Table of Contents
विजयी धागा (winning thread)
विजयी धागा (winning thread) कहानी है एक कैप्टन की…कैप्टन इन्द्रदेव… और इस कहानी की लेखिका हैं रीतु प्रज्ञा जी… रीतु प्रज्ञा जी बिहार के शहर दरभंगा की रहने वाली हैं… इन्हें हिंदी लेखन बहुत प्रिय है… अब तक इन्होंने कई रचनाओं का सृजन किया है… तो आइये पढ़ते हैं रक्षाबंधन पर आधारित कहानी विजयी धागा
कैप्टन इन्द्रदेव बहुत उत्साहित हैं। आवेदन लेकर मेजर के समक्ष खड़े हैं। “बहुत खुश नज़र आ रहे हो इन्द्रदेव! क्या बात है?” मेजर पूछते हैं।
“दो दिन बाद रक्षाबंधन है। बहन रीया मेरा इंतज़ार कर रही है। उससे राखी बंधवाकर मुझे बहुत हिम्मत मिलती है। मैं इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करता हूँ। मुझे घर जाने की आज्ञा दें।” इन्द्रदेव मेजर को आवेदन देते हुए बोला।
“जाओ, शीघ्र लौट आना। बहन के लिए प्यारा-सा उपहार लेना मत भूलना।” मेजर कहते हैं। इंद्रदेव वहाँ से मुस्कुराता हुआ विदा होता है। कैप्टन इंद्रदेव लद्दाख में सरहद के रक्षा प्रहरी हैं। उनकी नियुक्ति सैना में दो साल पहले हुई है। उसका घर पंजाब राज्य के लुधियाना शहर में है। वह अपनी बहन रीया से बहुत प्यार करता है। भाई-बहन का प्यार अटूट अनमोल बंधन है।
रीया पलके बिछाए इंद्रदेव का इंतज़ार कर रही है। दिन ढलने को है।
“ओह! शाम होने वाली है। अभी तक माँ भैया नहीं आए।” रीया माँ मनप्रीत से बोलती है।
“परेशान मत हो। इंद्रदेव आता ही होगा।” मनप्रीत रीया को समझाती है।
दोनों बात कर ही रही थीं कि इंद्रदेव आ जाता है। रीया बहुत खुश होती है। सभी एक साथ रात में भोजन करते हैं। मनप्रीत इंद्रदेव के लिए मनपसंद भोजन बनाती है।
“रीया इंद्रदेव को सोने दो। बहुत थका होगा। तुम भी अपने कमरे में जाकर सो जाओ। तुम्हें कल सवेरे जागना है।” मनप्रीत रीया से कहती है। भाई-बहन का प्रेम देखकर भावविह्वल है। रीया कमरे में जाकर सो जाती है।
रीया सवेरे जागकर घर की सफ़ाई करती है। नहाकर तैयार हो जाती है। इंद्रदेव के लिए मीठी हलुआ बनाती है। मनप्रीत घर में ही गुलाबजामुन और बर्फी बनाती है। विभिन्न व्यंजनों की ख़ुशबू सेआज रसोईघर महक रहा है। रीया की बनायी रेशम धागा की सुन्दर राखी मोती जड़ित थाली को सुशोभित कर रही है। थाली में दीप की लौ जगमग कर रही है। थाली में मिठाईयाँ और रोली भी रीया संग इंद्रदेव का इंतज़ार कर रहे हैं। इंद्रदेव भी तैयार हो गया है। रीया से राखी बंधवाने के लिए सोफे पर बैठता है। रीया रोली लगा बहुत प्रेम से राखी बाँधकर इंद्रदेव का आरती उतारती है। बहुत प्यार से मिठाईयाँ खिलाती हैं। इंद्रदेव उपहार का पेकैट उसे देता है।
“भैया इसकी क्या ज़रूरत थी। आप हमेशा अपने क्षेत्र में विजयी रहे। मातृभूमि की रक्षा करते रहे। आप सदैव सुरक्षित रहकर माँ, बहनो की रक्षा करें। यही मेरे लिए सबसे ख़ास उपहार है। यह सिर्फ़ राखी नहीं, बल्कि बहन का भाई के कलाई पर बाँधा हुआ विजय धागा है।” बोलते-बोलते रीया भावुक हो जाती है। इंद्रदेव दो दिन बाद लद्दाख आ जाता है।
एक दिन सूचना मिलती है कि दुश्मन की सेनाएँ सरहद पर हमला करने वाले हैं। सभी सैनिक तैयार रहे। इंद्रदेव अपनी बटालियन के साथ सरहद की सुरक्षा के लिए मुश्तैद हो जाता है। दुश्मन के सैनिक रात में सरहद पर आक्रमण करते हैं। दोनों तरफ़ से गोलीबारी होती है। इंद्रदेव बहादुरी से दुश्मन के सैनिकों से लड़ रहा है। अचानक कुछ दुश्मन के सैनिकों से वह घिर जाता है। लेकिन हार नहीं मानता है। अपने कलाई पर बँधी विजयी धागा को देखकर नयी उर्जा के साथ साहस का परचम लहराता है। दुश्मन के सैनिकों को मौत की नींद सुला देता है। सरहद सुरक्षित हो जाता है।
भारतीय सैनिकों की वीरता देखकर उनके समक्ष दुश्मन के सैनिक घुटने टेक देते हैं। सम्पूर्ण राष्ट्र इंद्रदेव और भारतीयों सैनिकों की वीरता की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हैं। समाचार पत्रों में इंद्रदेव और भारतीय सैनिकों की साहसिक कारनामा पढकर रीया बहुत प्रसन्न होती है। उन पर गर्व करती है और सैलूट करती है। “रीया तुम्हारा विजयी धागा मुझे मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रेरित करता रहा और मैं माँ भारती की रक्षा करने में सफल हुआ। मैं प्रत्येक साल रक्षाबंधन में तुम्हारे पास अवश्य आऊँगा।” इंद्रदेव फ़ोन पर रीया से बात कर ख़ुशी जाहिर करता है। इंद्रदेव की बात सुनकर रीया के आँखों से आँसू छलकने लगते हैं।
रीतु प्रज्ञा
दरभंगा, बिहार
यह भी पढ़ें-
3 thoughts on “विजयी धागा (winning thread)”