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महिला सशक्तिकरण (women empowerment)
महिला सशक्तिकरण (women empowerment) : प्रेम की प्रतिमूर्ति वह महिला कहलाती है।
जीवन के कष्टो को सहकर सुंदर घर बनाती है।
महिला कभी माँ,
तो कभी बहन बनकर संसार को संवारती है।
आज महिला सशक्तिकरण (women empowerment) दिवस है,
बात महिलाओं की करते हैं।
जो जन्म देती पुरूष को,
वह पुरुष जगत को चलाता है
पर महिलाओं के शक्ति बीना पुरुष भी अधुरा रह जाता है।
रचनाकार की रचना है जीवन,
पर महिलाओं की शक्ति से जीवन सुंदर बनता है।
धरती माँ की तरह सहन शक्ति
मीरा की तरह भक्ति का पाठ महिलाओं ने ही पढा़यी है।
देश में जब संकट आया तो मातृभूमि ने ही,
रानी लक्ष्मीबाई और दुर्गाबती बनायी है
इंद्रावती, मदर टेरेसा,
विज्ञान में कल्पना चावला याद सदा रहते हैं।
महिला शक्ति महान है इन्हें याद कर कहते हैं।
भावना से भरा मन प्रेम की देवी महिला होती है,
भारत में लक्ष्मी, सरस्वती
और आदी शक्ति महिलाओं को पूजी जाती है।
माँ का दर्जा सबसे ऊंचा होता है,
मां के गोद में ही पल कर हर बच्चा बड़ा होता है।
पर समाज में ऐसा भी रूप देखने को मीलता है।
जब महिलाओं की आबरू पर संकट आता है,
एक कवि मन देख उसे बहुत रोता है।
महिला सशक्तिकरण में महिला स्व-सहायता समूह,
ने एक अच्छा रोल निभायी है।
गाँव, गाँव और शहर-शहर में
महिलाओं को आर्थिक शक्ति पहुँचायी है।
शिक्षा में भी महिलाओं ने वर्तमान में,
अपना नाम बनायी है
बालिका शिक्षा में हो रही बढ़ोतरी
पुरे भारत को राहत पहुचायी है।
महिला और पुरुष शक्ति मीलकर,
कंधे से कंधे मीलाकर जब काम करेंगे,
तब दुनिया सुंदर और विकास के सोपान को पायेगी।
चारों ओर होगी खुशहाली यह धरती स्वर्ग बन जायेगी।
टमाटर के चढ़े भाव
टमाटर लाल है।
भाव बढ़ा़कर अपना,
सबको कर रहा बेहाल है।
बाजार जाता हूँ।
सोचता हूँ लाउं किलों भर,
पर मन को मार आधा में
संतुष्ट हो जाता हूँ।
कैसे खाऊँ टमाटर की चटनी,
मंहगाई की मार ऐसे पड़ रही है।
अब बचती नहीं जेब में अठन्नी।
टमाटर कहता है हर किसी का दिन आता है।
कभी मैं दो रुपए किलों था,
रास्ते पर फेंका जा रहा था।
अब मैं लाल सोना हूँ।
किलो, सत्तर अस्सी का,
बीकता हूँ। ग़ौर से देखो।
मैं वहीं गरीब टमाटर हूँ।
कहते हैं हर गरीब का दिन आता है।
कभी दिन था, प्याज और मटर का।
अब दिन आया है, टमाटर का
अब मैं सड़ने से पहले खाया जाता हूँ।
हाँ मैं टमाटर हूँ, अपनी बात बतता हूँ।
अब मैं हर घर के स्पेशल जगह पर रहता हूँ।
जब से बड़ी है मेरी भाव,
मान इज़्ज़त बहुत पाता हूँ।
अब सलाद में मैं कम ही दिखता हूँ।
क्यो की मैं सत्तर अस्सी का जो बीकता हूँ।
संविधान दिवस
भारत जब घोर गुलामी से आजाद हुआ,
वह दिन भी, निराला था।
लेकिन राष्ट्र बड़ा था इसे चलाना भी एक चुनौती था।
तब अम्बेडकर और सभी बुद्धीजनो ने सोचा चलों,
विधान बनाते हैं।
हो भारत मेरा खुशहाल,
ऐसा संविधान बनाते हैं।
फिर संविधान निर्माण शुरु हुआ।
जब संविधान हुआ तैयार, २६ जनवरी १९५०को,
पुरे देश में संविधान लागू हुआ।
आज भी हमारी संविधान,
हमारी पूजा है।
