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आदिदेव महादेव (Mahadev)
Mahadev: फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को,
भोले का यश गाना हैं।
रख श्रद्धा आदिनाथ की,
भवसागर तर जाना हैं। …
वंदन चंदन कर तिलक लगाएँ,
अर्पित करते पुष्पों की माला।
आदिदेव महादेव का ध्यान धरें,
सबके हित उत्तम करने वाला।
गौरीशंकर भक्ति में चित्त लगाना हैं।
रख श्रद्धा आदिनाथ की
भवसागर तर जाना हैं। …
तात कार्तिकेय-गणनायक की,
आभा बड़ी निराली हैं।
मयूर केतु-गजानन की,
छवि नैन सुखदायी हैं।
गिरिजापति विश्वनाथ का
अलौकिक शृंगार करना है।
रख श्रद्धा आदिनाथ की
भवसागर तर जाना हैं।
असमय विदाई
आज क्रूर नियति के हारे।
है शोक निस्तब्ध जन सारे। …
अन्तर्वेदना से है संत्रस्त
हो गई जो असमय विदाई।
सम्पूर्ण राष्ट्र हुआ मौन
छाईं है चहुंओर रुलाई।
भारत माँ के अनमोल रत्न को,
हम कभी भूलें भी भूल न पाएंगे।
दृढ़निश्चय कर्तव्यपरायण पलों में,
याद बिपिन रावत सिंह आएंगे।
थे राष्ट्र के सीडीएस जनरल प्यारे।
आज क्रूर नियति।
नम आँखों से
श्रद्धासुमन करते है अर्पित।
प्रखर कार्यशैली से
जो रहे जग में चर्चित।
हम भारतीय ऐसे
जाबांजों से रहते है गर्वित।
परिचर्या से जिनकी
पाक-चीन भी सदा भ्रमित।
थे ऐसे वे वीर बहादुर
रणबांकुरे सेनानी न्यारे।
आज क्रूर नियति।
जाड़े की धूप
माह दिसम्बर में जब
सर्दी की ऋतु आती है।
मोटे ऊनी कपड़े पहनते
जाड़े की धूप सुहाती है।
ठंडी ठंडी की सर्द हवाएँ
कितना सबको भाती है।
लापरवाही की अगर तो
खाँसी बुखार सताती है।
गर्म पकोड़ी भुजिया संग
घर बैठ मौज मनाते है।
सुबह सवेरे धूप सेकने
रोज बगीया में जाते है।
छोटे होते दिन इतने की
संध्या का पता न चलता है।
रोजीरोटी के जुगाड़ में
निर्धन को बड़ा अखरता है।
गजक रेवड़ी गर्म मूंगफली
खाना अच्छा लगता है।
काजू बादाम गोंद पाक के
लड्डू सहर्ष सबको जँचता है।
बाय बाय २०२१
आओं बाय-बाय कहें,
साल दो हज़ार इक्कीस।
अपनों के गिला शिकवों की,
अविस्मरणीय रहेगी टीस। …
जिंदगी की सोच में,
गहरा बदलाव आया।
हमें समय की पुकार ने,
संघर्ष करना सिखाया।
निर्धनता की आड़ में,
बुज़ुर्ग जीये किन हालातों में।
समय-चक्र है कैसे फिरता,
सीखा कोरोना विपदाओं में।
जनमानस भूलेगा ना इसकी चीस।
आओं बाय-बाय कहें।
घर बाहर स्वच्छ रखना,
है कितना ज़रूरी।
आसपास की सफ़ाई में,
रखो ना कभी मगरूरी।
हर तबके की ज़िन्दगी में,
यह कैसा पड़ाव आया।
अबलों की रोजी-रोटी पर,
काला बादल छाया।
आपस में रखी ना कोई खीस।
आओं बाय-बाय कहें।
हे! सृष्टि के नियामक,
जनता पर उपकार करों।
रखो कृपादृष्टि अब,
और ना अधीर करों।
हर्षोल्लास का जनजीवन में,
माता तुम शीघ्र भाव भरो।
जीवन विपदा के सागर से,
अनुगतो का उद्धार करों।
सबका उल्लासपूर्ण हो,
नववर्ष बाईस।
आओं बाय-बाय कहें।
महेन्द्र सिंह कटारिया
“विजेता”
गुहाला (सीकर) राजस्थान
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२- ॐ नमः शिवाय
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