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कोरोना का टीका (Corona vaccine)
राहत सरकारी पाना हो,
गर तुझको सुखदाई।
कोरोना का टीका (Corona vaccine) जाकर,
लगवा प्यारे भाई॥
टीका नहीं लगाओगे तो,
कैसे सफ़र करोगे।
कंट्रोल के राशन के बिन,
कैसे पेट भरोगे॥
सुविधाओंसे वंचित रहना,
तो होगा दुखदाई।
कोरोना का टीका जाकर,
लगवा प्यारे भाई॥
अगर परीक्षा देनी पहले,
टीका बहुत ज़रूरी।
लापरवाही क्षम्य नहीं है,
हसरत रहे अधूरी॥
शर्तयही पहली प्रवेश की,
हमने यार लगाई।
कोरोना का टीका जाकर,
लगवा प्यारे भाई॥
हो कोई सम्मेलन चाहे,
उसको मान दिलाए।
टीका लेने वाला ही तो,
प्रथम पंक्ति में जाए॥
जो अपना ही दुश्मन हो,
कब जाने पीर पराई।
कोरोना का टीका जाकर,
लगवा प्यारे भाई॥
सेवाहितऑफिस जाना हो,
लो टीका फिर सेवा।
वेतन रुक जाएगा वरना,
दूर रहेगा मेवा॥
टीके का प्रमाण रहे बन,
साथ तेरी परछाई।
कोरोना का टीका जाकर,
लगवा प्यारे भाई॥
“अनंत” टीका एकजमानत,
जो शासन देता है।
कोरोना की बीमारी में,
ये जिम्मा लेता है॥
मुरझाए ना कोरोना से,
जीवन की तरुणाई।
कोरोना का टीका जाकर,
लगवा प्यारे भाई॥
राहत सरकारी पाना हो,
गर तुझको सुखदाई।
कोरोना का टीका जाकर,
लगवा प्यारे भाई॥
जनसंख्या बढ़ती जाती है
जनसंख्या बढ़ती जाती है,
कौन नियंत्रण कर पाएगा।
संसाधन सीमित हैं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा॥
सोचसमझकर कामकरें हम,
खुशहाली घर आंगन लाएँ।
मनमाने आचरण हमेशा,
हमें गर्त में लेकर जाएँ॥
शोलों पर चलने वाला क्या,
गीत मल्हार कभी गाएगा।
संसाधन सीमित हैं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा॥
धरती जितनी है उतनी ही,
रहने वाली है ना भूलें।
सत्य यही है याद रखें हम,
कोरे भ्रम में कभी न झूलें॥
क्या कोई घर बना हवा में,
मालिक घर का कहलाएगा।
संसाधन सीमित हैं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा॥
भार बढ़ाया धरती पर तो,
टुकड़े टुकड़े हो जाएगी।
इसकी या उसकी होगी तब,
काम कहाँ सबके आएगी॥
पैर काट जो बना अपाहिज,
खुद पर कहर फ़क़त ढ़ाएगा।
संसाधन सीमित हैं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा॥
कितनी मारा मारी जल की,
देख रहे हो आंखें खोलो।
क्या प्यासा रह पाए कोई,
रक्तपात ना होगा बोलो॥
कोई शजर रहा पानी बिन,
अगर कभी तो मुरझाएगा।
संसाधन सीमित हैं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा॥
मांग बढ़ी तो महंगाई भी,
आसमान पर जाएगी ही।
जनसंख्या ग़र नहीं थमी तो,
बढ़ती मांग रुलाएगी ही॥
ऐसे मैं अपना भी अपने,
घर आने से कतराएगा।
संसाधन सीमित हैं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा॥
सुकूं छीन जाएगा अपना,
जब अरमान अधूरे होंगे।
बढ़ते परिवारों के सपने,
“अनंत” कैसे पूरे होंगे॥
वेतन सिकुड़ा तो चेहरे की,
चमक नहींक्या खा जाएगा।