संविधान ही है हमारी शक्ति,
इससे, न कोई दूजा है।
आज चलों २६नवम्बर को,
संविधान की रक्षा का प्रण लेते हैं।
पुरे भारत वासी एक है।
एक होकर संविधान दिवस मनाते हैं।
ओमिक्रान वायरस
फिर आ रहा यह करोना,
ओमिक्रान के रूप में।
ये कैसी महामारी का शोर है,
लगता है करोना युग का दौर है।
अब फिर से सावधान रहना है
जान है तो जहान है।
हाथों को करो सेनेटाइजर।
मुंह पर मास लगाना है।
लहर पर लहर आता जा रहा है।
जिंदगी पहली बन गई है।
जीवन ठहर नहीं पा रहा है।
अगर हम मानव के कर्मो के फल है।
अब रूक कर सोचना है।
अनमोल हैं प्रकृति इसकी,
रक्षा करना है।
दक्षिण अफ्रीका से ओमिक्रान,
अब विश्व के देशों में पांव पसार रहा है।
जिंदगी नहीं आसान जीने में,
महामारी हमें बता रहा है।
सड़क दुघर्टना
सड़क तो मंज़िल तक जाती है।
दुःख होता है तब जब सड़क दुघर्टनाओ में जाने जाती है।
अब हर जतन करना है।
बचे अपनों की जान।
सड़क दुर्घटना से बचना है।
जीवन अनमोल है।
इसे बचाना है।
हम नहीं होते अकेले।
हमसे अपनों की उम्मीद है।
की घर आयेंगे।
सपने जो संजोये।
उसे पुरा करेंगे।
दुःख उसका बड़ा है।
सड़क दुघर्टना में जान
जीसके अपनों ने गंवाया है।
ऐसे नियम हो की सड़कों पर दुर्घटना न हो।
हंसता खेलता रहे भारत।
हर घर में खुशहाली हो।
जीव और कर्म
जीवन में कर्म है।
जो सच का साथ दे,
वही सच्चा धर्म है।
जीवन में कर्म है।
पशु पक्षियों को देखो, चहचहाते है।
हंसते गाते, नीत नये कर्म, करते हैं
मानव को देख दुःख को,
मेरा मन शर्म है।
जीवन में कर्म है।
दौड़ जीवन है।
सबमें कुछ पाने को, एक ललक है।
ऐ जीवन तो, उस विराट की झलक है।
जीवन फलता फूलता वह, जहाँ नर्म है।
जीवन कर्म है।
जो जागा वह हंसा।
सच में तो, उसी का जीवन बसा।
यह हर जीव में कर्म है।
पर मानव में कर्ता दुःख, लाता है।
वह भाग्यशाली हैं।
जो जीव तो है,
पर अपने पूरे संभावना, को पा लेता है।
फिर न होता कोई कर्म बंधन
जीवन हो जाता पवित्र चंदन
आंनद में जीयो।
जगत प्रेम जगाओं,
उत्सव हर जीव का धर्म है।
जीवन कर्म है॥
रक्षाबंधन
रक्षाबंधन भाई बहनों का प्यार है
रहे सलामत मेरी बहना,
बहना भी आशिष देती भाई को,
यह पवित्र त्यौहार है।
भाई, बहन की रक्षा का वचन देता
राखी के दिन होती खुशहाली,
बहना रंग बिरंगी राखी लाती,
भाई बहना को उपहार देता निराली।
पवित्र प्रेम भाई बहन का पुर्णिमा,
को रक्षाबंधन आता है,
होती है बहनों में खुशियाँ।
भाई भी मुस्कुराता है।
साथ खेलें कूदें बड़े हुए,
एक दिन बहना ससुराल चली।
घर तो था वहीं पर न जाने क्यों,
घर अब लगता खाली, खाली।
स्कूल साथ गए करें हाथा पाई,
कभी करें स्नेह वालीं लड़ाई।
सब कुछ है भाई, बहन का प्यार,
संसार को दे प्रेम का संदेश,
खुशी, ख़ुशी रक्षाबंधन मनाये त्यौहार।
इस त्यौहार में एक और करना है
पृथ्वी, प्रर्यावरण की भी रक्षा का प्रण लेना है।
लगातार बढ़ रही, धरती माँ पर
संकट धरती माँ की भी रक्षा का,
वचन देना है।
धरती माता ने हमें सब दिया।
पर्यावरण की, रक्षा के लिए,
एक पेड़ लगाना है॥
राखियाँ
बाज़ार सजी राखियों से,
मेरी सूनी कलाई और दिल कहता
होती अगर कोई मेरी बहना,
