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निराश क्यों (why disappointed)
why disappointed : कल १२वी क्लास का रिजल्ट्स जारी हुआ हैं। सम्भवतः इसी हफ्ते १०वीं क्लास का भी रिजल्ट्स जारी हो जाएगा। ९५ % स्कोर करने वाले बच्चों के अभिभावक बड़े गर्व से उनका नाम और फोटो डाल रहे हैं। भला अपनी संतान की उल्लेखनीय सफलता पर किस माता-पिता को गर्व नहीं होगा? किसकी छाती चौड़ी नहीं होगी? ऐसे सभी सफल बच्चों और उनके माता-पिता को बहुत-बहुत बधाई ।
लेकिन उनका क्या जिन बच्चों ने ५४ % स्कोर किया उनके अभिवावकों के पास गर्व करने के लिए कुछ नहीं है क्या? ऐसे छात्र और छात्राएँ जो इस परीक्षा में अच्छे अंक नहीं ला सके-अपने माता-पिता की आशाओं और आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर सके-वे निश्चित ही निराश और हताश होंगे-हो सकता है उन्हें तरह-तरह के तानों का भी सामना करना पड़ रहा हो-मेरी यह पोस्ट ऐसे ही छात्र-छात्राओं और अभिवावकों के लिए है।
१९८७ की बात है। इटली में रोम नगर में एथलेटिक्स की विश्व चैंपियन हो रही थीं। १५०० मी की दौड़ में भारत का प्रतिनिधित्व कश्मीरा सिंह कर रहे थे। १५०० मीटर की दौड़ में ट्रैक के कुल पौने चार चक्कर लगाने होते हैं। यानी पहले राउंड में कुल तीन सौ मीटर और बाक़ी तीन राउंड में कुल बारह सौ मीटर दौड़ शुरू हुई कश्मीरा सिंह ने दौड़ शुरू होते ही बढ़त बना ली।
ट्रैक पर लगभग चालीस से ज़्यादा धावक दौड़ रहे थे। पर कश्मीरा सिंह सबसे आगे थे। कमेंटेटर ने बताया भारत का धावक सबसे आगे चल रहा है तीन राउंड तक कश्मीरा सिंह सबसे आगे चले। पर कमेंटेटर उनकी इस दौड़ से कतई इम्प्रेस नहीं था। वह पीछे चल रहे किन्ही दो अन्य धावकों पर निगाह रखे थे।
बहरहाल चौथा और आखिरी राउंड शुरू हुआ। एक धावक बढ़ के कश्मीरा सिंह से आगे आ गया और उसके बाद कश्मीरा सिंह उस भीड़ में खो गए और फिर कभी नहीं दिखे। बाद में जब हम लोगों ने रिकार्ड बुक देखी तो पता चला की शायद कश्मीरा सिंह ४० में से ३८वे स्थान पर रहे।
ज़िन्दगी की दौड़ में इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप पहले राउंड में आगे हैं कि नहीं। फ़र्क़ इस बात से पड़ता है कि फिनीशिंग लाइन (finishing line) पर सबसे पहले कौन पहुँचा। उस दौड़ में सोमालिया के आबिदी बाइल फिनिशिंग लाइन (finishing line) पर सबसे पहले पहुँचे और उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। इतिहास में आबिदी बाइल का नाम दर्ज है न कि कश्मीरा सिंह का।
मित्रो अभी तो ज़िन्दगी की मैराथन दौड़ का बमुश्किल पहला राउंड पूरा हुआ है फिनिशिंग लाइन (finishing line) पर न जाने कौन पहुँचेगा सबसे पहले। शुरू में बहुत तेज़ दौड़ने वाले ज़रूरी नहीं की इसी दमखम से लगे रहे। सबसे आगे वह आएगा जो धैर्य पूर्वक लगा रहेगा। जो बिना हार माने दौड़ता रहेगा। वह जिसकी निगाह लक्ष्य पर रहेगी। जीतना ज़रूरी भी नहीं। मज़ा दौड़ पूरी करने में भी है। ज़िन्दगी की दौड़ में अक्सर ५४ % भी जीतते हैं।
याद रखना चीनी बांस सबसे देरी से उगता है पर उगते ही सात हफ्ते में चालीस फुट का हो जाता है। इस लिये दौड़ते रहो, रुकना मत, और एक अंतिम विनती कि आप अपने बच्चो की तुलना किसी और से न करे…क्योकि हर एक बच्चा आदित्य है, अद्भुत है एवँ विशेष है।
सुमेर दहिया
बाङमेर राजस्थान
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