संसाधन सीमित हैं भाई,
कब ये सत्य समझ आएगा॥
सावन का सम्मान
सावन श्रद्धा और भक्ति का,
माह बड़ा उपकारी है।
इसीलिए इज़्ज़त पाने का,
महिना ये अधिकारी है॥
सावन में जब ईश्वर खुश हो,
तृप्त करें प्यासी धरती।
गर्मी से जो तपती रहती,
थी ग़म में आहे भरती॥
प्रकृति हरी भरी होकर जब,
ईश्वर का गुणगान करे।
मानव क्यों न इस महिने का,
बोलो तब सम्मान करे॥
सभी चरअचर जल पाते हैं,
जो जीवन संचारी हैं।
इसीलिए इज़्ज़त पाने का,
महिना ये अधिकारी है॥
सभी जानते पर उपकारी,
पूजे जाते दुनिया में।
पर पीडा जो हरते हरदम,
नही जताते दुनिया में॥
सावन हरा भरा जग करके,
सबको खुशियाँ देता है।
बदले में फूटी कौड़ी भी,
नहीं किसी से लेता है॥
सावन का सम्मान न करना,
तो लोगों मक्कारी है।
इसीलिए इज़्ज़त पाने का,
महिना ये अधिकारी है॥
जीवनउपवन में खुशियों की,
सावन में कलियाँ महके।
पंख लगाए आरजूओं के,
मन नभ में पंछी चहके॥
“अनन्त” विरही लम्हे सावन,
के मुश्किल जीना करते।
चैन दिनों का घायल करते,
नींदें रातों की हरते॥
मीठा दर्द चाहने वालों,
ने हिम्मत कब हारी है।
इसीलिए इज़्ज़त पाने का,
महिना ये अधिकारी है॥
पानी बरसा दे या रब
पानी बरसा दे या रब तो तर जाएंगे।
वरना बेमौत सारे ही मर जाएंगे॥
पालने वाले हमसे क्यों नाराज है।
तेरी रेहमत पर सबको बडा नाज़ है॥
तू ही जाने जो इसमें छिपा राज है।
हम गरीबों की सुनले ये आवाज़ है॥
झोलियाँ भरदे, खुश होके घर जाएंगे।
वरना बेमौत सारे ही मर जाएंगे॥
तेरे भंडार में क्या कमी है बता।
बक्ष दे मौला हमको न ज़्यादा सता॥
जो है हालत हमारी वह तुझको पता।
कर करम इब्ने हैदर का है वास्ता॥
तरजमीं करदें गुलशन निखरजाएंगे।
वरना बेमौत सारे ही मर जाएंगे॥
हमने माना बड़े हम गुनहगार हैं।
क्या करें आदतों से ही लाचार हैं॥
उम्मती तेरे मेहबूब के ख्वार हैं।
प्यार में तेरे पर हम गिरफ्तार हैं॥
माफ करदें तो जीवन संवर जाएंगे।
वरना बेमौत सारे ही मर जाएंगे॥
तपती धरती “अनंत” ये तपता गगन।
सारे जन हैं विकल तेरी मन में लगन॥
पानी बरसा दें तो ठंडी हो ये अगन।
क्या तू देखेगा जलती हुई अंजुमन॥
तू करम कर दे हालत सुधर जायेंगे।
वरना बेमौत सारे ही मर जाएंगे॥
जोगन गीत सुनाती है
रिमझिम बरखा की जब बूंदें,
मादक साज बजाती है।
धड़कन के तारों पर तन की,
जोगन गीत सुनाती है॥
पानी आग बुझाता है पर,
आग लगाता है पानी।
जीवन गुलशन में अंगारे,
करते अपनी मनमानी॥
दिल के अरमानों को बरखा,
दरदर पर भटकाती है।
धड़कन के तारों पर तन की,
जोगन गीत सुनाती है॥
अंकूर फूटा शीशा टूटा,
जीवन हित तो मरना है।
बादल टूटा धरती फूटी,
संगम हित ये करना है॥
जो रिक्तहुआ वह तृप्त हुआ,
तृप्तितो प्यास बढ़ाती है।
धडकन के तारों पर तनकी,
जोगन गीत सुनाती है॥
झूम झूम के मेघा बरसे,
सरिताएँ अविराम बहें।
ज्वालाएँ धरती की नसनस,
में बहकर भी शांत रहेंं॥
