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आत्म निर्भर भारत (Self-reliant India)
हाथ धोएंगे परस्पर
दूर दो गज हम रहें।
हाथ अपने जोड़ कर
सबको नमस्ते हम कहें।
आत्म निर्भर हम बनेंगे
अब यही संकल्प है।
ये चुनौती में छिपा इक
अवसरों का कल्प है।
हम बनाएंगे स्वदेशी,
वस्तु सब निर्मित करें।
न खरीदेंगे विदेशी,
देश को विकसित करें।
विश्व शक्ति बन उभरना
सार्थक विकल्प है॥
ये चुनौती में छिपा इक
अवसरों का कल्प है।
टूट न पाए कोई
सबको सहारा दीजिए।
देश की खातिर मदद अब
दीन जन-जन की कीजिये॥
स्वाबलंबी हम बनें तो
ढेर मुश्किल अल्प है॥
ये चुनौती में छिपा इक
अवसरों का कल्प है।
मजबूर मजदूर
मजदूर हूँ मजबूरी तुम्हे दिखाना तो होगा
न चाहूँ तब भी शहर तेरे आना तो होगा
है आज भुखमरी पड़े है पांव में छाले
गांव में जाके भी तो पड़ने खाने के लाले
इस तपती धूप में बदन सुखाना तो होगा
न चाहूँ तब भी शहर तेरे आना तो होगा
दो बच्चे पहुँचे दो को राहे शहर खा गई
मानो पानी पी के दो को दोपहर खा गई
वो बाप तड़प जाएगा ग़र मैं न घर आया
वो राह याद आई जिससे शहर था आया
इक बाप को बेटे का शव उठाना तो होगा
न चाहूँ तब भी शहर तेरे आना तो होगा
अनजान था कल पैसे गाँव भेज न पाया
थी मौत मेरे जेहन मैं या मौत का साया
कल तक मैं जुगनू शहर को चमकाए रखा था
पर आज पूरा शहर मेरे काम न आया
इल्जाम मेरा ख़ुद मुझे समझाना तो होगा
न चाहूँ तब भी शहर तेरे आना तो होगा
नवयुग की नारी
सबला है तू वार कर,
सहन नहीं प्रहार कर।
जिद में आजा आज अब,
रुक ना संहार कर।
सहज नहीं तोडना,
तू लौह से भी भारी है।
गया जमाना कल का,
तू नवयुग की नारी है।
आज दिखा दे शक्ति अपनी,
सती नहीं तू ज्वाला है।
कुचल सके दम नहीं किसीमें,
पुष्प नहीं तू माला है।
दंभी का विनास कर,
पापी का शिकार कर।
तू शक्ति अवतारी है,
तू नवयुग की नारी है॥
चुप न हो तू बात कर,
पापों का हिसाब कर।
तू नहीं कोई दासी है,
तू बज्र कर की राखी है॥
तू दुश्मनों की दुश्मन है,
सखों की सखा-सी है।
तलवार तू दोधारी है,
तू नवयुग की नारी है॥
काट काट क़लम कर,
उठ न सकें जनम भर।
जो राह रोके रात में,
तो दंड का विचार कर।
तू द्रष्टि नहीं स्रष्टि है,
तू सम नहीं समष्टि है॥
तू उच्चतम अटारी है,
तू नवयुग की नारी है॥
पिता
पिता धार तलवार की
पिता ही ढाल हजार।
पिता परम कर्तव्य है,
पिता लाख अधिकार॥
पिता परम अभिव्यक्ति है,
पिता सफलता द्वार।
पिता से जीवन स्वर्ग है,
जीवन सुख संसार॥
पिता बरसते मेघ हैं,
पिता महकते पुष्प।
पिता नदी हैं नाव भी,
पिता रेत हैं शुष्क॥
पिता चैत वैसाख हैं,
पिता डोली कहार।
पिता धूप है आग सी,
सावन की बौछार॥
पिता गरजते मेघ हैं,
पल में शीतल होयें।
आंख जले जो पुत्र की,
पिता की अंखियाँ रोयें॥
पिता अमावश रात हैं,
जल जल काले होयें।
तब तो पूनम चांद से,
घर में हम सब सोयें॥
पिता ओजोन परत हैं,
पिता मेरे ओ2 हैं।
बडे वह बहुत बडे हैं,
हम तो उनके छोटू हैं-२
योग जीवन का सार है
योग जीवन का सार है,
योग आधार सदी का।
योग झरना नीरोग का,
योग कर्तव्य सभी का॥
योग से हों नीरोग रोग,
भाग जाएँ जो भी हों।
योग प्राणी के चित्त में,
ज्यों प्रकाश रवी की॥
योग करदे सभी को स्वस्थ्य
सभी रूपवान हों
तन बन जाए लौह का