हाथों में होती सुंदर राखि।
फिर दिल की ख़ुशी क्या कहना।
बहन सज, धज कर आती,
माथे पर तिलक लगाती।
और देती आशीर्वाद,
कलाई में राखि बाँधकर,
मिठाई, का लेता स्वाद।
मेरे दोस्तों ने राखि बाँधी,
हाथ पर प्रेम के साखियाँ है
आज चलने की शान अलग है,
हाथ में रक्षाबंधन की राखियाँ है
मैंने भी राखि बाँध ली है,
फूलों की डालियों से,
माथे पर फूलों ने तिलक लगाई है
पक्षीयो ने चहचहाकर, पूजा की,
शंख ध्वनी बजाई है।
फिर भी आंगन में सूना बैठा,
बाज़ार की सुंदर एक राखि बाँधना चाहता हूँ।
मेरी भी परि, -सी बहना है।
दोस्तों को कहना चाहता हूँ॥
माँ बड़ी न्यारी है
माँ बड़ी न्यारी है।
जगत में सबसे प्यारी है।
माँ का डांटना फिर दुलारना।
माँ की आंचल में दुनिया की।
खुशियाँ सारी है।
माँ बहुत न्यारी है।
छांव बरगद का जैसे शितलता देती है।
माँ के रूप में बसा है ईश्वर जगत में,
माँ सबसे न्यारी है।
माँ का अपने हाथों से खाना खिलाना
जैसे अमृत सारी है।
माँ बहुत न्यारी है।
संसार में ऐसा भी होता है।
जब माँ बुढि हो जाती है।
बेटा माँ को भुल जाता है।
वह बेटा बहुत दुःख पाता है।
जो कभी माँ बाप को रूलाता है।
देखना है अगर भगवान को।
माँ बाप का दर्शन करलों।
पूजना है भगवान को तो।
माँ, बाप की पूजा करलो।
सारे पाप पल भर में कट जायेगे
यह ज्ञान हृदय में धर लो।
हार नहीं मानूंगा
मैं भारत हूँ, हार नहीं मानूंगा।
कितनी भी आये संकट।
हर मुश्किल से लड़ूंगा।
मैं भारत हूँ हार नहीं मानूंगा।
मानता हूँ परिस्थिति विपरीत है।
एक दुसरे का सहयोग करूंगा।
मैं भारत हूँ हार नहीं मानूंगा।
माना दुश्मन बलवान है।
पर मेरे भुजाओं में भी जान है।
मुसिबत की इस घड़ी में।
कौन अपना, कौन पराया पहचानुंगा।
मैं भारत हूँ हार नहीं मानूंगा।
सागर मंथन के विष मैंने पिया है
दुनिया को शांति का संदेश दिया है।
कुछ भी हो अंजाम अब।
मैं चलना नहीं छोड़ूंगा।
मैं भारत हूँ हार नहीं मानूंगा।
मीटती नहीं हकिकत कभी।
मैं कभी सत्य का दामन नहीं छोड़ूंगा।
मैं भारत हूँ हार नहीं मानूंगा।
है भरोसा दिल में मेरे।
करोना को भी हराऊंगा।
लोभ, लालच को छोड़ सबकी सेवा करूंगा।
उदय होगी फिर से नया भारत।
ऐसा जतन कर जाऊंगा।
मैं भारत हूँ, हार नहीं मानूंगा।
अक्षय तृतीया
अक्षय तृतीया का आज शुभ।
दिन आया है।
करलो दान पुण्य तो आज सब मीलता है।
खोई हुई क़िस्मत मील जाती है।
करो यदि आज ईश्वर पूजन।
जीवन में खुशियों की कमल खिल जाती है।
हो अगर प्रार्थना आज।
हर मुराद पूरी हो जाती है।
है आज अक्षय तृतीया का।
शुभ दिन आओ जगत की।
मंगल कामना से भर जाए।
आज अक्षय तृतीया की शुभ।
अवसर पर कुछ पवित्र कर्म कर जाए।
किसे अपना समझूं
किसे अपना समक्षूं यह सब धोखा है।
पालूं खुंदा को शायद यह अंतिम मौका है।
माता पिता पति-पत्नी।
बच्चे कच्चे।
सब है अच्छे।
अपना समझकर देख लिया सबको सुख, दुःख में साथ।
कहाँ किसी का मीलता है।
यह हर बाग़ उजड़ जाती है।
पल दो पल के लिए कोई फुल ही खिल पाती है।
किसे अपना समझूं।
जीसे अपना समझता हूँ।
उसी से दर्द पाता हूँ।
ग़म है सीने में दबा।
फिर भी बहार मुस्कुराता हूँ।
जमाना
