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रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar)
रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) जी उत्कृष्ट रचनाकार थे,
हिंदी के प्रमुख लेखक, कवि, निबन्धकार थे।
राष्ट्रकवि के नाम से इन्हें जाना जाता है जग में,
साहित्य जगत के ये ही अमूल्य अलंकार थे।
ये छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे,
हिंदी सहित्यरूपी नभ के स्वर्णिम रवि थे,
साहित्य जगत के ये थे सशक्त हस्ताक्षर,
महान व्यक्तित्व थे, अनमोल लेखनी की छवि थे।
प्राप्त हुए इन्हें पद्म भूषण ज्ञानपीठ पुरस्कार,
इनकी कविताओं में परिलक्षित हैं इनके उच्च विचार,
दिनकर जी थे बहुमुखी प्रतिभा के धनी,
आज अर्पित करें हम इन्हें शब्द पुष्पों के हार।
जाने जाते हैं ये वीर रस के विद्रोही कवि के रूप में,
ज्ञान का सागर समाहित था इनके ज्ञान अनूप में,
इनका लेखन जग के लिए अमूल्य धरोहर है,
पीढ़ियाँ हैं दीप्तिमान साहित्य सर्जन की धूप में।
पुरातन काल में शिक्षा संस्कृति व संस्कार
पुरातन काल में शिक्षा संस्कृति व संस्कार।
वर्तमान में बना जीविकोपार्जन का आधार।
शिक्षा प्राप्त करते थे गुरुकुल में पुरातन काल में,
शनः शनः बदल गई प्राथमिकता इस काल में,
पहले संस्कारों के आभूषण से अलंकृत था मानव,
तकनीकी शिक्षा रह गयी है वर्तमान काल में।
सभ्यता और संस्कृति के वाहक थे विद्यालय,
संस्कारों से सुसज्जित था उर रूपी आलय,
तीव्र वेग से बह रही है आधुनिकता की पवन,
विद्यालय हुए नीरव, मुदित हैं मदिरालय।
नैतिक मूल्यों को करते थे ऋषि मुनि नमन,
शुचितापूर्ण होते थे कर्म, मन और वचन,
कथनी करनी में अंतर परिलक्षित होता है अब,
शिक्षा के व्यवसायीकरण का बढ़ रहा है प्रचलन।
जीविकोपार्जन का आधार बनी शिक्षा वर्तमान में,
कमी आ गयी दायित्वों के निर्वहन और रुझान में,
पुरातन शिक्षा रही संस्कृति की मुख्य वाहक,
किंचित बची नहीं संस्कृति आधुनिकता के मकान में।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
पर उपदेश कुशल बहुतेरे इस दुनिया में रहते हैं,
स्वयं के अंदर कभी न झाँके, सबकी कमियाँ कहते हैं।
मन, वचन, कर्म से शुद्ध नहीं, अंतस इनका काला है,
इनके उर में बुराईयों ने स्थायी डेरा डाला है,
अपनी ओर तनिक ध्यान नहीं होता इनका,
सदैव दूसरों को नैतिक प्रवचन देते रहते हैं।
ऐसे महानुभाव भी इस विश्व पटल पर मिलते हैं,
जो परनिंदा करके पुष्प की भाँति खिलते हैं,
समाज को सुधारने का ठेका है इनके पास,
स्वयं के अवगुणों से ये जन अनभिज्ञ ही रहते हैं।
पहले स्वयं के आंतरिक गुणों का हम विकास करें,
दूसरों पर हँसने से पहले तनिक निज उपहास करें,
जो स्वप्नों के महल बनाते हैं जर्जर स्तम्भों पर,
आखिर वह खोखले आदर्श रेत की भाँति ढहते हैं।
मोह, माया, लोभ, में ये हर क्षण रहते लीन हैं,
दूसरों का चरित्र निर्मित करने को विचाराधीन हैं,
सदमार्ग का ये स्वयं अनुसरण नहीं करते प्रीति,
प्रत्येक व्यक्ति को सन्मार्ग पर चलने को कहते हैं।
मेरे प्यारे भाई
एक बहन के सपने को पूरा करने में तन-मन लगा देते हैं,
आप जैसे भाई ही बहनों को जीने की वज़ह देते हैं।
छोटे-छोटे उपहारों से बहन को मुस्कुराहट देकर,
सौगातों और तोहफ़ों से जीवन सजा देते हैं।
ये भाई हैं इनके प्रेम पर संदेह मत करना कभी,
ये ख़ुद जलकर बहन की जिंदगी, रौशन बना देते हैं।
हर परेशानी का हल ख़ुद ही ढूँढ लाते हैं।
बहन के सपने को अपनी आँखों का ख़्वाब बना लेते हैं।
मैं भाग्यशाली हूँ जो मुझे भाइयों का प्यार मिला
बहन की आँखों से ये भाई आँसू चुरा लेते हैं।
बहन की डांट-फटकार भी हँसकर के सुनते हैं,
मान-सम्मान देकर बहनों को ख़ुदा बना देते हैं।
बहन की ख़्वाहिशों को अपने दिल में जगह देते हैं।
ये भाई ही बहनों को मुस्कुराने की वज़ह देते हैं।
हो जाता है एक बहन का जीवन सफ़ल,
जब भाई सफ़लता के शिखर को पा लेते हैं।
बहन की आँखे ख़ुशी से छलक जाती हैं,
जब भाई ख़यालों में आकर मुस्कुरा देते हैं।