ह्रदय भी आलीशान हों
योग लाए अमावस में
चमकते चाँद-सी शोभा
दूर दूरी हो चित्त की,
योग से सब समान हों।
योग भारत की आत्मा,
योग भारत की शान है।
योग भारत से बना है,
योग भारत की जान है॥
योग से है बना संयोग,
आज योगगुरू हम।
योग से जगत में भी अब
मेरा भारत महान है॥
बचपन वाले यार
गुल्ली डंडा, मुर्गी अंडा भूत चुडैल, देवी पंडा
लुका छुपी, कंचों का खेल पैरों पहिये, रेलम रेल
हो सके तो ऐसा कोई क़रार करा दो न,
मुझे मेरे बचपन वाले यार दिला दो न।
होमवर्क की काॅपी कैलेंडर के कवर
वो आधी-सी पेंसिल अधूरी-सी कटर
बाजू में बैठ के बस थोडा हिला दो न,
मुझे मेरे बचपन वाले यार दिला दो न।
वो कालेज की परियाँ हंसे तो फुलझडियाँ
जो सज धज के आए बारि बारी उमरिया
इस उमर में फिर वही उमर लौटा दो न
मुझे मेरे बचपन वाले यार दिला दो न।
डांट बहुत खाई है पर साथ नहीं छोडा है
हाथ कितना तंग हो पर हाथ नहीं छोडा है।
आज मेरे हाथों से वह हाथ मिला दो न।
मुझे मेरे बचपन वाले यार दिला दो न।
वो गाजर का हलवा आलू के पराठे
रखें मेज पर और मिल जुल के खाते
आज मेज बहुत हैं खाने वाले बुला दो न॥
मुझे मेरे बचपन वाले यार दिला दो न।
आजाद और आजादी
भारत की इन फिजाओं में याद रहूंगा,
आजाद था, आजाद हूँ, आजाद रहूंगा।
इन काली घटाओं में, घुमड़ते बादलों में,
हर गरजते सावन में इन्कलाब कहूंगा।
आजाद था, आजाद हूँ, आजाद रहूंगा॥
जीवन की परिभाषा सीखो,
मुझसे ए दुनिया वालो।
प्यारे बच्चों पर जबरन,
करतब के घुंघरू ना डालो।
सिखला दो जीवन जीना,
खुद के दम पर मरना सिखला दो।
निकले उनके मुख से,
मैं भी आजाद बनूंगा।
आजाद था, आजाद हूँ, आजाद रहूंगा॥
देश भक्त था दिल से मैने,
देश की भक्ति पाली थी।
देश की खातिर इस स्वतंत्र ने,
खुद की गोली खा ली थी।
मैं आजाद पंछी,
पिंजरे में कैसे रहूंगा।
आजाद था, आजाद हूँ, आजाद रहूंगा॥
पर्याय है वह स्वतंत्रता का,
अब उस पर नींद का साया है।
सोचो उसने ख़ुद को खोकर,
खुद को क्या पाया है।
वो सोया तब देश जगा “शुभ”
संकल्पित हर बार कहूंगा।
आजाद था, आजाद हूँ, आजाद रहूंगा।
आजाद था, आजाद हूँ, आजाद रहूंगा॥
हाँ याद तो है
१) वह स्कूल लेट पहुँचना,
पहुँच कर गेट तक जाना,
आपके डर से गेट से ही
वापस आ जाना…
हाँ याद तो है… हाँ याद है…
(२) नहीं याद है वह कहानी,
हाँ भूल गई कविता सुहानी,
हाँ नहीं याद है वह फार्मूले,
याद है आपकी बोर्ड पर राइटिंग,
हाँ याद तो है… हाँ याद है…
(३) भूल गये कई दोस्त, खो गये,
वो स्कूल की गोपियाँ बिछड गईं,
खो गये मार्क्स गुड-गुड वाले,
अधूरे होमवर्क भी कहाँ भूल गये,
मगर याद है आपका लाल चेहरा
हाँ याद तो है… हाँ याद है…
(४) वह छडी उठा कर डराना,
और मारते-मारते रुक जाना,
वो डांटते हुए आपको हंसी आना,
नाम लिखकर सभी छूट जाना…
हाँ याद तो है…हाँ याद है…
(५) पर याद है वह प्यारा चेहरा,
हाँ टीचरजी, याद हैं आप आज भी,
वही मुस्कुराते हुए जाने क्यूं,
सबकुछ तो नहीं पर आप याद हैं…
हाँ याद तो है…हाँ याद है…
अटल रहेंगे अटल
अटल रहेंगे अटल,
अटल की याद सदा आऐगी।
फिर उनके जैसे सीरत की,
सूरत कब आऐगी।
अटल रहेंगे अटल,
अटल की याद सदा आऐगी।
धानी चूनर पहन धरा कब,
गीत वही गाऐगी।
अटल रहेंगे अटल,
अटल की याद सदा आऐगी। १.
