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गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) व्यास वंदना
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima): पाराशर सत्यवती सुनन्दन, श्याम गात शुभ धाम।
आपको शत-शत बार प्रणाम।
कृष्ण द्वैपायन नाम आपका।
काम एक हरि नाम जाप का।
हो पुराणों के आप रचयिता, तप करते हो बद्री धाम। …१
संजय दिव्य दृष्टि के दाता।
शौनकादि शिष्य विख्याता।
शुकदेव से सुत परम विरागी, वे परम हंस शुभ नाम। …२
श्री महाभारत की रचना कर दी।
धर्म संस्कृति जन मन में भर दी।
ओ अवतारी जनहित कारी, वंदउ वेदव्यास निष्काम। …४
विदुर धृत पाण्डु कृपा तुम्हारी।
जो लें मंत्र सो हो मंगल कारी।
नारद ऋषि ने मार्ग बताया, ये भक्ति स्वतंत्र शुभ धाम। …५
मक्खन के मन श्याम बसा दो।
ये कलि के दुर्गुण दोष हटा दो।
महा पुराण भागवत वैष्णव, जो सुन लें जन विश्राम। …६
गोस्वामी तुलसीदास
संत सिरोमणि काव्य गगन के, तुम शशि हो अभिराम।
राम कथा के अमर रचयिता, तुलसी तुम्हें प्रणाम॥
बोला राम-राम बोला ने, प्रथम धरा पर आये।
जीवन अपना सफल बनाया गीत राम के गाये।
हुलसी हुलसी मातु गोद में, अत्यल्प सुख पाये।
अप्रसन्न पंडित जी बोले, अभुक्त नक्षतर जाये।
पंचानन प्रसन्न गौरीपति, कैलाश बना सुख धाम॥१॥
राम कथा के अमर रचयिता, तुलसी तुम्हें प्रणाम।
श्रावण शुक्ला तिथि सप्तमी का शुभ योग सुपाया।
पिता आत्माराम आत्मज को नहीं गोद खिलाया।
हाय विधाता ने फिर बालक से माता को भी छीना।
कह कर अंतिम राम मातु ने निज दासी को दीना।
अन्न पूर्णा माँ ने आकर, किया पाल पोष का काम॥२॥
राम कथा के अमर रचयिता, तुलसी तुम्हें प्रणाम॥
शिव संदेश सुना नरहरि ने, भक्त भाव को पाने।
अपने शिष्यों के संग निकले इनकी खोज कराने।
राजापुर के निकट शिवालय इस बालक को पाया।
भावी भक्त जानकर इनको, हरषित हिये लगाया।
काशी वासी बना गुरु ने, तब दे दिया विद्या दाम॥३॥
राम कथा के अमर रचयिता, तुलसी तुम्हें प्रणाम॥
पावस ऋतु
गोपीं गा रहीं राग मल्लार, प्यारी पावस की ऋतु आई।
भक्ति वर्षा ऋतु सम आई, दई मेघों ने झरी लगाई।
प्रमुदित मन रहे गायक गाई। प्यारी…१
गर्मी लू लपटै अब नईया, अंकुर हरे-हरे चरै गईया।
न ई न ई वनस्पति र ई छाई। प्यारी …२
गिरि के शैल सभी धुल गये है, उपवन हरे भरे सब भये है।
सृष्टि सुरभि सुमन महकाई। प्यारी …३
दादुर वटुक वेद ध्वनि करै, वन में हिरन सुचालै भरै।
नाचै मोर शोर सुनत बदराई। प्यारी …४
झूला झूलन समय सुहाई, प्रिया की देखें राह कन्हाई।
कान्हा वंशी मधुर वजाई। प्यारी…५
जामुन आम रसीले भारी, तरू पर अलि समूह छवि प्यारी।
पक पक पेड़ तरै रहे छाई। …६
होली
तुम्हें अब रंग में रंगना, नहीं मैं चाहता मोहन।
तुम्हारे रंग रंगजाँऊ, यही बस चाहता मोहन।
तुम्हें नित देखने को मैं, नयन जो बंद करता हूँ,
मुझे भी तुम निहारो तो, यही बस चाहता मोहन। …॥१॥
लगा दो श्याम रंग ऐसा, दूसरा चढ़ नहीं पाये।
लगा दो नाम का चस्का, रातदिन जो रटा जाये।
जिधर देखू उधर मुझको, श्याम ही श्याम दिखते हों,
कोई संसार की वस्तु, श्याम को छोड़ न भाये। …॥२॥
मधुर बोली होली, जो कानों में आई।
तन मन में मेरे भी, मस्ती थी छाई।
वो बचपन का माहौल मुझे याद आया।
थे संग में सखा सब फागुन गीत गाया।
पडी पीक पावन वह पिचकारी सुहाई। …१
भस्म होलिका को सब सिर पर सजाते।
रसिया कबीरा फाग के गीत गाते।
ढोलक मजीरा झाँझ नगड़िया बजाई। …२
भंग का संग सुन्दर यौवन तरंग होता।
महबूब मुख को देखत मन भी सब्र खोता।
जवानी दिवानी रही तब तन थी छाई। …३
अब हाल ये बुढापा तुम्हें क्या सुनाये।
है दाँत नहीं मुख में चूमें चाट न खाये।
है जान नहीं तन में, पर जान याद आई। …४
राजेश तिवारी ‘मक्खन’
झांसी
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