह भरपायी।
मायके की शोभा तुझसे भाई,
सदा सलामत रहे मेरा भाई।
राखी पर रुके न मेरे पांव,
मायके की ख़ुश्बू खींच के लायी।
वार दूं तुझ पर मैं सारी दुनियाँ,
हर शय से प्यारा मेरा भाई।
गुलज़ार रहे सदा तेरा आंगन,
ढ़ेर दुआयें मैं साथ हूँ लायी।
ये देख मुख पर चमक मेरी बढ़ जाये,
जब स्वागत के लिये खड़ा होता भाई।
प्यार से भाई ने जब गले लगाया,
मन हुआ प्रफुल्लित आंखें भर आयी।
कुमकुम, राखी, जोत, मिठाई,
प्यार से मैंने थाली सजायी।
कुमकुम माथे पर है लगाया,
राखी से भाई कीसजायी कलाई।
जोत से उसकी आरती उतारुं,
साथ ही खिलाऊँ उसको मिठाई।
प्रभु से मांगू सदा भलायी,
जुग-जुग जिये मेरा भाई।
माँ भारती
मां भारती, मां भारती,
नित उतारुं तुम्हारी आरती।
जान से ज़्यादा है प्यारी,
आजादी तुम्हारी माँ भारती।
तेरी आजादी की खातिर माँ,
ज्वाला क्रांति की थी जलायी।
लाठी डंडे भी खाये और,
खुशी ख़ुशी अपनी जान वार दी।
दासता के चंगुल से छुड़ाकर,
आजादी तुम्हें उपहार दी।
तेरे सम्मान की खातिर माँ,
परवाह नहीं करते जान की।
सरहद पर खड़े तेरे लाल,
काटते दुश्मनों के वह जाल।
हौंसले हैं उनके बुलंद,
सदा गीत गाते माँ भारती।
तिरंगा हाथ में जो उठायें,
जोश उनका दुगुना हो जाये।
आवाज़ से शत्रु कांप जाये,
जब जयकारा वह लगायें माँ भारती।
सम्मान से देखे सारी दुनियाँ,
महक उठी अब माँ भारती।
जगत करने लगा अनुसरण,
अब तेरा माँ भारती।
मित्र मेरे
मित्र मेरे ख़ास हैं,
मेरे आसपास हैं।
उनसे है ज़िन्दगी,
जीवन की वह आस हैं।
खुशनसीब है बड़ा,
जिसके मित्र पास हैं।
विपत्ति न आये कभी,
आये तो होती ख्लास है।
चमक ज़िन्दगी की बड़े,
अगर खड़े वह पास हैं।
मिटती हैं सारी दुविधा,
बुझती मन की प्यास है।
आनन्द से जीवन खिले,
मित्र जब गले मिले।
होती जब बात है,
वो पल भी बहुत ख़ास है।
जमती जब महफ़िल है,
खिल उठते जज़्बात हैं।
रंगीन लगती ज़िन्दगी,
होते खुशनुमा अहसास हैं।
लौट आता है बचपन,
यदि उम्र हो पचपन।
थम जाता वक़्त है,
बालपन का होताभास है।
मन हो अगर उदास,
जीवन में हो निराश।
जीवन में आये उल्लास,
करते सदा मित्र प्रयास।
मित्र मेरे रहे खुशहाल,
कभी ग़म से न हो बेहाल।
चढ़ती कला में सदा रहें,
रब से यही मेरी अरदास।
काश ऐसा हो जाये
काश ऐसा हो जाये,
हर जन विवेक हो जाये।
भुवनेश्वरी देवी थी उनकी मात,
विश्वनाथ थे उनके तात।
कोलकता महानगरी में,
१२ जनवरी १८६३ को हुआ जन्म,
करते हैं हम उनको कोटि-कोटि नमन।
सारा विश्व था उनका परिवार,