क्या जमाना है बीन बनाये बन जाते हैं नया फसाना है।
यह अब बड़ा दौड़ है।
चल तो रहे हैं कहीं ओर।
मंजिल कहीं ओर है।
जमाना ऐसा आया है
आंखों में नींद नहीं दिल का चैन खोया है।
अधुरे सपने हैं आंखों ने फिर भी नये,
नये सपने बनाया है।
जमाना ऐसा है अब दिल से दिल मीलते नहीं है।
बाग तो बहुत पर वह सुंदर फूल खिलते नहीं है।
रास्ते हैं बड़े-बड़े बड़े बड़ेनगर है।
अजीब दुविधा है जीवन का।
न जाने चलना किस डगर है।
भगवान भी अब दिखते नहीं है।
सच्चाई के राह पर चलने वाले।
रोते देखें जाते हर कहीं है।
जमाना बड़ा बेईमान है।
लालच, फरेब धोखे का चारों ओर बाज़ार है।
नशा है चारों ओर सब बदहवास है,
तनाव से भर रहा जीवन एक एहसास है।
अब माँ लोरी गाती नहीं है
डीजे के धून पर होती है आरती।
भक्त अब नाचता न कही है।
हर जगह अब कोलहाल है।
बीमारी और हाहाकार है।
संगीत प्रेम का खोने लगा है।
बीन आंसू बच्चा रोने लगा है।
अब मंदिरों के कपाट खुल नहीं रहे हैं।
पाठशाला बंद पड़े हैं।
बीन शिक्षा के बच्चे घुम रहे हैं।
दर्द है इस ‘बेगाना’ कवि को की
कब वह जमाना फिर आयेगा,
चारों नीरोग और शांति की बयार बहेगा।
लॉकडाउन
करोना कहर बरपा रहा है।
लाकडाउन, रोजी रोटी के लिए तरसा रहा है।
जो दीन है मज़दूर है।
जीवन चलता दिहाड़ी पर है।
छोटे हो या बड़े व्यापारी हैं।
लाकडाउन, और करोना सब पर भारी है।
देश में बचें सबकी जान।
हस्पतालो में आक्सीजन की मारा मारी है।
ये सब देख दिल बेगाना का तरसता है।
न जाने क्यों बीन बादल मेघा बरसता है।
कभी किसी ने कभी सोचा नहीं ऐसा करोना आयेगा।
करोना से बचने के कारण लाकडाउन भी रूलायेगा।
वायरस बड़ा शातिर है।
हर पल हर क्षण रूप बदलकर आता है।
टूट जाए वायरस की चेन।
बच जाये सबकी जान।
शासन मजबूरी में लाकडाउन लगाता है।
हर जंग, हर लडा़ई में कुछ खोना पड़ता है।
लाकडाउन, के सारे नियमों का हो पालन ये समय कहता है।
हर रात के बाद सुबह आता है।
करोना रुपी काली रात भी जायेगा
फिर वह सबेरा नयी उंमग लेकर आयेगा।
करोना काल
सम्भलकर चलना।
करोना काल है।
यह ज़िन्दगी हो रही बेहाल है।
क़यामत अब नज़दीक लगता है
हर रोज़ चारों ओर बस मौत है।
दर्द से चिंखती पुकार है।
गंगा में बहती अनजान लाश है।
अब तो सम्भलो करोना काल है
जेब में सेनेटाइजर मुंह में माक्र्स।
सम्भलकर चलों करोना काल है
हास्पिटलो में बेड नहीं क्या करें।
समशासन घाट का बुरा हाल है।
जीवन जीना अब दुभर है।
लाकडाउन में घर में राशन कहा।
भुख भी अब जान लेवा है।
करोना में, मुसिबत में जहाँ है।
अब सहनाईयाँ बजती नहीं है।
प्यार के सपने लिए।
दुल्हन सजती नहीं है।
अपनों को खोने का ग़म है।
संभलकर चलना करोना काल है।
अब कुछ भी सुझता नहीं है।
कब टूटेगी बचीं सांसें बेगाने की
यह बात भी समझ आता नहीं है
दुःख में भी हंसता हूँ।
करोना काल के नियमों को मानता हूँ।
चलता हूँ कि ज़िन्दगी है आज ऐसा जीता हूँ।
ग़म के आंसुओं में खुशियाँ मिलाकर पीता हूँ।
हर दुःख दूर हो जाती है।
पिछे इतिहास छोड़ जाती है।
यह जो दौर चल रहा है यह भी टल जायेगा।
फिर बादियो को चीर कर नया दौर आयेगा।
न होगा करोना काल सब होंगे खुशहाल।