बचपन में होती हैं मीठी-मीठी नोंकझोंक भाई-बहन में,
बड़े होकर ये एहसास जीवन को जगमगा देते हैं।
जब दुनिया की पथरीली राहों पर चलती हैं बहनें,
ये भाई राहों में अपना दिल बिछा देते हैं।
कलाई पर बंधे एक धागे की खातिर,
प्यारे भाई दिल-ओ-जान हँसकर लुटा देते हैं।
बहनों की खुशियों को नज़र न लग जाये कहीं,
ये भाई मंदिर में मन्नत के धागे बंधा देते हैं।
हो जाते हैं एक बहन के सारे सपने पूरे,
जब भाई ऊँचे ओहदों को पा लेते हैं।
दुनिया की सबसे खुशनसीब बहन हूँ मैं यक़ीनन,
जिसकी राखी का मान ये भाई बढ़ा देते हैं।
गौरवान्वित हूँ इतने प्यारे भाइयों की बहन बनकर,
जो मेरी इच्छाओं का भार स्वयं उठा लेते हैं।
बहन के एक सपने को पूरा करने के लिए,
ये भाई एड़ी चोटी का ज़ोर लगा देते हैं।
हर जन्मदिन पर मिले इन्हें अपार स्नेह और दुलार,
आज मेरे होंठ बस यही दुआ देते हैं।
अपने भाईयों के लिए एक छोटा-सा उपहार
निश्छल, पावन है बहुत भाई-बहन का प्यार,
मनभावन है बहुत भाई-बहन का प्यार।
भाई पिता की तरह देखभाल करता है,
खुद को बहन की बनाकर ढाल रखता है,
बहन के हर सपने को पूरा करने की कोशिश करे वो,
बहन की ख़्वाहिशों पर कभी न सवाल करता है।
बहन की एक जीत की खातिर ख़ुद को देता हार,
निश्छल, पावन है बहुत भाई बहन का प्यार।
नफा-नुकसान से परे यह अनमोल रिश्ता,
समर्पण का इतिहास, भूगोल है यह अनमोल रिश्ता,
इस रिश्ते के समक्ष गौण हैं बाक़ी सारे रिश्ते,
इस रिश्ते को स्वार्थसिद्धि की नहीं दरकार।
बहन के लिए जान तक देने को वह तैयार,
निश्छल, पावन है बहुत भाई बहन का प्यार।
कभी भाई माँ बनकर, मन की बात समझता है,
कभी भाई पिता बनकर बहन के जज़्बात समझता है,
भाई के जैसा सच्चा कोई दोस्त नहीं मिल सकता,
अपनी बहन के अनकहे एहसासात समझता है।
भाई बहन के बीच नहीं होती अना की दीवार,
निश्छल, पावन है बहुत भाई बहन का प्यार।
भाई छोटा होकर भी कद में बड़ा होता है,
बहनों की विदाई में सबसे ज़्यादा वही रोता है,
ससुराल और मायके का सेतु होता है भाई,
बहनों की आन को ताउम्र ढोता है।
भाई के दम से क़ायम है बहनों के जीवन में बहार,
निश्छल, पावन है बहुत भाई बहन का प्यार।
भाई से है रक्षाबंधन का सुंदर त्यौहार,
भाई से है हर बहन का मायका गुलज़ार,
वह भाई है जो मन की पीड़ा बिन बोले पढ़ लेता है,
बहन की खुशियों का है वह खूबसूरत संसार।
बिन बताये समझ ले मन के सब उद्गार,
निश्छल, पावन है बहुत भाई बहन का प्यार।
प्यारे भैया
प्यारे भैया आरजू नहीं मेरे दिल को उपहार की,
ख्वाहिश है मेरे मन को बस मुट्ठी भर प्यार की।
हर रक्षाबंधन पर राखी बाँधूँ तेरी कलाई पर,
दुनिया भर की ख़ुशी लुटा दूँ मैं तो अपने भाई पर,
इतना अच्छा भाई दिया नाज़ है तेरी खुदाई पर,
राम-लखन जैसे दो सद्गुणी भाई मुझे मिले हैं,
लगता है सबसे खुशनसीब बहन हूँ मैं संसार की।
आरजू नहीं मेरे दिल को प्यारे भैया उपहार की…
कभी नहीं डिगने दिया मेरे आत्मविश्वास को,
मरने नहीं दिया मन की जीने की आस को,
खोना नहीं चाहती भैया मैं इस रिश्ते ख़ास को,
मेरे सपनों के कैनवास में रंग तुम ही भरते हो भैया,
तुम्हारे प्रेम से महकती है कली हृदय गुलजार की।
प्यारे भैया आरजू नहीं मेरे दिल को उपहार की…
भाई-बहन का रिश्ता भैया सबसे पावन होता है,
बहना के लिए भाई ही मायके का आँगन होता है,
भाइयों से ही बहनों का तीज त्यौहार औ सावन होता है,
तुम ही बहन की आशाओं के केंद्र बिंदु हो प्यारे भैया
ज़रूरत है मुझे मान-सम्मान स्नेह और दुलार की।
प्यारे भैया आरजू नहीं मेरे दिल को उपहार की…
हे भैया! रक्षा-सूत्र का सदा मान बढ़ाना तुम,
कपड़े गहने और रुपए नहीं, प्यार तवज्जो लाना तुम,
बहन के सुख-दुख में सदा ही साथ निभाना तुम,
मेरी राखी को कभी न बोझ समझना हे भैया!
चाह रहेगी तुम्हारी बहन को सदा मान-मनुहार की।
प्यारे भैया आरजू नहीं मेरे दिल को उपहार की…
प्रीति चौधरी “मनोरमा”
जनपद बुलन्दशहर
उत्तरप्रदेश
१- बिखरे सपने
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