फैलाना चाहते थे सब में संस्कार।
बने वह सबकी प्ररेणा,
करते नहीं थे, वह किसी से घृणा।
उनकी वाणी में था ओज,
उनको हर पल थी मानवता की खोज।
तन मन से थे वह संत,
बुराइयों का चाहते थे वह अंत।
जात-पात से नहीं था उनको सरोकार,
धर्म था केवल उनका परोपकार।
ईश्वर में थी उनकी भक्ति,
कूट-कूट कर भरी थी देशभक्ति।
भारतीय संस्कृति का परचम,
उन्होंने विश्व में फहराया।
भारत का मान सम्मान,
चहुँ ओर बढ़ाया।
आत्मविश्वास था उनमें भरपूर,
कोई नहीं कर सकता था उनको मजबूर।
कहते थे वह केवल इतना,
” उठो जागो, स्वयं जागकर,
औरों को जगाओ,
अपने नर के जन्म को सफल बनाओ।
तब तक न रूको, जब तक,
अपने लक्ष्य को न पाओ। “
स्वामी रामकृष्ण परमहंस की शिक्षा को,
चार चाँद लगाये,
अपने गुरु के सम्मान हेतु,
अपने क़दम बढ़ाये।
माटी का कर्ज़ उतारने,
सबको सबक सिखलाये थे।
कैसे बने मानवता के पुजारी,
सबको गुर बतलाये थे।
विवेकानंद की शिक्षा सारी,
मानवता के बनों पुजारी।
हर जन ऐसा हो जाये,
भारत का गौरव कहलाये।
परपीड़ा समझे सारी,
पग-पग पर पदचिन्ह बनाये,
जगत उस पर चलता जाये,
ऐसे तुम बनों विवेक।
काश ऐसा हो जाये,
हर जन विवेक हो जाये।
आओ हम सब योग करें
आओ हम सब योग करें,
समय का हम सदुपयोग करें।
यम-नियम का सम्मान करें
आसन, प्राणायाम का ध्यान करें।
आओ हम सब योग करें,
समय का हम सदुपयोग करें।
इससे सुदृढ़ होगी हमारी काया,
इसमें लगेगी न कोई माया।
जिसने भी इसमें ध्यान लगाया,
बदल गई उसकी काया-माया।
आओ हम सब योग करें,
समय का हम सदुपयोग करें।
रोग से होंगे हम अति दूर,
खिल जायेगी हमारी काया।
तन-मन होगा स्वस्थ हमारा,
यदि योग साधना में मन लाया।
आओ हम सब योग करें,
समय का हम सदुपयोग करें।
भारत ने जग को योग सिखलाया,
इसके महत्त्व और गुण को बतलाया।
जब ये सबको समझ में आया,
तब विश्व ने भी इसको अपनाया।
आओ हम सब योग करें,
समय का हम सदुपयोग करें।
दैनिक दिनचर्या का इसे हिस्सा बनायें,
अपनी शारीरिक क्षमता को बढ़ायें।
मानसिक दक्षता भी इससे बढ़ जाये,
आओ हम सब इसका लाभ उठायें।
आओ हम सब योग करें,
समय का सदुपयोग करें।
घर घर इसकी अलख जगा कर,
सबको इस का महत्त्व बतलाकर।
सब लोगों को नीरोग करें
आओ इस का उपयोग करें।
आओ हम सब योग करें,
समय का सदुपयोग करें।
मेरे पापा
पापा मेरे कैसे तुम,
धरते धीरज हो।
बोझ उठाते सारे घर का,
जरा न तुम थकते हो।
सबसे पहले उठते हो,
देर रात तक जगते हो।
पास न हो अगर पैसे,
कभी कमी न हमको करते हो।
शिकन नहीं देखी कभी चेहरे पर,