वीर हिमालय की चोटी,
फिर कब इठलाऐगी।
दुश्मन के दिल दहले फिर,
ऐसी ख़बर कब आऐगी।
फिर हुए परीक्षण भारत में,
दुनिया कब डर जाएगी।
अटल रहेंगे अटल,
अटल की याद सदा आऐगी। २.
वही आवाज़ जो गूंजे गगन,
कब जोश जगाऐगी।
वही विनम्र समंदर की
कब लहर बह आऐगी।
देश विदेशों में भी पृीत की,
जोति जलाऐगी।
अटल रहेंगे अटल,
अटल की याद बहुत आऐगी। ३.
हिन्द से सागरमाथा तक,
कब इक गीत सुनाऐगी।
फिर तीन रंगी ध्वजा गगन में,
कब लहराऐगी।
अटल रहेंगे अटल,
अटल की याद बहुत आऐगी।
अटल रहेंगे अटल,
अटल की याद बहुत आऐगी। ४.
एक सवाल नारी का
ये नजरें हैं तुम्हारी या तीर हैं तलवार हैं
या किसी बुरी लत से बनी बीमार हैं
क्यूं हर बार बेधती चली आती हैं,
मेरे ह्रदय तक मेरे बदन को,
क्या तुम कोई शिकारी मैं कोई शिकार हूँ
क्यूं हर बार नजरों से ही मैं तार-तार हूँ॥
ये तुम्हारी नजरें क्यूं ताकती हैं मुझे
मेरे चलने पर, मेरे झुकने पर, मेरे रुकने पर
क्यूं हर बार पलट जाते हो तुम मेरे निकलने पर
क्या तुम कोई शहंशाह मैं कोई गुनहगार हूँ,
क्यूं हर बार नजरों से ही मैं तार-तार हूँ॥
क्यूं बना लिये उसूल तुमने अपने हिसाब से
क्यूं फाड दिया पन्ना सच की किताब से
बस लपेट दिया मुझको लंबे से पल्लू से
दो पल की मैं बहार क्या बाक़ी बेकार हूँ,
क्यूं हर बार नजरों से ही मैं तार-तार हूँ॥
मैं खाना परोसूं या-या कोई वस्तु उठाऊँ
या सेंडल पहनने को थोडा झुक जाऊँ
तो क्यूं मेरे आंचल को छलनी कर देते हो बार बार
क्या वर्षों का बाक़ी मैं कोई उधार हूँ,
क्यूं हर बार नजरों से ही मैं तार-तार हूँ॥
नारी हूँ तो क्या हुआ माता का रूप हूँ
सच पूंछ आज ही मैं विधाता का रूप हूँ
बस प्रेम दे तो मैं ही लक्ष्मी स्वरूप हूँ
सुन “शुभ” मैं तो जगत में सदाबहार हूँ,
तो क्यूं हर बार नजरों से ही मैं तार-तार हूँ॥
क्या हाल हमारा है
क्या हाल हमारा है, क्या हम हो गये सरकार
अब तक तो जगे आप थे, क्या सो गये सरकार
इक जान को हैं खा गये इंसानी जानवार
आवाम हाहाकार करके आज रो रहे सरकार
क्या हाल हमारा है…
बेटी को क्या पढायें बचाना ही कठिन है
हर तरफ़ दरिंदगी है क्या अच्छे यही दिन हैं
इंसाफ मांगें हम, हमें इंसाफ चाहिये
इस देश की हर बेटी की बस है यही गुहार
क्या हाल हमारा है…
मां भारती के दर पर कैसी विपत पडी है
सहमी डरी डरी-सी मेरी बहनें खडी हैं
न जाने कौन कब कहाँ किसका निवाला हो
अब देश से निकाो इन्हें है यही दरकार
क्या हाल हमारा है…
वंदना
हे
माता
भवानी
शेरावाली
जगजननी
सर्वशक्तिशाली
हम आए शरण
दुख हरो कृपा करो
विनती हमारी है माता
क्रपा करो माँ कृपा करो
बिगडी बनादो हे माता
कष्ट मिटादो हे माता
पार करो हे माता
दरश दिखाओ
तम हर लो
क्षमा करो
शरण
आए
मां
दिनेश सेन “शुभ”
जबलपुर, मध्य प्रदेश
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१- आलोचक
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