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ब्लैक कार्बन (black carbon) की वजह से समय से पहले हो सकती है मृत्यु : अध्ययन
एक नये अध्ययन में कहा गया है कि ब्लैक कार्बन (black carbon) का मानव की सेहत पर बहुत अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और इसकी वज़ह से समय से पहले ही मृत्यु हो जा सकती है। यह अध्ययन वायु प्रदूषकों के साथ जुड़ी मृत्यु दर के भविष्य के बोझ का अधिक सटीक तरीके से आकलन करने में सहायक हो सकता है।
गंगा के मैदानी क्षेत्रों में ब्लैक कार्बन (बीसी) की बहुतायत है जिसका क्षेत्रीय जलवायु और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव प्रभाव पड़ता है। बहरहाल, अधिकांश प्रदूषण आधारित महामारी सम्बंधी अध्ययन अनिवार्य रूप से पार्टिकुलेट मास कंसंट्रेशन (पीएम १० एवं / -या पीएम २.५) से संपर्क से सम्बंधित रहे हैं, जो सामान्य रूप से बिना इसके स्रोत तथा संरचना द्वारा लोगों में अंतर किए समान विषाक्तता के साथ सभी कणों को इससे जोड़ लेते हैं जिनका वास्तव में अलग-अलग स्वास्थ्य दुष्परिणाम होता है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बीसी एयरोसोल संपर्क के कारण मृत्यु दर के लिहाज से स्वास्थ्य प्रभावों का भारत में कभी भी मूल्यांकन नहीं किया गया है।
आर. के मॉल ने वैज्ञानिकों की टीम, जिसमें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग-महामना जलवायु परिवर्तन अनुसंधान उत्कृष्टता केंद्र (एमसीईसीसीआर) की निधि सिंह, अल्ला महाविश, तीर्थंकर बनर्जी, सांतू घोष शामिल थे, का नेतृत्व किया और वाराणसी में समय से पूर्व मृत्यु दर पर बीसी एयरोसोल, महीन (पीएम २.५) और मोटे कणों (पीएम १०) और ट्रेस गैसों (एसओ२, एनओ२ और ओ३) के एकल तथा संचयी प्रभाव की खोज की। उन्होंने हाल ही में एक विख्यात जर्नल ‘ऐटमॉस्फेयरिक इनविरोन्मेंट’ में अपना शोध पत्र प्रकाशित किया है।
गंगा के मैदानी क्षेत्र (आईजीपी) के लगभग मध्य में बसे शहरी प्रदूषण के केंद्र बने इस शहर को एक सब्सिडेंस जोन की उपस्थिति तथा दशकों से पाये गए एयरोसोल ऑॅप्टिकल गहराई और ब्लैक कार्बन एयरोसोल दोनों के बढ़ते रुझान के कारण पूरे वर्ष एयरोसोल भार की बहुत उच्च मात्रा और ट्रेस गैस की सघनता का सामना करना पड़ता है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम द्वारा समर्थित जलवायु परिवर्तन अनुसंधान उत्कृष्टता केंद्र के वैज्ञानिकों ने बीसी एयरोसोल, एनओ२ तथा पीएम २.५ के संपर्क का मृत्यु दर पर उल्लेखनीय प्रभाव को स्पष्ट रूप से सिद्ध करने के लिए २००९ से २०१६ तक दैनिक-सर्व कारण मृत्यु दर तथा व्यापक वायु गुणवत्ता का उपयोग किया। बहु-प्रदूषक मॉडल में सह-प्रदूषकों (एनओ२ तथा पीएम२.५) के शामिल होने से बीसी एयरोसोल द्वारा व्यक्तिगत मृत्यु दर जोखिम बढ़ गया। प्रदूषकों का प्रभाव ५-४४ आयु समूह के पुरुषों में तथा जा़ड़े के मौसम में अधिक पाया गया। उन्होंने पाया कि वायु प्रदूषकों का प्रतिकूल प्रभाव केवल संपर्क वाले दिन तक ही सीमित नहीं था बल्कि यह अगले पांच दिनों तक विस्तारित हो सकता था। उन्होंने यह भी प्रदर्शित किया कि वायु प्रदूषक स्तर में बढोतरी के साथ मृत्यु दर रैखिक रूप से बढ़ती है और उच्चतर स्तरों पर प्रतिकूल प्रभाव प्रदर्शित करती है।
बीसी को एक संभावित स्वास्थ्य खतरे के रूप में शामिल करना अधिक से अधिक महामारी सम्बंधी अध्ययनों को प्रेरित करता है और उन्हें भारत के विभिन्न हिस्सों से वायु प्रदूषकों के स्वास्थ्य प्रभावों का साक्ष्य उपलब्ध कराता है। वर्तमान संपर्क पर विचार करते हुए और बढ़ती जनसंख्या दर को शामिल करते हुए यह अध्ययन वायु प्रदूषकों के साथ जुड़ी मृत्यु दर के भविष्य के बोझ का आकलन करने में भी मदद कर सकता है। यह अध्ययन बदलते जलवायु-वायु प्रदूषण-स्वास्थ्य गठजोड़ के साथ प्रतिकूल रूप से जुड़े नुक़सान को कम करने के लिए बेहतर योजना निर्माण में सरकार तथा नीति निर्माताओं की सहायता कर सकता है।
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