सदा मुस्काते रहते हो।
नया नहीं लेते जल्दी से,
पुराने से काम चलाते हो।
बच्चों के तुम हो खुदा,
हर शय उन्हें दिलाते हो।
कदम पहला रखना तुमने सिखलाया,
कभी घोड़ा बन, पीठ बिठाकर,
रोते हुये हँसाया, कभी बिठा कंधे,
मेला तुमने घुमाया।
तुम हो सायादार वृक्ष घर के,
जिसके नीचे हम प्यार से पलते।
तुम हो, वो विशाल गगन,
उड़ान सपनों की जिस में भरते।
पापा तुम हो वह विशाल शिला,
जिससे टकरा कर,
सारी मुश्किल,
हो जाती फना।
पापा कभी गुरू, कभी सखा बन,
जीवन की राह दिखाते हो।
हारने पर भी सीने से सदा लगाते हो,
हौसला हमारा सदा बढ़ाते हो।
चिन्ता अपनी छुपाते हो,
कभी नहीं जतलाते हो।
सदा हँसते हुए पाते हो,
इतना हौंसला कहाँ से लाते हो।
पापा मेरे कैसे तुम,
धीरज धरते हो।
बोझ उठाते सारे घर का,
जरा न तुम थकते हो।
प्रकृति
ईश्वर का सदा ध्यान करो,
मानवता का मान करो।
प्रकृति ने जो बाँधी रेखा,
उसका तुम सम्मान करो।
देना सीखा उसने सदा,
उसका न अपमान करो।
व्यर्थ उसे सताकर तुम,
खुद का न नुक़सान करो।
प्रकृति का सब रूप छिनकर,
न उसको बियाबान करो।
उसके धैर्य की परीक्षा लेकर,
न उसको शैतान करो।
तुम्हारे जीवन का है वह आधार,
स्वार्थ के लिये उसको न कुर्बान करो।
मेरा प्यारा देश भारत
मेरा प्यारा देश हमारा,
सब देशो से न्यारा है।
अलग अलग हैं धर्म यहाँ पर,
अलग अलग है बोली सबकी,
पोशाकें भी हैं सबकी जुदा-जुदा,
मौसम की तो बात अलग है।
सर्दी, गर्मी बरसात यहाँ पर,
समय समय पर आती है।
अपनी सुन्दर झलक दिखाकर,
सबका मन बहलाती है।
गंगा, यमुना, सरस्वती, यहाँ पर,
पावन नदियाँ बहती है।
हिमालय बना मुकुट हमारा,
जो देश की शान बढ़ाता है।
सरहद पर खड़ा जवान,
खेतों में हलदर किसान।
एक करता सुरक्षित हमको,
दूसरा भोजन की व्यवस्था।
राम, कृष्ण ने जन्म लिया,
ये देवभूमि कहलाती है।
गीता का है ज्ञान यहाँ पर,
आयते और गुरूवाणी भी है।
मेरा प्यारा देश है भारत,
सब चीजो़ में इसको महारत।
दुनियाँ इसके पीछे चलती,
ये पदचिन्ह बनाता है।
मेरा भारत देश हमारा,
मुझको जान से है प्यारा।
भारत माता की जय,
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्।
बात बोलेगी हम नहीं
हम ने तो कह डाला सब,
हम न बोलेंगे कुछ अब।
अगर समझ न पाये अब,
तो फिर तुम समझो कब?
बात बोलेगी हम नहीं अब,
इशारा तुम समझ जाओ अब।
हमनें मानी तुम्हारी बात सब,
तुमने हमारी हाँ में हाँ कही कब?
सबकी सुनी कभी बोले न लब,
घुटती रही ख़ुद बोली न तब।
जज़्बात मेरे तुमने समझे कब?