महके धरती हरी भरी हो,
तब राहत मिलपाती है।
धडकन के तारों पर तन की,
जोगन गीत सुनाती है॥
मौसमजब जुल्फें लहरा कर,
दिल में तीर उतारेगा।
चीर तमन्नाओं का तन की,
छविको और निखारेगा॥
“अनंत” जीता वह जो हारा,
प्रीत की रीत बताती है।
धडकन के तारों पर तन की,
जोगन गीत सुनाती है॥
हम कबीर के वंशज
कलम हाथ में है हमको ये,
नाविक पार उतारेगा।
हम कबीर के वंशज हमको,
वक्त भला क्या मारेगा॥
हिन्दू मुसलमान दोनों को,
जोउठकर ललकार सके।
अंधकार को नूर के कपड़े,
पहना कर तम मार सके॥
नहीं दुश्मनी किसी से पाली,
मित्र सभी के कहलाये।
क्या करते वे आइना थे,
सबके दाग नज़र आये॥
हमभी उनके पथ अनुगामी,
लोक हमें स्वीकारेगा।
हम कबीरके वंशज हमको,
वक्त भला क्या मारेगा॥
अपनीप्रतिभा और गति को,
अपनी जिदसे चमकाई।
राम नाम का मंत्र सीखकर,
निर्गुण की महिमा गाई॥
मंदिर मस्जिद काबा काशी,
छापतिलक याहो माला।
सब को दूर रखा चाहत को,
अपना खुदाबना डाला॥
यही सिखाया कर्म सभी के,
पथ के ख़ार बुहारेगा।
हम कबीर के वंशज हमको,
वक्त भला क्या मारेगा॥
जिसपथचले “अनन्त” कबीरा,
पथ कबीर का कहलाया।
सुविधा से समझौता करते,
नहीं कभी उनको पाया॥
बुनकर थे तो बुनी अनश्वर,
जीवन चादर, कूल बने।
दास बने अपने मालिक के,
तो मरने पर फूल बने॥
बूंद बनेगा जब सागर तो,
कहाँ किसी से हारेगा।
हम कबीर के वंशज हमको,
वक्त भला क्या मारेगा॥
पिता जग में कहलाता है
जो बच्चोंके दुःख सब हरता,
खुशियाँ देता जीवन में।
पहुँचा कर मंज़िल पर उनको,
आजाता जो आंगन में॥
जो अपनी संतानों के हित,
मर खप जाता है।
पिता जग में कहलाता हैं॥
संतानों के खातिर जीता,
उनकेखातिर मरता जो।
वक्त पड़े तो उनके खातिर,
हद से पार उतरता जो॥
बच्चों का हरबोझ उठा जो,
उन्हें हंसाता है।
पिता जग में कहलाता हैं॥
जब तक रहे ज़रूरत देखा,
है लोगों को साथ चले।
तम होने पर परछाई भी,
साथ नहीं देती पगले॥
दुनियाके इस नियम को पर,
जो झुठलाता है।
पिता जग में कहलाता हैं॥
जेब को अपने नहीं छिपाए,
ताला खुला रखें हर दम।
जी भर बच्चों पर धन वारे,
कहे जुबांसे फिरभी कम॥
बच्चोंकी खुशियाँ खरीदकर,
जो सुख पाता है।
पिता जग में कहलाता हैं॥
उठा उठा कांधों पर अपने,
कांधें जो कमजोर करें।
आने वाली किसी मुसीबत,
के खतरे से नहीं डरे॥
बच्चों पर न्यौछावर कर जो,
जाँ इठलाता है।
पिता जग में कहलाता हैं॥
जो अशक्त हाथों को थामे,
सागर पार करा देता।
मंजिल पर पहुँचा कर ही जो,
रुकता है कुछ दम लेता॥
“अनंत” अपने लिए नहीं जो,
कुछ कर पाता है।
पिता जग में कहलाता हैं॥
क्या रोजगार पा सकेंगे हम
एक बात पूंछनी है रेहबरों बताओगे,
सच-सच बताओगे,
क्या रोजगार पा सकेंगे हम।
यूँ रोजगार पा सकेंगे हम॥
वादा किया था आप हमको देंगे रोजगार।
आएंगी रोनकें घरों में आएंगी बहार॥
उतरेगा बदन का लिबास जो है तारतार।
सरकारी नौकरियों से करपाएंगे श्रृंगार॥