एक ख़्वाब हूँ मैं
कुछ नहीं एक ख़्वाब हूँ मैं।
जीसकी कोई कहानी नहीं।
एक खुला किताब हूँ मैं।
सांसें तो चल रही है।
पर एक झुठा अहसास हूँ मैं।
आंखों में सपने नहीं।
एक ख़्वाब हूँ मैं।
सावन, भादों के बीच हूँ।
प्यास फिर भी बुझती नहीं।
जन्मों, जन्मो का हरि नाम का।
प्यासा हूँ मैं।
बरसत में पानी की बुलबुला हूँ मैं
जीवन मेरी यु ही बीत गई।
एक अनसुलझा प्रश्न हूँ मैं।
कुछ नहीं एक ख़्वाब हूँ मैं।
दर्द है सीने में इसलिए मज़ा है जीने में।
दर्द में ही जी रहा हूँ।
हकिकत न जानकर ग़म के आंसु पीकर ज़िंदा हूँ मैं।
कुछ नहीं है, मेरी यह ज़िन्दगी।
बस कुछ पन्नो का उपन्यास हूँ मैं।
बेबस जीवन की एक ख़्वाब हूँ मैं
अभी सांस बाक़ी है
जिंदगी लड़ रही है।
अभी सांस बाक़ी है।
जी न सका ज़िंदगी को।
अभी आस बाक़ी है।
अब अपनों को भी लाश।
मीलती नहीं, फिर भी जीने।
की विश्वास बाक़ी है।
जल रहा भारत करोना से।
विश्व कर रहा मदद, फिर जी
उठने की उमिंद बाक़ी है।
जीवन भर के, अपनों को।
छोड़ना नहीं चाहता।
कब्र तक तों मेरे अपने जाए।
ऐसा विश्वास बाक़ी है।
रुकी नहीं सांस मेरी अब तक।
अभी तो सांस बाक़ी है।
बंद
सब बंद ज़िन्दगी मंद है।
चहुं दिशाओं में फैल रहा
करोना फिर भी घुमना पंसद है
दम तोड़ती ज़िन्दगी।
सांस बंद है।
बेबस होती ज़िन्दगी।
नेताओं से आस बंद है।
सारी दुनिया करोना से लड़ता है
दुसरी लहर ने भारत को परेशान किया है।
आकक्सीजन, माक्र्स सेनेटाइजर
ने प्राण दिया है।
लाकडाउन ने ग़रीबी बढ़ा़या है।
भारत और इंडिया दो हिंदुस्तान बनाया है।
भारत में भुख है, करोना का दुःख है।
इंडिया में, आई पी एल है।
जिंदगी है नो टेंशन जीत के लिए रैली है।
लहर
सागर में उठती है लहकर।
तुफ़ान ले आती है।
मन में उठते तुफ़ान जीवन में।
कहर ले आती हैं।
जहाँ लहर है हल चल है।
समझो वह जीवन है।
इ-सी जी की सरल रेखा।
मर गया अब यह इंसान है।
लहरों से डरना नहीं है।
हिम्मत है अगर है तो।
तुफ़ान को भी चीर कर।
निकलना है।
सच कहाँ किसी ने।
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती है।
मुसिबतो से डरें न, उसकी हार,
नहीं होती है।
दोपहर
धूप लिए आकाश युवा है दोपहर
जीवन का मध्य काल है दोपहर।
ऋतु तीन वर्षा, शीत और गर्मी।
बेला चार, सुबह दोपहर, शाम रात
जब सुबह अच्छा हो तो जीवन।
का हर बेला करती है कुछ बात।
जिंदगी होती है खुशहाल।
जीवन की दोपहर देती है साथ।
माना गर्मी की दोपहर जलाती है।
हर दुःख के बाद ही शीतलता आती है।
पेड़ पौधे पशु पक्षी सब दोपहर में प्यास से तड़प उठते हैं।
प्यास कहाँ बुझा पाती है।
मृग मरीचिका।
इंसान हरि पाये बिन प्यासा ही।
मर जाते है।
दोपहर की लू शंदेश देती है।
सागर भाप बन जायेगा।
धरती पर फले फूले जीवन।
सागर बादल बनकर, बरसेगा।
दोपहर चमचमाती धूप।
ले रही है बीकट रूप।
अब कूलर, पंखा बीन जीवन चलता नहीं है।
बिजली गुल हो जाए तो।
गर्मी से पशीना थमता नहीं है।
राज दोपहर का बेगाना जान पाता नहीं है।
जीवन तो एक रहस्य है,
जीतना समझो फिर भी कुछ समझ आता नहीं है।
स्वपन बोस ‘बेगाना’
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