बात बोलेगी हम नहीं अब।
सचेत किया मैंने तुम्हें जब,
तकरार करते थे तुम तब।
कहती रही संभल जाओ अब,
अपनी ही धुन में थे तब।
समय है समझ जाओ अब,
पछताओगे तुम बाद में तब।
चिड़िया चुग जायेगी खेत जब,
लकीर पीटते रहे जाओगे तब।
बात बोलेगी हम नहीं अब,
बात बोलेगी हम नहीं अब।
याद है मुझे
याद है मुझे तुम्हारा वह ख़त पुराना,
किताब के बीच देकर तेरा मुस्कराना।
सहेलियों के बीच कनखियों से देखना,
मुझे देखकर तेरा यूँ धीमें से शरमाना।
याद है मुझे तुम्हारा हर एक बहाना,
चुपके से आकर मिलना-मिलाना।
तुम्हारी हर एक अदा पर फिदा था मैं,
धीरे-धीरे तेरा मेरी ज़िन्दगी में आना।
आँखों ही आँखों में बात समझाना,
सबका कहना मुझे तुम्हारा दीवाना।
खत से शुरु हुआ था जो फसाना,
पूरा हुआ ख़्वाब तेरा मेरे घर आना।
यूँ ही गुजरती रहे संग ज़िन्दगी,
चाहे कुछ भी कहता रहे जमाना।
एक खूबसूरत-सा तोहफा हो तुम,
तुम्हारे आने से महका मेरा आशियाना।
किस्मत और कर्म
जो क़िस्मत में है तुम्हारी,
वो ख़ुद चलकर आयेगा।
किसी के चाहने न चाहने से,
कुछ भी न हो पायेगा।
नेक कर्म तू करता चल बंदे,
एक दिन तू मंज़िल पायेगा।
ईश्वर सदा है साथ तुम्हारे,
रास्ता स्वयं ही बनता जायेगा।
नियत अपनी सदा साफ़ रख,
कामयाबी तू एक दिन पायेगा।
अहम न होगा यदि तेरे अंदर,
परिश्रम से न तू घबरायेगा।
तब ईश्वर स्वयं हाथ पकड़कर,
कदम-कदम पर साथ निभायेगा।
मुस्करा उठेगी ज़िन्दगी तुम्हारी,
तब ख़ुशी के गीत तू गायेगा।
रिश्ते
ये जो सांसारिक रिश्ते हैं,
मोह-माया के रिश्ते हैं।
स्वार्थ का सब व्यापार हैं,
बस यही तो संसार है।
संसार हो चाहे परिवार,
एक-सा होता व्यवहार है।
समय के साथ बदला सब,
बदल गये सब संस्कार हैं।
स्वार्थ न हो पूरा जब तक,
रखते तब तक सरोकार हैं।
जब हो जाये स्वार्थ पूरा,
कर देते उसे दरकिनार है।
जब तक बच्चे, बच्चे हैं,
तब तक ही अधिकार है।
जैसे हुये बच्चे बड़े तो,
करने लगते बस तकरार हैं।
मौन अगर धारण कर लोगे,
कहेंगे सब ये समझदार है।
वक्त की मांग यही अब,
नहीं तो वृद्धाश्रम तैयार है।
भाई, बहन हों चाहे बच्चे,
सब रिश्तों का यही आधार है।
जब तक उनको दे सकते हो,
तब तक ही बस प्यार है।
मामाजी मेरे मामा जी
मामा जी मेरे मामा जी,
मेरे प्यारे मामा जी।
माँ जैसी ममता रखते,
माँ जैसा सान्निध्य है।
माँ जैसी छवि है प्यारी,
माँ जैसी बोली तुम्हारी।
माँ जैसा रखते ध्यान,
मामा मेरे बड़े महान।
कभी कसकर डाँट लगाते,
दूसरे पल प्यार बरसाते।
दुनियादारी की बातें,
सहज भाव से हैं समझाते।
परस्पर प्रेम की भाषा सिखलायें,
परिवार का महत्त्व बतलायें।
छलकपट से वह कोसों दूर,
सभी को प्यार करने के लिये कर देते मजबूर।
ऐसे हैं मेरे मामा जी,
ध्यान वह सबका रखते हैं।
भेदभाव नहीं वह करते हैं,
देवतुल्य मेरे मामा जी।
बच्चों के संग बच्चे बनते,
जैसा अवसर वैसा रमते।
परिवार की वह हैं धुरी,
शिद्दत से निभाते जिम्मेदारी पूरी।
परमात्मा रखे उन्हें सदा स्वस्थ,
रहें वह सदा मस्त और व्यस्त।
खुशियाँ मिलें उन्हें सारी,
इच्छा रहे न कोई अधूरी।
मामा जी ओ मामा जी,
मेरे प्यारे मामा जी।
डॉ. ममता सूद
कुरुक्षेत्र, हरियाणा
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2 thoughts on “गीता (Geeta)”