सोचा न था निजीकरण पर आप जाओगे।
सारी ही नौकरियाँ ठेकों पर उठाओगे॥
कुछ को बढ़ाओगे,
क्या रोजगार पा सकेंगे हम।
यूँ रोजगार पा सकेंगे हम॥
विश्वास किया आपको हम चुनके ले आए।
परचम उठाए आपके गुणगान भी गाए॥
कुर्सी पर बिठाया है ऐसे पैर जमाए।
जिनको हिलाने कोई शूरवीर न पाए॥
उम्मीद न थी हमसे यूँ नजरें चुराओगे।
विश्वास एक जगाथा बड़े काम आओगे॥
खुशियाँ लुटाओगे,
क्या रोजगार पा सकेगें हम।
यूँ रोजगार पा सकेंगे हम॥
जाकर के नज़र फेर लोगे किसको पता था।
आश्वासनों की भेंट दोगे किसको पता था॥
खुद आप महलों में रहोगे किसको पता था।
हमको बुरा भला कहोगे किसको पता था॥
घर बार बेच दोगे ख़ुद जलेबी खाओगे।
एहसान मानने की जगह भूल जाओगे॥
मजे ख़ुद उड़ाओगे,
क्या रोजगार पा सकेगें हम।
यूँ रोजगार पा सकेंगे हम॥
सपने हमारे चूर-चूर हो गए हुजूर।
बदले हैं आप कितने क्रूर हो गए हुजूर॥
थे जितने पास उतनी दूर हो गए हुजूर।
दिल में हजारों क्यों फितूर हो गए हुजूर॥
अब और कितना आप हमको बरगलाओगे।
उंगली पर और कितने दिनों तक नचाओगे॥
बुद्धू बनाओगे,
क्या रोजगार पा सकेंगे हम।
यूँ रोजगार पा सकेंगे हम॥
“अनंत” अब भी जागो सुनो देर न करना।
सतपथ पर चलो अब भी अगर तुमको उभरना॥
शक्ति है एकता में है गुण इसका निखरना।
पतझड़ को बुला लाएगा यूँ टूट बिखरना॥
नफरत की आग में ये देश क्या जलाओगे।
पुरखों की पगड़ी अपने लिए बेच खाओगे॥
सबको रुलाओगे,
क्या रोजगार पा सकेंगे हम।
यूँ रोजगार पा सकेंगे हम॥
करें रक्त का दान
बचा सकेगा रक्त किसी की,
बेशकीमती जान।
चलो करें हमदान साथियों,
करें रक्त का दान॥
निकलजाएजोरक्तकिसीका,
अधिक बदन से लोगों।
शक्ति निकल जाती है देखा,
उसके तन से लोगों॥
देकर रक्त बचाएँ उसके,
जीवन की पहचान।
चलो करें हम दान साथियों,
करें रक्त का दान॥
कमी रक्त की प्राण हमारे,
खतरे में पहुँचाए।
दान रक्त का करने वाला,
देव तुल्य कहलाए॥
इसीलिए जग की नजरों में,
पाता वह सम्मान।
चलो करें हम दान साथियों,
करें रक्त का दान॥
कमी नहीं पड़ती देने से,
घटफिर भरजाता है।
नए रक्त का सागर फिर से,
तन में लहराता है॥
भलाकाम है तनका ढकना,
पहनाना परिधान।
चलो करें हम दान साथियों,
करें रक्त का दान॥
धनदौलत सेअधिककीमती,
दान रक्त का होता।
पलपल रक्त बीज मुस्कानों,
के जीवन में बोता॥
मुश्किल में अपना हो चाहे,
हो कोई अनजान।
चलो करें हम दान साथियों,
करें रक्त का दान॥
“अनंत” अब तो रक्तबैंक की,
सुविधा भी है पाई।
जब चाहे तब दे सकते हैं,
रक्त बहन या भाई॥
परहित जीवनजिएँ करेंहम,
जीवन का उत्थान।
चलो करें हम दान साथियों,
करें रक्त का दान॥
भावनाओं में अगर हो अपनापन
भावनाओं में अगर हो अपनापन।
गैर को भी पास ला सकते हैं हम॥
प्यार हो अपनत्व हो सम्मान हो।
गैर के खातिर जो मन में मान हो॥
कदमों में होगा जमाना एक दिन।
हमको शायद ये नहीं अनुमान हो॥
लोग तब लड़वा न पाएंगे हमें।
दूर हो जायेंगे सारे ही वहम॥
भावनाओं में अगर हो अपनापन।
गैर को भी पास ला सकते हैं हम॥
गर करें सहयोग हम पाएंगे भी।
सहानुभूति के सुफल आएंगे भी॥
करके दुश्मन पर भरोसा देखिये।
हमअमन घर एक दिन लायेंगेभी॥
चैन की बंसी बजाएंगे सभी।
हरतरफ मिटजाएंगे जुल्मोसितम॥
भावनाओं में अगर हो अपनापन।
गैर को भी पास ला सकते हैं हम॥
हम निराशा में सतत उल्लास दें।
शक ना निष्ठा पर करें विश्वास दें॥
हम “अनन्त” ग़र सुरक्षा चाहते हैं।
सब सुरक्षित होंगे ऐसी आस दें॥
ये खिजा का दौर जाएगा बदल।
हर कोई करने लगेगा तब करम॥
भावनाओं में अगर हो अपनापन।
गैर को भी पास ला सकते हैं हम॥
मत वृद्धाश्रम में पहुँचाओ
मत छोड़ो बीच भंवर में तुम,
हैंं पिता तुम्हारे गुण गाओ।
हो प्यार पिता से थोड़ा भी,
मत वृद्धाश्रम में पहुँचाओ॥
वो पिता कि जिसने अपना सब,
न्यौछावर तुमपे कर डाला।
वो पिता कि जिसने ग़म सहकर,
तुमको नाजों से है पाला॥
वो पिता अगर हो दिल में तो,
अंधियारों में मंज़िल पाओ।
हो प्यार पिता से थोड़ा भी,
मत वृद्धाश्रम में पहुँचाओ॥
जिसने कुर्बान जवानी की,
जीवन का सबसुख त्याग दिया।
हाँ सिर्फ़ तुम्हें खुश रखने को,
हंसकर के जिसने गरल पिया॥
तुम काबिल उनके दम से हो,
बच्चों को भी ये समझाओ।
हो प्यार पिता से थोड़ा भी,
मत वृद्धाश्रम में पहुँचाओ॥
दिन याद करो तुम राजा थे,
हर इच्छा का सम्मान रहा।
वो पिता तुम्हारा तम हर्ता,
देदीप्यमान दिनमान रहा॥
जिस कांधें पर तुम बैठे हो,
अब कहर उसी पर मत ढ़ाओ।
हो प्यार पिता से थोड़ा भी,
मत वृद्धाश्रम में पहुँचाओ॥
हमको नींवे वृद्धाश्रम की,
मानवता का उपहास लगे।
छाती पर अपने वार लगे,
खंडित लोगों विश्वास लगे॥
मत भार कहो जो भार नहीं,
जीवन से तुम जीवन पाओ।
हो प्यार पिता से थोड़ा भी,
मत वृद्धाश्रम में पहुँचाओ॥
“अनंत” पिता के स्वप्न आज,
साकार हुए खुशियाँ पाई।
पथ कोई रोक सकी है कब,
चीजों की बढ़ती महंगाई॥
वो आजभी बिकने को उद्यत,
तुम प्यार जरासा दिखलाओ॥
हो प्यार पिता से थोड़ा भी,
मत वृद्धाश्रम में पहुँचाओ॥
मुक्त प्रदूषण से धरती को
नगर नगर औ गाँव गांव तक,
ये संदेशा पहुचाएँ
मुक्त प्रदूषण से धरती को,
रख के जीवन सुख पाएँ॥,
नदियाँ सबसे गंदी हैं तो,
उनकी करें सफ़ाई हम।
गंदा जल होने से रोकें,
सबकी करें भलाई हम॥
उनके घाटों पर मेले फिर,
लगें करें वह काम सदा।
ना अस्थी ना राख बहाएँ,
याद रखें अंजाम सदा॥
शुद्ध बनाकर सरिताओं के,
कूलों को हम दिखलाएँ।
मुक्त प्रदूषण से धरती को,
रख के जीवन सुख पाएँ॥
अगर हवा गंदी होगी तो,
साँसों का संकट होगा।
पेड कटेंगे तो आबादी,
से ज़्यादा मरघट होगा॥
ध्वनि प्रदूषण से बहरे हम,
हो जायेंगे यार सुनो।
अंधे बहरों के समाज में,
फैलेंगे परिवार सुनो॥
इससे पहले के डूबे सब,
बचा किनारे हम लाएँ।
मुक्त प्रदूषण से धरती को,
रख के जीवन सुख पाएँ॥
शुद्ध अगर मिट्टी होगी तो,
फल पर असर पड़ेगा ही।
चढ़ने वाला ताकतवर,
होगा तो शिखर चढ़ेगा ही॥
नींव अगर कमजोर रही तो,
मिट्टी में मिल जाना है।
समय पूर्व मिट्टी होना है,
अगर ज़हर ही खाना है॥
ऐसा कोई काम करें हम,
जीवन सब का मेहकाएँ।
मुफ्त प्रदूषण से धरती को,
रख के जीवन सुख पाएँ॥
पर्यावरण प्रदूषित होने,
देंगे नहीं विचारा है।
रक्षा हर प्राणी की करना,
हमने मन में धारा है॥
धरती पर पेड़ों के साये,
होंगे तो जन्नत होगी।
बादल बरखा लायेंगे तो,
घर घर में दौलत होगी॥
हम “अनन्त” दौलत चाहें तो,
जुल्म धरा पर ना ढाएँ।
मुक्त प्रदूषण से धरती को,
रख के जीवन सुख पाएँ॥
तेरे ही सपने आते हैं
रात दिवस सोते जगते बस,
तेरे ही सपने आते हैं।
तू क्या रूठी रूठ गए सब,
नैना सावन बरसाते हैं॥
तेरी आदत पड़ी हुई है,
पीछा नहीं छुड़ा पाता हूँ।
पलपल पगपग पर तेरे ही,
साए से मैं बतियाता हूँ॥
अधर लिए पर अमृत तेरे,
मुझे दूर से तरसाते हैं।
तू क्या रूठी रूठ गए सब,
नैना सावन बरसाते हैं॥
अभी यहाँ थी अभी वहाँ थी,
मन कैसे समझाऊँ अपना।
छलियावक्तछलगयामुझको,
चैन कहाँ से लाऊंअपना॥
पीछे दौड़ न नश्वर जीवन,
के नश्वर पल समझाते हैं।
तू क्या रूठी रूठ गए सब,
नैना सावन बरसाते हैं॥
ख्वाबों में तू राह बताती,
जो चाहे वह करवाती है।
जिस्म भले दो होकर रहलें,
जान जुदा कब हो पाती है॥
यादों के बादल आ आकर,
के दिशदिश से टकराते हैं,
तू क्या रूठी रूठ गए सब,
नैना सावन बरसाते हैं॥
कहाँ छुपाऊँ मैं पागलपन,
तुझे देखती आंखें मेरी।
मेरी आंखों में तुझको पा,
खोज ख़बर पा लेती तेरी॥
अबभी छूनेको अदृश्य को,
कर “अनंत” ये पगलाते हैं।
तू क्या रूठी रूठ गए सब,
नैना सावन बरसाते हैं॥
मंजिल पर पहुँच न पायेगा
जिसको नोटों ने बाँध लिया,
कैसे वह दौड़ लगाएगा।
वो लाख कोशिशें करे मगर,
मंजिल पर पहुँच न पायेगा॥
लालच के खाली कुए में,
जो कोई भी गिर जाता है।
वो देह सजाता जख्मों से,
नादान यहाँ कहलाता है॥
जो वक़्त गंवा दें बेमतलब,
कैसे जीवन मेहकायेगा।
वोलाख कोशिशें करे मगर,
मंजिल पर पहुँच न पायेगा॥
धन, बिना कमाया पाता है,
मेहनतजो नहीं कियाकरता।
गैरों पर दृष्टि जमाए वो,
परभक्षी बना जीया करता॥
उसकी जब सूखेगी बगिया,
जल कौन वहाँ पहुँचायेगा।
वोलाख कोशिशें करे मगर,
मंजिल पर पहुँच न पायेगा॥
पैसा सुख तो दे सकता है,
आनंद कहाँ से लायेगा।
बलिदानो से मिलने वाला,
धन से न खरीदा जायेगा॥
एक देना है एक लेना है,
जो लेने को अपनायेगा।
वोलाख कोशिशें करे मगर,
मंजिल पर पहुँच न पायेगा॥
कुछलोगदिखाके चमकदमक,
लोगों को दास बनाते हैं।
बंदूकें उनके कांधों पर,
रखते हैं और चलते हैं॥
खुदजिसको गिरनाहो “अनंत” ,
जग कैसे उसे उठायेगा।
वो लाख कोशिशें करे मगर,
मंजिल पर पहुँच न पायेगा॥
अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच
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